जी-20 शिखर सम्मेलन की भारतीय संदर्भ में प्रासंगिकता: पुनर्मूल्यांकन

जी-20 शिखर सम्मेलन की भारतीय संदर्भ में प्रासंगिकता: पुनर्मूल्यांकन

डॉ. रामजीलाल, समाज वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य,दयाल सिंह कॉलेजकरनाल (हरियाणा) Email – drramjilal1947@ gmail.com

(समाज वीकली)- द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात विश्व शीत युद्ध की लपेट में आ गया और विश्व दो खेमों -पूंजीवादी गुट व साम्यवादी गुट विभाजित हो गया. पूंजीवादी गुट का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था और साम्यवादी गुट का नेतृत्व भूतपूर्व सोवियत संघ (अब रूस)कर रहा था .दोनों गुटों के द्वारा आर्थिक और सैन्य क्षेत्रीय संगठनों नाटो ,सीटो व सेंटो-(अमेरिका द्वारा नेतृत्व) बनाम वारसा पैक्ट (सोवियत संघ द्वारा नेतृत्व) की स्थापना की गई ताकि एक दूसरे की घेराबंदी की जाए .अंतरराष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप आतंक के संतुलन‘(Balance of Terror)में परिवर्तित हो गया. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में आर्थिक हितों का महत्वपूर्ण स्थान है.यही कारण है कि विश्व के अमीर राष्ट्रों -अमेरिका ,कनाडाब्रिटेनफ्रांस जर्मनीइटली और जापान के द्वारा सन् 1975 में G7 की स्थापना की गई.G7 का मुख्य उद्देश्य अपने आर्थिक हितों का संवर्धन करना और भूतपूर्व सोवियत संघ व अन्य साम्यवादी देशों की घेराबंदी करना था. परंतु समय और परिस्थिति में परिवर्तन प्रकृति का  स्थाई नियम है.परिस्थितियों के बदलने से राष्ट्रीय नीतियों  में भी परिवर्तन करना पड़ता है.

भूतपूर्व सोवियत संघ  के विघटन के पश्चात सन् 1991 में पश्चिमी देशों की उदारीकरण ,निजीकरण और वैश्वीकरण(एलपीजी)की आंधी से संपूर्ण विश्व प्रभावित हुआ . वैश्वीकरण व मुक्त बाजार प्रणाली की नीति का प्रमुख उद्देश्य पूरे विश्व की आर्थिक व्यवस्था को नियंत्रित और नियमित करना था और दुनिया के अन्य देशों को इसके अनुकूल आर्थिक और व्यापारिक नीतियां बनावाना था ताकि वैश्विक बाजार अमीर देशों , उनके पूंजीपतियों और कॉरपोरेट्स के लिए के लिए खुले रहें . विद्वान अर्थशास्त्रियों ने इस नीति को पश्चिमीकरण’, अमेरिकीकरण या निगमीकरण भी कहा है. भूतपूर्व सोवियत संघ के विघटन पश्चात वर्तमान रूस आर्थिक दृष्टि से कमजोर हो गया और उसने भी भूमंडलीकरण की नीतियों को अपनाना प्रारंभ किया. परिणामस्वरूप रूस भी इस ग्रुप का हिस्सा हो गया और 22 वर्ष के पश्चात सन् 1997 में G7 से G8 हो गया. एशियाई वित्तीय संकट के बाद आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सन् 1999 में जी-20 ग्रुप अस्तित्व में आया. प्रारम्भ में इसके सम्मेलनों में सदस्य राज्यों के वित्त मंत्री तथा विश्व के प्रमुख बैंकों के गवर्नर ही भाग लेते थे .सन् 1999 से सन् 2008 के अंतराल में भूमंडलीकरण के भयंकर परिणाम आने लगे.

