हरियाणा में वंचित जातियां: एक पुनर्विलोकन

– डॉ. रामजीलाल, (पूर्वप्राचार्य, दयालसिंह कॉलेज, करनाल -हरियाणा भारत)
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(समाज वीकली)- भारत में जातिवाद का इतिहास हजारों साल पुराना है. ऋग्वेद के अनुसार भारत में चार वर्ण -ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र हैं. शुद्र का अर्थ ‘नौकर अथवा अछूत’ है. शुद्र वर्ण की तुलना व्यक्ति के शरीर के पैरों से की गई है. हजारों वर्ष पुरानी व्यवस्था धीरे-धीरे विभिन्न जातियों, उप -जातियों, गोत्रों, धर्मों, मतमतांरों बदलती चली गई. इस समय भारत में अनुसूचित जातियों की संख्या 1108, अनुसूचित जनजातियों की संख्या 730 (जनगणना सन् 2011) तथा पिछड़े वर्गों की संख्या 5013 है. (दैनिक ट्रिब्यून् (चंडीगढ़). 27 फरवरी 2021. पृ. 8) है.

समय के कालचक्र के अनुसार ‘शुद्र’,’अनुसूचित जाति’ अथवा ‘वंचित जाति’ की शब्दावली में भी परिवर्तन होता चला गया. ऐतिहासिक दृष्टि से डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार हिंदू धर्म के लिए पहले ब्राह्मणवाद का प्रयोग किया जाता था. परंतु जब ब्राह्मणवाद तथा बौद्ध धर्म में वर्चस्व के लिए संघर्ष हुआ तो लगभग 400 ईसवी में भारतीय समाज में ‘अस्पृश्यता’ का उदय हुआ और यह व्यापक तौर पर समाज में फैल गई. ङॉ. अंबेडकर ने आगे लिखा है कि यदि कोई ब्राह्मण हिंदू पुजारी दलित जातियों के साथ मित्रता स्थापित करने का संदेश देता था अथवा उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करता था तो उसे ब्राह्मण जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता था. इस संदर्भ में उन्होंने भक्ति काल के ब्राह्मण पुजारी एकनाथ का वर्णन किया है जिसको ब्राह्मण समाज ने बहिष्कृत कर दिया था क्योंकि वह दलित वर्गों के साथ मित्रता और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा था. 19वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक ज्योति राव फुले ने हिंदू धर्म के ‘बहिष्कृत, बिखरे हुए अथवा टूटे  वर्गों’ के लिए 1880 के दशक में ‘दलित’ शब्द का प्रयोग किया था.

पिछली शताब्दी में ’शुद्र’ वर्ग को सन 1935 से पूर्व ‘डिप्रेस्ड क्लासेज’ के नाम से पुकारा जाता था. दलित शब्द का अधिकारिक प्रयोग ब्रिटिश राज में 1935 से पूर्व जनगणना के लिए किया गया है. इसके पश्चात ङॉ. भीमराव अंबेडकर ने ‘दलित’ अथवा ‘अछूत’ अथवा ‘बहिष्कृत वर्ग’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया और ‘बहिष्कृत भारत’ नामक समाचार पत्रिका का संपादन भी किया. .तत्पश्चात महात्मा गांधी ने भक्ति कालीन संत -कवि संत नरसिंह मेहता के प्रभाव के कारण सन्1933 में ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किया और ‘हरिजन’ नामक पत्रिका  का संपादन भी किया. भगत सिंह (विद्रोही छद्म उपनाम) का जून, 1928 के ‘किरती’ में  ‘अछूत का सवाल’ नामक लेख प्रकाशित हुआ . इस लेख में भगत सिंह ने अछूत अथवा दलित के स्थान पर ‘असली सर्वहारा’ (Real Proletariat– असली दरिद्रतम श्रमिक वर्ग)शब्द का प्रयोग किया. (https://www.krantidoot.in/2016/12/The-question-of-the-untouchables.html)

दलित शब्द के प्रयोग के लिए क्षेत्रीय आधार पर भी कुछ अंतर विद्यमान है.दक्षिण भारत में दलित के स्थान पर ‘आदि द्रविड़’, ‘आदि कर्नाटक’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है. परंतु सन् 1917 में राजनेताओं के द्वारा अपनी राजनीतिक पहचान के लिए और दलित वर्ग को  संगठित करने के लिए दलित के स्थान पर ‘मूल निवासी’ शब्द का प्रयोग भी किया है.

उधर दूसरी ओर महाराष्ट्र में साहित्यकारों के द्वारा ‘दलित साहित्य’ की रचना करके साहित्य के इतिहास में एक नया आयाम ही नहीं जोड़ा बल्कि एक दिशा तथा पथ प्रदर्शक का काम भी किया. सन् 1989 में भारत सरकार ने अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के शीर्षक में ‘अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों ‘ का प्रयोग किया. सन् 2018 में मुंबई हाई कोर्ट के द्वारा दलित के स्थान पर ‘अनुसूचित जाति’ शब्द का प्रयोग करने के लिए केंद्रीय सरकार को एडवाइजरी जारी करने का आदेश दिया. भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय (I&B मंत्रालय) ने सितंबर 2018 में मीडिया चैनलों सहित सभी के लिए एडवाइजरी  जारी की. इस एडवाइजरी के अनुसार “दलित” शब्द की अपेक्षा ‘अनुसूचित जाति’ शब्द का प्रयोग किया जाए.  (सुखदेव थोराट कथा निधि सदाना सभरवाल (संपादित), दलित शक्तिकरण सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण, (सेज़ भाषा ,नई दिल्ली, 2019).. वंचित समाज की विसंगतियों का विवेचन, पुस्तक समीक्षा, दैनिक ट्रिब्यून, चंडीगढ़ ,20 अक्टूबर 2019, पृ. 6).

डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों से विश्व के वंचित वर्ग के लोग प्रेरणा ग्रहण करते हैं और करते रहेंगे. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवन काल में 64 विषयों पर विस्तार पूर्वक लिखा है. अंबेडकर की जातिवाद और वर्ण व्यवस्था से संबंधित विश्व प्रसिद्ध पुस्तक “जाति का उच्छेद” (एनीहिलेशन ऑफ कास्ट, 1937) है. जातिवाद और वर्ण व्यवस्था के संबंध में उनकी अन्य पुस्तकें ‘भारत में जातियां और उनका मशीनीकरण (1916)’, ‘श्री गांधी एवं अछूतों की विमुक्ति’ (1942), ‘कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया’? (1945), ’अछूत कौन और कैसे?’ (1948)मुख्य हैं. डा.अंबेडकर के अनुसार ‘छुआछूत गुलामी से भी बदतर है’. जातिवाद और वर्ण व्यवस्था के कारण उत्पन्न अस्पृश्यता को संकुचित, अमानवीय, अवैज्ञानिक, अनैतिक, विभाजक तथा संकीर्ण माना है.

