31 जुलाई 2023, शहीदी दिवस पर विशेष लेख
डा.रामजीलाल, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज ,करनाल, हरियाणा -भारत
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(समाज वीकली)- भारत के क्रांतिकारी शिरोमणि अमर शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 18 99 को तत्कालीन पटियाला स्टेट (अब पंजाब ) के सुनाम गांव में कंबोज जाति के जम्मू गोत्र में हुआ. परंतु कुछ विद्वानों ने ऐतिहासिक तथ्यों की उपेक्षा करते हुए उधम सिंह को “दलित सिख परिवार” से जोड़ दिया. इन विद्वानों में शम्सुल इस्लाम. दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर का नाम मुख्य है. शम्सुल इस्लाम का लेख ‘सांझी सहादत ,सांझी विरासत की बंद पड़ेी गौरव यात्रा’, .नामक लेख में लिखा, ‘सुविख्यात क्रांतिकारी उधम सिंह का जन्म एक दलित परिवार में हुआ’. (समयांतर, वर्ष 50, अंक 9, जून 2019 पृष्ठ 29.). उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने उधम सिंह को चमार जाति से जोड़कर उधम सिंह नगर जिले का नामकरण किया था. इस प्रकार का भ्रम फैलाना ऐतिहासिक तथ्यों के विरुद्ध है. उधम सिंह के पिताजी का नाम सरदार टहल सिंह तथा माता जी का नाम श्रीमती नारायणी था. इनके माता-पिता ने इनका नाम शेर सिंह रखा .उस समय किसी भी व्यक्ति को यह आभास नहीं था कि भविष्य में यही बालक शेर सिंह विश्व प्रसिद्ध क्रांतिकारियों की श्रेणी में अग्रणीय स्थान पर होकर भारतीय क्रंतिकारी इतिहास का एक गौर्वपूरण पृष्ठ होगा.उधम सिंह का एक भाई मुक्ता सिंह भी था. उधम सिंह के पिता जी रेलवे में उपाली गांव में रेलवे क्रॉसिंग पर चौकीदार थे. उधम सिंह निर्धन परिवार में जन्में और मुसीबतों का पहाड़ तो तब टूटा जब बचपन में इनकी माताजी (सन्1901) तथा पिताजी (सन्1907) स्वर्ग सुधार गए .परिणाम स्वरूप माता- पिता की मृत्यु के पश्चात उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था. भाई किशन सिंह रागी ने दोनों भाइयों – शेर सिंह तथा मुक्ता सिंह को सेंट्रल खालसा अनाथालय पुतलीघर, अमृतसर में भर्ती कराया. अनाथालय में सिख धर्म के रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार शेर सिंह का नाम उधम सिंह तथा मुक्ता सिंह का नाम साधू सिंह रखा गया. इसी अनाथालय में रहते हुए उधम सिंह ने सन् 1918 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और सन् 1919 में अनाथालय को छोड़ दिया .अनाथालय स्कूल में रहते हुए उधम सिंह ने आर्ट एंड क्राफ्ट के ट्रेनिंग ग्रहण की और इसके साथ- साथ उसके चिंतन पर यह प्रभाव भी पड़ा कि कठोर परिश्रम और दृढ़ निश्चय से किसी भी उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है..उधम सिंह के भाई साधु सिंह (मुक्ता सिंह) की मृत्यु के पश्चात उसका जीवन बिल्कुल एकाकी हो गया तथा कष्ट झेलने का अदम्य साहस एवं संघर्ष करने की असीम भावना, अत्यधिक कष्टों के बादलों को चीरते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिली.
.अमर शहीद उधम सिंह के चिंतन , विचार दर्शन, जीवन दर्शन, सिद्धांतों और कार्यों पर समय अनुसार अनेक प्रभाव पड़े. माता –पिता व भाई की मृत्यु, एकाकी जीवन, परिवार के गरीबी और अनाथालय के जीवन की दयनीय स्थिति ने उसे मनोवैज्ञानिक तौर पर साहस पूर्ण, संघर्षशील एवं जुझारू युवक बना दिया .परंतु उनके राजनीतिक चिंतन पर अति महत्वपूर्ण प्रभाव जलियांवाला बाग के सुनियोजित नरसंहार (13अप्रैल1919 )का पड़ा.