भूमंडलीकरण की नीतियों को अपनाते हुए भारत जैसे देश में राष्ट्रीयकरण की अपेक्षा निजीकरण, निवेशीकरण की अपेक्षा  विनिवेशीकरण  सरकारी उपकरणों  को पूंजीपतियों को औने -पौने दामों में  बेचने की प्रक्रिया तेज हो गई.अमीर व गरीब के मध्य खाई,गरीबी,भूखमरी,  बेरोजगारी,सरकारी संस्थानों में रिक्त स्थानों  पर नौकरियों में नियमित  भर्ती करने की अपेक्षा अस्थायी व संविद पर आधारित नौकरियां दी जाने लगी और आधारभूत ढांचा चरमराने लगा.   सन् 2008 तक इस आर्थिक संकट व  आर्थिक मंदी की लहर पूरी दुनिया में दौड़ गई. भूमंडलीकरण के विरुद्ध आंदोलन होने लगे. परिणाम स्वरूप जी- 20 के उद्देश्यों में परिवर्तन करना पड़ा.सन् 2009 में जी-20 को”अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग हेतु प्रमुख मंच” बनाया गया.परंतु अमीर देशों अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और वित्तीय संस्थानों के दबाव के कारण भूमंडलीकरण की नीति को नही बदला . ग्लोबल और लोकल दोनों साथ-साथ चलने लगे .अनेक देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं को स्थानीय रूप देने का प्रयास किया और ग्लोबलाइजेशन को चुनौतियां भी दी गई. हमारे कहने का अभिप्राय यह है कि भूमंडलीकरण, निजीकरणऔर उदारीकरण के  सुनहरे सपनों की सुनहरी चमक पीली पड़ गई.

बी20 ग्रुप का उदय :

इस संकट के गर्भ से जी20 देश का सहायक बी 20 ग्रुप उत्पन्न हुआ.इसलिए बी 20  का जिक्र करना अति अनिवार्य है. बी20 ग्रुप का गठन जी-20 देशों की नीतियों को नियंत्रित करने और वैश्विक व्यापार समुदाय का ग्रुप गठित करने के लिए किया गया. जी20 शिखर सम्मेलन के लिए बी20 के द्वारा तैयार किए गए केंद्र बिंदु लचीले वैश्विक व्यापार और निवेश के लिए समावेशी जीवीसी, कार्यकौशल और गतिशीलता का भविष्य,डिजिटल परिवर्तन, वैश्विक आर्थिक सुधार के लिए वित्तपोषण, आर्थिक सशक्तिकरण के लिए वित्तीय समावेशन, ऊर्जाजलवायु परिवर्तन और संसाधन दक्षता,टेकइनोवेशन और आर एंड डी हैं.

18वें G20 शिखर सम्मेलन: मुख्य केंद्र बिंदु

18वें G20 शिखर सम्मेलन के मुख्य केंद्र बिंदु अधोलिखित है:

शिखर सम्मेलन से पूर्व तैयारी: G20 के 18वें  शिखर सम्मेलन से पूर्व सन् 2023 में 10 महीने शिखर सम्मेलन के कार्यक्रम का सूत्रधार निरंतर चलता रहा . इन 10 महीनों में देशभर के 58 शहरों में जी20  की 200 से ज्यादा बैठकें हुईं. (https://www.aajtak.in › events › story)

सन् 2023-24 के बजट में, G20 के दो दिवसीय शिखर सम्मेलन की तैयारी के लिए 990 करोड़ रुपये का बजट घोषित किया गया था.परंतु निर्धारित राशि से चार गुना (4,110 करोड़)अधिक खर्च हुआ.  इसके बिलकुल विपरीतसन् 2022 में इंडोनेशिया के 364 करोड़ रुपयेसन् 2019 में जापान के 2,660 करोड़ रुपयेसन् 2018 में अर्जेंटीना के 931 करोड़ रुपये, सन् 2017 में जर्मनी के 642 करोड़ रुपयेसन् 2014 में ऑस्ट्रेलिया के 2,653 करोड़ रुपये और रूस के सन् 2013 में 170 करोड़ रुपयेसन् 2011 में फ्रांस के 712 करोड़ रुपये और सन् 2010 में कनाडा के 465 करोड़ रुपये खर्च हुए थे.

