(समाज वीकली)– युवा पीढ़ी के लिए 1947 का भारत विभाजन एक रहस्य है ।उनके मन में आता है कि वह अगर अपने बाप दादा नाना की तरह 47 के आसपास पैदा हुए होते तो उस विभाजन को देख पाते, सारे घटनाक्रम को समझ पाते कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि सैंकड़ों सालों से मिलजुल कर रह रहे लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। वह जानना चाहते हैं कि जिन्ना, नेहरू और गांधी उस वक्त क्या कर रहे थे? इस सब को जानने समझने के लिए मैं उनको एक सलाह देता हूं अगर भारी-भरकम इतिहास की किताबों को पढ़ने का वक्त ना मिले तो मौजूदा राजनेताओं की गतिविधियां देखकर,बयानबाजी सुनकर विभाजन कारी घटनाक्रम को आसानी से समझा जा सकता है। अभी थोड़े दिन पहले ही हरिद्वार में तथाकथित संतों का सम्मेलन हुआ है जिसमें मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला गया है… बस यही परिस्थितियां थी 47 के आसपास और देश टुकड़े-टुकड़े हो गया… और यह जो हो रहा है …और कुछ नहीं बस नए पाकिस्तान का नक्शा खींचा जा रहा है। किसी के लिए रहने का माहौल नहीं छोड़ेंगे ,तंग होकर अगर कोई आवाज उठाएगा तो अलगाववादी का ठप्पा भी उसी पर लगाएंगे। तंग भी करेंगे और रोना भी गुनाह साबित करेंगे। इतिहास में जितने भी पाकिस्तान बने हैं ऐसे ही महानुभावों की देन है।
नफरत फैलाने का काम बड़े सुनियोजित तरीके से और बड़े स्तर पर किया जाता है। इसके लिए पार्टी, संघ के नेता की जिम्मेदारी अलग है, तथाकथित संतों की जिम्मेदारी अलग से है और सोशल मीडिया अलग से अपना काम कर रहा है। एजेंडा सब का फिक्स है । ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन इस प्रकार किया जाता है कि आमजन गच्चा खाए बगैर नहीं रह सकता। चलिए एक उदाहरण से समझाता हूं, दिसंबर के आखिरी दिन सिख इतिहास में बड़े वैराग्य मई दिन होते हैं ।इन्हीं दिनों में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का सारा परिवार शहीद कर दिया गया था। व्यास पीठ पर बैठे कथा कारों की और कवि सम्मेलनों के कवियों की काफी वीडियो घूम रही हैं जिसमें वह उस महान शहादत को नमन करते हुए नजर आते हैं। सतही नजर से देखने पर महसूस होता है कि सचमुच गुरु जी के परिवार को श्रद्धा सुमन प्रस्तुत किए जा रहे हैं पर असल में एजेंडा कुछ और चल रहा होता है ।शहादत का जिक्र करके भर्त्सना क्रिसमस के त्योहार की शुरू हो जाती है। कथाकार बोलते हैं जब आप क्रिसमिस मना रहे होते हैं तो उस वक्त गुरु साहिब के साहिबजादों का शहीदी पर्व चल रहा होता है ।अप्रत्यक्ष रूप से क्रिसमिस से दूर रहने का न्योता दिया जाता है।
शहादत को याद करिए जन-जन तक पहुंचाइए, ऐसी कुर्बानी का उदाहरण संसार के इतिहास में दुर्लभ है, पर उसकी क्रिसमस के साथ तुलना करके किसी को एहसास ए कमतरी क्यों दिलवाया जा रहा है ? । इस बेमतलब की तुलना से संघ एक तीर से दो निशाने साध रहा होता है, एक तो सिखों से अपनी हमदर्दी का ढोंग रचा जाता है, दूसरा सिख और ईसाई भाईचारे में द्वेष के बीज बोने की कोशिश की जाती है। शहादत के प्रसंग को ईसाइयों के खिलाफ भी प्रयोग किया जाता है और मुस्लिम भाइयों के खिलाफ भी। यह प्रस्तुत किया जाता है कि सिख गुरु ताउम्र मुसलमानों से युद्ध करते रहे और मुसलमानों ने उनके परिवार को शहीद कर दिया जबकि असलियत कुछ और है। बहुत से मुस्लिमों ने गुरुजी का अंतिम सांस तक साथ दिया जबकि पहाड़ी राजे मुगल बादशाह के साथ खड़े थे।