हमारे सुधि पाठकों के लिए जलियांवाला बाग नरसंहार की पृष्ठभूमि जानना अति आवश्यक है. विश्व प्रथम विश्व युद्ध (सन् 1914 – सन् 1918) के समय अंग्रेजी सरकार का यह कहना था युद्ध स्वतंत्रता के लिए लड़ा जा रहा है. प्रथम विश्व युद्ध में भारतीयों के द्वारा अंग्रेजी सरकार की अभूतपूर्व सहायता की गई थी. सन् 1914- सन् 1916 तक 1,92,000 भारतीय सैनिकों में पंजाब के सैनिकों की संख्या 1,10,000 थी . जनता ने केवल सैनिक ही नहीं दिए अपितु 2 करोड रुपए युद्ध का चंदा तथा 10 करोड रुपए ब्याज के रूप में भी दिए. प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार ने भारतीय जनता से चंदा स्वैच्छिक तथा बलपूर्वक भी लिया. विश्वयुद्ध में 43,000 सैनिकों की मृत्यु के कारण सैनिक परिवारों के आर्थिक स्थिति बहुत अधिक खराब हो गई .युद्ध के दौरान जनता से बलपूर्वक युद्ध का चंदा इकट्ठा करना, अभूतपूर्व महंगाई ,बेरोजगारी,भूखमरी,जनता पर कर्ज , महामारी, असंतुलित मानसून, आर्थिक मंदी का दौर ,गदर पार्टी के क्रांतिकारी आंदोलन का पंजाबी युवाओं पर निरंतर बढ़ता हुआ प्रभाव एवं तुर्की में पैन इस्लामिक मूवमेंट के कारण भारतीय जनता में भी असंतोष की भावना चरम सीमा पर थी.
सरकार ने असंतोष को दबाने के लिए अराजक एवं क्रांतिकारी अपराधिक अधिनियम 1919 (रौल्ट एक्ट )लागू किया . इन अधिनियम के अंतर्गत प्रेस पर नियंत्रण, स्वतंत्र आंदोलन को रोकना, नेताओं पर बिना मुकदमा चलाए जेल में डालना, बिना वारंट गिरफ्तार करना एवं विशेष न्यायाधिकरणों तथा बंद कमरों में बिना किसी जिम्मेवारी के अभियोग चलाना इत्यादि अधिकार सरकार को दिए गए. इन काले कानूनों के विरुद्ध ‘नो अपील ,नो दलील, नो वकील ‘ का नारा हिंदुस्तान में फैल गया. इन कानूनों का पंजाब में विरोध हुआ .13 अप्रैल पंजाब में वैशाखी के दिन के रूप में मनाया जाता है. परिणाम स्वरूप 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में वैशाखी मनाने और रौल्ट एक्ट का विरोध करने के लिए के लिए लगभग 20,000 लोग शांतिपूर्ण सभा कर रहे थे. इस शांतिपूर्ण समारोह पर हो सुनियोजित योजना के आधार पर भारतीयों को सबक सिखाने तथा दबाने के लिए ब्रिगेडियर जनरल रेजीनाल्ड ( एडवर्ड डायर)सैनिकों की टुकड़ी के साथ शाम 5 बजकर 15 मिंट पर सभा स्थल पर गए और बिना चेतावनी दिए गोली चलाने के आदेश दिए .सैनिक टुकड़ी ने लगभग 1650 गोलियां फायर की तथा फायरिंग गोलियां समाप्त होने तक चलती रही. लगभग 15 मिनट में अमृतसर के सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार 1800 लोग मारे गए. मरने वालों में 41 लड़के व एक 6 सप्ताह की बच्ची भी थी. इस हत्याकांड में 1200लोग घायल हुए थे. ब्रिटिश सरकार के द्वारा 581 व्यक्तियों पर मुकदमें चलाए गए और उन में से 108 व्यक्तियों को मृत्यु दंड,265 व्यक्तियों को आजीवन कारावास ,85 व्यक्तियों को सात-सात वर्ष की कैद और शेष को अपमानित किया गया .जलियांवाला बाग हत्याकांड सन् 1857 की जनक्रांति के पश्चात रक्तरंजित बर्बरता, निर्दयता एवं अमानवीय नरसंहार 20वींशताब्दी प्रथम मिसाल थी. समस्त भारत में जलियांवाला बाग सुनियोजित नरसंहार के परिणाम स्वरूप जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर था और इसके बाद जन आंदोलन किसानों और मजदूरों के संघर्षों एवं राष्ट्रीय आंदोलन में एक नया मोड़ आया .दूसरे शब्दों में ब्रिटिश साम्राज्यवाद पतन की ओर अग्रसर हुआ.
