वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट सन्2024 –भारत में भूख की ‘गंभीर’ स्थिति: एक आलोचनात्मक मूल्यांकन

डॉ. रामजीलाल

भूख मिटाने का रास्ता: किसानों के खेतों से होकर गुजरता है

डॉ. रामजीलाल, समाज वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा-भारत)

ईमेल—drramjilal [email protected]

(समाज वीकली)- वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रों में मानव जाति असंख्य समस्याओं का सामना कर रही है. इनमें सबसे गंभीर समस्या भूख की है. भूख के परिणामस्वरूप जीवन के विभिन्न पहलू प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं. पूंजीवाद और निगमीकरण के कारण अमीर और गरीब के बीच अभूतपूर्व रूप से बढ़ती असमानता, कीमतों में वृद्धि, बेरोजगारी दर में वृद्धि और रोजगार के अवसरों की कमी, जीवन के विभिन्न पहलुओं पर कोरोना संकट का प्रभाव, जलवायु संकट, यूक्रेन-रूस युद्ध, विभिन्न देशों में नागरिकों के मध्य संघर्ष ,भोजन और खाद्य पदार्थ, ऊर्जा और उर्वरकों की बढ़ती कीमतों के कारण खाद्य सुरक्षा की स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ रही है. इन सबके परिणामस्वरूप भूख सूचकांक में वृद्धि हुई है. विश्व खाद्य कार्यक्रम (सन् 2023 ) अनुसार खाद्य असुरक्षा के कारण लड़कियाँ भूख, लिंग आधारित भेदभाव, दुर्व्यवहार, हिंसा, बाल विवाह और जानलेवा बीमारियों से गंभीर रूप से प्रभावित होती हैं. तथा एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में भूख से मरने वालों में से 70% महिलाएँ और लड़कियाँ हैं

 ( https://theasianindependent.co.uk/global-hunger-index-report-2023-a-critical-assessment/)

(https://planinternational.org/publications/world-hunger-impact-girls/)

ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट: वैज्ञानिक तरीकों पर आधारित

ग्लोबल हंगर इंडेक्स का अध्ययन सन् 2006 से लगातार दो विश्व-प्रसिद्ध मानवीय गैर-सरकारी संगठनों – कंसर्न वर्ल्डवाइड (आयरलैंड) और वेल्थहंगरहिल्फ़ (जर्मनी) द्वारा किया जा रहा है. ग्लोबल हंगर  इंडेक्स की अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इन संगठनों  के आंकड़ों के मुख्य स्रोत  —अल्पपोषण के आंकडे़ एफएओ ,चाइल्ड स्टंटिंग व चाइल्ड वेस्टिंग के आंकड़ों के मुख्य स्रोत  डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ, एमइएएसयूआरई ,डीएचएस 2023,(2018-2022 तक केआंकड़ों सहित) , बाल मृत्यु दर ( चाइल्ड मोर्टलिटी) केआंकड़े इंटरनेट एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मोर्टलिटी एस्टीमेशन भेजी गई रिपोर्ट है. इन स्रोतों के अतिरिक्त राज्य सरकारों के द्वारा भेजे गई रिपोर्टस  के आधार पर भी आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं.ये दोनों एनजीओ आंकड़ों के आधार पर मूल्यांकन करते हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट वैज्ञानिक तरीकों पर आधारित है. यह रिपोर्ट क्षेत्र, देश, धर्म, भाषा और रंग भेदभाव, संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर तैयार की जाती है. गैर- सरकारी संगठन कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्थहंगरहिल्फ़ की रिपोर्ट का उद्देश्य न केवल गरीबी, भुखमरी और कुपोषण से प्रभावित देशों को आईना दिखाना है, बल्कि स्थिति को सुधारने के लिए सुझाव देना भी है. यह विभिन्न देशों की सरकारों पर निर्भर करता है कि वे उनके सुझावों को स्वीकार कर स्थिति में सुधार करती हैं या उनकी रिपोर्ट की आलोचना करके उसे कूड़े की टोकरी में फेंक देती हैं. रिपोर्ट के आधार पर कई देशों ने अपने लोगों को राहत पहुंचाकर स्थिति में सुधार किया है. (https://samajweekly.com/global-hunger-index-report-2023-a-critical-assessment/)

भूख को मापने और ट्रैक करने का पैमाना:

वैश्विक स्तर पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा भूख को मापने का एक पांच  सूत्री फॉर्मूला तैयार किया गया है. पांच  सूत्री फॉर्मूला अधोलिखित है—

प्रथम, जिन राज्यों का स्कोर 9.0 से कम है. वहां की राज्य सरकारें भूख, कुपोषण और गरीबी को खत्म करने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं.

दूसरा, 10 से 19 तक का सूचकांक ‘मध्यम श्रेणी’ है.

