किसानों की आय दोगुनी, आर्थिक खुशहाली का योगी-मोदी का सरकारी दावा खोखला, आर्थिक तंगी से किसान आत्महत्या को मजबूर- रिहाई मंच

आजमगढ़ में किसान की आत्महत्या के बाद रिहाई मंच ने की परिजनों से मुलाकात
बैंक लोन की वसूली के दबाव ने बेचन को आत्महत्या करने पर मजबूर किया- रिहाई मंच
पूर्वांचल के आजमगढ़ में किसान आत्महत्या ने उजागर किया विकराल किसान संकट

आजमगढ़ (समाज वीकली)- रिहाई मंच ने आजमगढ़ के करुई गांव में कर्ज के बोझ से दबे किसान बेचन यादव की आत्महत्या के बाद मृतक के परिजनों से मुलाकात की। मंच ने कहा कि सरकार कि किसानों की आय दुगनी करने जैसे खोखलें वादों की भेंट किसान चढ़ रहा है। मृत्यु के बाद अब तक किसी प्रशासनिक अधिकारी का उनके घर न जाना किसान के प्रति प्रशासनिक संवेदनहीनता को उजागर करता है। रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, तारिक शफीक, एडवोकेट विनोद यादव, अवधेश यादव, मोहम्मद अकरम, राजित यादव और मजनू यादव प्रतिनिधि मंडल में शामिल थे।

मृतक के परिजनों से मुलाकात के बाद रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने बताया कि 2 अपै्रल 2021, शुक्रवार को थाना दीदारगंज, करुई गांव के कर्ज में डूबे 55 वर्षीय बेचन यादव ने भिखारी यादव के बाग में आम के पेड़ पर फांसी का फंदा लगाकर जान दे दी। जिसकी सूचना उसी सुबह 6 बजकर 23 मिनट पर एसडीएम मार्टिनगंज को दी गई। लोन व फसल नुकसान आदि के चलते वह आर्थिक रुप से कमजोर हो गए थे। स्वंय तथा अपनी पत्नी सुशीला यादव के नाम से कई बैंकों से कर्ज लिया था। कर्ज की अदायगी के चक्कर में वह काफी अपना खेत भी बेच चुके थे। लेकिन बैंकों का कर्ज उनपर जस का तस लदा हुआ था। कुछ स्थानीय लोगों से भी कर्ज लिया था। सुशीला यादव के नाम से यूनियन बैंक आफ इंडिया द्वारा 16 फरवरी 2021 को 177037 रुपए और 33171 रुपए की नोटिस से बेचन बहुत दबाव में थे। वहीं कापरेटिव द्वारा वसूली के लिए आए कर्मचारियों ने उनसे कहा कि अभी ढाई हजार रुपए जमा करवा दीजिए नहीं तो आठ हजार रुपए जमा करने होंगे से वो बहुत निरीह स्थिति में पहुंच गए थे उनकी पत्नी ने बताया। वहीं कर्ज के दबाव में आत्महत्या की इतनी बड़ी घटना पर प्रशासन का यह कहना कि कर्ज आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली, इतना पता चला है कि मृतक पारिवारिक कलह से पेरशान होकर यह कदम उठाया पूरे मामले को दबाने की कोशिश है।

बेचन यादव की पत्नी सुशीला यादव कहती हैं कि दिल्ली जाने के लिए कहकर घर से तीस मार्च को दो-ढाई बजे निकले थे। उनको कपड़ा, किराया, बैग दिए। लड़का बोला शाहगंज छोड़ दें तो कहे कि नहीं, तो मार्टिनगंज तक छोड़कर आया। उस दिन सुबह हम लोग सोए थे। सोच रही थी कि आज फोन आएगा। तीन-चार दिन हो गए थे। तब तक गांव में हंगामा मचा कि पंकज के पापा पेड़ पर लटक गए, फांसी लगा लिए। लोग बताते हैं कि इस बीच वो अपनी बहन के घर भी गए थे और कुछ का कहना है कि नोनारी बाजार में भी वो दिखे थे। जबकि घर वालों को यही मालूम था कि दिल्ली गए हैं। सात-आठ महीने से घर-दुआर छोड़कर उनका कहीं आना जाना नहीं था। वो शराब पीते थे पर इस बीच बहुत कम वो भी पूछकर पीते थे। सुशीला कहती हैं कि इस बीच उनकी तबीयत खराब होने के चलते बहुत से घर के काम भी वे किया करते थे।

बेचन यादव के बेटे पंकज यादव बताते हैं कि वे तीन भाई और तीन बहन हैं। एक और बहन थी जिसकी दहेज की वजह से जान चली गई। बैंकों का कर्ज उनकी आत्महत्या की वजह बना। दो यूनियन बैंक और कापरेटिव बैंक का उनपर लोन था। पांच-छह साल पुराने 2015-16 के बाद के कर्ज थे। किसान क्रेडिट कार्ड से फसल के लिए लोन लिया था। इस वक्त भी चार-पांच लाख का बकाया है। एक बार सरकार ने जब लोन माफ किया था तो एक लाख के तकरीबन माफ हुआ था पर उसी में फिर बढ़ता चला गया और फिर उतना ही हो गया। बैंक वालों ने 10-15 दिन पहले कहा था कि पैसा नहीं जमा करोगे तो नोटिस भेजकर घर की कुर्की करवा देंगे जिससे बेचन यादव मानसिक तनाव में आ गए थे।

सुशीला यादव के नाम से 2016 में यूनियन बैंक खरसहा दीदारगंज से एक लाख साठ हजार का लोन, 2019 में यूनियन बैंक चितारा महमूदपुर से दो लाख 12 हजार का लोन हुआ था। मुकदमा और खेती में नुकसान से वे लगातार टूटते गए। कभी नौकरी नहीं किया था पर इतना लंबा परिवार चलाने के लिए ईटा-गारा का भी काम कभी-कभी बेचन कर लेते थे। कई बार लोनिंग के चक्कर बंद थे किसी तरह से भागकर वहां से आए। लोन को लेकर ही एक बार कुंदन राम अमीन से मारपीट भी हुई थी।

जमीन के बारे में पूछने पर सुशीला कहती हैं कि 12 बिस्सा एक जगह और एक बीघा के करीब एक जगह है। बेटे पंकज बताते हैं कि उनकी एक बहन वंदना जो बंबई में रहती थीं, जिसकी दहेज की वजह से 2016 में जलाकर हत्या कर दी गई उसके केस मुकदमें के चक्कर में बहुत सी जमीन बिक गई, तकरीबन तीन बीघा।

लोन व कर्ज की यह कहानी एक पीढ़ी पुरानी है। बेचन के पिता राम दुलार ने भी 2001 में स्टेट बैंक कुशल गांव से एक लाख दस हजार का लोन लिया था। लोन की भरपाई नहीं कर पाए तो मुकदमा लड़ते-लड़ते अटैक हुआ मर गए तो उनका मुकदमा उनके बेटे बेचन ने लड़ा। इनके घर में तीन चार घटनाएं हुईं। बेचन के एक भाई की भी हार्ट अटैक से मौत हो चुकी है। जमीन का मुकदमा बगल में एक पट्टीदार है उनसे भी लड़ा, उसमें भी काफी पैसा गया। गांव के कुछ लोगों ने खिला-पिलाकर जमीन लिखवा ली उसका भी मुकदमा लड़ा।

द्वारा- राजीव यादव
महासचिव, रिहाई मंच
9452800752

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