उधम सिंह समस्त हत्याकांड को स्वयं देखा था. तत्कालीन गवर्नर जनरल डायर से ‘खून का बदला खून’ से लेने के लिए सौगंध उठाई थी तथा उसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को समूल नष्ट करने की कसम ली थी .जलियांवाला बाग हत्याकांड उसके जीवन पर अमि छाप छोड़ गया और बदला लेने की ज्वाला निरंतर धधकती रही.यह नरसंहार उनके जीवन पर गहरी छाप छोड़ गया और उसने जनरल डायर को जान मारने का निर्णय लिया.
जलियांवाला बाग हत्याकांड के अतिरिक्त उधम सिंह के चिंतन पर प्रसिद्ध क्रांतिकारियों एवं राष्ट्रीय नेताओं का प्रभाव भी था . उधम सिंह के जीवन दर्शन एवं चिंतन पर स्वामी श्रद्धानंद ,गदर पार्टी के सुप्रसिद्ध नेता लाला हरदयाल, प्रोफेसर मोता सिंह, लाला लाजपत राय ,सरदार बसंत सिंह, बाबा सोहन सिंह भकना, करतार सिंह सराभा, सरदार अजीत सिंह, सरदार स्वर्ण सिंह, डॉ सैफुद्दीन किचलू इत्यादि का गहरा प्रभाव था .परंतु सर्वाधिक प्रभाव क्रांतिकारी भगत सिंह था. भगत सिंह को वह अपना मित्र और गुरु मानते थे. यही कारण है कि भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी दिए जाने की घटना 23 मार्च 1931 के प्रभाव का वर्णन करते हुए उसने 20 मार्च 1940 को ब्रिस्टल जेल से अपने मित्र जौहल को एक पत्र लिखा,’10 वर्ष पूर्व की बात है जबकि मेरा परम मित्र भगत सिंह मुझे पीछे छोड़ कर गया और मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं अपनी मौत के बाद उसे जा मिलूंगा क्योंकि वह मेरी इंतजार कर रहा है. वह 23 तारीख थी और मुझे आशा है कि मुझे भी उसी तारीख को फांसी पर लटकाया जाएगा’.
भगत सिंह के चिंतन के साथ-साथ उधम सिंह के चिंतन पर बब्बरअकाली लहर का प्रभाव भी था क्योंकि उसने ‘बाबाओं’ में काम किया था और अमेरिका के प्रवास के समय गदर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से केवल मुलाकात ही नहीं की बल्कि उनकी कार्यप्रणाली से भी प्रभावित हुआ था. इन सभी व्यक्तियों और विचारधाराओं के अतिरिक्त उधम सिंह के चिंतन पर मार्क्सवाद, लेनिनवाद और बोल्शेविकवाद की प्रभाव भी था. जुलाई 1927 में अमृतसर के रामबाग उधम सिंह को आर्मज एक्ट के सेक्शन 20 के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया .उसके पास गदरे गूंज प्रतिबंधित गदर पार्टी का समाचार पत्र भी मिला था जिसे जब्त कर लिया गया. यही कारण है उसे ‘सिक्ख पंजाबी मार्क्सवादी’के नाम से पुकारा गया है. उसकी प्रेरणा के स्त्रोत रूस के बोल्शेविक्स भी थे . बाबा ज्वाला सिंह की पुस्तक ‘गदर’ से भी बहुत अधिक प्रभावित था.
