विज्ञान सम्मेलन में विज्ञान कितना है?
मेरे जीवन का हालाँकि यह ऐतिहासिक क्षण है जब मैं 106 वीं अखिल भारतीय विज्ञानं कांग्रेस का चश्मदीद गवाह बना हूँ, जहां एकसाथ अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त तीन नोबेल विजेता मशहूर वैज्ञानिकों: प्रोफेसर थॉमस सुडॉफ, प्रोफेसर अवराम हर्षको, और प्रोफेसर डंकन हलदाने को देखने और सुनने का अवसर प्राप्त हुआ. अब से ठीक दो महीने पहले हमारे चांसलर श्री अशोक मित्तल ने जब इस विज्ञानं कांग्रेस के आयोजन के बारे में हमसबों को बताया था, तभी से हम सब बहुत उत्साहित थे की,अबकी विज्ञानं के बारे में मेरी आधी-अधूरी समझ को विकसित करने में मदद मिलेगी. जाहिर है, हमें उम्मीद थी की देशभर के जाने-माने मशहूर वैज्ञानिक इसमें शिरकत करेंगे. बहरहाल, वैज्ञानिक के नाम पर उस्मानिया यूनिवर्सिटी, एसआरएम यूनिवर्सिटी, शिवाजी कॉलेज वगैरह से कुछेक लोगों को उठा लिया गया.
सबसे ज्यादा दुःख हमें तब हुआ जब प्रधानमंत्री श्री मोदी के उद्घाटन भाषण से ठीक पहले उद्घोषक ने घोषणा किया की विज्ञानं कांग्रेस की शुरूआत “हनुमान चालीसा” के पाठ से शुरू होगा… और आज जब भौतिक विज्ञानं पर चर्चा करने के लिए धनबाद आईआईटी के डॉ.रॉय ने अपने सम्बोधन की शुरूआत “ॐ भूर्भुवा स्वः” से किया तो मेरा दम घूंटने लगा और बीच में ही उठकर मैं खुली हवा में सांस लेने बाहर आ गया. भई, “विज्ञान सिर्फ विज्ञान है…” और इसे ‘आरएसएस’ के ‘इतिहास पुनर्लेखन’ की तरह विज्ञानं का भी पुनर्लेखन नहीं किया जा सकता.
आपको बताते चले की, इस कांग्रेस के सफ्ताहभर के आयोजन पर तकरीबन 17 करोड़ रूपये खर्च का अनुमान है और इसके अलावा इस आयोजन की तैयारी में दस हजार लोग शारीरिकरूप से दिन-रात जुटे हुए है. फिर इस विज्ञान कांग्रेस का मजाक तो उड़ाया नहीं जा सकता. हमारा स्पष्ट मत है कि, भौतिक पदार्थों से बने इस संसार में प्रमाणित/साबित हो चुके ज्ञान ही विज्ञानं है. समय आ गया है: अब विज्ञान को “जनांदोलन का रूप अख्तियार” करना होगा तमाम तरह के सड़ी-गली दकियानूसी-रूढ़िवादिता, पाखंड, अंधविश्वास, कुरीतियों, कुप्रथाओं और सड़ांध धार्मिक मान्यताओं, और अन्य अवैज्ञानिक विचारधाराओं से लड़ने के लिए…
अखिल भारतीय विज्ञान कांग्रेस को प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कम से कम चार बार उद्घाटन किया है. हर बार वही राग-अलाप होता है: विश्वगुरू, विश्व-महाशक्ति, डिजिटल इंडिया, सर्वश्रेष्ठ भारत आधुनिक भारत… अबकी तो उन्हौने नया नारा भी दिया: “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, और जय अनुसंधान”. अलबत्ता, उन्हौने ये नहीं बताया की शोध / अनुसंधान पर उनकी सरकार ने 02 प्रतिशत से भी कम बजट क्यों रखा है? केंद्रीय विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षबर्धन महोदय ने अपने सम्बोधन का सत्तर फीसदी हिस्सा प्रधानमंत्री श्री मोदी के स्तुतिगान करने में ही गुजार दिए. इनके पास इन सवालों का कोई जबाब नहीं की जिस आधुनिक व प्रगतिशील भारत राष्ट्र का निर्माण करने के लिए वैज्ञानिक सोच, वैज्ञानिक चिंतन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक चेतना के प्रसार के लिए मुकम्मल तौर पे वैज्ञानिक शिक्षा प्रणाली / पद्धति की आवश्यकता है, आरएसएस की मोदी सरकार खुद शिक्षा को अभिजात्यवर्ग कुलीनवर्ग / सुविधाभोगी / अमीरवर्ग तक सीमित रखने और कथित राम-मंदिर आंदोलन के जरिये आवाम की प्रतिभा / चेतना को कुंद करने का षड्यंत्र रच रही है.
A.C.Prabhakar
[AKHILESH CHANDRA PRABHAKAR, M.Phil., PhD from JNU, New Delhi]
Associate Professor in Development Economics
Mittal School of Business
Lovely Professional University (India)
Director, Third World Social Networks (TWSN)
Associate Editor, International Journal of Asian Social science
Ex Professorship: UUM (Malaysia), HUFS (S. Korea), UPES (India), AAU, UoG, DBU, DTU (Ethiopia)
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