(डॉ.रामजीलाल,वंचित अनुसूचित जातियों के संदर्भ में डॉ भीमराव अंबेडकर का दर्शन: एक पुनर्विचार व वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता https://samajweekly.com/dr-bhimrao-ambedkar-in-the-context-of-deprived-scheduled-castes/26/07/2023)

उधर उत्तरी भारत -हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में दलित वर्गों के साथ ‘दलित’, ‘हरिजन’,’अनुसूचित जाति’ इत्यादि का प्रयोग किया जाता है. हरियाणा में विशेष तौर से दलित के साथ-साथ दलित वर्ग की जातियों का जैसे चमार, मोची, भंगी ,जमादार, वाल्मीकि इत्यादि शब्दावली का प्रयोग होता है. केवल यही नहीं अपितु ग्रामीण क्षेत्रों में ‘कमीन’ ‘नीची जातियां’ इत्यादि शब्द का प्रयोग भी किया जाता है. हरियाणा के दलित जातियों के द्वारा ‘मूल निवासी’, ‘मूल भारतीय’ इत्यादि शब्दावली भी आजकल सोशल मीडिया पर दृष्टिगोचर होती है. सारांश में दलित वर्ग के लिए अछूत अथवा अछूत जाति का प्रयोग एक सामान्य बात है.यद्यपि जातिसूचक शब्दावली (चमार, मोची, भंगी)  को गैर कानूनी और अपराधिक  माना जाता है. इसके बावजूद भी ग्रामीण क्षेत्र में गली और मोहल्लों के नाम जातियों के नाम पर हैं. परंतु इस आधार पर कोई संघर्ष अथवा हिंसा नहीं होती. पंजाब में चमार जाति के  लोगों का उद्घोष ‘ गौरव से कहो, हम चमार हैं’ तथा वहां ‘मुंडे जट्टा दे’ की तर्ज पर ‘मुंडे चमारा दे’ बहुत प्रसिद्ध है. इस गाने ने चमारों सहित अन्य दलित जातियों में चेतना उत्पन्न की है . यद्यपि हरियाणा ,राजस्थान और यूपी में इस प्रकार की चेतना का अभाव है.

हरियाणा में सामाजिक संरचना एवं विभिन्न जातियों के संख्या

 2011 की जनगणना के अनुसार, हरियाणा की जनसंख्या 2.54 करोड़ है. यह जनसंख्या विभिन्न धर्मों और जातियों में विभाजित है. हरियाणा में राजनीतिक दलों के नेताओं तथा अभिजात्य वर्ग के द्वारा बार-बार 36 बिरादरी की बात दोहराई जाती है. परंतु हम इन बुद्धिमान लोगों को यह बताना चाहते हैं कि हरियाणा में 36 बिरादरी नहीं अपितु 134 बिरादरी हैं .

2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में हिंदू(87.46%) ,मुस्लिम(7.03%), सिख( 4.91%),जैन(0.21%), ईसाई(0.21%), बौद्ध( 0.3%)व अन्य (0.1%) धर्मो के अनुयायी रहते हैं. यह धर्म आगे विभिन्न जातियों और उप जातियों में विभाजित  हैं. सन् 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में दलित वर्ग की आबादी लगभग 20% है.जब कि समस्त भारत में राष्ट्रीय स्तर पर औसतन दलित आबादी 16 .2% है.  दलित आबादी के दृष्टिकोण से भारतवर्ष में हरियाणा का पांचवा स्थान है . हरियाणा की 134 बिरादरी में दलित जातियों की संख्या 37 है तथा पिछड़े वर्ग की जातियों की संख्या 78 (ग्रुप ए में 72 तथा ग्रुप बी में 6 ) हैं . जातीय जनसंख्या के आधार पर हरियाणा में जाट जाति की संख्या कुल आबादी का लगभग 25% है जबकि अनुसूचित जातियों की संख्या 20 % है .परिणाम स्वरूप अनुसूचित जातियां हरियाणा में दूसरे स्थान पर हैं.इस दृष्टिकोण से बाकी  जातियों की संख्या 19 है.हरियाणा में विभिन्न जातियों और धर्म, जनसंख्या, संपत्ति, शिक्षा ,नौकरी ,लिंग इत्यादि के आधार पर  बहुत अधिक अंतर पाया जाता है. सन 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में अनुसूचित जातियों की संख्या 51,13,615 की थी. इनमें वाल्मीकि/मजहबी/ मजहबी सिक्ख की संख्या 10 ,79,685 , धानक समुदाय की 5,81272 और चमार समुदाय की संख्या 24,29137 थी.       चमार तथा वाल्मीकि तथा धानक जातियों के अतिरिक्त बाकी शेड्यूल कास्ट जातियों की संख्या लगभग 12 लाख है .

हरियाणा में दलित आबादी का प्रतिशत: जिले से गांव तक

हरियाणा के दलित आबादी में भी प्रत्येक जिले, तहसील और गांव में संख्या के आधार पर अंतर पाया जाता है .

2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में दलित आबादी का 78. 5 प्रतिशत गांव में रहता है .एक दलित को हिंदू अथवा सिख धर्म में आस्था रखने वाला होना चाहिए (भारत सरकार के गृह मंत्रालय के पत्र क्रमांक नंबर 35/ 1/72 आर यू एस सी टी दिनांक अप्रैल 1976 ).हरियाणा में 22 जिले हैं और इनमें सर्वाधिक दलित आबादी वाले चार जिले हैं जिनमें 30. 19 % से लेकर 25 . 2 6%  दलित आबादी रहती है.यह चार जिले सिरसा( 30 . 19%), फतेहाबाद (29 . 91%) ,अंबाला (26 . 25%) और यमुनानगर (25 . 26%) हैं. 40% से अधिक दलित आबादी वाले हरियाणा में 843 गांव हैं तथा असंख्य गांव ऐसे भी हैं जिन की आबादी 90% से अधिक है. उदाहरण के तौर पर अंबाला जिले में चुगा  या चुगना गांव में 99.83 % ,चांदपुरा गांव में 99.83%, टोलावली में 99.4 7%, कैथल जिले में ठेहवाहरी में 90.23% ,भिवानी जिले में नगीन खुर्द में 90%तथा औरंगनगर में 90% ,पलवल जिले में अकबरपुनाटोल में 94 . 29 % ,करनाल जिले में घिसरपड़ी में 96 . 97 %, रेवाड़ी जिले में दूल्हेराकलां गांव में 98% फरीदाबाद में फुलेरा गांव की आबादी 94 .79 प्रतिशत है तथा   एक   दर्जन से अधिक गांवों की   दलित आबादी 100 % है. 100 प्रतिशत  दलित आबादी वाले गांव यमुनानगर और अंबाला जिलों में हैं. यमुनानगर जिले के गुलापुर,   खानपुरी व शबुदीनपुर कलां  में  100% दलित आबादी है.

(haryana-scbc.govt.in/information/list-of-scheduled-castes)

हरियाणा में दलित साक्षरता दर

सन् 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में कुल साक्षरता दर 76 .60 % थी जो 2019 में बढ़कर 85.38 %  हो गई.जबकि हरियाणा के अनुसूचित जाति वर्ग की साक्षरता दर सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 56 . 9 1% , महिला साक्षरता दर 48.8% तथा उच्च शिक्षा दर 2.3% थी .अन्य शब्दों में  लगभग 43% पुरुष तथा 52% महिलाएं दलित महिलाएं और पुरुष निरक्षर थे. यद्यपि हरियाणा में उच्च शिक्षा का सुधार हो रहा है परंतु सन 2011 की जनगणना के अनुसार 2 . 3% अनुसूचित जातियों की संख्या ही उच्च शिक्षा प्राप्त थी अथार्त  97.7% अनुसूचित जाति के  युवा  और युवतियां उच्च शिक्षा से वंचित थे.  आर्थिक मजबूरियां इसका मुख्य कारण है .अनपढ़ता  के कारण अनुसूचित जातियों के पुरुषों , महिलाओं और युवाओं  और युवतियों को  आर्थिक व राजनीतिक मुद्दों का ज्ञान ना होना एक अभिषाप है . परिणाम स्वरूप राजनीतिक चेतना के अभाव में दलित वर्ग का शोषण जारी है और क्योंकि जब तक दलित वर्ग की साक्षरता नहीं बढ़ेगी तब तक यह शोषण जारी रहेगा. इसलिए दलित  वर्गों के युवाओं और युवतियों का शिक्षित होना अति आवश्यक है ताकि वे संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए मांग करें और संघर्ष करने का संकल्प लें.