सिखों के प्रति इनकी हमदर्दी फर्जी है। किसान आंदोलन के दौरान जब उसी गुरु के सिख अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करते हैं तो संघ उन्हें अतिवादी, खालिस्तानी और अलगाववादी का लांछन लगाता है। इस बेमतलब की मुकाबलेबाजी के और भी कई उदाहरण हैं। 25 दिसंबर वाले दिन तुलसी पूजन का अविष्कार भी इसी तुलना का एक हिस्सा है ताकि क्रिसमिस के बराबर कुछ और खड़ा कर दिया जाए। 14 फरवरी को भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाए जाने का शिगूफा भी इसी की कड़ी है। इसके अलावा आपको याद होगा जब आप नोट बंदी के खिलाफ बोल रहे थे तो बर्फ में कैद हुए सिपाही हनुमंथप्पा की उदाहरण देकर आपको चुप करवाया जा रहा था।
47 के आसपास इन्हीं नफरती लोगों के पूर्वजों ने जहर पे जहर उगला और कत्लेआम मचाया और देश को आज की तरह बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया।
विभाजन के समय खून के दरिंदों ने मानवता को तार-तार किया पर उस समय भी ऐसी सैंकड़ों उदाहरण मौजूद हैं जब अपनी जान पर खेलकर दूसरे धर्म के लोगों की जाने बचाई गई।
बिकाऊ मीडिया पर जितना मर्जी जहर घोल ले, पर अपने दिल पर हाथ रख कर पूछिए कि क्रिसमस वाले दिन जिंगल बेल की मधुर ध्वनि और मैरी क्रिसमस बोलती धुन किसको प्यारी नहीं लगती ? चाहे आपका जन्म किसी भी धर्म में हुआ हो दशहरे के बाद दीपावली के इंतजार में 20 दिन कितनी बेसब्री से कौन नहीं गुजारता? और दीपावली के दिन खुशियों का आभा मंडल कौन नहीं महसूस करता ? हमें तो किसान आंदोलन पर जब संघर्षरत किसानों ने रोष स्वरूप काली दीपावली मनाने की घोषणा की तब पता चला कि दीपावली हिंदुओं का त्यौहार है, क्योंकि आईटी सेल ने एक और दुष्प्रचार किया कि हिंदुओं के त्यौहार को बदनाम किया जा रहा है। ऐसा कौन सा पंजाबी है जिसके घर गुरु नानक की तस्वीर न सुशोभित हो ?ऐसा कौन सा भारतीय है जो हरिमंदिर साहिब नतमस्तक ना हुआ हो या इच्छा ना रखता हो। किसी भूले भटके भूखे को गुरुद्वारे के द्वार बिना भेदभाव के खुले मिलते हैं। देखने का नजरिया है मां यशोदा की गोद में लेटे बालकृष्ण मां मरियम के यीशु की झलक भी दे देंगे।
किसान आंदोलन ने बड़ा कुछ सिखाया है। जितना प्यार करोगे उतना फैलोगे, जितना नफरत करोगे उतना ही सिकुड़ोगे। सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर किसानों के वापिस जाने पर स्थानीय लोगों को फूट फूट कर रोते देखा। अधिक से अधिक घुलिए मिलिए ।एक दूसरे को जानिए, एक दूसरे के त्योहारों को मनाइए। एक दूसरे की खुशियों गमों का हिस्सा बनिए। अगर जान पहचान ना भी हो तो भी गम के वक्त अफसोस करने जरूर जाइए, क्योंकि हाकिम नहीं चाहता कि आप इकट्ठे हों। यीशु भी हमारा है, कृष्ण भी हमारा है नानक भी अपना है मोहम्मद भी अपना है। हमने नए नए पाकिस्तानो का निर्माण नहीं होने देना, बल्कि सारे
विश्व को एक करना है। अंत में हम सिख ,शहादत के दर्द को दिल मे रखते हुए सभी को यीशु के जन्मदिन की बधाई देते हैं।
तजिंदर सिंह अलौदीपुर
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