क्रांतिकारी गतिविधियों को चलाने के लिए क्रांतिकारियों को अनेक रूप और अनेक नाम धारण करने पड़ते हैं ताकि उनकी पहचान न की जा सके. भगत सिंह की भांति उधम सिंह ने भी अपनी पहचान छुपाने के लिए समय-समय पर नाम और ड्रेस में परिवर्तन किए. परिणाम स्वरूप सिख धर्म के प्रतीकों का परित्याग करके ‘क्लीन शेव्ड’ हो गए और हेट ,बढ़िया सूट भी उसकी पोशाक का हिस्सा रहे हैं. उसने अनेक नाम रखे– शेर सिंह, उदय सिंह, उधम सिंह कम्बोज,फ्रेंक ब्राजील तथा राम मोहम्मद सिंह आजाद .राम मोहम्मद सिंह आजाद वास्तव में संप्रदायिक सद्भाव ,धर्मनिरपेक्षता ,सहनशीलता और गंगा- जमुनी संस्कृति व पंजाबियत का प्रतीक है .राम हिंदू धर्म से मोहम्मद इस्लाम धर्म से तथा सिंह सिख धर्म से संबंधित हैं. इसी पंजाबियत —दूसरे शब्दों में अपने नाम के साथ तीन धर्मों को जोड़ कर राष्ट्रवाद धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता ,विभिन्न धर्मो में सौहार्दपूर्ण संबंधों को प्रेरित करने का प्रयास किया.उनका यह नाम लघु संकीर्णताओं– धर्म, जाति व क्षेत्र से ऊपर उठकर राष्ट्रवाद तथा धर्मनिरपेक्षवाद को अपनाने की प्रेरणा देता है. वर्तमान संदर्भ में जहां कट्टरवाद के नारे गूंज रहे हैं वहां यह बहुत अधिक प्रासंगिक नाम है.समय की नजाकत है कि लोगों को संकीर्णताओं से मुक्त होकर समाज और राष्ट्र के विकास में योगदान देना चाहिए ताकि लोगों को न्यूनतम सुविधाएं- रोटी, कपड़ा ऱोजगार,मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त हो, भुखमरी से आजादी हो और भारत एक समृद्ध राष्ट्र बन सके जैसा के उधम सिंह जैसे क्रांतिकारियों का स्वपन था.
अमर शहीद उधम सिंह ने अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अनेक देशों की यात्रा की. इन देशों में,अफ्रीका (1920), नैरोबी (1921), अमेरिका( 1922) जर्मनी( 1933) और अंततः इंग्लैंड (1934) मुख्य हैं. साल 1920 में सिंह अफ्रीका जाने में सफल हुए अफ्रीका में उस समय रंगभेद की नीति( गोरे -काले में भेदभाव) व्यापक स्तर पर थी. उसका गहरा असर उधम सिंह के विचारों पर पड़ा. अफ्रीका में अपने प्रवास के समय़ रेलवे वर्कशॉप में नौकरी की तथा अंग्रेजी भाषा में महारत हासिल की .वह एक अच्छा वक्ता और अंग्रेजी भाषा का माहिर हो गया. दक्षिण अफ्रीका में तीन साल के प्रवास में उधम सिंह के चिंतन एवं व्यक्तित्व में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ.
भारत लौटने के पश्चात उसने राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से अमृतसर में मकान किराए पर लिया .अमृतसर में रहते हुए भगत सिंह सहित अन्य क्रांतिकारियों के संपर्क में आया और पंजाब नौजवान सभा के सक्रिय सदस्य के रूप में भूमिका निभाने लगे. उधम सिंह का घर क्रांतिकारी गतिविधियों का अड्डा बन गया. सन् 1924 में उधम सिंह अमेरिका जाने में सफल हुए. उसने अमेरिका के प्रवास के समय गदर पार्टी के क्रांतिकारी नेता लाला हरदयाल संपर्क जोड़ा .
उधम सिंह के संबंध में यह धारणा है कि वह अविवाहित थे .सिकंदर सिंह के अनुसार अमेरिका के प्रवास के दौरान कैलिफोर्निया में उधम सिंह की मुलाकात लियोपे नामक सुन्दर व मोटी आंखों वाली युवती से हुई. उसने लियोपे से विवाह कर लिया उधम सिंह ने एक स्टेटमेंट स्वीकार किया कि उसके दो बेटे थे. वह दोनों क्लेयरमोंट के सैक्रामेंटो स्कूल में पढ़ते थे..उन दोनों बच्चों को स्कूल में भारत के पुत्रों(India’s Sons) के नाम से पुकारा जाता था. सन् 1935 में उधम सिंह की पत्नी स्वर्ग सुधार गई और उसके दोनों पुत्रों को उनकी माताजी के रिश्तेदार एरीजोना (यूएसए) में ले गए.