तीसरा, यह पैमाना 20 से 34.9 अंकों तक है. यह एक ‘गंभीर श्रेणी’ है.

चौथा, 35 से 49.9 का पैमाना ‘भूख की खतरनाक श्रेणी’ में आता है.

पांचवां, 50 से अधिक का स्कोर का मतलब है कि ऐसा राज्य भूख से ‘बेहद पीड़ित’ है.  ( https://theasianindependent.co.uk/global-hunger-index-report-2023-a-critical-assessment/)

जीएचआई स्कोर की गणना के लिए घटक संकेतक

जीएचआई स्कोर की गणना करने के लिए उपयोग किए जाने वाले चार संकेतक घटक अधोलिखित हैं–

  1. कुपोषण:’अपर्याप्त कैलोरी’ सेवन वाली आबादी का अनुपात .
  2. बाल बौनापन: पांच साल से कम उम्र के बच्चों का अनुपात जिनकी ऊंचाई उनकी उम्र से कम है.यह ‘क्रोनिक कुपोषण’ का प्रतीक है.
  3. बाल दुर्बलता: पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों का अनुपात जिनका वजन उनकी ऊंचाई से कम है.यह ‘गंभीर कुपोषण’ की स्थिति है.
  4. बाल मृत्यु दर: अपने पांचवें जन्मदिन से पहले मरने वाले बच्चों का अनुपात,आंशिक रूप से अपर्याप्त पोषण के ‘घातक मिश्रण’ को दर्शाता है.  ( https://theasianindependent.co.uk/global-hunger-index-report-2023-a-critical-assessment/)

यह स्कोर शून्य से शुरू होता है और 100 तक जाता है. जितना अधिक स्कोर होता है, भूख उतनी ही गंभीर होती है. यदि स्कोर शून्य से 9.9 तक है, या तो कोई भूख नहीं है या बहुत कम भूख है .इन देशों में लोगों को भूख से राहत दिलाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कई नीतियां और कार्यक्रम लागू किए गए हैं, जो अन्य राज्यों के लिए मार्गदर्शक का काम कर सकते हैं. भूख और गरीबी के बीच गहरा संबंध है. जैसे-जैसे भूख कम होती है, गरीबी भी कम होती है और लोगों का जीवन खुशहाल होता है. नतीजतन, बच्चों को वेस्टिंग और स्टंटिंग से राहत मिलती है. यदि स्कोर 50 से अधिक है तो स्थिति ‘बेहद खतरनाक’ है. (https://samajweekly.com/global-hunger-index-report-2023-a-critical-assessment/)

ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट सन् 2024 : मुख्य हाइलाइट्स

ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट सन् 2024 की मुख्य हाइलाइट्स  अग्रलिखित  हैं:

  1. हंगर इंडेक्स रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत का स्थान 127 देशों की सूची  में भारत का स्थान  105वां है पिछले सालों की तुलना में 2024 में  भारत के रैंक में सुधार हुआ है. लेकिन भारत अभी भी ‘गंभीर भूख’ की समस्याओं वाले देशों में शामिल है. भुखमरी की गंभीर समस्या को देखते हुए सन् 2030 तक  ‘भुखमरी मुक्त भारत’  एक कल्पना है.

2. भारत की 13.7 प्रतिशत आबादी कुपोषण से पीड़ित है, पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5 % बच्चे बौनेपन से एवं 18.7 % बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं और 2.9 % बच्चे पाँच वर्ष की आयु तक नहीं पहुँच पाते हैं अर्थात पांचवा जन्मदिन नहीं बना सकते.

  1. वैश्विकभूख सूचकांक 2024 के अनुसार विश्व स्तर पर 73.3 करोड़ लोग प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में भोजन प्राप्त न होने के कारण होने के कारण भूख से ग्रस्त हैं.

4. अफ्रीकी महाद्वीप के कुछ देशों का वैश्विक भूख सूचकांक ‘खतरनाक श्रेणी’ की अंतिम रेखा की ओर अग्रसर हो रहा हैं.रिपोर्ट के अनुसार खाद्य संकट का मूल कारण नागरिकों के मध्य संघर्ष है. राजनीतिक चिंतन के प्रसिद्ध विद्वान थॉमस हॉब्स ने अपनी पुस्तक’’लेवियाथन’ में प्राकृतिक अवस्था का वर्णन करते हुए लिखा कि  “हर आदमी के खिलाफ हर आदमी का युद्ध’’है. यह वर्णन कुछ अफ्रीकी देशों पर चित्रार्थ होता है.  अफ्रीकी देशों के अतिरिक्त  मेंडोमिनिकन रिपब्लिक  ऑफ कांगो ,हैती,माली,और सीरिया इत्यादि देशों में  भी नागरिकों के  बीच संघर्ष  खाद्य संकट का मूल कारण है.

