(समाज वीकली)- ‘जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय’ (NAPM) अपने सभी राज्य इकाईयों और संगठनों से आग्रह करता हैं कि संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) और देश भर के सैकड़ों संगठनों द्वारा घोषित ‘भारत बंद’ में सम्पूर्ण रूप से भाग ले। सालों से किसान आंदोलन में, और पिछले 10 महीनों में संयुक्त किसान मोर्चा में, सक्रिय हिस्सेदारी निभाते हुए, NAPM ने गाजीपुर बॉर्डर पर एक तंबू भी खड़ा किया है, जिसमें देश के अलग-अलग राज्यों से किसान संगठन और अन्य आंदोलनों से साथी लगातार शरीख हो रहे हैं और जन-विरोधी 3 कृषि-कानूनों के संघर्ष में शामिल है।
इन दस महीनों में पूरे देश को स्पष्ट हो चुका है कि केंद्र की भा.ज.पा सरकार द्वारा लाई गई तीन कृषि कानूनों का उद्देश्य किसानों को कंगाल और पूंजीपतियों बड़े व्यवसायिक घरानों को मुनाफ़ा पहुँचना है। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान सहित देश के कई राज्यों से किसान लगभग साल भर से दिल्ली के सीमाओं पर और देश के कोने-कोने में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान 605 के करीब किसान ‘शहीद’ हो चुके हैं, या कहे तो सरकार के लापरवाही और तनशाही के बलि चढ़ाए गए !
केंद्र सरकार ने कृषि से संबंधित तीन विधेयक- लोकसभा और राज्यसभा में पास करा लिए और बाद में राष्ट्रपति ने भी इस तानाशाही किसान विरोधी विधेयक को क़ानून के शक़्ल में मंजूरी दे दी। इस क़ानून में किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा), किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं, और आवश्यक वस्तु (संशोधन) शामिल है। इसके विरोध में किसान साल भर से, दिल्ली की सीमाओं पर बारिश, ठंड और गर्मी में प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों की लड़ाई, पूरे देश को बचाने की भी लड़ाई है। इस लिए 27 सितंबर भारत बंद के आह्वान को पूरे देश से अलग-अलग छोटे बड़े सभी किसान संगठनों, अन्य जन संगठनों और आम लोगों का साथ मिल रहा है। NAPM भी इस खेती बचाओं, देश बचाओं आंदोलन में शामिल है।
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन कानूनों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की पहले से स्थापित व्यवस्था, और सरकारी मंडियों को ध्वस्त कर रही है। जिसमें कोई भी व्यापारी औने पौने दाम पर अनाजों की खरीद कर जमाख़ोरी करेगा और अपने मुनाफ़े के लिए उसे मनचाहे ढंग से बाज़ार में बेंचेगा। बड़े पूँजीपतियों व्यापारियों के इस लूट के ख़िलाफ़ किसान उनके ऊपर कोई क़ानूनी कारवाई नही कर सकते हैं। यदि इस क़ानून को लागू किया जाता है तो किसानों को पूंजीपतियों, व्यापारियों और मुनाफ़ाखोरों के रहम पर जीना पड़ेगा।
मोदी सरकार और किसान यूनियनों के बीच आखिरी दौर की बातचीत जनवरी महीने के अंत में हुई थी। उस वक़्त तक भी सरकार किसानों के मांग से इंकार कर पीछे भागती रही है। तमाम बैठकों में किसानों को ग़ुमराह करने की नियत से मोदी सरकार फर्ज़ी आश्वाशन देते रही है। जिससे स्पष्ट पता चलता है कि बीजेपी सरकार किसानों के हित में नहीं, बल्कि बड़े व्यवसायिक, पूंजीपतियों के लूट/मुनाफ़ा कमाने के लिए क़ानून बना रहे है। किसान आंदोलन के लगभग एक साल पूरे हो रहे है। लेक़िन तानाशाही मोदी सरकार किसानों की एक मांग मानने को तैयार नही है। इसलिए अब सरकार को जवाब देने का वक्त आ गया है, 27 सितंबर ‘भारत बंद’ कर, किसान विरोधी, मजदूर विरोधी जन विरोधी केंद्र सरकार को होश में लाना है।
देश के अलग अलग राज्यों में किसानों के समर्थन में महापंचायत, पंचायत/सभाएं और बैठकें हो रही हैं और इन सब में महिला किसानों की बड़ी भागीदारी रही हैं । पिछले दिनों मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में जिस तरह से लाखों किसान और आम जनता एकत्रित हुए थे, उससे मोदी सरकार की नींद उड़ चुकी हैं। केंद्र सरकार और अनेक राज्यों में बीजेपी की सरकार किसान आंदोलनों को कुचलने की कोशिश में लोगों को फर्ज़ी मुक़दमे में फंसाकर ज़ेल में डाल रही है। लेक़िन किसानों के हौसले पहले से और अधिक मज़बूत हो चुके हैं जिसका दृश्य 27 सितंबर भारत बंद के दिन पूरा देश देखेगा। ‘जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय’ (NAPM) भी इस भारत बांध में मज़बूती से साथ खड़ा रहेगा।
27 सितंबर भारत बंद की मुख्य मांगें
- किसान विरोधी तीनों क़ानूनों को रद्द करों।
- बिजली बिल 2020 रदद् किया जाए।
- तमाम कृषि उपज़ के लिए MSP की क़ानूनी मान्यता दी जाए।
- कृषि उपकरणों पर सब्सिडी 80 प्रतिशत गारंटी उपलब्ध हो।
- शिक्षा स्वास्थ्य, बिजली, रेल व परिवहन के निजीकरण बन्द करों।
- व्यापारीकरण एवं डीज़ल पेट्रोल व रसोई गैस के बढ़ती कीमतों को कम करो।
- एकाधिकार पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से देश को मुक्त करों
- छात्रों और देश के युवाओं को रोज़गार गारेंटी दो।
- देश को कॉर्पोरेट घरानों के नियंत्रण से मुक्त करों।
- संविधान बचाओं, देश बचाओ