 >(https://www.indiatoday.in/newsmo/video/g20-summit-budget-india-has-spent-over-rs-4100-crore-heres-breakdown-2434521-2023-09-12)

>(‘’https://www.nationalheraldindia.com/national/indias-g20-summit-spend-compared-to-past-hosts)

विभिन्न बैठकों में भागीदारी करने वाले सदस्यों को भारत के सामाजिकआर्थिक,राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलूओं का व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त हुआ. पूर्व से पश्चिम तक ,उत्तर से दक्षिण तक इन प्रतिभागियों ने भारत की भाषा,जातिधर्म ,संस्कृति ,उप संस्कृति इत्यादि विभिन्नताओं का ज्ञान हुआ.उनको यह मालूम हुआ कि भारत में ‘’विभिन्नता में एकता का सिद्धांत’’ भारतीय एकता, अखंड़ता व शक्ति की ऐसी सबसे महत्वपूर्ण वह कड़ी है जो हिंदुस्तान को एकत्रित रखे हुए हैं. विभिन्नता में एकता के कारण ही देश की शक्ति विद्यमान है और इस सिद्धांत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जहां असंख्य विभिन्नताएं हैं वहां भी लागू किया जा सकता है ताकि समस्याओं का समाधान किया जा सके.

सबसे बड़ा सम्मेंलन: भारत की G20 अध्यक्षता में इससे पूर्व होने वाले 17 सम्मेलनों में सबसे बड़ा सम्मेंलन था.इसमें 135 राष्ट्रीयताओं से 100,000 से अधिक प्रतिभागियों ने शिरकत की. (>https://www.aajtak.in › events › story)   इस शिखर सम्मेलन में 19 सदस्य देशों व यूरोपीयन संघ(EU) के अतिरिक्त अतिथियों ने भी भाग लिया.इन अतिथियों में नौ अतिथि देश,11 नियमित अंतरराष्ट्रीय संगठन और अफ्रीकी संघ ने भाग लिया. नई दिल्ली शिखर सम्मेलन2024 में अफ्रीकी  संघ जी– 20 का 21वां स्थायी सदस्य  बन गया.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का नई दिल्ली G20 शिखर सम्मेलन में शामिल न होना एक आश्चर्यजनक प्रश्न चिन्ह लगाता  है.

भारत में होने वाले इस शिखर सम्मेलन में भारत के लगभग 500 प्रमुख व्यावसायिक हस्तियां और कॉरपोरेट टाटा संस के अध्यक्ष एन चंद्रशेखरन , कुमार मंगलम बिड़लाभारती एयरटेल के संस्थापक-अध्यक्ष सुनील मित्तल रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुकेश अंबानी और अदानी समूह के अध्यक्ष को आमंत्रित किया गया था. भारतीय कॉरपोरेट्स, अंतर्राष्ट्रीय नियमित संगठनों-आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक, डब्ल्यूटीयो इत्यादि का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव जी– 20 सम्मेलन के निर्णयों पर पड़ना स्वाभाविक है.

उद्घोष वसुधैव कुटुंबकम:, 18 वें G20  शिखर सम्मेलन(9 और 10 सितंबर2023)   का आयोजन नई दिल्ली संपन्न हुआ . इस शिखर सम्मेलन में वैश्विक मसलों पर मंथन किया. भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अध्यक्षीय भाषण  में वैश्विक परिवार  के  “वसुधैव कुटुंबकम ” के उद्घोष   को वैश्विक  एकता का आधार माना. यह उद्घोष उपनिषद् से लिया गया.इसका अर्थ है -‘विश्व एक परिवार है भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए ‘एक पृथ्वीएक परिवारएक भविष्य कहाभारतीय मनिषियों ने हजारों वर्ष पूर्व पूरे विश्व को ‘एक परिवार उद्घोषित किया है.