5. छह देशों – चाड, मेडागास्कर, यमन, बुरुंडी, सोमालिया और दक्षिण सूडान  में भूख का स्तर चिंताजनक है, और 34 देशों में भूख का स्तर गंभीर है। कुछ क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा बनी हुई है, यहाँ तक कि उन क्षेत्रों और देशों में भी जो अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और प्रगति के संकेत हैं. उदाहरण के लिए, प्रवृत्ति के विपरीत, पाँच देशों ने सन् 2016 और 2024 के बीच अपने जीएचआई स्कोर के पाँच अंक या उससे अधिक की कमी हासिल की है. (स्त्रोत :ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट, 2024)

भारत की रैंकिंग

हंगर इंडेक्स रिपोर्ट सन्2024 में भारत की रैंकिंग (105)अपने पड़ोसी देशों –श्रीलंका (56), नेपाल(68), और बांग्लादेश(84) से पीछे हैं, जबकि पाकिस्तान(109) और अफगानिस्तान(116) से केवल ऊपर है. भारत की रैंकिंग और पड़ोसी देशों की रैंकिंग के संबंध में निम्नलिखित टेबल इस तथ्य को दर्शाता है:

क्रमांक    देश का नाम           रैंकिंग

1.         श्रीलंका                  56
2.         नेपाल                    68
3.         बांग्लादेश                84
4.        भारत                    105
5.       पाकिस्तान                109
6        अफगानिस्तान            116

(स्त्रोत :ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट सन् 2024)

भूख मिटाने का रास्ता: किसानों के खेतों से होकर गुजरता है

भूख मिटाने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत हैं:

प्रथम, कृषि क्षेत्र में सुधार: भुखमरी मिटाने का रास्ता किसानों के खेतों से होकर गुजरता है. यही कारण है कि किसान संगठनों ने बार-बार स्वामीनाथन रिपोर्ट (सन्2006) की सिफारिशों को लागू करने पर जोर दिया है. इस रिपोर्ट को लागू करने के लिए दिल्ली की सीमा पर किसानों का ऐतिहासिक आंदोलन सन्2020-21 में 378 दिनों तक चला. इस आंदोलन में करीब 750 किसान शहीद हुए. हालांकि सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए, लेकिन उसने स्वामीनाथन रिपोर्ट के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (सीट2+50%) लागू नहीं किया. किसानों को सी 2+50% फॉर्मूले के आधार पर फसलों का न्यूनतम मूल्य दिया जाए और इसको कानूनी रूप दिया जाए. कृषि इनपुट्स की कीमतों में बढ़ोतरी को रोका जाए. न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर कानून बनाना बहुत जरूरी है. इस मांग को लेकर किसान लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं. फसलों की बर्बादी रोकने और ग्रामीण इलाकों में बुनियादी ढांचे के विकास की जरूरत है. इसलिए स्टोरेज तथा कोल्ड स्टोरेज की सुविधाओं को बहुत अधिक वृद्धि करने की जरूरत है क्योंकि लगभग 30%सब्जियां और फल कोल्ड स्टोरेज न होने के कारण खराब हो जाते हैं. अतः बुनियादी ढांचे के विकास की जरूरत है. (https://samajweekly.com/global-hunger-index-report-2023-a-critical-assessment/)

द्वितीय, भ्रष्टाचार पर रोक: सबसे बड़ी बात यह है कि बाढ़ या अकाल के समय भ्रष्टाचार की बाढ़ आ जाती है। इस संदर्भ में प्रसिद्ध पत्रकार, ग्रामीण पत्रकारिता के जनक और भारतीय किसानों के संरक्षक पी. साईनाथ ने 28 साल पहले 1996 में अपनी पुस्तक{साईनाथ. पी, एवरीबडी लव्स ए गुड ड्रॉट: स्टोरीज फ्रॉम इंडियाज पुअरेस्ट डिस्ट्रिक्ट्स, पेंगुइन, 1996} प्रकाशित की थी.साईनाथ ने इसमें लिखा है कि अधिकारी बाढ़ और सूखे (अकाल) को ‘अच्छा’ मानते हैं क्योंकि वे अपनी ‘तीसरी फसल’ काटते हैं, यानी बाढ़ और अकाल राहत कार्यों के लिए निर्धारित किए गए सरकारी धन का लगभग 25 प्रतिशत वे ‘तीसरी फसल’ (भ्रष्टाचार) के रूप में काटते हैं. इस तीसरी फसल (भ्रष्टाचार) को रोकना बहुत जरूरी है.

