कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा छिपा मौतों का घोटाला कर रही है सरकार – रिहाई मंच

सूबे के नवनिर्वाचित प्रधानों से रिहाई मंच की अपील- कोरोना काल में हुई मौतों का आंकड़ा जिलाधिकारी को सौंपे
कोरोना संक्रमित मृतकों के परिजनों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के लिए जरुरी है कि आंकड़ों में दर्ज हों उनके नाम

लखनऊ (समाज वीकली)-  रिहाई मंच ने सूबे के नवनिर्वाचित ग्राम प्रधानों से अपील की है कि वे कोरोना काल में हुई मौतों को सूचीबद्ध कर जिलाधिकारी को सौंपें। इस तरह मृतकों के परिजनों की सामाजिक सुरक्षा की गारंटी कराएं। मंच ने मीडिया से भी कहा कि जब सरकार कोरोना से हुई मौतों के आंकड़े सार्वजनिक नहीं कर रही है तो वह इन सूचियों को प्रकाशित कर मनुष्यता के लिए संकट बनी इस बीमारी के असली तथ्यों को जन सामान्य के सामने लाकर उनकी मदद करें।

कोरोना से हुई मौतों पर बोलते हुए रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि कोरोना से हुई मौतों का सही आंकड़ा न आना या मौतों को छिपाना सामाजिक अपराध है। सरकार को यह अपराध नहीं करना चाहिए क्योंकि पीड़ित परिवार की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के लिए यह बेहद जरुरी है। नवनिर्वाचित ग्राम प्रधानों को जनता की कसम खाकर कोराना काल में हुई मौतों के आंकड़ों को सूचीबद्ध करके जिलाधिकारी को सौंपना चाहिए। इस तरह मृतक परिवारों के सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की गारंटी करवानी चाहिए। यह जगजाहिर है कि आक्सीजन की कमी की वजह से बहुत सी मौतें हुई हैं। ऐसे में राज्य सरकार को इसे अपनी जिम्मेदारी मानते हुए उन परिवारों को मुआवजा दिलाना चाहिए। ग्राम प्रधानों का कर्तव्य है कि कोरोना काल के मृतकों का नाम, मरीज की उम्र, गांव, जिला, अस्पताल वार्ड/कमरे जिसमें वे भर्ती थे, या घर पर ईलाज के दौरान मृत हुए, क्या अस्पताल में जगह मिली, क्या समय पर आक्सीजन मिली, दवा-इंजेक्शन मिला, मृत्यु का समय-तारीख, मृत्यु का कारण आदि जानकारियों को सूचीबद्ध करें।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि सरकार 3 लाख मौतों का आंकड़ा बता रही है जबकि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अखबारों में दर्ज मौतों के आंकड़ों में जमीन आसमान का फर्क है। न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक देश में 42 लाख के करीब लोग मारे गए। प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री के साथ हुए प्रशासनिक और ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों के संवाद में इस बात का जरुर जिक्र होना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो कहीं हम अपने दौर में हुए सबसे बड़े मौतों के आंकड़ों का घोटाला तो नहीं देख रहे हैं। यह सिर्फ सरकारों की साख का सवाल नहीं है। इन आंकड़ों की अनुपस्थिति में सरकारें अनाथ हुए बच्चों और विधवा हुई महिलाओं को कैसे मदद देंगी। मीडिया में लाशों की तस्वीरें आने के बाद उन्हें रीति रिवाज कहना या शवों से रामनामी हटा देने से सच्चाई नहीं छुप सकती। आज जरुरत है कि कोरोना से मृत हर व्यक्ति के परिवार को अविलंब आर्थिक सहायता और उनके पुर्नवास की गारंटी की जाए।

रिहाई मंच महासचिव ने कहा कि कोरोना महामारी से गांव अछूते नहीं हैं। पिछली अप्रैल से लगभग हर घर में कोई न कोई सर्दी, खांसी, कफ और बुखार से बीमार रहा है। कई परिवारों में सभी सदस्य बीमार हुए, तो कुछ बीमारी से उबर चुके हैं। लेकिन इलाज की व्यवस्था अभी तक जिला मुख्यालय पर केंद्रित है। आक्सीजन सिलेण्डर की समस्या का समाधान केवल यही है कि हर ग्राम पंचायत को प्रधान की जिम्मेदारी पर कम से कम पांच बड़ा सिलेण्डर दिया जाए और होम कोरंटाइन मरीजों का प्राइमरी विद्यालय, पंचायत भवन या अन्य किसी विद्यालय पर इलाज कराया जाए। वहीं डाक्टर की टीम भी समय-समय पर दौरा करती रहे। गांव-गांव में कैंप लगाकर हर व्यक्ति की जांच की जाए और इलाज मुख्यालय के बजाए गांव स्तर पर हो। गंभीर मरीज ही मुख्यालय पर जाएं तभी हम इस दूसरी लहर और आने वाली तीसरी लहर से लड़ सकेंगे। सभी प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ केन्द्रों पर डाक्टरों और संसाधनों का आभाव किसी से छिपा नहीं है। सीएचसी और पीएचसी पर आक्सीजन और वेंटीलेटर की गारंटी की जाए। संजीदगी से गांवों को इकाई मानकर कोरोना के खात्मे का अभियान चलाया जाए।

गांव में कई ऐसे घर हैं जहां एक से अधिक मौंते हुई हैं। बच्चे अनाथ हो रहे हैं और महिलाएं विधवा। गांवों स्तर पर एंबुलेंस सेवा शुरु की जाए। ग्राम सभा स्तर पर मास्क और पीपीई किट की व्यवस्था और गांवों में सेनिटाजेशन के लिए वाहन, मशीन और सेनिटाइजर की व्यवस्था की जाए। हार्ट अटैक, कैंसर, किडनी जैसी गंभीर बीमारियों के रोगियों का चिन्हीकरण करते हुए उनके इलाज की गारंटी की जाए। वैक्सिनेशन और जांच के लिए गांव में चिकित्सा समिति का गठन और तेजी लाने के लिए संसाधनों को उपलब्ध कराया जाए। अगर वैक्सिन नहीं लग रही या जांच नहीं हो रही तो इसकी शिकायत तत्काल की जाए।

द्वारा-
राजीव यादव
महासचिव, रिहाई मंच
9452800752

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