हाइलाइट:

 इस शिखर सम्मेलन में सहमति से जो प्रस्ताव पास किया गया उसके मुख्य केंद्र बिंदु  जलवायु एवं सतत वित्त,सतत विकास को गति देना,खाद्य असुरक्षा को संबोधित करना,ऊर्जा असुरक्षा को संबोधित करना,वित्तीय समावेशन,वैश्विक स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत बनाना,वैश्विक आर्थिक सुधार पर ध्यान देना,बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा बनाना, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन करना. इत्यादि घोषित किए गए

यद्यपि G20 शिखर सम्मेलन को भारतीय राजनय और विदेश नीति के इतिहास में  सबसे बड़ा सम्मेलन बताया गया है.परंतु 41 वर्ष पूर्व सन् 1983 में जब श्रीमती इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थी उस समय गुटनिरपेक्ष देशों का एक ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन (अधिवेशन) दिल्ली में हुआ था. सरोज बादल के अनुसार G20 के विराट स्वरूप का इतना प्रचार किया गया कि इस प्रचार प्रसार में सन् 1983 में होने वाले महत्वपूर्ण गुटनिरपेक्ष आंदोलन को भूल गए हैं. सरोज बादल ने आगे लिखा है कि इस ऐतिहासिक अधिवेशन में 99 सदस्य और 27 अतिथि देशों यानि 126 देशों के राष्ट्रप्रमुख शामिल हुए थे इनके अलावा 15 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के शीर्षस्थ प्रमुख भी थे. तीन चौथाई से ज्यादा दुनिया दिल्ली में थी. अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की स्वीकार्यता का यह महत्वपूर्ण समय था. मगर उसमें भी इंडिया और भारत केंद्र में था.’ >(https://janchowk.com/pahlapanna/election-hawk-raja-made-g-20-a-show-of-self-promotion/

G20 अध्यक्ष के रूप में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 1 दिसंबर 2023 से पूरे वर्ष के लिए अध्यक्षता ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा को सौंपी गई.

इस शिखर सम्मेलन से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत का मान- सम्मान बढ़ा है और भारत के  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कद भी गौरवमयी हुआ है.

भारतीय संदर्भ में जी-20 की प्रासंगिकता

20वीं व वर्तमान शताब्दियों में यातायात और संचार के साधनों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है.संचार के साधनों में प्रिंट मीडिया के अतिरिक्त रेडियो व टीवी. इंटरनेट, मोबाइल, व्हाट्सएप, ईमेल  इत्यादि  के कारण समय व स्थान की दूरियां समाप्त हो गई हैं. संचार की दृष्टि से समस्त देशों की भौगोलिक सीमाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं. इसीलिए एक नई शब्दावली सीमा रहित विश्व(वर्ल्ड विदाउट बाउंड्रीज)का प्रयोग किया गया है. विश्व के एक कोने में होने वाली कोई भी घटना अथवा दुर्घटना हजारों किलोमीटर दूर संचार साधनों के कारण एक सेकंड में पहुंच जाती है.यही कारण है कि आज संचार की दृष्टि से समस्त दुनिया मुट्ठी में है. परिणामस्वरूप प्रत्येक देश के आर्थिकसामाजिक राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर निरंतर प्रभाव बढ़ता जा रहा है. संचार के साधनों के कारण विश्व के धनी देश और उनके कॉरपोरेट हाउसों के द्वारा  विश्व की आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, सामाजिक तथा अन्य गतिविधियों, नीतियों व कानूनों को निरंतर प्रभावित किया जा रहा है. इस समस्त प्रकरण में अंतरराष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे विश्व व्यापार संगठन (WTO) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक (WB) इत्यादि जब विकासशील राज्यों को ऋण देते हैं तो उन पर अनेक शर्तें थोंप दी जाती है. इनका प्रभाव जी20 सम्मेलनों के कार्यक्रमों से संबंधित तैयार किए गए प्रस्तावों में भी  प्रमुख रूप से दिखाई देता है. इन प्रस्तावों में पूंजीवादी अर्थव्यवस्थामुक्त बाजार प्रणाली, उदारीकरण, निजीकरण व विनिवेशीकरण इत्यादि को प्रत्यक्ष व  अप्रत्यक्ष रूप से थोंपा जाता है.G20 के  नियमों पर अथवा  फैसलों   पर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक  संगठनों विश्व व्यापार संगठन(WTO) विश्व बैंक(WB) तथा अंतरराष्ट्रीय मॉनेटरी फंड (IMF) का गहरा प्रभाव गहरा पड़ता है क्योंकि इन  पर नियंत्रण अमेरिका के नेतृत्व में G7 देश (अमेरिका, जापानकनाडाइटली,  जर्मन, फ्रांस और इंग्लैंड) का है.