हरियाणा में दलितों के विरुद्ध अत्याचार

हरियाणा में भी दलितों के साथ जन्म से मृत्यु तक– श्मशान घाट तक भेदभाव होता है. वर्तमान शताब्दी में दलितों के विरुद्ध हिंसा, अत्याचार एवं मानवीय व्यवहार एवं शोषण मामले ,घरों को जलाना ,जान से मारना व जिंदा जलाना,महिलाओं व युवतियों के साथ बलात्कार व  सामूहिक बलात्कार ,अभद्र व्यवहार , जाति सूचक गालियां,सामाजिक बहिष्कार,घर व गांव छोड़ने पर मजबूर होना, अपहरण(किडनैप) करना, चोट पहुंचाना, लूटना इत्यादि की वारदातें सामान्य बात है. हम हर रोज ‘वसुधैव कुटुंबकम’ अथवा’ सबका साथ, सबका विकास ,सबका विश्वास’ अथवा ‘हरियाणा एक हरियाणवी एक’ इत्यादि नारे लगाते हैं .परंतु जिस तरीके से दलितों के विरुद्ध अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं उससे प्रतीत होता है की यह नारे बिल्कुल खोखले और अर्थहीन हैं.

 आरक्षण के परिणाम स्वरूप दलित वर्ग के बच्चे पढ़ लिख कर सरकारी नौकरियों में प्रवेश कर गए और उनके रहन-सहन, पोशाक तथा अन्य सुविधाओं में परिवर्तन आया. उनके पास तथाकथित उच्च वर्गों की भांति मोटरसाइकिलें, कारें, बढ़िया मकान, बेहतरीन पोशाक इत्यादि के कारण समाज में सम्मान बढ़ने लगा. परंतु यह तथाकथित उच्च वर्गों को सहन नहीं होता, यही कारण है कि वे छोटी-छोटी बातों पर कुंठित भावना और मानसिक रुग्णता के कारण दलितों पर जानलेवा हमला कर देते हैं तथा उनकी महिलाओं और बच्चियों के साथ मानवीय व्यवहार करते हैं. जातिवादी वर्ण व्यवस्था, दलित विरोधी आपराधिक रुग्ण मानसिकता, नौकरशाही व पुलिस का दलितों व दलित महिलाओं, सामान्य महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के विरुद्ध बढ़ता निरंतर दृष्टिकोण, वर्तमान में मुसलमानों और दलितों के विरुद्ध नफरती के भाषणों में वृद्धि, समाचार पत्रों व राष्ट्रीय मुख्य धारा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा दलितों पर होने वाले अत्याचारों को प्रकाशित न करना अथवा अवहेलना करना और उधर दूसरी ओर ‘हेट स्पीच’ देने वाले लोगों के द्वारा मास मीडिया के साधनों का प्रयोग करके नफरत को बढ़ाना, पुलिस के द्वारा केस पंजीकरण करने में आनाकानी करना, शोषक की बजाए पीड़ितों को सताना और शोषण कर्ताओं के विरुद्ध कार्यवाही न करने के कारण दलित विरोधियों का हौसला बढ़ाना, दलित के विरुद्ध अत्याचार अथवा घिनौनी बात करता करने वाले को सजातिय लोगों के द्वारा उसका समर्थन करना इत्यादि दलितों के प्रति अमानवीय व्यवहार के मुख्य कारण है.   वर्तमान संदर्भ में मूल कारण है कि जैसे-जैसे दलित युवा समाजिक, आर्थिक ,शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रो में उन्नति करते चले जाएंगे उसी अनुपात में तथाकथित स्वर्ण जातियां परंपरागत दृष्टिकोण के आधार पर उनसे  नफरत करती चली जाएगी

 ( डॉ. रामजीलाल,  वंचित अनुसूचित जातियों के संदर्भ में डॉ भीमराव अंबेडकर का दर्शन: एक पुनर्विचार व वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता https://samajweekly.com/dr-bhimrao-ambedkar-in-the-context-of-deprived-scheduled-castes/

26/07/2023)

सन् 2005 में सोनीपत जिले के गोहाना कस्बे में बाल्मीकि बस्ती में आग लगाई गई तथा बाल्मीकि जाति के लोगों को जान बचाकर भागना पड़ा .सन् 2010 में मिर्चपुर गांव में दिनदहाड़े दलित घरों को आग लगाई गई जिसमें एक विग्लांग युवती और उसके70 वर्ष  केपिता जिंदा जल गए और दलित समुदाय के लोगों को अपनी जान बचाने के लिए गांव से पलायन करना पड़ा .भिवानी जिले के रतेरा गांव में 5 मार्च 2013, को दलितों को विवाह समारोह में घुड़चढ़ी की रसम के दौरान रोका गया और बेरहमी से पीटा गया. इस प्रकरण के बाद इस गांव से भी दलितों ने पलायन किया .रोहतक के मदीना गांव में दलित महिला से बलात्कार किया गया और उसके परिवार के लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई .इस गांव से भी पीड़ित परिवार पलायन कर गए. कैथल जिले के पबनावा गांव में दलित समुदाय के युवक के द्वारा अंतर्जातीय विवाह करने के कारण गांव से निष्कासित किया गया. वर्ष 2012 में हिसार जिले के गांव दावड़ा में दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसका एमएमएस बनाकर ब्लैकमेल किया गया .परिणाम स्वरूप उसके बाप ने मजबूर होकर आत्महत्या कर ली. वर्ष 2011 में रोहतक की अपना घर गैर सरकारी संस्था में बेसहारा बच्चियों, बच्चों और महिलाओं को प्रताड़ना का सामना करना पड़ा. यह गैर- सरकारी संस्था अपना घर के समाचार पत्रों में प्रसारित रहे. हिसार जिले के भैणीअकबरपुर गांव में दलित समुदाय की युवति का अपहरण किया गया और अपराधियों की अपेक्षा पीड़ित परिवार को ही पुलिस के द्वारा प्रताड़ित किया गया. परिणाम स्वरूप परिवार के पांच सदस्यों ने जहर खाकर आत्महत्या का प्रयास किया व 4 सदस्यों की मौत हो गई . 26 अप्रैल2013 को मेवात में दलित महिला को  निर्वस्त्र करके घुमाया गया .हिसार जिले के भगाना गांव में दलित उत्पीड़न ,जींद जिले के खेड़ी गांव में एक ही परिवार की तीन लड़कियों की  घर में हत्या कर दी गई. 11 जनवरी 2013 को खरखोदा में  दलित किशोरी के साथ सामूहिक बलात्कार और 26 मार्च 2013 को झज्जर जिले के जहांगीरपुर गांव में दलित महिलाओं को होली पूजन से रोकना ,रोहतक जिले के अजायब गांव में दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार, कुरुक्षेत्र में दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार,  सोनीपत के देबडू गांव में दलित महिला से सामूहिक दुष्कर्म, 31 जुलाई 2010 को जींद जिले के नंदगढ़ गांव तथा भिवानी जिले के गांव देवसर में दलित युवक की हत्या, 10 जनवरी 2013 को फतेहाबाद जिले के बनावांली गांव में दलित युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं की हरियाणा के सभ्यचारी ,सदाचारी व संस्कारी समाज के चेहरे पर काले धब्बे हैं.