भगत सिंह के निर्देशानुसार जुलाई 1927 में उधम सिंह 25 क्रांतिकारियों के साथ असलेह सहित भारत आए. 30 अगस्त 1927 को अवैध हथियारों तथा प्रतिबंधित साहित्य- गद्र-ए- गूंज (वॉइस आफ रिवोल्ट) के रखने के लिए उनको पकड़ा गया और शस्त्र अधिनियम सेक्शन 20 के अंतर्गत 4 वर्ष की सजा हुई. इस समय क्रांतिकारी आंदोलन अपने पूर्ण योवन तथा भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को सांडर्स हत्याकांड में सजा-ए-मौत की सजा के कारण फांसी दी गई .भगत सिंह नौजवानों के दिल की धड़कन था और है .भारत में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी .23 अक्टूबर 1935 को जेल से रिहा होने के पश्चात अपने अंतिम उद्देश्य- माइकल ओ डायर को मारने की तैयारी करने लगे .सन 1935 में कश्मीर के रास्ते जर्मनी जाने में सफल हुए .अपने उद्देश्य की सफलता प्राप्त करने के लिए उधम सिंह जर्मनी , फ्रांस ,इटली, ऑस्ट्रिया इत्यादि देशों से होते हुए अंततः 1934 में लंदन जाने में सफल हुए .उसने लंदन में 9- एडलर स्ट्रीट, कमर्शियल रोड -ई -पर मकान किराए पर लिया.,यह ध्यान देने योग्य बात है कि पुलिस को चकमा देने के लिए पासपोर्ट राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से था .
इतिहासकारों का मानना है कि उधम सिंह ने अपने मिशन में अकेले नहीं थे उनके साथ सुभाष चंद्र बोस ,रासबिहारी बोस, क्रांतिकारी अब्दुल्ला सिंधी तथा राजा महेंद्र प्रताप का सहयोग और मार्गदर्शन भी था क्रांतिकारियों का उद्देश्य था कि उधम सिंह माईकल ओ डायर को गोली मारकर यह सिद्ध करें कि द्वितीय विश्व में भारतीय जनता अंगरेजों साथ नहीं है.
आम धारणा यह है उधम सिंह ने जनरल डायर को मौत के घाट उतारकर जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 का बदला लिया गया है. ऐसी धारणा का प्रचार प्रसिद्ध लोकप्रिय फिल्म ‘रंग दे बसंती’ में भी किया गया है .यह ऐतिहासिक तथ्य के विरुद्ध है तथा भ्रामक है. ब्रिगेडियर जनरल डायर का निधन 1927 हो चुका था .उधम सिंह ने माइकल ओ डायर को मौत के घाट उतारा था जो उस समय पंजाब के गवर्नर तथा जलियांवाला नरसंहार के प्रमुख योजनाकार थे . उधम सिंह अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला गया .13 मार्च 1940 को जलियांवाला हत्याकांड (13 मार्च 1919 )के 21 वर्ष के पश्चात उधम सिंह को अपनी योजना को साकार करने का अवसर उस समय प्राप्त हुआ जब लंदन में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन तथा रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी के द्वारा संयुक्त रूप में ,’अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति और मुस्लिम देश’, नामक विषय पर विचार व्यक्त करने के लिए एक सभा का आयोजन किया गया. इस सभा की अध्यक्षता भारतीय मामलों के सचिव लॉर्ड जेटलैंड कर रहे थे .सर माइकल ओ डायर( सन् 1913 – सन् 1919) पंजाब के गवर्नर ने अपने भाषण में भारतीयों को ‘नीच व पिशाच’ कह करके अपमानित किया था. सभा के अध्यक्ष लार्ड जेटलैंड ने भी भारतीयों की आलोचना की. सभागार में उधम सिंह ‘फ्रैंक ब्राजील’ नाम से पुस्तक में पिस्टल छुपा कर गए थे तथा दीवार के साथ खड़े हो गए हुए थे. जैसे ही सभा समाप्त हुई उधम सिंह ने 3 गज की दूरी से माइकल ओ डायर दो गोलियां ठोक दी और उनकी मौके पर मौत हो गई. इसके अतिरिक्त मंच पर आसीन लुईस डेन , लारेंस, चार्ल्स सी.बैल्ले, लॉर्ड जेटलैंड व लॉर्ड लेमिंगटन को भी गोलियां लगी परंतु वे बच गए .लॉर्ड लेमिंगटन का बाया हाथ चकनाचूर हो गया था और औंधे मुंह फर्श पर गिर पड़े . जेटलैंड को अधिक घातक जख्म नहीं हुआ. गोलियों की आवाज से सभागार में भगदड़ मच गई .यद्यपि इस अवसर का लाभ उठाकर उधम सिंह भाग सकते थे .परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया . माता-पिता ने बचपन में उसका नाम शेर सिंह रखा और उसमें अपने आप को पुलिस के समक्ष आत्म समर्पण करके सिद्ध कर दिया कि वास्तव में वे भारत के शेर हैं