( साईनाथ. पी, एवरीबडी लव्स ए गुड ड्रॉट: स्टोरीज फ्रॉम इंडियाज पुअरेस्ट डिस्ट्रिक्ट्स, पेंगुइन, 1996}

तृतीय, पूंजीवादी एवं उदारवादी नीतियों का परित्याग: भारत सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव करने की जरूरत है. आर्थिक व्यवस्था के निगमीकरण के कारण अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है तथा ‘ट्रिकल डाउन थ्योरी’ के आधार पर गरीबी और भुखमरी को मिटाना असंभव है. ट्रिकल डाउन थ्योरी’ की  नीति को त्यागकर समाजवादी सोच के आधार पर नीतियां बनानी चाहिए ताकि लोगों का अधिक से अधिक कल्याण हो. लगभग 2400 वर्ष पूर्व राजनीति विज्ञान के प्रसिद्ध यूनानी विद्वान अरस्तु , (384 ईपू – 322 ईपू) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक पॉलिटिक्स(Politics में राज्य के उद्देश्य का वर्णन करते हुए लिखा कि”राज्य जीवन के लिए अस्तित्व में आया और अच्छे जीवन के लिए अस्तित्व में बना हुआ”. आम आदमी को अच्छे दिनों और अच्छे जीवन का इंतजार है ताकि उसका समग्र विकास हो सके.

चतुर्थ, स्वास्थ्य सेवा में सुधार :स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया जाना चाहिए. चिरायु- आयुष्मान भारत योजना एक बेहतरीन योजना है . आम जनता को इसका लाभ कम मिल रहा है  . निजी अस्पतालों के साथ जुड़ने के कारण  तथा स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और डॉक्टरों की सांठगांठ के कारण यह भ्रष्टाचार से भरी हुई है. इसलिए इस योजना का निजी हॉस्पिटलों से संबंध समाप्त करके संपूर्ण रूप से सरकारी हॉस्पिटल्स और मेडिकल कॉलेजों के साथ जोड़ना नितांत अनिवार्य है ताकि सभी नागरिकों को स्वस्थ सेवाएं उपलब्ध हो सकें.

पंचम बेरोजगारी और भुखमरी का उन्मूलन : बेरोजगारी और भुखमरी का भी परस्पर घनिष्ठ संबंध है. बेरोजगारी के कारण भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वच्छ पेयजल और स्वास्थ्य की समस्याएं बनी रहती हैं. इसलिए सार्वजनिक क्षेत्रों में रिक्त पदों को स्थायी रूप से भरा जाना चाहिए ताकि बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा सके और शोषण से मुक्ति प्राप्त हो सके.

पांचवां, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दोषमुक्त बनाना नितांत आवश्यक है. मध्याह्न भोजन( मिड डे मील) बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए वरदान है. इसे और अधिक पौष्टिक बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए. मनरेगा की राशि व 100 से अधिक दिन बढ़ाने से ग्रामीण जीवन में सुधार आएगा. सुधार होने से गरीबी, भुखमरी और कुपोषण को खत्म किया जा सकता है. 80 करोड़ लोगों को भारत सरकार के द्वारा मुफ्त राशन वितरण के कारण गरीबों राहत मिल रही है. भुखमरी को समाप्त करने के लिए यह योजना जारी रहनी चाहिए ताकि एक भी भारतीय भूखा न सोए.

 छठा, सरकारी कर्मचारियों का जनहित अभिमुखीकरण :सरकारी नीतियों को लागू करने के लिए सरकारी कर्मचारियों का रुख जनता के अनुकूल होना चाहिए. जो कर्मचारी नीतियों को लागू करने में लापरवाही बरतते हैं या भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करना जरूरी है.( डॉ. रामजीलाल, ‘भारत में गरीबी, भुखमरी और कुपोषण: आर्थिक विकास की तस्वीर का स्याह पक्ष’, सजग समाज, करनाल, दिसंबर 2017, पृ. 5-9 और 15).

 सातवां, पूंजीपति हितैषी ‘एनपीए नीति’ को बंद किया जाना चाहिए: सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकारों द्वारा पूंजीपतियों को दी जाने वाली सुविधाएं बंद करके सार्वजनिक क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और बैंकों द्वारा पूंजीपतियों को राहत देने के लिए अपनाई गई ‘एनपीए नीति’ को बंद किया जाना चाहिए और बैंकों को “मुंडन संस्कार” से बचाया जाना चाहिए. दूसरे शब्दों में, 1991 के बाद डॉ. मनमोहन सिंह (वित्त मंत्री) और नरसिम्हा राव (प्रधान मंत्री) द्वारा शुरू की गई नवउदारवादी नीतियों को रोकने की जरूरत है और यूपीए और एनडीए सरकारों द्वारा उन्हें आगे बढ़ाया गया. इससे आम जनता के बजाय पूंजीपति वर्ग को फायदा हुआ है.

संक्षेप में भुखमरी को समाप्त करने के लिए अन्य सुधारों के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में सुधारों की जरूरत है क्योंकि भुखमरी को खत्म करने का रास्ता किसानों के खेतों से होकर गुजरता है.

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