 (जनहित कांग्रेस  (बीएल) तथा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं कुलदीप विश्नोई, डॉ. हर्षवर्धन ,प्रोफेसर रामविलास शर्मा, धर्मपाल मलिक, कृष्ण लाल गुर्जर, जय सिंह राणा, प्रोफेसर गणेशी लाल एवं नफे सिंह बाल्मीकि के द्वारा राष्ट्रपति के नाम 1 मई 2013 को ज्ञापन के आधार पर यह आंकड़ा दिया गया है.)

 भिवानी जिले के लोहारहेड़ी गांव में पानी की किल्लत के कारण एक दलित युवक  16 जून 2012 को कुएं से पानी का मटका भरकर घर ले गया .इस पर स्वर्ण जाति के लोगों ने जाति सूचक शब्दों की गालियां ,मार- पिटाई कीऔर घर जलाने की धमकी तक दी और यह भी कहा कि यदि पुलिस को शिकायत की तो उसको अंजाम भुगतने होंगे.( दैनिक जागरण, 19 जून 2012, पृ. 3) जींद जिले के हथों गांव में स्वर्ण जाति के लोगों के द्वारा 25 वर्षीय अनिल की हत्या करके उसे रस्सी में बांधकर खेतों में  जला दिया गया .परंतु हत्या के आरोपियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई न करने से नाराज होकर  के 40 दलित परिवारों ने गांव से पलायन किया .( दैनिक जागरण, 29 जून 2012, पृ.2)

दलित युवक को जिंदा जलाकर हत्या (इस्माइलपुर-यमुनानगर) तथा संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की मूर्तियों को तोड़ना व पुतले बनाकर आग लगाना (थाना उकलाना बुड्ढा खेड़ा के दो निवासियों को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के पोस्टर को आग लगाकर वायरल किया– शान- ए- उकलाना, 15 अगस्त 2023) यह एक सामान्य बात है. हरियाणा में दलितों के विरुद्ध सन 2006 में अनेक अत्याचार के मामले समाचार पत्रों की सुर्खियां बनते रहे. इनमें झाटौली जिला गुड़गांव में विकलांग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार (3 जनवरी 2006 ),कैलाना पुलिस स्टेशन गन्नौर के अंतर्गत 13 वर्षीय दलित लड़की का बलात्कार व हत्या( 4 फरवरी 2006 ),महमदपुर- जिला करनाल (14 फरवरी 2006), फरमाना- सोनीपत (22 फरवरी 2006 ), ढीगमाजरा जिला फतेहाबाद (जुलाई 2006),  किला जफरगढ़ -जींद (1 सितंबर 2006), लिसान गांव -जिला रेवाड़ी( 1 सितंबर 2006) ,दलितों के घरों को जलाना सालवन -जिला करनाल (मार्च 2007), गोहाना कांड दलित बस्ती को जलाना (अगस्त 2005), दूलीना पुलिस चौकी- झज्जर कांड -मॉब लिंचिंग– 5 दलित युवाओं को मारना (अक्टूबर 2002 ) इत्यादि काले धब्बे हैं. फरवरी 2003 से मार्च 2007 तक दलित व ऊंची जातियों के संघर्ष में जातियों के मध्य खूनी संघर्ष होते रहे परंतु मुकदमों में बरी होने की संख्या ज्यादा रही है.  दलित वर्गों का सामाजिक बहिष्कार किया गया तथा अनेक गांव में दलितों के मंदिरों में प्रवेश पर रोक लगाई गई .वास्तव में यह एक ‘अदृश्य अथवा छुपा हुआ भेदभाव’ है( मानव अधिकार रिपोर्ट ,2006).हरियाणा में दलितों के विरुद्ध होने वाले अत्याचारों में निरंतर वृद्धि हो रही है.

इतिहास में ट्राइबल सोसाइटी   में एक ट्राइब दूसरे ट्राइब पर निरंतर मध्य खूनी संघर्ष व हमले होते थे . हरियाणा में इस प्रकार की स्थिति 2007 में भी समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रही. उदाहरण के तौर पर  दलितों की बस्तियों पर सशस्त्र हमला (सालवन , जिला करनाल 1 मार्च 2007, फरल (जिला कैथल ,28 फरवरी 2007, व   वजीरपुर पटौदी , रोहतक के महम में पक्का मकान बनाने के कारण हमला ),दलितों की शादी में घुड़चढ़ी की रस्म अदायगी पर बर्बरता पूर्ण हमला (गांव बाहरी, तहसील असंध,24 मई 2007 व सांजरवास गांव 2017 ),धमकाला गांव जिला रेवाड़ी में दलित युवती का बलात्कार व युवती  द्वारा आत्महत्या ,आंगनबाड़ी की दलित महिलाओं को खाना बनाने से रोकना (जोहड़ माजरा, जिला करनाल) ,दलित महिला व पुरुष सरपंचों के साथ पुलिस चौकी में पुलिस के सामने स्वर्णों द्वारा बर्बरता पूर्ण व्यवहार (रंदौली गांव- जिला करनाल), स्वर्णो द्वारा दलित सरपंच की बर्बरता पूर्ण पिटाई (जिला यमुनानगर) तथा मंदिरों में प्रवेश को रोकना (चाहड़ो  गांव यमुनानगर व बीबीपुर ब्राह्माणान)),  मंदिर निर्माण को रोकना व पिटाई करना(हिसार बालसमंद व बीबीपुर ब्राह्माणान ,काढ़ौली पहलाद पुर गांव -सोनीपत  मामूली घटना के कारण दलित वस्ती पर सशस्त्र आक्रमण(24 दिसंबर 2007) , जुलाना के गोसाई खेड़ा गांव में बच्चों के विवाद में रामचंद्र नामक दलित की हत्या

 (हेमंत सिंह ,शब्द मोर्चा ,करनाल, फुले -अंबेडकर मिशन प्रचार  मंच ,2023 ,प्रथम संस्करण,पृ.171-175)

भिवानी जिले के लोहारहेड़ी गांव में पानी की किल्लत के कारण एक दलित युवक  16 जून 2012 को कुएं से पानी का मटका भरकर घर ले गया .इस पर स्वर्ण जाति के लोगों ने जाति सूचक शब्दों की गालियां ,मार- पिटाई कीऔर घर जलाने तक की धमकी तक दी और यह भी कहा कि यदि पुलिस को शिकायत की तो उसको अंजाम भुगतने होंगे.( दैनिक जागरण, 19 जून 2012, पृ. 3). जींद जिले के हथों गांव में स्वर्ण जाति के लोगों के द्वारा 25 वर्षीय अनिल की हत्या करके उसे रस्सी में बांधकर खेतों में  जला दिया गया .परंतु हत्या के आरोपियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई न   करने से नाराज होकर  के 40 दलित परिवारों ने गांव से पलायन किया .( दैनिक जागरण, 29 जून 2012, पृ.2), 6 अक्टूबर 20 12 को अपनी ही जाति के दो युवकों के द्वारा 10 वर्षीय  नाबालिक दलित लड़की के साथ जींद जिले के सच्चा खेड़ा गांव में बलात्कार किया गया. हम हर रोज वसुधैव कुटुंबकम अथवा सबका साथ, सबका विकास ,सबका विश्वास अथवा हरियाणा एक हरियाणवी एक इत्यादि नारे लगाते हैं परंतु जिस तरीके से दलितों के विरुद्ध अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं उससे प्रतीत होता है की यह नारे बिल्कुल खोखले और अर्थहीन हैं.