विश्व के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठनों में  कृषि क्षेत्र में वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन प्रभाव का  पड़ता है .जिसके परिणाम स्वरूप समस्त आर्थिक व्यवस्थाएं प्रभावित होती है. इस समय भारत तथा यूरोपियन  यूनियन के देशों में किसान आंदोलित हैं. इसलिए इस सामयिक विषय पर वर्तमान संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर विचार  करना जरूरी है.

 टैरिफ और व्यापार सामान्य समझौते(गैट -GATT) बहुराष्ट्रीय संधि-  पर 30 अक्टूबर 1947 को जिनेवा में 23 राज्यों के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर होने के पश्चात 1जनवरी 1948 को गैट  कानूनी रूप धारण कर गया. इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को आसान बनाना और उसके मार्ग में आने वाली बाधाओं –टैरिफ या कोटा इत्यादि को कम या समाप्त करना था. सन्  1947  से दिसंबर 1995 तक (गैट -GATT) की कुल 9 दौर की वार्ताएं आयोजित की गई. जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन की विधिवत स्थापना हुई. परिणाम स्वरूप गैट (GATT) को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में समाहित कर लिया गया. अन्य शब्दों में डब्ल्यूटीओ गैट (GATT)  का उत्तराधिकारी संगठन है. विश्व व्यापार संगठन के 123 देश संस्थापक सदस्य थे.आज इसके सदस्य देशों की संख्या 164 हैं तथा 24 देश इसके पर्यवेक्षक सदस्य के रूप में हैं.

 डब्ल्यूटीओ का 13वां मंत्रिमंडल स्तरीय सम्मेलन (26 फरवरी 2024- 29 फरवरी 2024) संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अबू धाबी में आयोजित किया गया. विश्व व्यापार संगठन के पूर्व निर्णय के अनुसार खाद्य सब्सिडी बिल सन् 1986 -1988 के संदर्भ मूल्य के आधार पर उत्पादन के मूल्य के 10% से अधिक नहीं होना चाहिए . यह संगठन बार-बार सदस्य देशों पर दबाव डाल रहा है कि सन् 2034 के अंत तक कृषि क्षेत्र में किसानों दी जाने वाली सहायता राशि में 50% की कटौती की जाए. यही कारण है कि भारत में केंद्र में चाहे डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस नीत यूपीए  सरकार होअथवा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा नीत एनडीए की सरकार हो  स्वामीनाथन रिपोर्ट  की  सिफारिश सीटू  + 50% (C2 + 50%)के आधार पर समर्थन मूल्य देने के लिए तैयार नहीं है. किसानों की मांग है कि सीटू  + 50%  के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी जामा पहना कर लागू किया जाए. अन्य शब्दों में भारत सरकार निधी सम्मान दे रही है परंतु किसान इसके साथ-साथ विधि सम्मान की मांग भी कर रहे हैं.

