हरियाणा में जातिय  तथा धार्मिक संरचना–लोकतंत्र का डांस- : एक समीक्षा

डॉ. रामजीलाल

डांस ऑफ डेमोक्रेसी   सामयिक लेख

हरियाणा में जातिय  तथा धार्मिक संरचनालोकतंत्र का डांस : एक समीक्षा

डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिकपूर्व प्राचार्य ,दयाल सिंह कॉलेज,
करनाल (हरियाणा- भारत)
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(समाज वीकली)- प्रत्येक देश की राजनीति पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है. यही परिस्थितियां स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक चुनाव को प्रभावित करती हैं. भारतीय राजनीति में जाति और धर्म  का प्रभाव प्रत्येक चुनाव पर दिखाई देता है. जाति और धर्म की सीढ़ी राजनीति के शिखर पर पहुंचा देती है. जाति और धर्म के आधार पर प्रत्याशियों को समर्पित समर्थकों, प्रचारकों व मतदाताओं का बहुत बड़ा संगठित समूह मिल जाता है. वर्तमान लोकसभा चुनाव 2024 में हरियाणा में जातिय और धार्मिक संरचना का क्या प्रभाव होगा यह जानकारी प्राप्त करने के लिए हरियाणा की जातिय और धार्मिक संरचना का अध्ययन करना बहुत  जरूरी है.

 2011 की जनगणना के अनुसार, हरियाणा की जनसंख्या 2.54 करोड़ है. यह जनसंख्या विभिन्न धर्मों और जातियों में विभाजित हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में हिंदू (87.46%), मुस्लिम (7.03%), सिख (4.91%), जैन (0.21%), ईसाई (0.20%), बौद्ध (0.3%) व अन्य (0.1%) धर्मो के अनुयायी रहते हैं.  यह धर्म आगे विभिन्न जातियों और उप जातियों में विभाजित हैं. हरियाणा में राजनीतिक दलों के नेताओं तथा अभिजात्य वर्ग के द्वारा बार-बार 36 बिरादरी की बात दोहराई जाती है. परंतु हम इन बुद्धिमान लोगों को यह बताना चाहते हैं कि हरियाणा में 36 बिरादरी नहीं अपितु 134 बिरादरी (जातियां) हैं. ‘हरियाणा एक और हरियाणवी अनेक’ हैं.अर्थात यहां ’विभिन्नता में एकता का सिद्धांत’ लागू होता है.

पिछड़े वर्ग की जातियों की संख्या 78 (ग्रुप ए में 72 तथा ग्रुप बी में 6) हैं. वर्गीय दृष्टिकोण के आधार पर हरियाणा की कुल जनसंख्या में ओबीसी  40.94% के साथ प्रथम स्थान पर है. सामान्य वर्ग की जातियों की संख्या 19 है. सामान्य वर्ग –जाट, राजपूत, ब्राह्मण, बिश्नोई, बनिया, रोड, पंजाबी, जट सिक्ख, मुसलमान इत्यादि की जनसंख्या हरियाणा की जनसंख्या का लगभग 38.6% के साथ दूसरे नंबर पर है. सामान्य वर्ग में सर्वाधिक जनसंख्या में जाट जाति की है जो हरियाणा की कुल जनसंख्या का 25% है. हरियाणा में जाट जाति एक मात्र ऐसी जाति है  जिसका हरियाणा कीराजनीति में सत्ता पक्ष अथवा विपक्ष के रूप में आधिपत्य है. हरियाणा की जाट जाति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें दलित वर्गों तथा पिछड़े वर्गों की भांति अन्य जातियों का समावेश नहीं है. परिणाम स्वरूप खापों के द्वारा मतदान को प्रभावित करने में अहम भूमिका रहती है.