वर्तमान शताब्दी में हरियाणा में दलितों पर होने वाले अत्याचारों के निरंतर वृद्धि दृष्टिगोचर होती है. इसका वार्षिक सिलसिलेवार वर्णन इस प्रकार है- सन् 2000 ( 117) ,सन्  2001 ( 229) , सन् 2002( 243),  सन् 2003 ( 217) ,सन् 2004 (288),सन् 2005( 288) , सन् 2006 ( 283), 2007( 227 ),सन् 2008  (303) , सन् 2009 , (380), सन् 2011 ( 408) ,  सन्  2012 (252),सन्  2013  (493), सन्  2014  (830) केस पुलिस थानों में पंजीकृत हुए.यदि हम सन् 2000 के आंकड़ों के आधार पर देखें तो सन् 2014 में यह संख्या लगभग 7 गुणा  है. .इसका स्पष्ट तात्पर्य यह है कि कांग्रेस नीत हुड्डा सरकार के कार्यकाल में दलितों पर अत्याचार के मामलों में वृद्धि हुई है और इसमें सन्  2011 तथा सन् 2013 में आंकड़ों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे राज्य में प्रशासनिक मशीनरी की हालत लगभग लचर थी.

संक्षेप में ,सन् 1994 से सन्  2003 तक पुलिस थानों स्थानों में पंजीकृत होने वाले अत्याचारों   की संख्या 1,305 थी. सन्2004 से सन् 2013 तक यह संख्या बढ़ कर 3198 हो गई. अन्य शब्दों में एक दशक में  दलितों पर होने वाले अत्याचारों की संख्या में 245% की वृद्धि हुई (टाइम्स आफ इंडिया 9 अगस्त 2014) https://timesofindia.indiatimes.com/india/crimes-against-dalits-rise-245-in-last-decade/articleshow/39904583.cms) दलितों के विरुद्ध भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद भी वृद्धि हुई है उदाहरण के तौर पर  सन् 2013 में  सन् 2012 के अपेक्षा 17   सन् 17% वृद्धि थी. जबकि सन्2014 में 21 दलितों की हत्या के कारण 19% की वृद्धि हुई .. (https://timesofindia.indiatimes.com/india/crimes-against-dalits-rose-19-in-2014-murders-rose-to-744/articleshow/49488994.

सन्2015 भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद दलितों के विरुद्ध अत्याचार के मामलों में कमी दृष्टिगोचर नहीं हुई.दलितों के विरुद्ध अत्याचार मामले मीडिया के द्वारा प्रदर्शित नहीं किए गए. .परंतु भारत सरकार के गृह मंत्रालय की राष्ट्रीय अपराध पंजीकरण शाखा के अनुसार सन् 2015 में दलितों के विरुद्ध 510 मामले, सन् 2016 में 25 .29 प्रतिशत वृद्धि के साथ 639 मामले व सन् 2017 में 20% वृद्धि के साथ 765 मामले मामले पुलिस थानों में पंजीकृत हुए. राष्ट्रीय अपराध पंजीकरण शाखा( NCRB) के अनुसार गैर-अनुसूचित जातियों द्वारा अनुसूचित जाति के विरुद्ध अपराध के पंजीकृत मामलों की संख्या सन् 2018 में  961, सन् 2019 में 1086और सन्  2020 में 1210 है. हरियाणा में अनुसूचित जाति के विरुद्ध घटित अपराधों की दर 2020 में बढ़कर  23.7 है. (स्रोत: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, भारत में अपराध, 202091)

भारतवर्ष में प्रत्येक राज्य में चाहे वह किसी भी पार्टी के द्वारा शासित हो दलितों के विरुद्ध अत्याचार कम होने की  अपेक्षा निरंतर बढ़ बढ़ रहे हैं. भारतवर्ष के गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी )के अनुसार भारत में सन् 2019 में दलितों के विरुद्ध अत्याचारों के 39961 मामले पुलिस थाना में पंजीकृतहए थे. परंतु सन, 2021 में यह संख्या बढ़कर 50,900 हो गई अर्थात तीन वर्ष में 11% की वृद्धि हो गई .अखिल भारतीय स्तर पर दलितों के अत्याचारों में 11% की वृद्धि हुई.राज्यों का सिलसिलेवार विवर्ण इस प्रकार है. राजस्थान में11% ,उत्तर प्रदेश में11% ,हिमाचल में 29 %, गोवा में 33 %  मध्य प्रदेश में 36%, उत्तराखंड 46% और जहां हरियाणा के मुख्यमंत्री यह नारा लगाते हैं हरियाणा एक हरियाणवी  वहां दलितों के अत्याचारों में 50%  वृद्धि हुई है. अन्य शब्दों में अखिल भारतीय प्रतिशत से लगभग 5 गुणा अधिक है .एक लाख संख्या के पीछे 40,लाख से अधिक आबादी वाले राज्य में दलितों के विरुद्ध होने वाले राज्यों की श्रेणी में हरियाणा का रेट 30 .8 है .जब कि अखिल भारतीय रेट 25 . 3 है.( https://www.newsclick.in/India-Enters-Amrit-Kaal-Growing-Atrocities-Against-Dalits)

भारतीय जनता पार्टी तथा जननायक जनता पार्टी के गठबंधन के समय सन् 2019 से सन्  2022  तक दलित वर्ग के विरुद्ध गैर -दलित जातियों के द्वारा अपराधों की संख्या में और अखिल भारतीय अपराध दर की अपेक्षा कांग्रेस नीत हुड्डा सरकार से भी कहीं अधिक है क्योंकि बार-बार दलित विरोधी मानसिकता सोशल मीडिया के द्वारा प्रचारित की जा रही  है और सरकार की स्थिति हुड्डा सरकार से भी अधिक लचर प्रकट होती है.हमारा अभिमत यह है कि दलितों के विरुद्ध अत्याचारों को रोकने सभी राज्य सरकारें चाहे वह किसी भी दल के द्वारा शासित हो पूर्णतया असफल है.राजनेताओं के लिए दलित जीवन का कोई महत्व दृष्टिगोचर नहीं होता .

दलित विरोधी अत्याचारों के मामलों में न्याय प्राप्त करना एक चुनौती क्यों?

दलित वर्ग को अत्याचार होने के बावजूद भी न्याय प्राप्त करना बहुत कठिन है क्योंकि:

प्रथम, सामाजिक व राजनीतिक  व्यवस्था में दलित  कास्टस के विरुद्ध भेदभाव की भावना आज भी निरंतर जारी है दूसरा, कारण यह है कि दलित आर्थिक तौर पर कमजोर होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में अधिपत्य प्राप्त भू मालिकों पर आश्रित हैं और वह किसी भी रूप में उनको चुनौती देने में समर्थ नही हैं .

तीसरा, प्रायः देखा गया है कि ग्रामीण क्षेत्र में बाहुबली, धन बली और राजनीतिक दृष्टि से सत्ता प्राप्त व्यक्ति के विरुद्ध यह जानते हुए भी कि अत्याचार हुआ है गवाही   देने के लिए तैयार नहीं हैं .

चौथा, सामाजिक भेदभाव और जातिवाद के कारण अपराधियों को अपनी -अपनी जातियों का समर्थन प्राप्त होता है जो अपराधियों के पक्ष में खड़े नजर आते हैं.