माइकल ओ डायर की हत्या की प्रतिक्रिया भारत में मिश्रित थी. महात्मा गांधी ने हरिजन समाचार पत्र में 15 मार्च 1940 में लिखा कि ‘मुझे इस हिंसात्मक घटना का मुझे गहरा दुख हुआ है’ उन्होंने आगे लिखा कि ‘यह पागलपन है’. जब महात्मा गांधी के वक्तव्य की आलोचना हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के द्वारा की गई तो महात्मा गांधी ने हरिजन समाचार पत्र (23 मार्च 1940) के संस्करण में कहा कि ‘दोषी उधम सिंह को बहादुरी के चिंतन का नशा है’. जवाहरलाल नेहरू ने नेशनल हैराल्ड में 15 मार्च 1940 को माइकल ओ डायर की हत्या पर ‘गहरा दुख’ व्यक्त किया .परंतु कालांतर में सन 1962 में दैनिक दैनिक प्रताप में प्रकाशित वक्तव्य के अनुसार जवाहरलाल नेहरू ने कहा ‘मैं शहीद –ए- आजम उधम सिंह को सम्मान पूर्वक नमन करता हूं क्योंकि उनको फांसी के फंदे को चूम लिया ताकि हम आजाद हो’.
उधर दूसरी ओर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अनुसार उधम सिंह’ विश्वासपात्र ‘निकला और उसने निर्धारित योजना के अनुसार ‘मेरे इंकलाबी कदम की सही भूमिका निभाई है’. भारतीय समाचार पत्रों में सर्वप्रथम अमृतसर पत्रिका (कोलकाता), स्टेट्समैन में उधम सिंह के कार्य की प्रशंसा की है. 18 मार्च 1940 के संस्करण में अमृत बाजार पत्रिका ने लिखा “माइकल ओ डायर का नाम पंजाब की उस घटना से जुड़ा हुआ है जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता”. लाहौर से प्रकाशित होने वाले द ट्रिब्यून ने 14 मार्च1940 को दिखा’ उधम सिंह ने वीरता पूर्वक काम किया है’. विदेशों में भारत सरकार के गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार ओ डायर की मौत पर ‘’भारतीयों को महान संतुष्टि’ प्राप्त हुई है तथा उधम सिंह वास्तव में ‘स्वतंत्रता का योद्धाहै’.उधम सिंह ने हत्या करके भारतीयों में उत्साह की भावना की अग्नि को प्रज्वलित किया.
इंग्लैंड सहित मित्र देशों में उधम सिंह की आलोचना हुई. यद्यपि इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाचार पत्र द टाइम्स( लंदन) ने उधम सिंह को ‘स्वतंत्रता का योद्धा’ कहा . धुरी राष्ट्रों -जर्मनी, इटली एवं जापान में उधम सिंह के ‘शौर्य एवं पराक्रम’ की प्रशंसा की गई .जर्मन रेडियो के अनुसार ‘हाथियों की भांति भारतीय अपने शत्रुओं को कभी माफ नहीं करते. वह 20 वर्षों के पश्चात भी बदला ले सकते हैं’ .रोम से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र बर्गेरेट में इस घटना को ‘महान महत्वपूर्ण’ बताया तथा उधम सिंह के कार्य को ‘साहस पूर्ण’ बताकर प्रशंसा की. बर्लीनर बोर्सन जैतूगं ने इस घटना को ‘भारतीय स्वतंत्रता की मिसाल’ के नाम से संबोधित किया है.
इस घटना के पश्चात उधम सिंह पर सेंट्रल क्रिमिनल कोर्ट ओल्डबैले में मुकदमा चलाया गया. जब उधम सिंह के वकील वी.के. कृष्ण मैनन ने कोर्ट में कहा उधम सिंह का कत्ल करने का कोई इरादा नहीं था. वकील को धमकाते हुए उधम सिंह ने कहा :“ मेरा वकील मेरी जान बचाने के लिए झूठ बोल रहा है….. जान बचाने के लिए बहाने बनाना क्रांतिकारियों की परंपरा नहीं है. मैं अपने बलिदान से इंकलाब की ज्योति प्रज्वलित करना चाहता हूं”. उधम सिंह ने आगे कहा :“जलियांवाला बाग हत्याकांड के दिन ही मैंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं इस खून का बदला लेकर रहूंगा. मुझे प्रसन्नता है कि अपने प्राणों की बाजी लगाकर इस घटना के ठीक 2 वर्ष 11 महीने बाद आज मैंने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली”.आज से 83 वर्ष पूर्व 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को पेंटनविले जेल में फांसी दी गई.
