“मानवता को समर्पित ज्ञानशाला – पिंगलवाड़ा -एक प्रेमशाला”

“मानवता को समर्पित ज्ञानशाला – पिंगलवाड़ा -एक प्रेमशाला”

                                रमेश शौंकी

समीक्षक : रमेश शौंकी, जालन्धर
मो. 94644-61520

(समाज वीकली)- प्रस्तुत पुस्तक ‘पिंगलवाड़ा – एक प्रेमशाला’ संवेदनशीलता की पाठशाला भी है, कैसे हो मानवता की सेवा के बहाने ज्ञानशाला भी है और पर्यावरण रख-रखाव हेतु किए जा रहे अनुसंधानों की प्रयोगशाला भी है। विद्वान डॉ. श्याम सुंदर दीप्ति द्वारा लिखित एवं प्रसिद्ध साहित्यकार लाजपत राय गर्ग द्वारा अनुवादित इस सागर में गागर पुस्तक में सेवा की मिसाल बने अमृतसर के पिंगलवाड़ा की गतिविधियों पर तो प्रकाश डाला ही गया है, साथ ही अपूर्णों को पूर्णता प्रदान करने वाले भगत पूरण सिंह सहित उनकी माता महताब कौर व पिता द्वारा दी गई सेवा कार्यों की सीख, गुरुद्वारा साहिब तथा शरणार्थी शिविर में सेवा, पढ़ने का शौक़, पियारे की सेवा-सँभाल करते-करते, जिसका कोई नहीं, उसका बनने की लग्न ने जो पिंगलवाड़ा का पौधा लगाया, वह वर्तमान में उनकी उत्तराधिकारी बीबी डॉ. इन्द्रजीत कौर द्वारा इन कार्यों को मानवता के दूसरे पहलुओं उदाहरणार्थ अपाहिजों की मनोवैज्ञानिक ढंग से देखभाल, पर्यावरण की शुद्धि हेतु कार्य, आत्मनिर्भरता से जोड़कर ऐसा प्रफुल्लित किया कि यह संस्था वट वृक्ष बन विश्व भर को सीख देने का कार्य भी कर रही है।

डॉ. इन्द्रजीत कौर के अनुसार, ‘दुनियावी प्रपंचों में उलझा मानव आत्मिक जीवन की सम्पदा गँवा रहा है। दु:ख-दर्द पर मरहम लगाने का का काम तो होता है, परन्तु दु:ख-दर्द हो ही ना, इस ओर कम संस्थाएँ कार्यरत हैं। यह कार्य श्रमसाध्य है एवं निरन्तरता की माँग भी करता है।’

डॉ. दीप्ति जी के अनुसार यह संस्था श्री गुरु नानक देव जी के वचन ‘किरत करो, नाम जपो, वंड छको’ को व्यवहारिक रूप देने हेतु प्रयत्नशील है। डॉ. दीप्ति जी के अनुसार भले ही पिंगलवाड़ा पिंगलों यानी अपाहिजों, लूले-लँगड़ों को सँभालने का रैन बसेरा है, परन्तु इसके साथ प्रकृति से खिलवाड़ सम्बन्धी रख-रखाव तथा पर्यावरण की शुद्धि हेतु इस संस्था द्वारा किए जा रहे कार्य सोने पर सुहागा हैं। इस तरह यह निरन्तर चलने वाला अनुसंधान केन्द्र बन गया है। इन पंक्तियों के लेखक ने स्वयं भी देखा है कि वहाँ अपाहिज लावारिस नहीं, अपितु एक-दूसरे के वारिस हैं। ईर्ष्या-द्वेष से ग्रसित संसार में विचरता मन सोचता है कि क्या ऐसे नि:स्वार्थ परस्पर प्रेम के लिए यह उदाहरण नहीं कि प्यार का अहसास निरन्तर बना रहे। यह तभी सम्भव होगा जब संसार में अपूर्णों को पूर्णता का अहसास करवाने वाला भगत पूरण सिंह हो। उनकी प्रगतिशील दूरदृष्टि से आज पिंगलवाड़ा ऐसा माडल बन चुका है जहाँ और अधिक सीखने-समझने देश से ही नहीं अपितु विदेशों से भी जिज्ञासु आते हैं।

डॉ. इन्द्रजीत कौर, प्रधान ऑल इंडिया पिंगलवाड़ा चैरिटेबल सोसाइटी द्वारा सभी सेवा कार्यों की कमान सँभालने का एक लाभ यह भी है कि वे स्वयं डॉक्टर होने के नाते रोगियों को इलाज द्वारा पूर्णतः स्वस्थ कर उन्हें भी सेवा कार्यों के लिए तैयार करती हैं। संस्था के सेवा कार्यों की सुगन्ध अमृतसर में तीन संस्थानों के अतिरिक्त संगरूर, जालन्धर, चंडीगढ़ एवं लुधियाना में भी फैल रही है। यह सब दानी सज्जनों के सहयोग एवं संस्था की आत्मनिर्भरता के कार्यों के चलते सम्भव हो रहा है। डॉ. इन्द्रजीत कौर की सकारात्मकता एवं व्यवहारिकता के साथ-साथ उनकी स्वयं की साहित्यिक रुचि भी सोने पर सुहागा है। उनके पास सही संकल्प हैं, निरन्तर कार्य करने की लग्न के साथ-साथ भगत पूरण सिंह जी एवं माता महताब कौर द्वारा दिए दिशानिर्देश तो हैं ही, साथ ही व्यवहार ऐसा है कि अजनबी को भी अपना बना ले। जिससे मिले, उसी से सीखने की कला उनमें बख़ूबी देखी जा सकती है। जिन लोगों के लिए कार्य कर रहे हैं, उन जैसा दिखने-लगने की कला उन्होंने भगत पूरण सिंह जी से सीखी है। थोड़े शब्दों में, संवेदनशीलता की मिसाल बने पिंगलवाड़ा का कार्यक्षेत्र सेवा कार्यों के अतिरिक्त भी बहुत कुछ है, पर इसे वहाँ जाकर ही अनुभव किया जा सकता है।

डॉ. श्याम सुंदर दीप्ति जी ने सरल भाषा में जानकारी देकर संस्था के प्रति पाठकों की जिज्ञासा ही शान्त नहीं की, बल्कि संसार को ही परिवार समझ स्नेह की अविरल धारा बहाने का भी आह्वान किया है।
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पुस्तक का नाम : पिंगलवाड़ा – एक प्रेमशाला
लेखक : डॉ. श्याम सुंदर दीप्ति
अनुवादक : लाजपत राय गर्ग
प्रकाशक : ऑल इंडिया पिंगलवाड़ा चैरिटेबल सोसाइटी, अमृतसर
पृष्ठ : 104, नि:शुल्क

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