जनसंख्या के दृष्टिकोण  से तीसरे नंबर पर अनुसूचित जातियां हैं. हरियाणा की  दलित जातियों की संख्या 37 है. सन् 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में दलित वर्ग की आबादी (51 लाख) जो हरियाणा की कुल आबादी का लगभग 20% है. जबकि समस्त भारत में राष्ट्रीय स्तर पर औसतन दलित आबादी 16.2% है.  दलित आबादी के दृष्टिकोण से भारतवर्ष में हरियाणा का पांचवा स्थान है. दलित जातियों में वाल्मीकि/मजहबी/ मजहबी सिक्ख की संख्या 10,79,685, धानक समुदाय की 5,81272 और हरिजन (चमार) समुदाय की संख्या 24,29137 थी. हरिजन (चमार) , वाल्मीकि तथा धानक जातियों के अतिरिक्त बाकी शेड्यूल कास्ट जातियों की संख्या लगभग 12 लाख है.

भारत के अन्य राज्यों की भांति हरियाणा की राजनीति में भी पंचायत से लेकर संसद के चुनाव तक जातिवाद का स्पष्ट प्रभाव होता है. जाति समीकरण के आधार पर विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा जिस क्षेत्र में किसी विशेष जाति का आधिपत्य है उसी जाति  से संबंधित   व्यक्ति को उम्मीदवार घोषित किया जाता है. कई बार ऐसा भी होता है कि यदि  एक पार्टी किसी विशेष जाति के कैंडिडेट को चुनाव में खड़ा करती है तो अन्य राजनीतिक दल आधिपत्य प्राप्त जाति के अतिरिक्त अन्य जातियों के कैंडिडेट्स को चुनाव में उतरते हैं. चुनावी मुहिम को चलाते समय राष्ट्रीय तथा प्रांतीय स्तर के उन नेताओं कोआमंत्रित किया जाता हैजो उनकी जातियों से संबंधित हों और  उनकी जातियां उन्हें नेता के रूप में मानती हों. एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 55% मतदाता जातिय आधार पर मतदान का प्रयोग करते हैं. यही कारण है कि हरियाणा जैसे राज्य में पिछली शताब्दी में यह कहावत अधिक लोकप्रिय थी -‘जात की बेटी जात को , जात का वोट जात को’.कई बार मतदान को प्रभावित करने के लिए राजनेताओं के द्वारा अनेक मुहावरों का प्रयोग किया जाता है  .जातिय आधार पर ‘जातियों का छाता’ तैयार किया जाता है . 20वीं शताब्दी में चौधरी चरण सिंह के द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की सोशल इंजिंयरिंग   करते हुए ‘अजगर’ -अहीर, जाट, गुर्जर, राजपूत-   का छाता तैयार करके किसान जातियों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया.चौधरी देवीलाल के द्वारा हरियाणा में ‘अजगर’  रूपी मुहावरे को अधिक विस्तृत करते हुए इसको ‘हमअजगर’ -हरिजन, मुस्लिम, अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत की सोशल इंजीनियरिंग का छाता तैयार किया. इस प्रकार की छाता राजनीति के द्वारा मतदाताओं को प्रभावित किया जाता है तथा सामाजिक इंजीनियरिंग से समाज में एकता की संभावना अधिक बढ़ती है. हरियाणा की वर्तमान राजनीति में चौधरी देवीलाल सदृश कोई नेता नजर नहीं आता. यदि चौधरी देवीलाल के उत्तराधिकारियों में सत्ता की लोलुपता  के कारण फूट न पड़ती तो चौधरी ओमप्रकाश चौटाला –‘हरियाणा की राजनीति के ग्रैड़ ओल्ड मैन’ के रूप में’ -जाट व गैर जाट जातियों अधिक प्रभावशाली नेता होते.

वर्तमान चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी गठबंधन, इंडिया नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के द्वारा जातिय व धार्मिक समीकरण स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है.