पांचवा, भारतीय पुलिस , नौकरशाही तथा राजनीतिक गठबंधन के कारण पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था अपराधियों के  शिकंजे में आ चुकी है और यह गठबंधन दलितों, महिलाओं ,  अल्पसंख्यकों तथा सामाजिक और आर्थिक रूप में कमजोर व्यक्तियों के विरूद्ध है.

 छ्ठा, पुलिस के द्वारा एफ आई आर  दर्ज करने में आनाकानी करना अथवा  देरी लगाना और अपराधी की अपेक्षा पीड़ित को ही प्रताड़ित करने  के असंख्य उदाहरण हैं.

सातवां, पुलिस जातिवाद , धन, धर्म अथवा राजनीतिक दबाव के कारण एफ आई आर दर्ज नहीं करती अथवा दर्ज करते समय   आईपीसी की धाराओं को ठीक तरह से नहीं लगाना और तथाकथित इंक्वायरी के आधार पर राजनीतिक पहुंच अथवा रिश्वत के आधार पर मुख्य अपराधी का नाम भी एफ आई आर  से  काट दिया जाता है.

 आठवां  , आम आदमी के लिए  पैसे के अभाव के कारण बहुत बेहतरीन वकील करना बहुत अधिक कठिन है और उसके बाद दिहाडी -काम छोड़ कर बार-बार कोर्ट के चक्कर लगाना यह  भी अधिक कष्टदायक होता है.

 नौवां, महिलाओं के लिए  अत्याचार के विरुद्ध लड़ना और भी अधिक कठिन कार्य है.  क्योंकि बाहुबली  उनके परिवार के सदस्यों को बार-बार धमकियां देकर भयभीत करने का प्रयास करते हैं और उनको अंजाम घुटने की भी चेतावनी देते हैं.

भारतीय न्यायालय में लगातार मुकदमों में वृद्धि हो रही है. सन् 2006 में विभिन्न न्यायालयों में 85,260 थे .सन् 2016 में यह सख्या बढ़ कर 1,29,881  हो गई. विवादों में बरी होने वाले आंकड़े भी बढ़ रहे हैं .उदाहरण के तौर पर सन् 2006 में बरी होकर छूटने वाले वालों की संख्या 72 % थी जो सन्  2016 में दो प्रतिशत की वृद्धि के साथ 74 %हो गई. विभिन्न न्यायालयों में अपराधियों के बरी होने की संख्या में वृद्धि होने के कारण मुख्य कारण– छानबीन में पुलिस द्वारा जानबूझकर देरी करना, पीड़ित और परिवार   सदस्यों को सुरक्षा का अभाव , परिवार को जान का खतरा तथा पुलिस द्वारा आईपीसी की धाराओं को उचित तरीके से न लगाना हैं .राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के चेयरमैन के अनुसार जून 2019 में लगभग 40,000 मुकदमें एससी/ एसटी वर्गों के विरुद्धअत्याचार के  40,000 मुकदमे लंबित थे .(टाइम्स आफ इंडिया ,17 जून 2019)

अनुसूचित जातियों की आर्थिक स्थिति

 हरियाणा मूलतः कृषि प्रधान राज्य है परंतु हरियाणा के  अनुसूचित जाति के कुल परिवारों के 74. 3 प्रतिशत के पास भूमि नहीं है. परिणाम स्वरूप अनुसूचित जातियों कुल आबादी के 14 .19 प्रतिशत  कृषि श्रमिक तथा 57 .99 गैर कृषि श्रमिक हैं. समस्त भारत में 2% दलित महिलाएं भूस्वामी है जबकि 98%  दलित महिलाएं भूस्वामी नहीं है. केवल यही नहीं अपितु गैर- दलित महिलाओं का लगभग 85%भूस्वामी नहीं है.ऐसी परिस्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले दलित वर्ग के लोग जीवन निर्वाह करने के लिए भू -स्वामियों के पास नौकर के रूप में काम करते हैं. बच्चों की पढ़ाई ,विवाह -शादी,तीज-त्योहार, बीमारी की अवस्था तथा अन्य कार्यों के लिए वे किसानों से 2% से 3% ब्याज दर पर  ऋण लेते हैं. यह ब्याज दर  ऊंची होने के कारण शोषण का कारण बनती है.

उच्च शिक्षण संस्थाओं में अनुसूचित जातियों का प्रतिशत 1.9 है .यदि इस भेदभाव को देखा जाए तो यह अनुसूचित जातियों के विरुद्ध एक भेदभाव एवं अत्याचार के समान है .इस समय शिक्षण संस्थाओं तथा अन्य संस्थाओं में भी अस्थाई रूप से नियुक्तियां की जाती हैं और नौकरियां ठेके प्रणाली पर आधारित है.   अस्थाई कर्मचारियों की संख्या बहुत अधिक है .निजीकरण के कारण और भी आगे बढ़ रही हैं .परंतु इन नौकरियों में आरक्षण न होने की वजह से अनुसूचित जातियों का जो हिस्सा संविधान द्वारा निश्चित किया गया है वह प्राप्त नहीं होता .परिणाम स्वरूप अनुसूचित जातियों , पिछड़े वर्गों के युवा शिक्षित होने के बावजूद भी शिक्षित युवाओं को खाली स्थान होने के बावजूद भी नौकरियां नहीं मिलती. यही कारण है कि शिक्षित युवा से नौकरियों से वंचित रहता है . आरक्षण के साथ खिलवाड़ किया जाता है .सन् 2019- 20 हरियाणा के राजकीय सहायता प्राप्त  निजी कॉलेजों (प्राइवेट एडिट कॉलेज) में विज्ञापनों में ऐसा देखा गया है .इस संबंध में हरियाणा के बाल्मीकि समुदाय के एक व्यक्ति द्वारा पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट में पीआईएल भी डाली गई थी. परंतु माननीय न्यायाधीश ने जनहित याचिका पर सुनवाई से यह कह कर नकार दिया था कि इसका याचिका कर्ता पर सीधा प्रभाव नही पडता.भारतीय न्यायालयों का दृष्टिकोण आरक्षण के संभवत पक्ष में नहीं है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा कि नौकरियों व पदोन्नति में आरक्षण व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है तथा आरक्षण के लिए राज्य सरकार को बाध्य नही किया नही किया सकता.   7 फरवरी 2020 को सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों- नागेश्वर राव तथा हेमंत गुप्ता ने कहा था कि इससे पूर्व भी सन् 2012 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार के इस निर्णय को भी को सभी नौकरी सरकारी पोस्टों पर  नियुक्तियों में आरक्षण देने करने को अवैध माना था.

