[8 जनवरी, विश्व बौद्ध “धम्म ध्वज” दिवस]
(समाज वीकली)- 8 जनवरी, 1880 बौद्ध जगत में विशेष महत्व का दिन है क्योंकि इसी दिन ” धम्म ध्वज ” की स्थापना हुई थी। यह धम्म ध्वज सम्पूर्ण विश्व को शांति, प्रगति मानवतावाद और समाज कल्याण की सदैव प्रेरणा देता है।
बुद्ध धम्म की ध्वज पताका
षडवर्णी धम्म ध्वज का इतिहास और संदेश
यह धम्म ध्वज बहुत विचार-विमर्श करके और दूर दृष्टि से बनाया है। विश्व के अनेक भिक्षुओं को १९ वीं शताब्दी में ऐसा लगा कि बुद्ध धर्म का जैसा चिन्ह सम्राट अशोक ने चौबीस तिलियों का चक्र सारनाथ के सिंह स्तम्भ पर प्रस्थापित किया वैसा ही ध्वज रूप में एक ध्वज (धम्म पताका) होनी चाहिए ऐसा सुझाव आगे आया। धर्म सभा में अनेक सुझाव आये। अनेक मत-मतान्तर और अनेक विचार सामने आए। आखिर श्रीलंका की धर्म सभा में 1880 ई• में आर•डी•सिन्हा द्वारा तैयार किया हुआ धम्म ध्वज जागतिक तौर पर सर्वमान्य किया गया। धम्म ध्वज में 1888 ई• बदलाव करके आगे यह रंग जोड़े गये। उनका क्रम बायें से दाहिनें की ओर रखा गया। यह (नीला, पिला, लाल, सफेद और काषाय) पाँच अलग रंग और बीच में चौबीस तिलीयों का अशोक चक्र है लेकिन इस समय कई धम्म ध्वज पर चक्र नहीं दिखाई देता। इस ध्वज के आगे और पाँच रंग के (स्लिप्ट) टुकड़े जोड़े हुए हैं, इसका क्रम ऊपर से नीचे की ओर (नीला, पीला, लाल सफेद और काषाय) यही रंग आगे फिर से ऐसे क्यों लगाए गए। इसका ज्ञान हर एक उपासक को होता है, ऐसा नहीं? इसका मतलब यह है कि पंचरंगी धम्म ध्वज जैसा सभी शुद्धाचरणयुक्त उपासकों ने आखिर धर्म-त्याग की भावना की ओर ही आने का है।
१) नीला-
यह रंग विशालता, दूरदृष्टिता और अनन्तता का प्रतीक माना जाता है। बुद्ध, धर्म यह विशाल दूरदृष्टि सागर के अनन्त जैसा है, जिसके अन्दर सब कुछ समा लेने की क्षमता है। कोई भी आये और देखे। जो आदि (प्रथम), मध्य और अन्त में भी गुणकारक है, मानवता का कल्याण करने वाला है। धर्म में यह त्याग के बाद ही विशाल बनाता हैं। इसलिए पंचरंगी ध्वज में यह रंग सम्मिलित किया गया।
२) पीला-
यह रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता हैं। बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं ने, सम्राटों ने अपना मस्तक (सर) इस धर्म के आगे झुकाया और वे इस धर्म की शरण में गये। उनको यह धर्म सोना, चाँदी, हीरे, मोतियों से भी बहुत सुन्दर (प्रिय) लगा। सोने का रंग पीला है। सोने जैसा मूल्य (किमत) देने वाला जीवन समृद्ध और सुखमय बनाने वाला धर्म प्रकाश मनुष्य के लिए अन्तिम समय तक उपयुक्त है। भिक्षुओं का पीला वस्त्र यह ज्ञान समृद्धि, वैराग्य, विरक्तता, शुद्धता दर्शक है। इसलिए पंचरंगी ध्वज में यह रंग सम्मिलित किया गया।
३) लाल-
यह रंग अग्नि का प्रतीक माना जाता है। धर्म में प्रविष्ट होना है तो धर्म को ठीक तरह से समझ लेना होगा तो अग्नि के समक्ष जाना पड़ेगा। अपने अन्दर के राग, द्वेष, लोभ, मोह, काम, मत्सर इन षड़ (छः) विकारों की बली अग्नि में देनी चाहिए। तभी उस व्यक्ति को धर्म में प्रवेश मिलेगा। सभी दुर्गुणों को जलाने के बाद ही सद्गुण ग्रहण कर सकता है। बुरे वर्तन, दुर्गुण जलाने के लिए कहने वाला यह लाल रंग पंचरंगी ध्वज में लिया है। लाल हुआ लोहा जैसे योग्य आकार लेता है, वैसे ही सभी मलों से रहित हुआ व्यक्ति ही धर्म सेवन (धारण) कर सकता है।
४) सफेद-
यह रंग पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। शुद्धता, निर्मलता और पवित्रता इनका प्रतीक सफेद रंग है। अगर बुद्ध धर्म की शरण में जाकर उसका आचरण करना है तो उस व्यक्ति को शुद्ध दुष्कृत्य (पाप) रहित मनुष्य जैसा ही आचरण रखना चाहिए, इसके लिए उसे धर्म की आवश्यकता है। उसे अपना जीवन शुद्ध और मंगलमयी बनाने की प्रेरणा यह रंग देता है। इसलिए यह रंग पंचरंगी धम्म ध्वज में सम्मिलित किया गया।
५) काषाय-
यह रंग वैराग्य, विरक्तता, त्याग का प्रतीक माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को धर्म के लिए, समाज के लिए त्याग करने की भावना यह रंग देता है। जिस प्रकार से भिक्षु विरक्त होते हैं। उनका यह महान त्याग है। उपासकों को भी त्याग थोड़ा-थोड़ा लाभ उठाना चाहिए। इसमें से ही धर्म-क्रान्ति होती है। इसके लिए धर्म देसना (उपदेश), लेन-देन से धर्म के लिए पुत्र दान, धर्म, धन, ज्ञान, भोजन, वस्त्र, आवास, धम्म विहार दान ऐसे अनेक दानों के लिए तैयार होने की प्रेरणा यह रंग उपासकों को देता है। देवानाम प्रिय महान सम्राट अशोक ने अपने पुत्र एवं पुत्री को धम्म के लिए दान कर चौरासी हजार स्तूप, चैत्य, विहार आदि बना कर दान किया। इसलिए यह रंग पंचरंगी धम्म ध्वज में सम्मिलित किया गया है।
सम्यक सम्बोधि प्राप्ति के समय तथागत बुद्ध के शरीर से निकली पाँच रश्मियाँ को लक्ष में रखकर षडवर्णी ध्वज तैयार किया गया है।
नमो बुद्धाय
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08.01.2024