वर्तमान लोकसभा चुनाव में “छाता राजनीति” नहीं है. भारतीय जनता पार्टी के द्वारा ऐसी ‘छाता राजनीति” तैयार करने का प्रयास तो किया जा रहा है परंतु उसमें बहुत से विरोधाभास नजर आते हैं. भारतीय जनता पार्टी का मुख्य सरोकार लोकसभा के चुनाव 2019 की भांति गैर -जाट जातियों का समीकरण साधने का प्रयास भूतपूर्व मुख्य मंत्री मनोहरलाल व वर्तमान मुख्य मंत्री नायब सिंह सैनी की जोड़ी के द्वारा किया जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी के द्वारा नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि वह ओबीसी  (40% संख्या) हितैषी  है. परंतु टीकाकारों का मानना है कि ओबीसी की आबादी विभिन्न जातियों में विभाजित है. इसलिए यह 78 जातियां कभी भी इकट्ठी नहीं हो सकती. वर्तमान मुख्यमंत्री सैनी समाज से संबंधित है. सैनी जाति की संख्या हरियाणा की कुल संख्या का 2.5% है. इस समय सैनी समाज का हरियाणा की विधानसभा में एक भी विधायक नहीं है. वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी(सांसद) भी हरियाणा विधानसभा के सदस्य नहीं है. यही कारण है कि उनको करनाल विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़वाया जा रहा है. करनाल की राजनीति का जानकारों का मानना है कि सैनी समाज के करनाल विधान सभा क्षेत्र में लगभग 5000 मतदाता है. यदि कांग्रेस पार्टी के द्वारा करनाल विधानसभा क्षेत्र के उप- चुनाव में राष्ट्रीय स्तरीय पंजाबी समुदाय के नेता को चुनाव में उम्मीदवार बना दिया गया तो भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार मुख्यमंत्री सैनी के लिए चुनावी राह इतनी आसान नहीं होगी.

हरियाणा की प्रत्येक जाति राजनीतिक दृष्टि से गुटवाद  से ग्रस्त  है. उदाहरण के तौर पर पिछड़े वर्गों में अहीर (यादव) जाति राजनीतिक रूप में सबसे महत्वपूर्ण है. परंतु इस जाति में भी मुख्य तौर पर भारतीय जनता पार्टी तथा कांग्रेस पार्टी के घटक हैं. अहीर जाति में भारतीय जनता पार्टी का सबसे प्रमुख चेहरा राव इंद्रजीत सिंह है. राव इंद्रजीत सिंह 1857 की क्रांति के महानायक राव तुलाराम व भूतपूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह के वंशज हैं. इस समय केंद्र में मंत्री पद पर हैं. यादव जाति के भाजपा में दो मुख्य घटक हैं. एक गुट का नेतृत्व राव इंद्रजीत सिंह कर रहे हैं. राव इंद्रजीत सिंह के सहयोगी ओम प्रकाश यादव की जगह राव इंद्रजीत सिंह के धुंर्धर विरोधी डॉ. अभय सिंह यादव को कैबिनेट में स्थान देकर भाजपा ने राव इंद्रजीत सिंह का कद छोटा करने का प्रयास किया है. कांग्रेस पार्टी में यादव जाति का सबसे प्रमुख चेहरा कैप्टन अजय सिंह यादव है जो कि कांग्रेस पार्टी के ओबीसी के प्रमुख हैं. इन दोनों पार्टियों में इन दोनों नेताओं के विरुद्ध अन्य अहीर नेताओं के घटक भी हैं.

इसी प्रकार वर्गों में आधिपत्य प्राप्त जाट जाति की संख्या हरियाणा की कुल संख्या का 25% है तथा यह अनेक घटकों में विभाजित है. इन घटकों का संबंध कांग्रेस पार्टी तथा आम आदमी पार्टी गठबंधन, इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से है. हमारे कहने का अभिप्राय यह है कि किसी भी एक जाति बाहुल्य चुनाव क्षेत्र में उस जाति का कैंडिडेट चाहे किसी भी पार्टी का है उसकी जीत  अन्य जातियों के  मतदाताओं के द्वारा निश्चित की  जाती है. उदाहरण के तौर पर करनाल लोकसभा चुनाव क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या लगभग 20 लाख 81 हजार से अधिक है. इन मतदाताओं में पंजाबी मतदाताओं की संख्या लगभग  2 लाख है. भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल को चुनाव में विजय प्राप्त करने के लिए अन्य जातियों के घटकों सहारा लेना पड़ेगा.

