१४ अक्टूबर १९५६ को बौद्ध धम्म दीक्षा समारोह में बाबासाहब की ऐतिहासिक 22 प्रतिज्ञाएँ

(समाज वीकली)
आधुनिक भारत के निर्माता, विश्वरत्न बोधिसत्व बाबासाहब डॉ भीमराव आम्बेडकर ने १३ अक्टूबर १९३५ को येवला, नासिक में लाखो लोगो के समक्ष प्रतिज्ञा की थी की, “मैं हिन्दू अछूत के रूप में पैदा हुआ यह मेरे वश की बात नहीं थी, किन्तु मैं हिन्दू अछूत के रूप में मरूँगा नहीं..” और उसी महान प्रतिज्ञा को पूरी करते हुए, १४ अक्टूबर १९५६ को अशोक विजयादसमी के दिन, अपने लाखो अनुयायियो के साथ असमानता, भेदभाव, ऊँचनीच और जातिवाद से ग्रस्त हिन्दू धर्म को त्याग कर प्रेम, मैत्री, दया, करुणा और बंधुता से पूर्ण मानवतावादी बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहण की.. जो तथागत बुद्ध के बाद सबसे बड़ी धम्मक्रांति थी. इसी अवसर पर उन्होंने अपने अनुयायियों के लिए जो  22 प्रतिज्ञाएँ  तय की थी वो इस पोस्ट में प्रस्तुत हैं

1- मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
2- मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
3- मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.
4- मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ
5- मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ
6- मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा.
7- मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा
8- मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा
9- मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ
10- मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा
11- मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा
12- मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा.
13- मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.
14- मैं चोरी नहीं करूँगा.
15- मैं झूठ नहीं बोलूँगा
16- मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा.
17- मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.
18- मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा.
19- मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ
20- मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.
21- मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा).
22- मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा

डा बी.आर. अम्बेडकर

दीक्षाभूमि 

दीक्षाभूमि भारत में बौद्ध धम्म का एक प्रमुख केन्द्र है। यहाँ बौद्ध धम्म की पुनरूत्थान हुआ है। महाराष्ट्र राज्य की उपराजधानी नागपुर शहर में स्थित इस पवित्र स्थान पर बोधिसत्त्व परमपूज्य डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने 14 अक्टूबरसम्राट अशोक विजयादशमी के दिन 1656 को पहले महास्थविर चंद्रमणी से बौद्ध धम्म दीक्षा लेकर अपने 5,00,000 (५ लाख ) से अधिक अनुयायिओं को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी थी। त्रिशरण, पंचशील और अपनी 22 प्रतिज्ञाएँ देकर डॉ॰ आंबेडकर ने दलितों का धर्मपरिवर्तन किया। अगले दिन फिर 15 अक्टूबर को 2,00,000 (२ लाख ) से अधिक लोगों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी और स्वयं भी फिर से दीक्षीत हुए। देश तथा विदेश से हर साल यहाँ 25 लाख से अधिक आंबेडकरवादी और बौद्ध अनुयायी आते हैं। हर साल 14 अक्टूबर को यहाँ हजारों की संख्या में लोग बौद्ध धम्म की दीक्षा लेते है, परावर्तित होते रहते हैं।

महाराष्ट्र सरकार ने दीक्षाभूमि को ‘अ’ वर्ग (‘ए’ क्लास) पर्यटन क्षेत्र का दर्जा दिया है। नागपुर शहर के सभी धार्मिक व पर्यटन क्षेत्रों में यह पहला स्थल है, जिसे ‘ए’ क्लास का दर्जा प्राप्त हुआ है।

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