‘कन्यादान’ एक अभिशाप
(समाज वीकली)
जब बेटा बेटी एके समान, तो फिर काहे करे कन्यादान?
थोड़ा तो विचारे श्रीमान, कैसा जघन्य है ये काम !
सदियों से बेटियों को छलते आये, उनके अस्तित्व को क्षण में मिटाये।
कह के विधि का विधान, फिर कैसे हुए एके समान?
एके ही कोख में दोनों ही पनपे, दोनों ही हाथ-पैर, दिमाग लेके जन्मे।
धरती पर आते ही लिंग-भेद अपनाये, भरण और पोषण में अंतर कराये।
कम खाना गम खाना हमें सिखाये, मुँह न लगाना यही बताये।
घुट-घुट कर जीना है बेटी का काम, फिर कैसे कहें विधि का विधान ?
दुर्गा-काली रूप में शक्ति दिखाए, रजिया और इंदिरा बनी शासन चलाये।
क्यूरी, कल्पना, सुनीता, मैरी कॉम आदि कहलाये, धरती आकाश तक हम हैं छाये।
ऑटो, बस, ट्रेन आदि क्या-क्या न चलाये, तेल भरने से लेकर प्लेन तक उड़ाये।
क्या-क्या न किया बेटों जैसा काम, फिर काहे करे कन्यादान ?
जाति, धर्म, स्थान पर आपस में लड़ते, वेश, भाषा नाम पर क्या क्या न करते?
लेकिन बेटी के नाम पर विश्व में है एकता, सब मानव एक हैं ऐसा है लगता।
क्योंकि बेटी के पहचान को सबने मिटाये, माता-पिता के बदले पति के नाम लाये।
चाहे अमेरिका हो या हो हिन्दुस्तान, फिर कैसे हुए एके समान?
अब सोचो कि कौन है तेरा असली शोषक, तेरे ऊपर अत्याचार का कौन है पोषक?
जब तक माँ-बाप के पास नहीं है कोई बेटा, तब तक बेटियां हैं बेटों के जैसा।
जैसे ही उनके पास हो जाये एक बेटा, तब देखो बेटियां ससुराल की है शोभा।
फिर जबरन करेंगे कन्यादान, कह के विधि का विधान।
आँखे खोलो री बेटियां, जागो री बहना, ये मत सोचो की क्या है पहनना?
ये तुम सोचो कि क्या है अब करनी, जननी और जन्मभूमि हम सब की है अपनी,।
पति के बराबर हूँ ऐसा न सोचना, भाई के बराबर हूँ ऐसा तुम सोचना।
जब होगा इस पर सबका ध्यान, तब कोई काहे करेगा कन्यादान?
माँ के ही पेट से सब लोग निकलते, कोई न बाप के पेट से निकलते।
फिर भाई क्यों अपने ही घर में हैं बसते, बिना कसूर हमें पति घर भेजते?
अतः स्त्री ही है जननी उसी की जन्म भूमि, भाई-बहन साथ बसे यही है अब करनी।
तब सही में होगा विधि का विधान, जब नहीं होगा किसी का कन्यादान।
मै पूछती हूँ परिवार, समाज, सरकार से, क्या बेटियाँ कोई वस्तु है जिसे दान करते बड़ी शान से ?
सरकार के नीयत को भी ध्यान से परखना, ‘संवैधानिक अधिकार’ के बदले बनाती कन्यादान की योजना।
बिना स्वीकृति पैतृक-संपत्ति हो जाती है भाई की, किसी को चिंता है नहीं बेटियों के अधिकार की।
बेटियों! अब तो अपने अस्तित्व को पहचान, अब नहीं होने दो कभी भी किसी का कन्यादान।