हरियाणा की राजनीति में महिलाओं की भूमिका – सन् 1966 से सन् 2022 तक: एक पुनर्विलोकन

डॉ. रामजीलाल, सेवानिवृत्त प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा)
संपर्क सूत्र: 8168810760 Email ID: drramjilal1947@gmail.com

हरियाणा का इतिहास बहुत अधिक प्राचीन है. हरियाणा भारतीय सभ्यता और संस्कृति का मुख्य केंद्र रहा है. हरियाणा का इतिहास वैदिक संस्कृति से प्रारंभ होता है| हरियाणा में कुरुक्षेत्र की भूमि पर श्री कृष्ण भगवान ने विश्व प्रसिद्ध गीता का ज्ञान दिया कथा कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के मध्य युद्ध हुआ| महाभारत के काल से लेकर सन 2020 तक हरियाणा के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक विकास के अनेक चरण है.
सन् 1857 का स्वतंत्रता आंदोलन:
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हरियाणा की भूमिका अद्वितीय रही है. सन् 1857 का स्वतंत्रता आंदोलन दिल्ली के सम्राट बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में लड़ा गया तथा हरियाणा के राजाओं और नवाबों ने इस आंदोलन में अभूतपूर्व योगदान दिया. सन् 1857 के आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजी साम्राज्यवादी सरकार के द्वारा पुरुषों महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार किए|
महात्मा गांधी के आंदोलन : हरियाणवी महिलाओं की भूमिका :
सन् 1857 के पश्चात राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी के आंदोलनों तक हरियाणवी महिलाओं की भूमिका बहुत अधिक नहीं थी. महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए प्रत्येक आंदोलन में हरियाणा की महिलाओं ने अपना योगदान दिया| महात्मा गांधी के आंदोलनों में भाग लेने वाली महिलाओं में श्रीमती कस्तूरबा बाई, विद्यावती, यमुना देवी, महादेवी, प्रसन्नी देवी, शांति देवी इत्यादि महिलाओं की भूमिका उल्लेखनीय रही है. हरियाणा का स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास अधूरा रहेगा. यदि हम अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अरूणा आसफ अली (कालका) तथा सुचेता कृपलानी (अंबाला) का जिक्र ना करें.
सन् 1947 से 1 नवंबर 1966 तक हरियाणा:
सन् 1947 से 1 नवंबर 1966 तक हरियाणा की राजनीति में हरियाणवी महिलाओं की भूमिका केवल दर्शक के रूप में रही है तथा उनकी कोई सक्रिय सहभागिता नहीं थी. शिक्षा के प्रचार और प्रसार के कारण महिलाएं सार्वजनिक क्षेत्र में आने लगी. सन् 2018 तथा सन् 2019 के अखिल भारतीय सर्वे रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में छात्राओं की की संख्या 50.77 % थी. अन्य शब्दों में छात्रों की अपेक्षा छात्राओं की संख्या 0.77% अधिक थी.
21 वीं शताब्दी के प्रथम तथा द्वितीय दशक में गांव के विकास में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. आज हरियाणवी महिलाएं राज्यपाल (चंद्रावती), सेना में कमांडर पुलिस में ऑफिसर, शिक्षक, वैज्ञानिक, अभियंता , न्यायाधीश , विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर एवं वाइस चांसलर , आईएएस, आईपीएस, आई एफ एस, वकील , शोधार्थी , पत्रकार , संपादक , टीवी चैनल न्यूज़ एडिटर, विभिन्न राजनीतिक दलों की सदस्य तथा पदाधिकारी हैं. हरियाणवी महिलाएं सौंदर्य प्रतियोगिताओं और खेलों में भाग लेती हैं . ओलंपिक सहित अंतरराष्ट्रीय खेलों में हरियाणा की लड़कियों ने जो भूमिका निभाई है उससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के गौरव को बढ़ा है. ऐसी स्थिति में हरियाणा की महिलाओं के लिए राजनीति कोई अपवाद नहीं है.
राजनीतिक आंदोलन और महिलाएं :
वर्तमान में हरियाणा की राजनीति में महिलाएं किसान आंदोलन, श्रमिक आंदोलन, आंगनवाड़ी वर्कर्स आंदोलन , अध्यापक आंदोलन, सर्व कर्मचारी संघ आंदोलन , राजनीतिक दलों के आंदोलन –हड़ताल में सक्रिय भूमिका निभाती निभाती हैं. हरियाणा की जाट महिलाओं ने जाट आरक्षण आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया. केवल यही नहीं अपितु संत रामपाल प्रकरण तथा बाबा राम रहीम प्रकरण भी महिलाओं की भूमिका अंधभक्ति के कारण पुरुषों के समान ही रही है. हरियाणा की राजनीति में विभिन्न राजनीतिक दलों की सदस्यता से लेकर पार्टी की पदाधिकारी , प्रवक्ता तथा प्रदेशाध्यक्ष भी हैं. कुमारी शैलजा भारतीय कांग्रेस पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष रही हैं .
प्रत्येक राजनीतिक दल के अपने-अपने महिला विंग हैं तथा इनके द्वारा महिलाओं के मुद्दों को पार्टी के प्लेटफार्म पर तथा जनता में प्रचारित किया जाता है. महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों अपराध तथा हिंसात्मक घटनाओं के विरुद्ध आवाज उठाती हैं . सामान्य महिलाओं को अपने अपने राजनीतिक दलों से जोड़ने के लिए राजनीतिक दलों की महिलाओं के द्वारा प्रचार और प्रसार किया जाता है. केवल यही नहीं अपितु महिलाओं को लामबंद करने के लिए राजनीतिक दलों के द्वारा विशेष कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं. सन् 2019 में नैना चौटाला के द्वारा जेजेपी पार्टी के पक्ष में हरी चुनरी कार्यक्रम चलाकर महिलाओं को अपने पक्ष में करने के लिए अभूतपूर्व प्रयास किया| इन सभी कार्यक्रमों के द्वारा महिलाओं में ग्रामीण स्तर से लेकर हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ तक राजनीतिक चेतना में वृद्धि हुई.
पंचायत से पार्लियामेंट तक हरियाणा की महिलाओं की भूमिका:
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के एक गांव में महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 40 क्रियान्वित करने के लिए 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज का उद्घाटन किया गया. सन् 1959 से सन् 1994 तक पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भूमिका बिल्कुल कम थी . भारतीय संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं में 33% आरक्षण की व्यवस्था की गई. यह संशोधन अधिनियम हरियाणा में सन् 1994 में लागू किया गया.
हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 2015 के अनुसार शैक्षणिक योग्यताएं निर्धारित:
सन् 2015 में हरियाणा पंचायती राज अधिनियम में संशोधन किया गया. यद्यपि महिलाओं के लिए 33% आरक्षण जारी रहा, परंतु पंचायती राज संस्थाओं- पंचायत, ब्लॉक समिति तथा जिला परिषद का चुनाव लड़ने के लिए हरियाणा सरकार के द्वारा कुछ शर्तें संशोधन अधिनियम 2015 में निर्धारित की गई. इस संशोधन अधिनियम को पारित करने का उद्देश्य बताया गया कि हरियाणा में पढ़ी-लिखी पंचायत होनी चाहिए ताकि गांव का विकास समुचित तरीके से हो सके.
हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 2015 के अनुसार अग्रलिखित शैक्षणिक योग्यताएं निर्धारित की गई :
1. सामान्य वर्ग तथा पिछड़ा वर्ग के पुरुषों के लिए दसवीं पास ,
2. सामान्य वर्ग की महिलाओं के लिए आठवीं पास,
3. अनुसूचित जातियों के पुरुषों के लिए आठवीं पास ,
4. अनुसूचित जातियों की महिलाओं के लिए पांचवी पास.
टीकाकारों का कहना है कि हरियाणा में पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव लड़ने के लिए जो योग्यताएं निर्धारित की गई इन के परिणाम स्वरूप लाखों स्त्री-पुरुष जो अनपढ़ हैं वे चुनाव में प्रत्याशी नहीं बन सकते . वे केवल मतदाता के रूप में भाग ले सकते हैं . यद्यपि विधायकों, सांसदों, मंत्रियों , मुख्यमंत्रियों , प्रधानमंत्री , उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति के लिए संविधान में किन शैक्षणिक योग्यता का वर्णन नहीं है.
सन् 2016 में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव
26 जुलाई 2015 को पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल पूरा होने जा रहा था क्योंकि इससे पूर्व चुनाव जुलाई 2010 में हुए थे. पंचायती राज अधिनियम, 2015 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई. 6 अक्टूबर 2015 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक दृष्टि से इस अधिनियम को वैध माना. परिणाम स्वरूप चुनाव का रास्ता साफ हो गया. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पश्चात सन 2016 में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव हुए.
हरियाणा में पंचायती राज संस्थाएं: सन् 2016
1. गांव 7652
2. पंचायत, 6220
3. ब्लॉक समिति 143
4 .जिला परिषद 22
5 कुल पंचों के चुनाव 72116

