(समाज वीकली)
दुख अतीक के मारे जाने का नहीं है
दुख तो इस बात का है कि
हमारी होनहार सरकार,
जनता को बेवकूफ बनाने का
सही तरीका भी न ढूंढ पाई …
वाह री सरकार
सुपुर्द-ए-खाक की कहानी तो खूब सुनाई
पर खुद का दामन न बचा पाई
झूठे अभिमान की ख़ातिर
न जाने कितने जवानों की बलि चढ़ाई …
अभाग्न ख़ाकी का दर्द कौन समझे
न राम मिले न माया पायी
सर-ए-राह अपने हाथों ही
अपनी अस्मिता लुटाई …
भावभीनी श्रद्धांजलि के साथ टूटते लोकतंत्र को समर्पित कविता ।।