उधम सिंह का मुख्य उद्देश्य भारत को मुक्ति दिलाना और हिंदू .मुस्लिम तथा सिख एकता स्थापित करना ,गरीबी, अज्ञानता तथा अशिक्षा को मूलरूप से समाप्त करना है. उधम सिंह ने पेंटोविले जेल से 15 जुलाई 1940 को लिखा उसके सपनों का भावी भारत कैसा हो? उधम सिंह के अनुसार,”हमारा सबका महान कर्तव्य देश की पुण्य भूमि से अंग्रेजों को बाहर निकालना है .तत्पश्चात हिंदू ,मुस्लिम एकता तथा सिख एकता स्थापित करना है ..भूखमरी अज्ञानता , अविद्या बीमारियों को समूल नष्ट करना है … जनता को न्याय मिले किसान और मजदूर को पेट भर भोजन मिले. विद्यार्थियों के लिए अच्छे स्कूल, कॉलेज और बच्चों तथा वृद्धों के लिए सुंदर क्रीड़ा स्थल तथा भव्य उद्यान हो .मेरी प्रबल इच्छा है जो धन भारतीय अभियोगों ,बाहरी ठोगों अथवा विवाहों की शान -ओ- शौकत पर व्यय करते हैं उनकी अपेक्षा उच्च शिक्षा पर खर्च करें .इससे मुझे विश्वास है कि आप लोग इन मूल्यों को आंकने का प्रयत्न करेंगे . मेरा देश उन्नत हो.”
अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उधम सिंह क्रांति को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे .उधम सिंह ने स्वयं अदालती ज्ञान में कहा, ‘मैंने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के नीचे लोगों को तड़प -तड़प कर मरते देखा है .मैंने जो कुछ भी किया विरोध के तौर पर किया है ऐसा मेरा धर्म था, कर्तव्य था .विशेषकर मेरे प्यारे देश के लिए मुझे इस बात की तनिक भी चिंता तथा परवाह नहीं है इस संबंध में मुझे कितना दंड़ मिलेगा 10, 20 अथवा 60 वर्ष का कारावास या फिर फांसी का तख्ता .मैं किसी भी निर्दोष व्यक्ति को मारना नहीं चाहता था. केवल विरोध करना चाहता था’ .उसने 30 मार्च 1940 को अपने मित्र सिंह को लिखा,’ मुझे मौत का डर नहीं है मुझे हर हाल में भरना है और उसके लिए मैं हर समय तैयार हूं .मौत से नहीं डरता. मैं शीघ्र मौत से शादी करने वाला हूं .मुझे जरा भी अफसोस नहीं है’.
यद्यपि अमर शहीद उधमसिंह व अन्य क्रांतिकारियों का मुख्य उद्देश्य केवल मात्र राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना नहीं था अपितु ऐसा भारत का निर्माण करना था जिसमें भूख ,गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अज्ञानता ,आर्थिक शोषण, आर्थिक और सामाजिक विषमता इत्यादि न हो .परंतु आज भी भारत में गरीबी महंगाई, बेरोजगारी, अज्ञानता ,अशिक्षा ,आर्थिक शोषण, आर्थिक और सामाजिक विषमता,राजनीतिक अपराधीकरण ,संप्रदायवाद, जातीय भेदभाव, दलित शोषित व आदिवासियों की दयानीव स्थिति, महिलाओं पर बढ़ते हुए निरंतर अत्याचार, पुलिस ,अपराधियों, राजनेता और नौकरशाही का बढ़ता हुआ गठबंधन, राजनीतिक भ्रष्टाचार बहुराष्ट्रीय कंपनियों का राजनीतिक व्यवस्था पर हावी होना और सरकारी बैंकों का मुंडन संस्कार करना यह सभी बातें क्रांतिकारी के चिंतन के विरुद्ध हैं. यही कारण है कि आज भी शहीद-ए- यही कारण है कि आज भी शहीद-ए-आजम उधम सिंह का चिंतन प्रासंगिक है. आजम उधम सिंह का चिंतन प्रासंगिक है.