A.सैद्धांतिक पहलू :
सन् 2016 में कुल पंचों 72116 में से केवल 45 % सीटों पर चुना हुआ क्योंकि 55% प्रतिनिधि सर्वसम्मति से चुने गए. पंचायती राज संस्थाओं –पंचायत, ब्लॉक समिति और जिला परिषद में महिलाओं के लिए 33% स्थान आरक्षित थे . परंतु इनको 42.7% प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ जो कि निर्धारित कोटे से 9.7% अधिक था . पंचायतों में महिलाओं को 44 % सीटें मिली जो निर्धारित कोटे से 11% अधिक थी. इन सीटों में आरक्षित सीटें 2041 थी. परंतु महिलाओं ने 2559 सीटें जीतकर एक रिकॉर्ड स्थापित किया. ब्लॉक समिति में 42 %तथा जिला परिषद में 44 % सीटों पर विजय प्राप्त की यद्यपि यह विजय महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा में एक नई इबारत है क्योंकि इनमें अधिकांश महिलाएं युवा हैं. इनकी औसत आयु 32 वर्ष है. शैक्षणिक दृष्टि से 45 % महिला सरपंच मैट्रिक पास, 11.9 % 12वीं पास तथा 10 % महिलाएं ग्रेजुएट हैं. सन् 2016 के चुनाव में 6189 सरपंच चुने गए इनमें 662 ग्रेजुएट अथवा इससे अधिक शिक्षित थे. इनमें 252 महिलाएं ग्रेजुएट अथवा इससे अधिक शिक्षित थी.
कानून के द्वारा महिलाओं का प्रतिशत बढ़ा है तथा शिक्षित महिलाओं ने सैद्धांतिक रूप में पंचायती राज संस्थाओं में अधिपत्य स्थापित किया .
B.व्यावहारिक पहलू :
कानून के द्वारा जो शक्तियां महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रदान की गई है व्यवहार में उनको पुरुषवादी सोच तथा महिला विरोधी मानसिकता के कारण महिला प्रतिनिधियों को शक्तिहीन कर दिया गया. महिला प्रतिनिधियों की ओर से पंचायती राज संस्थाओं में उनके परिवार के पुरुष सदस्य उनका प्रतिनिधित्व करते हैं.
यद्यपि हरियाणा में सन् 2016 के चुनाव में पंचायतों में महिलाएं साक्षर और पढ़ी लिखी है. इसके बावजूद भी महिला पंच और सरपंच अथवा ब्लॉक समिति के मेंबर अथवा चेयरमैन और जिला परिषद चेयरमैन महिलाओं से संबंधित मुद्दों में भी पंचायतों अथवा बैठकों में भाग नहीं लेते.
मेरा यह व्यक्तिगत अनुभव है कि हमारे गांव में सन् 2016 के पश्चात शिक्षित महिला सरपंच की अपेक्षा विवाह -विच्छेद के मामले में महिला सरपंच का प्रतिनिधित्व “ससुर” कर रहे थे. इस मीटिंग में कई गांवों के प्रतिनिधि थे. परंतु महिला सरपंच गायब थी. ऐसी स्थिति में महिलाएं यद्यपि प्रतिनिधि चुनी गई परंतु उनके अधिकारों पर परिवार के पुरुषों -ससुर, पति, पुत्र अथवा अन्य सदस्यों ने अप्रत्यक्ष रूप से कब्जा कर लिया.
वास्तव में यह महिलाओं के “सशक्तिकरण” की अपेक्षा उनका “निसशक्तिकरण” करना है और पुरुषों के “सशक्तिकरण” को बढ़ावा देना है.
राजनीति विज्ञान के व्याकरण में हरियाणा का योगदान:
राजनीति विज्ञान के व्याकरण में हरियाणा का योगदान बड़ा महत्वपूर्ण है. पिछली शताब्दी के उत्तरार्ध में हरियाणा की राजनीति में “आया राम , गया राम “ अर्थात दलबदलू प्रसिद्ध हुआ. वर्तमान शताब्दी में भारतीय राजनीति की ग्रामर में नए मुहावरे जुड़े – जैसे ”सरपंच ससुर”, “सरपंच पति”, “सरपंच पुत्र” ” सरपंच प्रतिनिधि”. इत्यादि. हरियाणा के एक क्षेत्र में तो सभी हदें पार हो गई. सरपंच एसोसिएशन के चुनाव में प्रधान व उपप्रधान सहित कुल 6 पदाधिकारियों में से चार पदाधिकारी ऐसे निर्वाचित हुए हैं उनकी पत्नियां सरपंच है. निर्वाचित महिलाओं की अपेक्षा परिवार के पुरुष अधिकारियों विधायकों , मंत्रियों तथा मुख्यमंत्रियों की बैठक में भाग लेते हैं. ग्रामीण लोग , अधिकारी, विधायक इत्यादि इनको ‘सरपंच साहब’ के नाम से पुकारते हैं. यह असंवैधानिक और गैरकानूनी है.

पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2015 तथा पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2020 में संशोधन की आवश्यकता : कानूनी अपराध का प्रावधान

हमारा यह सुनिश्चित अभिप्राय है कि पंचायती राज अधिनियम 2015 तथा पंचायती राज अधिनियम 2020 में संशोधन किया जाना चाहिए :
1. यह कानूनी प्रावधान होना चाहिए यदि महिला पंच , सरपंच अथवा ब्लॉक समिति के मेंबर अथवा चेयरमैन और जिला परिषद मेंबर अथवा चेयरमैन बैठकों में भाग नहीं लेते तथा उनके पति, पुत्र व अन्य परिवार के पुरुष उनका ‘प्रतिनिधित्व’ करते हैं. यह कानूनी अपराध होना चाहिए. इसमें कैद , जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान किया जाए. ऐसी महिला पंचों, सरपंचों, सदस्यों एवं चेयरमैन को पद से हटाया जाए .
2. वे अधिकारी जो महिलाओं के परिवार के सदस्यों अथवा तथाकथित प्रतिनिधियों के साथ बैठ कर निर्णय लेते हैं उन अधिकारियों के विरुद्ध भी सख्त कानूनी कार्रवाई प्रावधान भी होना चाहिए.
हमारा सुनिश्चित अभिमत है कि यदि पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2015 तथा पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2020 में संशोधन करके यह प्रावधान नहीं होता तो महिला सशक्तिकरण केवल एक धोखा, प्रपंच और जुमला है. संक्षेप में पंचायती राज संस्थाओं के जरिए महिला सशक्तिकरण के दावे खोखले सिद्ध होंगे.
गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग की सर्वे रिपोर्ट 2015: “सिर्फ नाम की सरपंच’, “काम की सरपंच” नहीं.
हरियाणा के गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के द्वारा सन् 2015 में एक सर्वे किया गया . इस सर्वे में 300 पूर्व महिला सरपंचों से पूछे गए प्रश्नों के दिए गए उत्तरों के आधार पर किए गए विश्लेषण से स्त्री विरोधी मानसिकता स्पष्ट नजर आती है. रिपोर्ट के अनुसार समाज के लोग महिलाओं को “सरपंच“ स्वीकार नहीं करते. उनके परिवार के पुरुष सदस्य ही “सरपंची” का काम करते हैं. पूर्व महिला सरपंचों के मन में गांव का विकास करने और नजरिया बदलने की चाह है लेकिन काम नहीं कर सकती. संक्षेप में कहेंगे कि महिलाएं केवल “नाम की सरपंच” है “काम की सरपंच” नहीं हैं.