 (The Hindustan Times, 9 February 2020 तथा ‘सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला :नौकरी पदोन्नति में आरक्षण देने को राज्य सरकारें बाध्य नहीं’, दैनिक ट्रिब्यून ,10 फरवरी 2020 , पृ.1)

सरकारी नौकरी में  भागीदारी

 हरियाणा में सरकारी नौकरियों में विभिन्न जातियों की ए बी सी और डी श्रेणी में संख्या में बहुत बड़ा अंतर है. पिछड़े वर्गों की एबीसीडी श्रेणी में कुल संख्या 35247 है – (14.57%)है .बीसी(बी) जातियों की  एबीसीडी श्रेणी में कुल संख्या 29157-(12 .05 प्रतिशत) है. जहां तक अनुसूचित जातियों का संबंध है इनकी नौकरियों में कुल संख्या 50776 -(20. 9%) है.इन जातियों में चमार जाति  की नौकरियों में  संख्या 26333 – (10 . 88% )सबसे ज्यादा है. लेकिन वाल्मीकि जाति का भागीदारी 11205 -(4 . 36%)  है. अनुसूचित जातियों में अनेक ऐसी जातियां भी हैं जिनका सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व लगभग नगण्य है और उनको आरक्षण का कोई लाभ प्राप्त नहीं है सरकार को सबसे वंचित अनुसूचित जातियों को सरकारी और गैर-सरकारी नौकरियों की मुख्य धारा में शामिल करने के तरीके और साधन सुझाने के लिए एक समिति नियुक्त करनी चाहिए।

विधान पालिका और संसद में आरक्षण

संसद तथा राज्य विधानसभाओं में दलित वर्गों का आरक्षण का मुद्दा संविधान  संविधान सभा और इसके पश्चात संसद में अत्यधिक विवाद का विषय रहा है. डॉ. भीमराव अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल में इस संबंध में बहुत अधिक मतभेद था .हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी राजशेखर वुद्रूं की पुस्तक( ‘अंबेडकर. गांधी और पटेल :मेकिंग ऑफ इंडिया’ज इलेक्ट्रोल सिस्टम — Rajshekhar Wondro,Ambedkar, Gandhi,Patel: The Making of India’s Electoral System) में इस विवाद का विस्तृत तौर पर वर्णन किया है..डॉ.भीमराव अंबेडकर ने दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की बात पर बल दिया .इस प्रस्ताव का सरदार पटेल व उसके साथियों ने जबरदस्त विरोध किया. राजशेखर वुद्रूं ने लिखा कि संविधान निर्माण के समय अनुसूचित जातियों फैसले के समय सारी फाइलें भारत का गृह मंत्री होने के कारण सरदार पटेल के नियंत्रण में थी. परिणाम स्वरूप डॉ भीमराव अंबेडकर को संसद व विधान पालिकाओं में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर संतोष करना पड़ा. परंतु अंबेडकर ने बल दिया कि जब तक छुआछूत समाप्त नहीं हो जाती तब तक संसद व विधान पालिकाओं में आरक्षण जारी रहना चाहिए .संविधान सभा में गंभीर डिबेट के प्रारंभ हो गया. इसका विरोध  संविधान सभा  से सड़क तक हुआ और सरदार पटेल निरंतर इसका विरोध करते रहे .दस साल के पश्चात प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सन्1961 में पहले 10 साल की अपेक्षा आगे बढ़ाने का प्रस्ताव पास पारित करवाया .वर्तमान समय में स्वर्ण जातियों के लोग दलित आरक्षण के विरोधी हैं. यही कारण है कि भाजपा के द्वारा नेहरू और गांधी की अपेक्षा सरदार पटेल को अपना ‘अवतार’ मानते हैं. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने स्पष्ट तौर  पटेल के संबंध में कहा ‘आप खुद को कांग्रेसी सोचते हैं और इसे  राष्ट्रवाद इसका पर्याय मानते हैं. मुझे लगता है कि कोई व्यक्ति कांग्रेसी हुए बगैर भी राष्ट्रवादी हो सकता है… मैं अपने आप को किसी भी कांग्रेसी से बड़ा राष्ट्रवादी मानता हूं’.(हरीश खरे, ‘पत्रकारों के लिए है इम्तिहान  की घड़ी’,दैनिक ट्रिब्यून, खुला पन्ना, 1 जनवरी 2018, पृ .7 ).

हरियाणा की इन 37 अनुसूचित जातियों में चमार समुदाय की संख्या 24 ,29,137 है तथा मतदाताओं की संख्या 11% है. चमार जाति के पश्चात अन्य 36 अनुसूचित जातियों की संख्या 53 % है और मतदाताओं की संख्या का 12% है. जनसंख्या की दृष्टि से वाल्मीकि, मजहबी व मजहबी सिख 10,79,685 आबादी के साथ दूसरे स्थान पर व धानक समुदाय 5,81,272  तीसरे स्थान पर है .अन्य 34 अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 10,23,521 है  इन 34 जातियों में अनेक ऐसी जातियां भी है जो अत्यंत वंचित ,दलित और शोषित हैं .हरियाणा की लोकसभा में 10 सीटें हैं इनमें से 2 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं तथा राज्यसभा में आरक्षण की व्यवस्था नहीं है. हरियाणा विधानसभा की 90 सीटों में से 17 आरक्षित सीटें हैं .इन अति वंचित समुदायों में अधिकांश समुदायों का आज तक एक भी प्रतिनिधि लोकसभा तथा हरियाणा  विधानसभा में निर्वाचित नहीं हुआ और विभिन्न राजनीतिक दलों सरकारों के द्वारा   इनमें से राज्यसभा में भी भेजने का प्रयास  लगभग नहीं किया गया.

हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 2015 के अनुसार शैक्षणिक योग्यताएं निर्धारित:
सन् 2015 में हरियाणा पंचायती राज अधिनियम में संशोधन किया गया. यद्यपि महिलाओं के लिए 33% आरक्षण जारी रहा, परंतु पंचायती राज संस्थाओं- पंचायत, ब्लॉक समिति तथा जिला परिषद का चुनाव लड़ने के लिए हरियाणा सरकार के द्वारा कुछ शर्तें संशोधन अधिनियम 2015 में निर्धारित की गई. इस संशोधन अधिनियम को पारित करने का उद्देश्य बताया गया कि हरियाणा में पढ़ी-लिखी पंचायत होनी चाहिए ताकि गांव का विकास समुचित तरीके से हो सके.
हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 2015 के अनुसार अग्रलिखित शैक्षणिक योग्यताएं निर्धारित की गई :
1. सामान्य वर्ग तथा पिछड़ा वर्ग के पुरुषों के लिए दसवीं पास ,
2. सामान्य वर्ग की महिलाओं के लिए आठवीं पास,
3. अनुसूचित जातियों के पुरुषों के लिए आठवीं पास ,
4. अनुसूचित जातियों की महिलाओं के लिए पांचवी पास.
(डॉ. रामजीलाल ,हरियाणा की राजनीति में महिलाओं की भूमिका – सन् 1966 से सन् 2022 तक: एक पुनर्विलोकन https://samajweekly u.k. England  20/10/2022).

ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन( ए आई डी डब्ल्यू ए) के अनुसार इन शैक्षणिक योग्यताओं  की शर्तों का सबसे अधिक प्रभाव दलित वर्ग पर हुआ क्योंकि 83 % दलित महिलाएं तथा 72% दलित पुरुष चुनाव नहीं लड़ पाए .सामान्य श्रेणी की 71% महिलाएं तथा 55 % पुरुष भी पंचायती राज चुनाव में प्रतिनिधि के रूप में चुनाव नहीं लड़ सकें. इसलिए  इस कानून को बुरा कानून’(Bad Law) के नाम से पुकारा गया. इस शैक्षणिक पैमाने के आधार पर भारतवर्ष में असंख्य एमएलए  तथा एमपी (MLAs and MPs )पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव नहीं लड़ नहीं लड़ सकतेटीकाकारों का कहना है कि हरियाणा में पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव लड़ने के लिए जो योग्यताएं निर्धारित की गई. इन के परिणाम स्वरूप लाखों स्त्री  पुरुष जो अनपढ़ हैं वे चुनाव में प्रत्याशी नहीं बन सकते . वे केवल मतदाता के रूप में भाग ले सकते हैं . यद्यपि विधायकोंसांसदोंमंत्रियों मुख्यमंत्रियों प्रधानमंत्री उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति के लिए संविधान में शैक्षणिक योग्यता का वर्णन नहीं है.  

