आदिवासी महिलाओ के सक्षमीकरण के लिये सीमा पर पहुची मीनाक्षी, 360 महीलाओ के जीवन का हो रहा कायाकल्प

नागपुर, (समाज वीकली)- अपनी कलात्मक बांस से बनी राखियों को विदेशों तक पहुंचाने के साथ ही बांस के क्यूआर कोड का आविष्कार करके अपने लिए बैंबू की दुनियां में अलग जगह बनानेवाली अंतर्रष्ट्रीय ख्याति की मिनाक्षी मुकेश वालके बांगला देश और पाकिस्तान की सीमा पर पहुंच गईं। कोलकाता के अंतिम छोर पर बसे बिरभुम के सुदूर आदीवासी क्षेत्र में मीनाक्षी मुकेश वालके बांस शिल्प के विविध प्रकार के अलावा बांस राखियों के गुर सीखाने पहूची। जहा बांबु क्लस्टर की 360 महीलाओ का जीवन ही बदल जायेगा!

मिनाक्षी वालके को नवापारा लक्ष्मीनारायण खादी-ओ-ग्रामोनयन माहीला संस्था, मयुरेश्वर, बीरभूम मे बांस कारीगरों को प्रशिक्षित करने के लिए आमंत्रित किया गया। ‘बैंबू लेडी ऑफ महाराष्ट्र’ के नाम से मशहूर मिनाक्षी वालके ने डिजाइन और फिनिशिंग प्रोडक्ट्स पर टिप्स दी।

संस्था की कार्यकारी निदेशक जुमा चटर्जी ने कहा, “हमारा संगठन पिछले 30 वर्षों से बांस से बनी कलाकृतियों और हस्तशिल्प को बढ़ावा दे रहा है और उनका उत्पादन कर रहा है। इसमें लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की एक बड़ी क्षमता है।

मीनाक्षी वालके नवापारा लक्ष्मीनारायण खादी-ओ-ग्रामोनयन महिला संस्था, बीरभूम के लिए काम करने वाले 360 बांस कारीगरों को प्रशिक्षित करेंगी लोयड। हम अपने साथ मिनाक्षी को पा कर खुश हैं। यह प्रशिक्षण 15 दिनों तक चला।

चटर्जी ने कहा कि मिनाक्षी वालके का नाम उनके परिचित वैज्ञानिकों में से एक श्री अमितवा सिल ने उनका नाम लिया था। चैटर्जी ने आगे बताया, “मैंने उन्हें बांस से बनी राखियां बनाते समय फिनिशिंग कौशल सिखाने के लिए बीरभूम आमंत्रित किया। हमारा एनजीओ निचले तबके के कलाकारों को बांस कला के माध्यम से स्वरोजगार प्राप्त करने में मदद करता है।

गौरतलब है कि मिनाक्षी मुकेश वालके महाराष्ट्र की एकमात्र महिला बांस शिल्पी हो सकती हैं जो स्थानीय आदीवासी आर्टिजन को प्रशिक्षित करने के लिए बीरभुम के दुर्गम गांव तक पहुंची हैं। उन्होंने गढ़चिरौली में 25 आदिवासी युवाओं और पालघर में महिलाओं को प्रशिक्षित किया था। पालघर का उल्लेख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी “मन की बात” में किया था और अपने ट्विटर पर मिनाक्षी की तस्वीर साझा की थी. उल्लेखनीय है कि मिनाक्षी ने महाराष्ट्र के पांच जिलों की 250 से अधिक महिलाएं आत्मनिर्भर बनाई है। वह झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और गुजरात में ऐसी प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित करने की योजना बना रही हैं।

मीनाक्षी ने कहा, “मेरा उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल बांस को बढ़ावा देकर महिलाओं की ऊर्जा को बढ़ावा देना है। यह अब पुरुषों के वर्चस्व वाला गढ़ नहीं रहा है,” ऐसा मिनाक्षी वालके ने बताया।

वालके को उनके स्टार्टअप उद्यम अभिसार इनोव्हेटिव्ह के लिए नारी शक्ति पुरस्कार 2018 से भी सम्मानित किया गया। 2019 में, उन्हें उनके योगदान के लिए बुरड़ मेदार समुदाय की महिलाओं द्वारा भी सम्मानित किया गया था, जो पारंपरिक बांस शिल्पकार हैं।

2021 में, विश्व महिला दिवस पर, इंडो-कैनेडियन आर्ट एंड कल्चर सोसाइटी ने मिनाक्षी मुकेश वालके को वर्चुअल रूप से ‘वुमन हीरो अवार्ड’ प्रदान किया था। 3 सदस्यों के परिवार में एक 6 साल के बेटे को छोड़ कर इस तरह से कईयो के जीवन में रंग भरनेवाली मिनाक्षी की कलाकृति ब्रिटिश एम्बेसी में रखी है।

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