पंचायती राज संशोधन अधिनियम 2020 : महिलाओं को 50% आरक्षण की व्यवस्था

महिलाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं से लेकर संसद तक 50% प्रतिनिधियों के बाद काफी लंबे समय से चल रही है. सर छोटू राम एक दूरदर्शी युग दृष्टा एवं युग पुरुष थे. उनका यह मानना था कि जब तक महिलाओं की कानून और विनिर्माण प्रक्रिया में भागीदारी नहीं होगी तब तक स्त्री -पुरुष समानता का स्वपन पूरा नहीं होगा. यही कारण है कि उन्होंने 79 साल पहले सन् 1943 में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% सीटें तथा विधानसभा में 20% सीटें आरक्षित करने की वैधानिक व्यवस्था का प्रावधान किया.परंतु 9 जनवरी 1945 उनकी मृत्यु के कारण इस अधिनियम के प्रावधान लागू ना हो सके और ठंडे बस्ते में चले गए.
ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा भारतीय रजवाड़ों से स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात महिलाओं के लिए 50% आरक्षण सभी क्षेत्रों में हो इसका समर्थन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तथा विरोधी दल के धुरंधर नेता और समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया ने भी किया था . हमारा मानना है कि महिलाओं की आधी आबादी है और उस आधी आबादी का सभी संस्थाओं में 50% प्रतिनिधित्व होना चाहिए.
जुलाई 2020 से पूर्व भारत के 20 राज्यों आंध्र प्रदेश , असम, बिहार , छत्तीसगढ़ , गुजरात , हिमाचल प्रदेश, झारखंड , कर्नाटक , केरल , मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र , ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तेलंगाना , तमिल नाडु , त्रिपुरा, उत्तराखंड तथा पश्चिमी बंगाल में पंचायती राज संस्थाओं में 50% आरक्षण की व्यवस्था है| केवल यही नहीं अभी तो शहरी स्थानीय निकायों कारपोरेशन, नगर परिषद और नगर पालिका में भारत के 10 राज्यों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्था है. असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात , हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र , त्रिपुरा , ओडिशा और तेलंगाना में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्था है.
हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर विधायकों की राय जानने के लिए 1 जुलाई 2020 को एक बैठक की. इस का मूल उद्देश्य 2021 के पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव से पूर्व महिलाओं को 50% दिया जाए. इस कार्यक्रम में भाजपा तथा जजपा दोनों के ही प्रतिनिधि मौजूद थे. अनेक विधायकों ने एक अच्छी शुरुआत माना.

6 नवंबर 2020 को हरियाणा की विधानसभा में ध्वनि मत से पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2020 पारित किया. इस अधिनियम के अनुसार :
1.पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्था की गई,
2. इस प्रावधान के अधीन पंचायती राज संस्थाओं में बीसीए कैटेगरी के लिए 8% आरक्षण की व्यवस्था की गई,
3 यदि प्रतिनिधि कानून के अनुसार काम ना करें ग्रामीण मतदाताओं को प्रतिनिधियों को वापस बुलाने (राइट टू रिकॉल) का अधिकार दिया गया है.
इस संबंध में निम्न आधारों पर टिप्पणी की जा सकती है:
. 1शहरों में महिलाएं जहां अधिक शिक्षित तथा जागरूक है वहां शहरी स्थानीय संस्थाओं में हरियाणा के द्वारा 50% आरक्षण की व्यवस्था नहीं कीगई,
2. राइट टू रिकॉल का दुरुपयोग होने की पूरी -पूरी संभावना की है क्योंकि यदि सरपंच अथवा अन्य प्रतिनिधि की स्थिति आर्थिक रूप से कमजोर है तो ऐसी स्थिति में उसके अपने दबंग समर्थक अथवा विरोधी दबंग दबाव डालकर गलत काम करवाने का प्रयास करेंगे . यदि वह इंकार करेगा तो उसके विरुद्ध इसका प्रयोग करते हुए गांव के माहौल को बिगाड़ने का प्रयास किया जाएगा तथा निर्वाचित प्रतिनिधि को पदस्थ अपदस्थ करने के लिए पूरा जोर लगा दिया जाएगा ,
3. महिलाओं के लिए अभी तक संसद तथा विधान पालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का बिल काफी लंबे समय से लटका हुआ है.
4. वस्तुतः पुरुष प्रधान समाज में महिला विरोधी मानसिकता तथा पुरुष वर्चस्ववादी सोच महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के संबंध में एक बहुत बड़ी रुकावट तथा बाधा है.

पंचायती राज चुनाव के अन्य शर्तें
हरियाणा पंचायती राज चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी के लिए अन्य शर्तें अग्रलिखित हैं
1.चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए;
2.उसके घर में शौचालय होने का स्वघोषित परिणाम पत्र चुनाव में भाग लेने वाले नामांकन पत्र (डॉक्यूमेंट) के साथ संलग्न होना चाहिए ;
3. चुनाव लड़ने से पहले तीन बैंकों -लैंड मारगेज बैंक, को-ऑपरेटिव और सहकारिता बैंक से पहले ऋण का पूरा बकाया क्लीयर करने का नो-ड्यूज सर्टिफिकेट लेना होगा . इनमें से किसी भी बैंक के डिफाल्टर चुनाव नहीं लड़ सकता. 16 अक्टूबर 2022 को इसका स्पष्टीकरण करते हुए हरियाणा राज्य निर्वाचन आयुक्त धनपत सिंह ने कहा कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को ही नो “ड्यूज सर्टिफिकेट” देना होगा.
4. प्रत्याशी का कोई बिजली का बिल बकाया नहीं होना चाहिए. चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को ही पूरा बकाया क्लीयर बिल करने का बिल बिजली विभाग से नो “ड्यूज सर्टिफिकेट” देना होगा.
5. चुनाव लड़ने व्यक्ति के पास हरियाणा का रिहायशी (निवास स्थान )प्रमाण-पत्र होना चाहिए. 16 अक्टूबर 2022 को इसका स्पष्टीकरण करते हुए हरियाणा राज्य निर्वाचन आयुक्त धनपत सिंह ने कहा कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को ही नो ड्यूज सर्टिफिकेट देना होगा. मूल निवासी प्रमाण पत्र (डोमिसाइल सर्टिफिकेट) देने की आवश्यकता नहीं है .जो भी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है सिर्फ उसका नाम संबंधित पंचायत, पंचायत समिति व जिलापरिषद की मतदाता की सूची में दर्ज होना चाहिए. शब्दों में प्रत्याशी के लिए निवास स्थान प्रमाण पत्र जरूरी नहीं है.
6. चुनाव लड़ने व्यक्ति के पास परिवार पहचान-पत्र (फेमिली आईडी) का होना भी अनिवार्य शर्त है;
7 यदि किसी व्यक्ति ने पंचायती जमीन या सरकारी जमीन पर कब्जा किया हुआ है और उसके खिलाफ इसको लेकर केस चल रहा है तो उसको चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है.
8.किसी सक्षम न्यायालय द्वारा अपराधिक मामले जिनमें कम से कम 10 साल की सजा हो सकती है और आरोप निर्धारित किए गए हैं वह कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के बाद ही चुनाव लड़ सकते हैं ,
9 यदि पुलिस थाने में केस पंजीकृत है इसकी सूचना स्वघोषित परिणाम पत्र चुनाव में भाग लेने वाले नामांकन पत्र (डॉक्यूमेंट) के साथ संलग्न होना चाहिए . इसके लिए पुलिस से किसी सत्यापन -प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है.
10. एक उम्मीदवार के दो जगह पर वोट नहीं होने चाहिए. सरपंच पद का चुनाव लड़ने वालों के लिए उसी ग्राम पंचायत में वोट होना जरूरी है;
11.ब्लाक समिति के सदस्य का चुनाव लड़ने वाले की वोट उसी ब्लाक में होनी चाहिए.ऐसे में वह अपनी ब्लाक समिति के किसी भी वार्ड से चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र रहेगा;
12 जिला परिषद सदस्य के लिए जिले में कहीं भी वोट हो सकता है. उम्मीदवार उसी जिले में किसी भी वार्ड से नामांकन-पत्र दाखिल कर सकता है;
13. अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए जाति प्रमाण-पत्र अनिवार्य है ;
14. आरक्षित सीटों का निर्णय सरकार द्वारा ड्रा के द्वारा किया जाएगा.
15 खर्च की सीमा – पंचायती राज चुनाव लड़ने के लिए खर्च की सीमा पंच के लिए ₹50,000, सरपंच के लिए दो लाख, पंचायत समिति के लिए तीन लाख 60 हजार व जिला परिषद के लिए ₹60,0000 तक निर्धारित की गई है