 भारतीय कॉरपोरेट्स को सुविधाएं देने के लिए  अथवा कृषि का निगमीकरण करने के लिए भारत सरकार के द्वारा जून 2020 में कृषि संबंधी तीन अघ्यादेश  जारी किए गए थे तथा कालांतर में इनको अधिनियमों का रूप दिया गया था उन्हीं के विरुद्ध किसान आंदोलन -1 (सन्2020-सन्2021) प्रारंभ हुआ. किसान आंदोलन -2 (फरवरी 2024) में किसान नेताओं के द्वारा विश्व व्यापार संगठन के साथ समझौता रद्द मांग भी की है. सयुंक्त किसान मोर्चा के अनुसार किसान आंदोलन-2 के 14वें दिन 26 फरवरी 2024 को समस्त भारत में 400 से अधिक जिलों में विश्व व्यापार संगठन छोड़ो दिवस (WTO Quit Day) मनाया गया,  ट्रैक्टर मार्च निकाली गई व डब्ल्यूटीओ और कॉरपोरेट दिग्गजों के पुतले जलाए गए ताकि विश्व व्यापार संगठन पर दबाव डाला जाए और कृषि क्षेत्र को समझौते से बाहर करते हुए सीटू  + 50%  के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू किया जाए (दैनिक ट्रिब्यून, 27फरवरी 2024,पृ.2)

भारत में ही नहीं अपितु यूरोपीय यूनियन के 27 देशों के कृषि मंत्रियों की बैठक बेल्जियम के यूरोपियन यूनियन के हेड क्वार्टर, ब्रसेल्स शहर में26 फरवरी 2024 को हो रही थी. यूरोपियन यूनियन के हेड क्वार्टर (ब्रसेल्स )से लगभग 100 मीटर दूर किसानों ने ट्रैक्टरों को झंडों और बैनरों से सजाकर ट्रैक्टर यात्रा निकाली. यूरोपियन यूनियन के हेड क्वार्टर की ओर बैरियर कंक्रीट की बाधाओं और कंटीले तारों को –तोड़ कर किसान आगे बढ़ते चले गए. विश्व व्यापार संगठन की किसान विरोधी उदारवादी नीतियों  का जम कर विरोध किया क्योंकि कृषि व्यापार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पक्ष में है. परिणामस्वरूप किसानों को अपने उत्पाद का सही मूल्य न मिलने के कारण सीमांत किसान बर्बाद हो रहे हैं. किसानों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए पुलिस पर अंडे और पटाखे फेंकेसड़कों पर पुराने टायरों (रबर के ढेर) और पुआल में आग भी लगाई. जवाबी कार्रवाई में पुलिस के द्वारा वाटर कैनन का प्रयोग किया गया. परंतु ड्रोन से अश्रु गैस के गोले नहीं फेंके जैसा कि पुलिस के द्वारा शम्भू बार्डर किया गया.

(https://www.dailypioneer.com/2024/world/farmers-converge-on-eu—s–hq-in-fresh-show-of-force.html)

भारत के प्रधानमंत्री के द्वारा भारत को लोकतंत्र की जननी कहा है परंतु वास्तविक स्थिति यह है देश में कहीं ना कहीं हररोज हड़ताल और आंदोलन होते हैं . सरकार   समस्याओं का समाधान करने में असमर्थ होती है. इसका नवीनतम उदाहरण हम किसान आंदोलन एक (ONE) और किसान आंदोलन दो (Two) का दे सकते हैं .किसान आंदोलन एक(2020-2021) में लगभग 750 किसान अकाल मृत्यु का ग्रास हुए थे और किसान  निलंबित मांगों के लिए मांगों को लागू करवाने के लिए किसान आंदोलन दो’(TWO) कर रहे हैं .प्रजातांत्रिक  हल निकालने की अपेक्षा सरकार के द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग पर कीलें ठोकनाकंक्रीट की दीवारें खड़ी करना ,अवरोध खड़े करनापुलिस  तथा अर्धसैनिक बलों का प्रयोग करनाड्रोन के जरिए अश्रु गैस छोड़ना,  वाटर केनन के जरिए ठंडे पानी की बौछार करनाघरों में नजर बंद करना, जेलों में बंद करनाकिसानों पर लाठी चार्ज करना इत्यादि वास्तव में गैर लोकतांत्रिक है.

