(समाज वीकली)
यह घटना अब महाराष्ट में एक लोक कथा का रूप ले चुकी है, जो जोतीराव फुले के जीवन पर किये जाने वाले नाटकों, उन पर बनने वाली फिल्मों आदि में अपना एक अलग ही स्थान रखती है।
उन दिनों स्कूलों में ज्यादातर ब्राह्मण छात्र ही हुआ करते थे। जोतिराव फुले के भी छात्र जीवन में कई ब्राह्मण मित्र थे। उनके एक ब्राह्मण मित्र, सखाराम ने उन्हें अपने भाई, शंभू की शादी में आमंत्रित किया।
जोतीराव फुले बड़ी ख़ुशी से पूरी तैयारी के साथ उस शादी में शामिल हुए।
लेकिन एक ब्राह्मण लड़के की शादी में – जहां ज़्यादातर मेहमान ब्राह्मण ही थे, एक शूद्र -माली जाती के लड़के का शामिल होना और वो भी बारात में उनसे आगे चलना, भारी विवाद का कारण बन गया।
एक तो अंग्रेज़ों द्वारा इन शूद्र जातियों को पढ़ने का मौका मिलने लगा था। दूसरा, वो जोतीराव के पिता गोविंदराव को भड़काने के बाद भी, उन्हें शिक्षा हासिल करने से नहीं रोक पाए थे। इस सबसे तिलमिलाए हुए ब्राह्मणों ने जोतीराव के बारात में शामिल होने और उनसे आगे चलने को लेकर, बखेड़ा खड़ा कर दिया।
उन्होंने जोतिराव फुले को उनकी शूद्र माली-सैनी जाती, जो कि ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार नीच मानी जाती थी – के कारण जमकर अपमानित किया। उनके ब्राह्मण मित्र, सखाराम को भी धमकाया कि इसे बारात से निकालों – नहीं तो हम सब तुम्हारी इस शादी का बहिष्कार करेंगे और इसे छोड़ कर चले जाएंगे।
आखिरकार भरे मन से जोतीराव फुले उस बारात से चले गए।
कहते हैं कि ब्राह्मणों द्वारा किये गए इस भारी अपमान से जोतीराव इतने दुखी हुए कि उन्होंने आत्महत्या करने की सोची और पूना के नज़दीक ही बहने वाली एक नदी, मुला – मुठा पर जा पहुँचे।
वो नदी के किनारे बैठकर आत्महत्या करने की सोच ही रहे थे कि उनकी निगाह, वहां अछूत – महार, मांग और चमार जाती के लोगों पर पड़ी, जो गले में मटका और कमर में झाड़ू बांध रहे थे। पेशवा ब्राह्मणों ने पूना के क्षेत्र में मनु-स्मृति के घिनौने कानून लागू कर रखे थे, जो अंग्रेजों के आने के बाद भी जारी थे।
हमेशा बातों पर गहराई से सोच-विचार करने वाले जोतीराव, उनकी तरफ देख कर सोचने लगे कि मुझे तो ब्राह्मणों ने शूद्र जाती में जन्म लेने के कारण, बारात से अपमानित करके निकाला है। लेकिन यह लोग तो अपने मुंह में मटका और कमर में झाड़ू बांध रहे हैं। मुझे बारात से निकाले जाने का इतना दुःख हुआ है कि मैं आत्महत्या करने की सोच रहा हूँ, लेकिन इन लोगों को अपने साथ हो रहे इस भारी अपमान की खबर भी नहीं है। यह तो इसे ईश्वर की मर्जी समझ कर चुप-चाप किए जा रहे हैं।
यहीं से उनके मन में यह सवाल उठा कि आखिर ऐसा क्यों हैं ?
उन्हें इसका कारण समझ में आया, जिसे आगे चलकर उन्होंने अपनी एक कवितां में भी बयान किया, जो आज महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि पूरे भारत और दुनिया में बसे बहुजन समाज द्वारा किए जाने हर कार्यक्रम में प्रदर्शित की जाती है।
विद्या बिना मति गई, मति बिना गति गई,
गति बिना नीति गई, नीति बिना वित्त गया
वित्त बिना शूद्र चरमराये,
इतना सारा अनर्थ एक अविद्या से हुआ
अगर OBC, SC, जातियां हज़ारों सालों से ब्राह्मणों-क्षत्रियों-बनियों की ग़ुलाम हैं, तो इसका कारण इन्हें शिक्षा से वंचित रखना है। यह अज्ञानता ही है, जिसने इन्हें अपनी इस गरीबी, ग़ुलामी को स्वीकार करना सीखा दिया है।
अगर इन्हें भी ब्राह्मणों और दूसरी सवर्ण जातियों के बराबर एक सम्मानजनक जीवन जीना है, तो फिर इनमें ज्ञान का प्रसार करना होगा, जो इन्हें शिक्षित करके ही किया जा सकता है।
जोतीराव फुले ने आत्महत्या करने का विचार त्यागा, मुला-मुठा नदी के किनारे से उठे और शूद्र-अतिशूद्र जातियों में शिक्षा का प्रसार करने का ऐसा प्रण लिया, जिसने आगे चलकर पूरे भारत में ब्राह्मणवाद की जड़े हिला दीं।