नोटा – हरियाणा चुनाव आयोग द्वारा जारी विज्ञप्ति में यह भी स्पष्ट किया गया है कि पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में नोटा भी लागू होगा

हरियाणा पंचायत चुनाव 2022

पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2020 न्यायालय में चुनौती दी गई थी. न्यायालय के निर्णय के पश्चात लगभग 21 महीने की देरी के बाद पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव अगले महीने नवंबर 2022 में होंगे.
हरियाणा में पंचायती राज संस्थाएं: सन् 2022
1. कुल जिले 22
2. कुल पंचायत(ब्लॉक) समितियां 143
3. पंचायत(ब्लॉक) समितियों की कुल सीट केलिए चुनाव 3079
4. कुल पंचायतों में चुनाव 6220
5. कुल पंचों के पद लिए चुनाव 61993
6. जिला परिषद कीकुल सीट के लिए चुनाव 411
7. पंचायत प्रतिनिधियों की कुल सीट के लिए चुनाव 71682
8. कुल मतदाता 1,20,43073
9. कुल मतदान केद्र 14637
हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 2022 और हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 2015 : एक तुलनात्मक अध्ययन
पंचायती राज अधिनियम, 2020 के अनुसार हरियाणा में महिलाओं के लिए 50% स्थान आरक्षित हैं जबकि हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 2015 में महिलाओं के लिए 33 % आरक्षण की व्यवस्था थी. पंचायती राज अधिनियम, 2020 के अनुसार , पंचायती राज संस्थाओं- पंचायत, ब्लॉक समिति तथा जिला परिषद के वार्डों का विभाजन विषम और सम( Odd and Even) के आधार पर किया गया है. महिलाएं केवल सम (Even)सीटों पर ही चुनाव लड़ सकती हैं. उनको अनारक्षित सीटों पर चुनाव में उम्मीदवारी का अधिकार नहीं है अर्थात अनारक्षित सीटों पर चुनाव नहीं लड़ सकती जबकि हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 2015 के अनुसार महिलाएं आरक्षित तथा अनारक्षित सीटों पर चुनाव लड़ सकती थी . यही कारण है कि सन् 2016 के चुनाव में महिलाओं को पंच व सरपंचों के पदों पर 33% की अपेक्षा अधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त था. यह पहला अवसर है जबकि हरियाणा में पंचायती राज संस्थाओं में बीसी-ए श्रेणी की जातियों को 8 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया है. इस से पूर्व हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 2015 में यह व्यवस्था नही थी.
सन् 2022 के चुनाव में विरोधाभास
सन् 2022 के चुनाव में एक विरोधाभास स्पष्ट दिखाई देता है .उदाहरण के तौर पर सरपंचों, ब्लॉक समितियों तथा जिला परिषद के चुनाव इलेक्ट्रॉनिक मशीन के द्वारा होंगे जबकि पंचों का चुनाव बैलट पेपर के द्वारा किया जाएगा. यहां यह कहना उचित होगा कि जब ग्रामीण मतदाता विधायक (एमएलए) तथा सांसद (एमपी) का चुनाव ईवीएम के द्वारा कर सकता है. सरपंचों, ब्लॉक समितियों तथा जिला परिषदों के सदस्यों का चुनाव ईवीएम के द्वारा क्यों नहीं कर सकता? वास्तव में अगर देखा जाए पंचायती राज चुनाव सर्वसाधारण मतदाता को सांसदों तथा विधायकों के चुनाव के लिए ट्रेनिंग प्रदान करते हैं. इसलिए सरकार का यह निर्णय तर्कसंगत नजर नहीं आता.

जिला परिषद तथा ब्लॉक समितियों के अध्यक्षों का चुनाव प्रत्यक्ष ना होकर अप्रत्यक्ष रूप में सदस्यों के द्वारा किया जाएगा. इसके अतिरिक्त पंचायतों में करीब 3110 महिला सरपंच चुनी जाएंगी. पंचायतों के सरपंचों व पंचों का चुनाव पंचायत क्षेत्र के मतदाताओं के द्वारा प्रत्यक्ष रूप में किया जाएगा जबकि जिला परिषद के चेयरमैन व वाइस चेयरमैन एवं ब्लॉक समिति के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप में किया जाएगा . अप्रत्यक्ष रूप में किए जाने वाले चुनाव में जिला परिषद और ब्लॉक समिति के निर्वाचित सदस्यों का उसी तरीके से अपहरण होने की संभावना है जैसा कि विधानस?यह पहला अवसर है कि वर्तमान चुनाव दो चरणों में होंगे. इस चुनाव में सन् 2016 के चुनाव के अपेक्षाकृत 23 ग्राम पंचायतें अधिक हैं. भाओं में दल बदल के लिए अथवा दल बदल से बचने के लिए विधायकों को भारत दर्शन पर ले जाया जाता है अथवा रिजॉर्ट्स में ठहराया जाता है. ऐसी स्थिति में निर्वाचित सदस्यों को खरीदा जाएगा और भ्रष्टाचार के बढ़ने की संभावना रहेगी.

पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय के डबल बेंच में चुनौती : चुनाव के नतीजे पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्णय पर निर्भर
पंचायती राज(संशोधन) अधिनियम 2020 के अंतर्गत पंचायती राज संस्थाओं- जिला परिषद, ब्लॉक समिति एवं पंचायत चुनाव में बीसी-ए को 8 फीसदी और महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण प्रावधान किया है. महिलाएं केवल सम सीटों पर चुनाव लड़ सकती हैं . परंतु ओपन सीटों पर उम्मीदवार नहीं हो सकती. पंचायती राज संशोधन अधिनियम 2020 अधिनियम के इन प्रावधानों को पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय के डबल बेंच में चुनौती दी गई है . इनको भारतीय संविधान के अनुच्छेदों 14,15, और 243 (d) के अंतर्गत अवैध घोषित करने की याचिका डाली गई है. पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय के डबल बेंच में सुनवाई जारी है. यद्यपि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2020 के प्रावधानों के आधार पर पंचायती राज संस्थाओं जिला परिषदों, ब्लॉक समितियों और पंचायतों समिति एवं पंचायत चुनाव कराने की परमिशन प्रदान कर दी. यह मामला अभी भी कोर्ट में जारी है . परंतु चुनाव के नतीजे उच्च न्यायालय के निर्णय पर निर्भर होंगे.