G7 देशों , अंतरराष्ट्रीय आर्थिक  संगठनों विश्व व्यापार संगठन(WTO) विश्व बैंक(WB), अंतरराष्ट्रीय मॉनेटरी फंड(IMF) तथा भारतीय कॉरपोरेट्स के गठबंधन का प्रभाव अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ता है .भारत सरकार के द्वारा हस्ताक्षरित सन 2015 के समझौते के आधार पर अन्य क्षेत्रों को  भारतीय देशी और विदेशी कॉरपोरेट सेक्टर के लिए खोल दिया गया. शिक्षा के क्षेत्र में प्राइमरी स्कूल से लेकर राष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्थानों तक अस्थाई नियुक्तियां होने लगी. निजी शिक्षण संस्थानों की स्थापना के धीरे-धीरे बढ़ रही है .परिणाम स्वरुप यदि एक ओर कर्मचारियों और शिक्षकों का शोषण होता है तो दूसरी ओर विद्यार्थियों से बहुत अधिक फीस से वसूली जाती हैं तथा शिक्षा की गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ा है.ऐसी स्थिति में गरीबोंकिसानों और मजदूरों के बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित होते चले जाएंगे और शैक्षिक क्षेत्र में एक अंतर उत्पन्न हो जाएगा .

पूंजीवादी अर्थव्यवस्थामुक्त बाजार प्रणाली ,तथा उदारीकरण इत्यादि के कारण विश्व के विभिन्न देशों में आर्थिक असमानता में वृद्धि हुई है.  फ्रेंच अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने अपनी पुस्तकCapital in 21st Century: 2013) में बढ़ती हुई आर्थिक असमानता की व्याख्या एक  r > g  सूत्र के आधार पर की है. थॉमस पिकेटी ने अपने ‘’तर्क को एक सूत्र पर आधारित किया है जो पूंजी पर रिटर्न की दर (r- आरको आर्थिक विकास (जीसे जोड़ता हैजहां आर में लाभलाभांशब्याजकिराया और पूंजी से अन्य आय शामिल है और जी( g)  को समाज की आय की वृद्धि के या आउटपुट रूप में मापा जाता है  उनका तर्क है कि जब विकास दर कम होती हैतो धन श्रम की तुलना में आर से अधिक तेजी से जमा होता है और शीर्ष 10% और 1% के बीच अधिक जमा होता हैजिससे असमानता बढ़ती हैइस प्रकारविचलन और अधिक धन असमानता के लिए मौलिक बल को असमानता r > g में संक्षेपित किया जा सकता है  वह वंशानुक्रम का विश्लेषण इसी सूत्र के परिप्रेक्ष्य से करता है‘’. थॉमस पिकेटी  ने बिल्कुल उचित कहा है कि जब तक पूंजीवाद में सुधार नहीं किया जातालोकतांत्रिक व्यवस्था ही खतरे में रहेगी’ https://en.wikipedia.org/wiki/Capital_in_the_TwentyFirst_Century#:~:text=The%20central%20thesis%20of%20the,democratic%20order%20will%20be%20threatened).

संक्षेप में G20 शिखर सम्मेलनों में लिए अधिकांश निर्णय वास्तविक रूप में उदारीकरण, पूंजीवाद और मुक्त बाजार प्रणाली पर आधारित है. परिणाम स्वरूप विश्व के विभिन्न राज्यों में असमानता तथा राज्यों के अंदर विभिन्न क्षेत्रों और वर्गीय समूहों  में असमानता व अमीर व गरीब के मध्य खाई में वृद्धि होती हैं. इस आर्थिक असमानता के कारण बेरोजगारीमहंगाई, गरीबी, भुखमरी, कुपोषण इत्यादि की समस्याएं पैदा होती है. इन समस्याओं का समाधान पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के द्वारा नहीं किया जा सकता है. निजीकरण और विनिवेशीकरण की अपेक्षा भारत सरकार को सार्वजनिक इकाइयों में निवेशीकरण और सार्वजनिक उपक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए.

(नोट: एमडीएसडी कॉलेजअंबाला शहर में 17 फरवरी 2024 को आयोजित जी20 सेमिनार के तकनीकी सत्र में दिए गए अध्यक्षीय भाषण का विस्तृत और अद्यतन संस्करण है.)

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