(समाज वीकली)
एक बार मैं अपनी मोटरसाइकिल से लखनऊ से उन्नाव अपनी ससुराल की ओर जा रहा था । रास्ते में ट्रक के पीछे लिखा एक संदेश देखा जिसने झकझोर कर रख दिया !!
धीरे हाॅर्न बजा रे पगले…. दलित व पिछड़ा सोया है…!!!
मेरी जिज्ञासा इस ट्रक चालक से दो बात करने की हुई । मै उसके पीछे पीछे ही यह सोचकर चलता रहा कर कि कहीँ तो चाय, पानी, नास्ता, खाना आदि करने या फ्रेश होने के लिए ट्रक रुकेगा ।
रास्ते में नवाबगंज के आस पास एक ढाबे पर वो चाय पीने के लिये रुका।
मेरा इरादा तो उससे मिलने का था ही । मैं भी उसी ढाबे पर रुक गया ।
उसके आस पास ही एक चारपाई पर मैं भी बैठ गया । मैने उससे पहला सवाल यही किया कि भाई ड्राइवर साहब आपने ट्रक के पीछे एक बहुत ही गहरे मतलब का संदेश लिखाया हुआ है यह प्रेरणा आपको कैसे मिली ।
उसने जवाब दिया बाबू जी वक्त बड़ी चीज है यह अच्छे अच्छो को प्रेरणा देता है बस कमी यह है हमे भर पेट रोटी क्या मिलने लगी हमने अब और प्रेरणा लेना बन्द कर दिया, अब लेते ही नही। अच्छा हुआ आपने उसे पढा और मेरे से यह सवाल किया ।
मै पूरे भारत में सड़को पर घूमता हूँ। हजारो लोग इस संदेश को पढते होंगे । अगर उन में से 20% लोग भी मेरा संदेश समझ गए तो समझो मेरा मकसद पूरा हो गया ।
उससे रहा नही गया , उसने जेब से एक परचा निकाला और उसी संदेश पर किसी कवि की एक क्रान्तिकारी कविता सुना डाली जो नीचे लिखी जा रही है ।
मनुवाद के जुल्म सितम से…
फूट फूटकर ‘रोया’ है…!!
धीरे हाॅर्न बजा रे पगले…. दलित व पिछड़ा सोया है…!!!
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भूत भविष्य खो चैन’ मिला है… ‘पूरी’ नींद से सोने दे…!!
जगह मिले वहाँ ‘साइड’ ले ले…हो शोषण तो होने दे…!!
किसे जगाने की चिंता में… तू इतना जो ‘खोया’ है…!!
धीरे हाॅर्न बजा रे पगले…. दलित व पिछड़ा सोया है…!!!
आरक्षण के सब ‘नियम’ पड़े हैं… कब से ‘बंद’ किताबों में…!!
‘जिम्मेदार’ पिछडों के नेता…सारे लगे गुलामी में…!!
तू भी कर दे झूठे वादे क्यों ‘ईमान’ में खोया है..??
धीरे हाॅर्न बजा रे पगले…. दलित व पिछड़ा सोया है…!!!
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ये समाज है ‘सिंह’ सरीखा… जब तक सोये सोने दे…!!
‘गुलामी की इन सड़कों पर… तू नित शोषण होने दे…!!
समाज जगाने की हठ में तू…. क्यूँ दुख में रोया है…!!
धीरे हाॅर्न बजा रे पगले.
दलित व पिछड़ा सोया है…!!!
अगर समाज यह ‘जाग’ गया तो.. शोषक सीधा हो जाएगा….!!
आर.एस एस. वाले ‘चुप’ हो जाएँगे…. और हर मनुवादी रोयेगा…!!
अज्ञानता से ‘शर्मसार’ हो …. बाबा भीम भी रोया है..!!
धीरे हाॅर्न बजा रे पगले… दलित व पिछड़ा सोया है…!!!
दलित व पिछड़ा सोया है…!!!
उसने यह कविता सुनाई इस बीच कब हमारे पास चाय आई और कब हमने पीकर खत्म भी कर दी पता भी नही चला ।
चाय पीकर हम एक दुसरे से जुदा हो गये लेकिन उस ट्रक चालक का अपने OBC समाज के प्रति इतनी गहरी चिन्ता से भरा हाव भाव मेरे दिल में उतर गया ।
मैं उससे सिर्फ इतना ही कह पाया दोस्त आज से आप अपने आपको अकेला मत समझो आज से मैं भी आपके इस प्रचार का एक अहम हिस्सा हूँ ।
विशेष आग्रह:
अगर आप भी इस मुहिम में हिस्सा लेना चाहते हैं तो आपका स्वागत है ।
यह मैसेज रुकना नहीं चाहिए जितना हो सके अपने स्तर से अपने सगे संबंधियों मित्र गणों को भेजते रहिए हो सकता है आप सभी लोगों ने भी इस मैसेज को कहीं ना कहीं देखा, सुना, और पढ़ा जरूर होगा परंतु यदि आप अभी तक नहीं जग पाएं हैं तो दूसरों को ही बता दे शायद वही जाग जाए ।