महिला मतदाताओं की संख्या में निरंतर वृद्धि : सन् 1966 से सन् 2019 तक
सन 1966 से 2020 तक 1 नवंबर 1966 को हरियाणा की स्थापना हुई. भारतीय संघ में हरियाणा 17 में राज्य बना. नवगठित राज्य की स्थापना के पश्चात पहला चुनाव सन् 1967 में हुआ. सन् 1966 से सन् 2019 तक हरियाणा विधानसभा के 13 चुनाव हुए हैं. यद्यपि सन् 1966 से सन् 2020 तक महिला मतदाताओं की संख्या में निरंतर वृद्धि हुई है इसके बावजूद भी पुरुष मतदाताओं की संख्या से काफी कम है. सन् 1966 में महिला मतदाताओं की संख्या 20 लाख 57 हजार 541 थी. सन् 2000 में नवमी विधानसभा का चुनाव हुआ. इस चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या 50 लाख 72 हजार 844 थी. सन 2019 में 13 वी विधानसभा के चुनाव के समय महिला मतदाताओं की संख्या 85 लाख 12 हजार 231 थी. सन 2019 में हरियाणा में कुल मतदाता एक करोड 83 लाख 90 हजार 525 थे. इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 98 लाख 72 हजार 42 थी. हरियाणा विधानसभा के प्रथम चुनाव सन् 1966 से सन् 2019 तक महिला मतदाताओं की संख्या 4 गुना बड़ी है. सन् 2019 के चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या 46 % तथा पुरुष मतदाताओं की संख्या 54% थी.
हरियाणा में महिला मतदाताओं की संख्या कम होने के मूल कारण
महिला मतदाताओं की संख्या कम होने के मूल कारणों का वर्णन निम्नलिखित है:
1. हरियाणा में महिला मतदाताओं की संख्या का मूल कारण यहां महिला -पुरुष लिंगानुपात में बहुत बड़ा अंतर है.
2. वोटर कार्ड के लिए फोटो खिंचवाना पड़ता है जबकि मुस्लिम महिलाएं पर्दानशी होने के कारण वोटर कार्ड के लिए बुर्का उठा कर फोटो खिंचवाने के लिए तैयार नहीं होती क्योंकि वह पुरुषों के सामने बुर्का उठाने में संकोच करती हैं. लगभग यही स्थिति गैर-मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में भी पुरानी पीढ़ी की हिंदू औरतों के संबंध में विद्यमान है. क्योंकि हिंदू महिलाएं भी परंपरागतता का शिकार होने के कारण अनेक क्षेत्रों में घूंघट उठा कर फोटो खिंचवाने के लिए तैयार नहीं होती.
3. महानगरों की महिलाओं का भी पंजीकरण नहीं होता क्योंकि महानगरों और शहरों की महिलाएं नौकरी करने के लिए चली जाती है तथा उनके पास वोटर कार्ड बनवाने के लिए समय नहीं होता ,तथा
4. अंतिम कारण वोटर लिस्ट( वोटर कार्ड)बनाने वाले कर्मचारियों की लापरवाही भी है. यह कर्मचारी लापरवाही के कारण अपने दायित्व को पूरी तरह नहीं निभाते और उचित जानकारी इकट्ठी नहीं करते .l
परिणाम स्वरूप हरियाणा विधानसभा के प्रथम चुनाव सन् 1967 से सन् 2019 के विधानसभा के चुनाव तक महिला मतदाताओं की संख्या 4 गुना बढ़ी है परंतु लिंगानुपात में अंतर के कारण महिलाओं और पुरुषों के मतदाता के रूप में भी अंतर है. सन् 2019 के चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या 46 %तथा पुरुष मतदाताओं की संख्या 54% थी.
हमारा सुनिश्चित अभिमत है कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र विशेष रुप से मेवात तथा यमुनानगर के गांवों में सरकार, पंचायत , स्वयंसेवी संगठनों . संचार के साधनों इत्यादि के द्वारा महिला मतदाताओं के पंजीकरण के लिए विशेष जागरूकता अभियान चलाए जाने की परम आवश्यकता है.

हरियाणा विधानसभा के चुनाव में महिला प्रत्याशियों की संख्या पुरुष प्रत्याशियों की संख्या से बहुत कम: सन् 1966 से सन् 2019 तक
हरियाणा विधानसभा के चुनाव में कुल प्रत्याशियों में पुरुषों की संख्या अधिक और महिलाओं की संख्या कम है. सन् 1967 के प्रथम चुनाव में कुल प्रत्याशी 471 थे .इनमें से पुरुष प्रत्याशियों की संख्या 663 जबकि महिला प्रत्याशियों की संख्या केवल 8 थी. सन् 1968 के चुनाव में कुल प्रत्याशी 398 थे. इनमें से पुरुषों की संख्या 386 तथा महिला प्रत्याशियों की संख्या केवल 12 थी. सन् 1972 में 384 प्रत्याशियों में 371 पुरुष प्रत्याशी तथा 13 महिला प्रत्याशी थे. सन् 1977 के चुनाव में 671 प्रत्याशियों में 651 पुरुष प्रत्याशी तथा 21 महिला प्रत्याशी थे. सन् 1982 मे कुल 1095 प्रत्याशियों में 1068 पुरुष तथा 27 महिला प्रत्याशी ,सन् 1987 के चुनाव में कुल 1322 प्रत्याशियों में 2287 पुरुष तथा 35 महिला प्रत्याशी ,सन् 1991 के चुनाव में कुल अट्ठारह सौ पचासी प्रत्याशियों मे 1844 पुरुष प्रत्याशी तथा 41 महिला प्रत्याशी, सन् 1996 के चुनाव में कुल 2608 प्रत्याशियों में 2515 पुरुष तथा 93 महिला प्रत्याशी में, सन् 2000 में कुल 965 प्रत्याशियों में 916 पुरुष तथा 49 महिला प्रत्याशी , सन् 2005 मे कुल 983 प्रत्याशियों में 923 पुरुष तथा 60 महिला प्रत्याशी, सन् 2009 में कुल 1222 प्रत्याशियों में 1154 पुरुष तथा 116 महिला प्रत्याशी महिला प्रत्याशी ,सन् 2014 में कुल 1351 प्रत्याशियों में 1235 पुरुष तथा 116 महिला प्रत्याशी तथा सन् 2019 के चुनाव में कुल 1272 प्रत्याशियों में 1168 पुरुष तथा 104 महिला प्रत्याशी थे. इस विस्तृत विवरण से स्पष्ट होता है कि सन् 1966 से सन् 2019 तक विधानसभा चुनावों में 52 वर्षों में सन् 2014 तथा सन् 2019 के चुनाव को छोड़कर महिला प्रत्याशियों का आंकड़ा कभी भी100 पार नहीं कर पाया .सन् 1966 में महिला प्रत्याशियों की संख्या केवल 8 थी जबकि सन् 2014 में 116 हो गई . अन्य शब्दों में 14 . 5% की वृद्धि हुई .सन् 2019 के चुनावों में सन् 2014 के मुकाबले महिला प्रत्याशियों की संख्या 12 कम थी.यहां यह बताना अनिवार्य है कि राजनीतिक दलों के द्वारा महिलाओं को चुनाव में प्रत्याशी बनाने में संकोच है.
केवल यही नहीं अपितु सभी चुनाव क्षेत्रों में महिला प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ते’. उदाहरण के तौर पर भारतीय जनता पार्टी ‘बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ’ के नारे पर बल देती है इसके बावजूद भी सन् 2019 के चुनाव में केवल 52 विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में महिला प्रत्याशी थे. अन्य शब्दों में 48 चुनाव क्षेत्रों में एक भी महिला प्रत्याशी नहीं थी. जब तक महिलाओं को प्रत्याशी के रूप में चुनाव में नहीं उतारा जाएगा तब तक महिला सशक्तिकरण के सभी दावे खोखले और जुमले हैं. क्योंकि राजनीतिक शक्ति के बिना महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक जीवन में परिवर्तन नहीं हो सकता.
विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत: सन् 1966 से सन् 2019 तक
सन् 1967 के प्रथम चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत 72. 6 5 प्रतिशत था . सन् 2014 तक मतदान का यह एक रिकॉर्ड रहा है. सन् 2014 में 76.54 मतदान के पश्चात यह रिकॉर्ड टूटा. परंतु सन 2019 के विधानसभा के चुनाव में यह मतदान 68 .47% था जो कि सन् 1967 के चुनाव से 3. 18% कम था. यद्यपि सन् 1966 के पश्चात हरियाणा में शिक्षा ,समृद्धि ,जागरूकता इत्यादि में बहुत अधिक विकास हुआ है. इसके बावजूद भी सन् 1967 के मुकाबले मतदान में कमी होना यह एक चिंता का विषय है. ऐसी स्थिति में सरकार को जनसमर्थन कम रहता है और सरकार विरोधी गतिविधियों को संतोष फैलने के कारण बढ़ावा मिलता है. दूसरी बात यह निकलती है कि जैसे- जैसे लोग जागरूक होते जा रहे हैं वैसे- वैसे उनका जनप्रतिनिधियों से विश्वास भी उठता जा रहा है क्योंकि चुनाव में जीत हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों के राष्ट्रीय नेताओं से लेकर राज्य स्तरीय नेताओं तक जो वायदे किए जाते हैं उनको 5 वर्ष के अंदर पूरा नहीं किया जाता और वह झूठ और जुमले सिद्ध होते हैं. हरियाणा में सन् 2019 के चुनाव में सन् 2014 के मुकाबले मतदान कम होना यह भी सिद्ध करता है कि हरियाणा सरकार अनेक राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में वह वायदे पूरे नहीं कर सके जो चुनाव के समय किए थे.ऐसी स्थिति में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता की सहभागिता ना होना यह संकेतक जनता का जनप्रतिनिधियों में आस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाता है.
विधानसभा चुनाव में महिला मतदान प्रतिशत :सन् 1967 से सन् 2019 तक
सन् 1967 के प्रथम विधानसभा चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत 72. 65% था .इसमें पुरुष मतदान प्रतिशत 65. 7 प्रतिशत तथा महिला मतदान 44 . 93% था. 11 वीं विधानसभा चुनाव तक कुल मतदान प्रतिशत में कोई वृद्धि नहीं हुई यद्यपि सन् 2009 के चुनाव में कुल मतदान 72.29% था जो कि सन् 1967 के कुल मतदान मतदान से 0.36% कम था. सन् 2009 के चुनाव में महिला मतदान प्रतिशत 77 .7% था. सन् 2014 चुनाव में यद्यपि महिला मतदान 75 . 81% था. सन् 2014 के महिला मतदान प्रतिशत को इसलिए चुना क्योंकि यह बड़ा दिलचस्प अध्ययन है. प्रथम, महिला मतदान प्रतिशत कई जिलों में पुरुष मतदान प्रतिशत से अधिक तथा द्वितीय, ग्रामीण महिलाओं ने शहरी महिलाओं के अपेक्षा मतदान में अधिक भाग लिया है.
सन् 2014 के चुनाव में महिला मतदान में वृद्धि नहीं हुई इसके बावजूद भी महिला मतदान के संबंध में अध्ययन बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण है. क्योंकि अनेक जिलों में महिला मतदान की संख्या पुरुषों से कहीं अधिक है. यह 4 जिले हैं. इनमें भिवानी में पुरुष मतदान प्रतिशत 78.8% था जबकि महिला मतदान 78.96% था. कुरुक्षेत्र में पुरुष मतदान 80.33 % था, महिला मतदान 80 .98 % था .जींद जिले में पुरुष मतदान 80.90 % था जबकि महिला मतदान प्रतिशत 81 .96 %, महेंद्रगढ़ जिले में पुरुष मतदान प्रतिशत 76 .46% महिला मतदान 77 . 69% था
सन् 2014 के विधानसभा के चुनाव में एक और दिलचस्प कहानी
इस चुनाव में मतदान के आंकड़े है सिद्ध करते हैं कि हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला मतदान प्रतिशत शहरी महिला मतदान प्रतिशत से अधिक है. यह कहना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं कि शहरों में रहने वाली महिलाएं अधिक शिक्षित, अधिक जागरूक, अधिक सुविधा भोगी और अधिक आधुनिक है. इसके विपरीत ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा,सामान्य जागृति और सुविधाओं का अभाव है. इसके बावजूद भी ग्रामीण महिलाएं अधिक जागरूक है. सन 2014 के विधानसभा के चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में कुल महिला मतदान प्रतिशत 44.6% था जबकि शहरों में महिला मतदान प्रतिशत 42 .9% था.