हमारा अभिमत है कि यह कानून निश्चित रूप से  अप्रजातांत्रिक  है. परंतु भारत के सुप्रीम कोर्ट के द्वारा  इस कानून को  संवैधानिक घोषित करने के पश्चात  लागू कर दिया गया. टीकाकारों का कहना है कि हरियाणा में पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव लड़ने के लिए जो योग्यताएं निर्धारित की गई इन के परिणाम स्वरूप लाखों स्त्रीपुरुष जो अनपढ़ हैं वे चुनाव में प्रत्याशी नहीं बन सकते . वे केवल मतदाता के रूप में भाग ले सकते हैं . यद्यपि विधायकोंसांसदोंमंत्रियों मुख्यमंत्रियों प्रधानमंत्री उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति के लिए संविधान में शैक्षणिक योग्यता का वर्णन नहीं है.

यद्यपि सन् 1966 से आज तक हरियाणा में यद्यपि स्थानीय और राज्यस्तरीय अनेक एससी विधायक, सांसद व अन्य राजनेता हुए हैं .इनमें चांदराम पूर्व केंद्रीय मंत्री1(977 -7 9) दलबीर सिंह(पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार) तथा   सूरजभान (लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष तथा एससी एसटी आयोग के अध्यक्ष ),फूलचंद मुलाना (पूर्व शिक्षा मंत्री हरियाणा व हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष) इत्यादि मुख्य नेता थे . दलबीर सिंह, सूरजभान और चांदराम के पश्चात दलित राजनीति का मुख्य चेहरा कुमारी शैलजा है .शैलजा दलबीर सिंह की पुत्री है और काफी लंबे समय  से हरियाणा और राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय है .यदि कांग्रेस पार्टी शैलजा को सन, 2024 के चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में चुनावी घोषणा करती है तो राजनीतिक विशेषज्ञों का यह मानना है कि अपने पिता दलवीर सिंह की तरह कुमारी शैलजा ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के आधार पर विभिन्न जातियों का समर्थन प्राप्त कर सकती है.

हरियाणा में दलित वर्ग की स्थिति को सुधारने के लिए सुझाव

 हरियाणा में दलित वर्ग की स्थिति को सुधारने के लिए दलित वर्ग के पुरुषों, स्त्रियों, युवकों और युवतियों को दलित वर्ग की  सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शिक्षा संबंधी समस्याओं के बारे में जागृत करने की आवश्यकता है. संविधान   की प्रस्तावना , अनुसूचित जातियों संबंधी अनुच्छेदों की जानकारी होना और सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के  निर्णयों का ज्ञान होना अति आवश्यक है. प्रत्येक गांव और शहर में गैर -सरकारी दलित स्वयं सेवी संस्थाओं की स्थापना होनी चाहिए. दलित अभिजात वर्ग के वकीलों का जागरूक होना और जागरूकता फैलाना, दलित ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का ज्ञान होना और विचार गोष्ठियों ,सम्मेलनों और व्याख्यानों द्वारा प्रचार करना, सोशल मीडिया पर दलित विरोधी पोस्टों की आलोचना करना व दलित समाज को उचित जानकारी देना भी जरूरी है. दलित वर्ग के युवकों और युवतियों को दलित साहित्यकारों ,विद्वानों और राजनेताओं के जीवन का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करना चाहिए .दलित वर्ग पर होने वाली हिंसा और अत्याचारों रोकने के  लिए संगठित तौर पर जन आंदोलन करना बहुत ही जरूरी है. राजनीतिक दलों के दलित सांसदों ,विधायकों तथा पदाधिकारियों द्वारा समाज में संदेशवाहक का कार्य करना चाहिए.पुलिस, प्रशासन व न्यायपालिका के दृष्टिकोण बदलाव करना ताकि वे जातीय चश्मा उतार कर समस्याओं का अध्ययन करके दलित विरोद्धी परम्परागत  मानसिकता परित्याग  कर सकें.  पुलिस थानों मे त्वरित एफआईआर दर्ज  करना व निष्पक्ष छानबीन करने के लिए निरंतर जागरूकता पैदा करना और सामूहिक दबाव डालना जरूरी है . हरियाणा सरकार , दलित संगठनों और विद्वानों के द्वारा अज/ अजज सम्बंधित अधिनियम व आईपीसी की उचित धाराओं ,सरकारों की  दलित संबंधी नीतियों व कानूनों इत्यादि का प्रचार और प्रसार  पर बल देना निहायत जरूरी है.दलित वर्ग पर होने वाली हिंसा और अत्याचारों के मामलों की न्यायपालिका में त्वरित सुनवाई व निर्णय होना   चाहिए . भारत के उच्च अनुसंघान संस्थाओं , उच्च न्यायालायों व सर्वोच्च न्यायालाय में आरक्षण लागू होना .

 20 अगस्त 2023 को हरियाणा एससी कर्मचारी संघ के नेतृत्व में अनुसूचित जातियों के कर्मचारियों के द्वारा करनाल में रैली का आयोजन किया गया .इस रैली में मुख्य नारा था: ‘शिक्षा बचाओ ,रोजगार बचाओ और प्रतिनिधित्व पाओ’ . करनाल रैली में  वक्ताओं के द्वारा अनेक सुझाव जो अन्य राज्यों  लागू हैं उनको हरियाणा में लागू करने के लिए स्पष्ट आह्वान किय़ा. हरियाणा में सरकारी नौकरियों में रिक्त स्थानों पर तुरंत प्रभाव से नियुक्ति की जाए तथा पदोन्नति के बैक लॉक को  को पूरा किया जाए.केवल यही नहीं,अपितु उत्तर प्रदेश सरकार की तरह हरियाणा में सभी स्कूलों, कॉलेजों व विश्वविद्यालयों  तथा सरकार से अनुदान प्राप्त करने वाले सभी गैर -सरकारी स्कूलों,कॉलेजों व  विश्वविद्यालयों में शिक्षकों   की भर्ती के लिए राज्य स्तरीय शिक्षक आयोग  की स्थापना की जाए .सरकार को चाहिए कि वह तेलंगाना ,आंध्र प्रदेश ,कर्नाटक ,राजस्थान इत्यादि राज्यों की भांति एससी/ एसटी कंपोनेंट एक्ट निर्मित करें और एससी सब प्लान अधिनियम के अंतर्गत अनुसूचित जातियों की संख्या के अनुसार बजट निर्धारित किया जाए . इस बजट को केवल  अनुसूचित जातियों के विकास के लिए ही खर्च किया जाए. दलित युवा वर्ग को रोजगार दिलाने के लिए  तेलंगाना की भांति  दलित बंधु योजना को लागू करें और बेरोजगार दलित युवाओं रोजगार चलाने के लिए कौशल रोजगार योजना   के अंतर्गत10लाख रूपए तक मिलने वाली अनुदान राशि डायरेक्ट योजना के अधीन उनके खातों में डाली जाए और कौशल रोजगार  निगम को बंद करके सीधी भर्ती की जाए.

परन्तु य़ह तभी लागू हो सकते हैं जब डॉ. बी .आर .अंबेडकर के उद्घोष–शिक्षित बनो ,संगठित बनो व संघर्ष करो को व्यावहारिक रूप में अपनाया जाए क्योंकि निरंतर जागरूकता ही स्वतंत्रता का मूल्य है. हरियाणा सहित पूरे भारत में दलित वर्गों की स्थिति में सुधार के लिए सामाजिक,आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर महत्वपूर्ण कदम उठाने की सख्त जरूरत है.

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