इसी प्रकार हरियाणा के अनुसूचित जातियों में हरिजन (चमार), वाल्मीकि, धानक इत्यादि जातियों में सत्ता के लिए संघर्ष है, हरिजन (चमार) जाति की संख्या इन जातियों में सबसे ज्यादा है. परंतु इस  जाति  का समर्थन कुमारी शैलजा के कारण कांग्रेस पार्टी को प्राप्त है. परिणाम स्वरूप 2019 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को जाट तथा हरिजन (चमार) जातियों का अधिक समर्थन प्राप्त था. यद्यपि अनुसूचित जातियों मेंअनेक नेता हैं. परंतु कुमारी शैलजा के सम्मुख अन्य सभी नेता बौने हैं. अनुसूचित जातियों में भी सत्ता के लिए संघर्ष के कारण एकता विद्यमान नहीं है. विशेष तौर से हरिजन (चमार), वाल्मीकि  व धानक जातियों के अंदर खुले तौर पर यह संघर्ष दिखाई देता है. भारतीय़ जनता पार्टी ने सत्ता विरोधी (एंटी इनकंबेंसी) फैक्टर के आंकलन के आधार पर वफादार सांसद श्रीमती सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर वर्तमान लोकसभा चुनाव में हरिजन (चमार) जाति के डॉ. अशोक तंवर (कांग्रेस से टीएमसी, आम आदमी पार्टी व अब 22 जनवरी 2024 को बीजेपी में शामिल हुए  – ‘अनुभवी’ व्यक्ति) व श्रीमती  बंतो कटारिया (सहानुभूति कारक व परिवाद) को चुनावी मैदान में उतारा है.हरियाणा की  अन्य 36 दलित जातियों का बीजेपी के प्रति क्या दृष्टिकोण होगा? यह एक यक्ष प्रश्न है.

भारतीय जनता पार्टी द्वारा वर्तमान लोकसभा चुनाव में धार्मिक आधार पर भी मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया जा रहा है. धारा 370, यूसीसी, सीएए, राम मंदिर, मथुरा मंदिर इत्यादि के द्वारा हिंदू मतदाताओं को रूझाने का प्रयास किया जाएगा. भारतीय जनता पार्टी के द्वारा सामाजिक, आर्थिक और अन्य क्षेत्रों मेंअपनी उपलब्धियां को बढ़ा चढ़कर कहा जाएगा और मोदी की गारंटी के साथ प्रचार किया जाएगा.

हरियाणा की राजनीति के आयाम

 हरियाणा की राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण तथा प्रथम आयाम यह है कि सन्1966 से लेकर आज तक 11  मुख्यमंत्री रहे हैं. ओबीसी वर्ग से प्रथम मुख्यमंत्री सन् 1967 में राव बीरेंद्र सिहं व दूसरे  मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी हैं. जबकि जाट बिरादरी से चौ. बंसीलाल, चौ.देवीलाल,चौ. ओमप्रकाश चौटाला, चौ. हुकम सिंह, चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पंजाबी समुदाय से चौ. भजनलाल (बिश्नोई जाति) तथा मनोहर लाल खट्टर, वैश्य समुदाय से  बनारसी दास गुप्ता व ब्राह्मण जाति से भगवत दयाल शर्मा मुख्यमंत्री के पद पर आसीन रहे हैं. हमारे कहने का अभिप्राय यह है कि अभी तक अन्य जातियों के मतदाता मतदान करते हैं और दर्शक गतिविधियों में भाग लेते हैं और ‘लोकतंत्र का डांस’ देखकर मस्त हो जाते हैं परंतु डांस में भाग नहीं लेते. अन्य शब्दों में राजनीतिक व्यवस्था के निवेशों और निर्गतों मेंउनकी सहभागिता नहीं होती.

दूसरा आयाम यह है कि अनुसूचित जातियों का संख्या की दृष्टि से तीसरा स्थान होने के बावजूद भी आज तक हरियाणा में कोई मुख्यमंत्री नहीं बना. यद्यपि अनुसूचित जातियों में चौ. दलवीर सिंह, चौ. चांदराम और कुमारी शैलजा राष्ट्रीय स्तरीय नेता रहे हैं. अनुसूचित जातियों के मतदाता चुनावी प्रक्रिया में भाग लेते हैं परंतु सत्ता के शिखर पर हरियाणा में आज तक इन जातियों का कोई प्रतिनिधि नहीं पहुंचा. डॉ भीमराव अंबेडकर के अनुसार दलित वर्ग के प्रतिनिधि दलितों के प्रतिनिधि न होकर राजनीतिक दलों के दलित बन जाते हैं.