लोकतंत्र का महापर्व
प्रत्येक देश की राजनीति में चुनाव में मतदान का दिन बड़ा महत्वपूर्ण होता है. हरियाणा की राजनीति में यह देखा गया है कि ग्रामीण महिलाएं मतदान को किसी त्योहार से कम नहीं मानती.कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में महिलाएं टोलियां बनाकर गाती हुई और नाचती हुई भी जाती है जैसे किसी त्योहार मनाने के लिए धार्मिक स्थलों पर जा रही हों . सन् 2014 में ऐसा दृश्य रोहतक के सांघी गांव में रिपोर्ट किया गया.नई नवेली बहुएं मतदान केंद्रों में हार – सिंगार करके जाती हैं और बहुओं की सासु पुत्र वधू को मतदान केंद्रों पर ले जाकर यह इशारा करती है कि यहां मतदान केंद्र है.” आमतौर पर ग्रामीण महिलाओं पर पर्दानशी तथा पिछड़ेपन का टैग जोड़ दिया जाता है. इसके बावजूद भी जब ग्रामीण महिलाएं घुंघट करके वोट डालने जाती है. यह उनकी लोकतंत्र के प्रति जागरूकता को सिद्ध करता है. हम यह कहना चाहेंगे कि’घुंघट की ओट से जब वोट की चोट’ पड़ती है प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक अर्श से फर्श पर आ गिरते हैं. उदाहरण के तौर पर सन् 1977 के लोकसभा चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी तथा कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज नेता धूल चाटते रह गए. हरियाणा में आपातकालीन स्थिति (सन् 1975 – सन् 1977) दौरान “नसबंदी” से लेकर अन्य अत्याचार जो किए गए उनके कारण बंसीलाल जैसे नेता धूल चाटते रह गए.
लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव सन् 1996 में बंसीलाल ने” शराबबंदी “का नारा दिया तो महिलाएं उस समय शराब के माहौल के कारण परिवार के सदस्यों की प्रताड़ना का शिकार हो रही थी. व्यापक स्तर पर घरेलू हिंसा बढ़ रही थी .ऐसे सामाजिक वातावरण में वहीं महिलाएं जिन्होंने बंसीलाल को सन् 1977 के चुनाव में फर्श पर गिरा दिया था उन्हीं महिलाओं ने बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक(सन् 1996 )में से फर्श से अर्श पर पहुंचा कर मुख्यमंत्री बना दिया.
हमारा सुनिश्चित अभिमत है कि मतदान प्रतिशत जितना अधिक होगा भारतीय लोकतंत्र उतना ही अधिक म जबूत होगा. यदि इस मतदान प्रतिशत में महिला मतदान प्रतिशत अधिक बढ़ता है तो वह लोकतंत्र की प्रगति में एक महत्वपूर्ण संकेतक है. लोकतंत्र में सत्ता परिवर्तन के लिए तथा विरोधी दल के निर्माण के लिए मतदान का अपना महत्व है. क्योंकि मतदान के जरिए केवल सत्ता पक्ष ही नहीं अपितु विरोधी दल का चयन भी किया जाता है. अन्य शब्दों में यह कहा जाता था कि लोकतंत्र में परिवर्तन के लिए” बुलेट की अपेक्षा बैलट “की जरूरत है. परंतु अब केवल वोटिंग मशीन( ईवीएम) पर बटन दबाने से एक क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाता है जो कि लोकतंत्र के लिए अहिंसात्मक तरीके से उज्जवल भविष्य का आधार है.

