(समाज वीकली)
बाकी मध्य प्रदेश में संविधान खतरे में नही था। वहां भाजपा 29/29 जीत लेती है।
बिहार में संविधान खतरे में नही था क्योंकि वहां एनडीए 30/40 जीत लेता है।
उत्तराखंड में भी संविधान खतरे में नही था। वहां भाजपा 5/5 जीत लेती है।
दिल्ली में भी संविधान खतरे में नही था,वहां भाजपा 7/7 जीत लेती है।
छत्तीसगढ़ में भी संविधान खतरे में नही था क्योंकि वहां भाजपा 10/11 जीत लेती है।
उड़ीसा में भी संविधान खतरे में नही था,वहां भाजपा 20/21 जीत लेती है।
अरुणाचल प्रदेश में भी संविधान खतरे में नही था,वहां भाजपा 2/2 जीत लेती है ।
आंध्र प्रदेश में भी संविधान खतरे में नही था,वहां एनडीए 21/25 जीत लेता है।
असम में भी संविधान खतरे में नही था, वहां भाजपा 10/14 जीत लेती है।
गुजरात में भी संविधान खतरे में नही था,वहां भी भाजपा 25/26 जीत लेती है।
हिमाचल प्रदेश में भी संविधान खतरे में नही था,वहां भी भाजपा 4/4 जीत लेती है ।
झारखंड में भी संविधान खतरे में नही था,वहां भी भाजपा 8/14 जीत लेती है।
कर्नाटक में भी संविधान खतरे में नही था, वहां भी भाजपा ने 17/28 और एनडीए ने 19/28 जीत ली।
राजस्थान में भी संविधान खतरे में नही था,वहां भी भाजपा 14/25 जीत गई।
तेलंगाना में भी संविधान खतरे में नही था,वहां भी भाजपा 8/17 जीत लेती है।कांग्रेस ने भी इतनी ही जीती थी।
त्रिपुरा में भी संविधान खतरे में नही था,वहां भी भाजपा ने 2/2 जीत ली।
इस प्रकार सिद्ध होता है कि संविधान सिर्फ महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब में ही खतरे में था क्योंकि ये लोग यहां पर स्वतंत्र दलित राजनीति को खत्म करना चाहते थे और उनका संविधान का मुद्दा इन्ही राज्यों तक सीमित था। बाकी देश ने इस मुद्दे को बुरी तरह नकार दिया था।
चुल्ल दलितों को ही लगी थी बस