तीसरा आयाम यह है कि हरियाणा में मतदाताओं की कुलसंख्या  1,99,38247 है. कुल पुरुष मतदाता 1,06,29859 व कुल  महिला मतदाता 1,06,29859 हैं. अनेक ग्रामीण क्षेत्रों   में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों  के मतदान अधिक होता है. परंतु सन् 1966 से लेकर आज तक एक भी महिला मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री नहीं बन सकी. मनोहर लाल मंत्रिमंडल में कमलेश ढ़ाडा एक मात्र महिला मंत्री थी. उसको बाहर का रास्ता दिखाकर वर्तमान सैनी मंत्रिमंडल में सीमा त्रिखा को मंत्री नियुक्त किया गया. महिलाओं की जनसंख्याऔर मंत्रिमंडल में स्थान के अनुपात से एकदम बहुत बड़ा असंतुलन दिखाई देता है.

हरियाणा की बेटियां श्रीमती सुचेता कृपलानी (अंबाला- भारत में प्रथम महिला मुख्यमंत्री) व श्रीमती सुषमा स्वराज (अंबाला) क्रमश: उत्तर प्रदेश और दिल्ली की मुख्यमंत्री रही हैं. केवल यही नहीं अपितु श्रीमती अरुणा आसफ अली (कालका –हरियाणा) दिल्ली की प्रथम महिला मेयर रही हैं. नारी वंदना व नारी शक्ति को व्यावहारिक रूप देने हेतु महिलाओं को 33 प्रतिशत प्रत्याशी बनाना चाहिए था. परंतु ऐसा नहीं किया गया. परिणाम स्वरूप ‘महिला सशक्तिकरण’ अथवा ‘नारी वंदना’, ‘नारी शक्ति पूजा’, अथवा ‘नारी शक्ति का पुजारी’इत्यादि के नारे खोखले और अर्थहीन जुमले नजर आते हैं.

सारांशतःधार्मिकऔर जातीय संरचनाओं के आधार पर चुनाव में उम्मीदवार खड़े करना, प्रचार करना, मंत्रिमंडल में स्थान देना इत्यादि लोकतंत्र की समस्त प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं. इनके परिणाम स्वरूप समाज सुधारऔर प्रशासनिक कमजोरी अथवा लोगों की समस्याओं का दूर होना असंभव दिखाई देता है. लोकतंत्र के डांस को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए किसान और श्रमिक वर्ग की एकता स्थापित होना अनिवार्य है. जब तकआम आदमी इस बात को नहीं पहचानेगा तब तक वह सरकारों कीगलत नीतियों के कारण शोषित होता चला जाएगा और जाति तथा धर्म की अफीम का नशा उसके वैज्ञानिक चिंतन के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनती रहेगी. वास्तव में संघर्ष का स्वरूप जातिय अथवा धार्मिक न होकर वर्गीय है. जननायक ताऊ देवीलाल के अनुसार राजनीति का केंद्र बिंदू कमरे बनाम लूटेरे वर्गों का होना चाहिए. वर्तमान समय में कमेरे वर्ग को सर्वाधिक खतरा राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बढ़ते हुए नव- साम्राज्यवाद का है. राजनेताओं,राजनीतिक दलों(वाम दलों के अतिरिक्त), अधिकारियोंऔर कॉरपोरेट्स का गठबंधन देश में प्रजातांत्रिक व्यवस्था को हाईजैक कर रहा है. भारत के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के द्वारा चुनावी बॉंड़ को असंवैधानिक घोषित करके यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि किस तरीके से कॉरपोरेट्स लोकतांत्रिक प्रक्रियायों पर हावी है.  अतः जनसाधारण का दृष्टिकोण बदलना चाहिए व कॉरपोरेट्रीकरण के विरुद्ध संघर्ष करना चाहिए ताकि लोकतंत्र और संविधान को बचाया जा सके. डांस ऑफ डेमोक्रेसी के लिए कमेरे वर्ग की निरंतर जागरूकता अतिअनिवार्य है.

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