हरियाणा विधानसभा में आधी आबादी का प्रतिनिधित्व: सन् 1967 से सन् 2019 तक केवल 10%– 53 वर्षों में महिला प्रतिनिधित्व में केवल ढाई गुणा वृद्धि
सन्1967 में हरियाणा विधानसभा का प्रथम चुनाव हुआ तथा सन् 2019 में हरियाणा की विधानसभा का 13 वां चुनाव 21 अक्टूबर 2019 संपन्न हुआ. सन् 1966, सन् 1972, सन् 1977, सन् 1996 तथा सन् 2000 में हरियाणा विधानसभा में केवल चार – चार महिलाएं पहुंची. सन् 1987 में 5, सन् 1991 में 6, सन् 2009 तथा सन् 2019 में 9 महिलाएं विधायक बनी. सन् 2005 में 11 तथा सन् 2014 में 13 महिला विधायक बनी. 2019 के चुनाव में केवल 9 महिलाएं विधानसभा में पहुंची. अन्य शब्दों में हरियाणा विधानसभा की 90 सीटें हैं और महिला प्रतिनिधित्व केवल 10% है जबकि सन् 2014 में यह 14 . 44% था. संक्षेप में हरियाणा विधानसभा में आधी आबादी का प्रतिनिधित्व केवल 10% है . सन् 1967 से सन् 2019 तक- 53 वर्षों के अंतराल में महिला प्रतिनिधित्व में केवल ढाई गुणा वृद्धि हुई है .यह महिला सशक्तिकरण के दृष्टिकोण से शुभ संकेत नहीं है.

हरियाणा विधानसभा की प्रथम महिला स्पीकर होने का श्रेय शन्नो देवी (6 दिसंबर 1966 से 17 मार्च 1967) को जाता है. हरियाणा विधानसभा में प्रथम महिला विधायक चंद्रावती का नाम भी उल्लेखनीय है. वह कालांतर में सन् 1977 जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ कर सांसद व सन् 1990 में पुड्डुचेरी की राज्यपाल भी रही है. हरियाणा विधानसभा में महिला विधायक का अभी तक का रिकॉर्ड प्रसन्नी देवी का है. प्रसन्नी देवी 6 बार-( सन्1962 , सन्1966, सन्1968, सन्1972 ,सन्1982 व सन्2005) विधायक निर्वाचित हुई.हरियाणा विधानसभा में सन् 1977 में श्रीमती सुषमा स्वराज सबसे कम उम्र में विधायक और शिक्षा मंत्री बनी. परंतु सांसद के लिए वह चुनाव हारी और अंततः अन्य प्रदेश से लोकसभा के सदस्य बनी और उनको दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने का भी गौरव प्राप्त हुआ. दिल्ली में श्रीमती शीला दीक्षित( कांग्रेस पार्टी)को प्रथम महिला मुख्यमंत्री थी तथा श्रीमती सुषमा स्वराज (भारतीय जनता पार्टी)को दिल्ली की दूसरी महिला मुख्यमंत्री होने का श्रेय जाता है. अन्य प्रदेश से लोकसभा के सदस्य बनी और भाजपा संसदीय दल के नेता के रूप में यूपीए सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष और एनडीए की सरकार में भारत के विदेश मंत्री के कार्यभार का संचालन बड़ी कुशलता से किया. सुचेता कृपलानी (अंबाला) उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी . वह भारत में सर्वप्रथम मुख्यमंत्री बनने वाली महिला है. इसके अतिरिक्त हरियाणा की विश्व प्रसिद्ध महिला अरुणा आसफ अली (कालका) को भारत की राजधानी दिल्ली का प्रथम महिला मेयर बनने का सौभाग्य प्राप्त है. यहां यह बताना जरूरी है कि सुषमा स्वराज तथा सुचेता कृपलानी का जन्म हरियाणा के अंबाला हुआ तथा अरूणा आसफ अली का जन्म स्थान कलका(हरियाणा )है. इनके अतिरिक्त श्रीमती गायत्री देवी (सोनीपत) धर्मपत्नी चौधरी चरण सिंह सोनीपत में पैदा हुई और उत्तर प्रदेश से सांसद बनी.
इसके बावजूद भी सन् 1967 से सन् 2019 तक 53 वर्षों के अंतराल में ढाई गुणा वृद्धि के साथ केवल अढ़ाई मील चले..यह एक विडंबना एवं चिंता का विषय है. विधानसभा में जहां राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक स्वास्थ्य ,शिक्षा इत्यादि के बारे में फैसले किए जाते हैं अथवा कानूनों का निर्माण किया जाता है उनका प्रभाव महिलाओं पर बहुत अधिक पड़ता है. यदि महिला प्रतिनिधियों की संख्या कम होगी तो महिलाओं संबंधी मुद्दे बैकग्राउंड में चले जाएंगे. कोरोना काल में यह देखा गया जिन देशों में महिलाएं शीर्ष नेतृत्व पर थी वहां इस महामारी के संबंध में प्रशासन की ओर से अधिक सतर्कता दृष्टिगोचर हुई.

संसद में महिला प्रतिनिधित्व : सन् 1966 से सन् 2019तक
भारतीय संसद में हरियाणा की 15 (10 सीटें लोकसभा तथा 5 सीटें राज्यसभा) सीटें हैं . सन 1966 से सन् 2019 तक भारतीय संसद में हरियाणा से अब तक 151 सांसद निर्वाचित हुए हैं. संसद में हरियाणा की महिलाएं आज तक 10 का आंकड़ा पार नहीं कर सकी..अभी तक कांग्रेस पार्टी की एकमात्र महिला कुमारी शैलजा को तीन बार लोकसभा में पहुंचने का श्रेय प्राप्त है वह दो बार अंबाला लोकसभा सीट और एक बार सिरसा लोकसभा सीट से सांसद नर्वाचित हुई. कुमारी शैलजा राज्यसभा की सदस्य भी रही हैं. यह एक आश्चर्यजनक परंतु सत्य है कि सन् 1966 सन् 1977 तक हरियाणा की किसी भी महिला ने सांसद के रूप में संसद की चौखट पार नहीं की. सन् 1977 में आपातकालीन स्थिति के पश्चात लोकसभा के चुनाव में के जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ कर हरियाणा के दिग्गज नेता बंसीलाल को हराकर चंद्रावती को लोकसभा में हरियाणा की प्रथम महिला सांसद होने का श्रेया जाता है. सन् 1977 के पश्चात सन् 1980, सन् 1984, सन् 1989 , सन् 1991 तथा सन् 2014 के लोकसभा इलेक्शन में हरियाणा की एक भी महिला लोकसभा में नहीं पहुंची .लोकसभा में पहुंचने वाली महिलाओं में चंद्रावती सन् (1977) , कुमारी शैलजा (अंबाला व सिरसा लोकसभा सीट) डॉ.मनमोहन सिंह की सरकार में सामाजिक न्याय और अधिकारिता एवं पर्यटन मंत्री, राज्यसभा सदस्य -10 अप्रैल 2014 -2 अप्रैल 2020), श्रुति चौधरी(भिवानी -महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट सन् 2009), कैलाश सैनी, सुधा यादव तथा सुनीता दुग्गल(भाजपा-सिरसा लोकसभा सीट – सन् 2019) हैं.
इन महिलाओं में कुमारी शैलजा तथा श्रुति चौधरी के लोकसभा पहुंचने की पृष्ठभूमि में परिवारवादी एवं राजनीतिक एवं भूमिका है .कुमारी शैलजा के पिताजी चौधरी दलबीर सिंह अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय नेताओं की श्रेणी में आते हैं तथा श्रुति चौधरी के दादा चौधरी बंसीलाल (मुख्यमंत्री), पिता चौधरी सुरेंद्र सिंह और और माता श्रीमती किरण चौधरी का परिवार हरियाणा का एक राजनीतिक परिवार है. कैलाशो सैनी (इंडियन नेशनल लोकदल )कॉलेज प्राध्यापक से सांसद निर्वाचित होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. इस समय लोकसभा में आरक्षित चुनाव क्षेत्र से विजय प्राप्त करके भूत पूर्व नौकरशाह श्रीमती सुनीता दुग्गल लोकसभा में एक मात्र महिला सांसद हैं. राज्यसभा में इस समय हरियाणा की कोई भी महिला सदस्य नहीं है जबकि इससे पूर्व कुमारी शैलजा राज्य सभा की सदस्य थी. सन 1966 से 2019 तक महिलाओं का संसद में उनकी जनसंख्या के अनुपात से प्रतिनिधित्व नहीं होना महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण का नकारात्मक पहलू है.
हरियाणा की महिलाओं का लोकसभा में प्रतिनिधित्व की दिलचस्प एवं रोचक कहानी .
हरियाणा की महिलाओं का लोकसभा में प्रतिनिधित्व की कहानी भी बड़ी दिलचस्प एवं रोचक है| सन् 1966 से सन् 2019 तक हरियाणा के लोकसभा में करनाल, रोहतक ,हिसार ,फरीदाबाद, गुरुग्राम तथा सोनीपत जिले से आज तक एक भी महिला लोकसभा में निर्वाचित नहीं हुई. करनाल जिले को अगर हम देखें बड़ा रोचक इतिहास रहा है. करनाल जिले से पर प्रसन्नी देवी, जानकी मान, बहन शांति देवी ,सुमिता सिंह ,राजरानी पूनम ,मीना मंडल तथा रेखा राणा विधायक रही हैं.
महिला प्रतिनिधित्व के संबंध में करनाल जिले का एक रोचक पहलू यह भी है कि श्रीमती सुषमा स्वराज लोकसभा के लिए जब करनाल चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ा तो उसको सुनने के लिए लोगों की भीड़ इकट्ठी होती थी .परंतु सके| अतः हमारा मानना यह है कि लोगों ने सुषमा स्वराज को जनता ने उसको सुना तो बहुत है परंतु लोकसभा के लिए सुना नहीं.
यद्यपि संसद तथा विधानसभा में हरियाणा की महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत अधिक निराशाजनक है. इसका मूल कारण यह है कि राजनीतिक दल महिला सशक्तिकरण के खोकला नारा तो देते हैं परंतु उनको विधानसभा लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव में टिकट नहीं देते. आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ना और विजय प्राप्त करना कोई आसान काम नहीं है. हरियाणा की राजनीति में अभी तक कोई महिला आजाद उम्मीदवार के रूप में ना तो सांसद बनी और ना ही विधायक. हरियाणा की राजनीतिक दल यह सोचकर महिलाओं को टिकट नहीं देते कि उनकी विजय के चांस कब है. यह धारणा बिल्कुल गलत है यदि उन को टिकट दिया जाए तो उनके विजय का प्रतिशत पुरुषों से अधिक होगा . हमारा अभिमत है कि यदि महिलाओं को विधायक अथवा सांसद बनने का मौका मिले तो तो अवश्यमेव उनकी भूमिका अधिक सार्थक और महत्वपूर्ण रहेगी. हरियाणा की राजनीति में महिलाओं की भूमिका अग्रणी होनी चाहिए. इसके लिए महिलाओं को खुद आगे आना होगा और पुरुषवादी सोच को चुनौती देनी पड़ेगी.
महिलाओं का राजनीति में जितना अधिक प्रतिनिधि तो होगा उतना ही अधिक राष्ट्र निर्माण में सहायता मिलेगी.अभी तक अध्ययन यह कहता है कि महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता के मार्ग में ‘फूल है कम, कांटे हैं ज्यादा’.
महिलाओं के मार्ग में आने वाली बाधाएं
भारतीय राजनीति में महिलाओं के मार्ग में आने वाली बाधाओं में सबसे महत्वपूर्ण बाधा भारतीय समाज के रुग्ण मानसिकता है. भारत के समाज पुरुष प्रधान होने के कारण “सनस्ट्रोक”(Son Stroke) से ग्रस्त है. समाज की सोच महिलाओं के प्रति नकारात्मक और महिला विरोधी है. सैद्धांतिक रूप में हरियाणा समाज में महिलाओं को देवी, लक्ष्मी, सरस्वती दुर्गा इत्यादि के रूप में पूजा जाता है परंतु लड़कियों का “कोख में कत्ल” कर दिया जाता है. हरियाणा की महिलाओं के गर्भाशय बच्चा पैदा करने का स्थान ना होकर “कब्रिस्तान” हैं. कोख में कत्ल को चीन में हुए अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में ‘नरसंहार’ कहकर आलोचना की गई है. भारतीय समाज के ही मानसिकता जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विद्यमान है. इसके अतिरिक्त अनपढ़ता, शिक्षित होने के बावजूद भी अज्ञानता, पिछड़ापन ,गरीबी , राजनीति का अपराधीकरण, भ्रष्ट राजनीतिक संस्कृति ,राजनीति में प्रवेश करने वाली महिलाओं का चरित्र हनन , समाज का अनुदारवादी दृष्टिकोण, महिलाओं के ऊपर परिवार का दायित्व ,राजनीतिक दलों और राजनेताओं का महिला विरोधी दृष्टिकोण ,राजनीतिक दलों में सर्वोच्च स्थानों पर कुछ एक को छोड़कर महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम होना, राजनीतिक संप्रदायवाद ,धर्मांधता, राजनीति में बाहुबल, कपट, छल, धन, गुंडागर्दी, प्रपंच का सामान्य होना इत्यादि मुख्य कारण हैं. इन के अतिरिक्त प्रत्येक राजनीतिक दल में परिवारवाद विद्यमान है.
परिवारवाद के कारण राजनीतिक दलों के द्वारा परिवार के सदस्य अथवा रिश्तेदारों को टिकट दिलवाया जाते हैं. सामान्य कर्मठ ,वफादार, जुझारू महिला कार्यकर्ता को टिकट नहीं मिलता. महिलाएं इसलिए राजनीति में जाने से संकोच करती हैं क्योंकि राष्ट्रीय नेताओं से लेकर स्थानीय नेताओं तक महिलाओं के संबंध में अशोभनीय व्यवहार किया जाता है. यही सब बातें महिला प्रतिनिधियों के कम होने के मूल कारण हैं.
महिला राजनीतिक सहभागिता के लिए सुझाव:
महिलाओं के राजनीतिक सहभागिता के लिए संसार के विभिन्न देशों में अनेक तरीके अपनाए गए हैं .विश्व के 100 से अधिक देशों में संवैधानिक संशोधनों और कानूनों के जरिए महिलाओं के लिए विधान पालिकाओं में कोटा निर्धारित किया गया है. भारत में संसद तथा विधानसभा के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था के संबंध में कई दशक से बिल निलंबित है. यद्यपि महिलाओं के लिए पंचायती राज के स्तर पर 20अधिक राज्यों में 50 परसेंट आरक्षण की व्यवस्था की गई है. अनेक कमियों के बावजूद भी यह एक अच्छी शुरुआत मानी जाती है. संविधानिक आरक्षण तथा कानूनों के साथ-साथ महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए राजनीतिक दलों के द्वारा अपने संगठनों में ग्रामीण स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कोटा निश्चित करना चाहिए. ऐसे कानून का निर्माण करना जरूरी है यदि राजनीतिक दल अपने संगठनों में तथा टिकट वितरण करते समय निर्धारित कोटे की अवहेलना करें तो चुनाव आयोग के द्वारा उनकी मान्यता समाप्त कर दी जाए.
भारत में कानून निर्माण और संवैधानिक संशोधन के साथ- साथ समाज की महिलाओं के प्रति सोच में परिवर्तन की बहुत अधिक आवश्यकता है. जितना अधिक महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण होगा उतना ही अधिक राष्ट्र मजबूत होगा. क्योंकि अधिकांश महिलाएं अधिक समझदार, संवेदनशील ,सहयोगी ,समन्वयकऔर सद्भावना से परिपूर्ण हैं. महिला राजनीतिक सशक्तिकरण का सर्वोत्तम उदाहरण भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का है .बांग्लादेश के निर्माण में जिस तरीके से इंदिरा गांधी के द्वारा अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के विरोधी होने के बावजूद भी भारतीय सेना के सहयोग से सफलता प्राप्त की. विश्व के लिखित इतिहास में इंदिरा गांधी सदृश्य एवं अतुलनीय कोई अन्य उदाहरण नहीं है.

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