सामाजिक न्याय सप्ताह: मैला ढोने की प्रथा पर गुजराती नाटक उर्फे आलो का आयोजन

 गांधीनगर: गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय गांधीनगर में बिरसा आम्बेडकर फुले छात्र संगठन (BAPSA-CUG) के द्वारा विश्वविद्यालय में “सामाजिक न्याय सप्ताह” का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें आज कार्यक्रम के दुसरे दिन 10 अप्रैल को व्हिसल ब्लोवर थियेटर ग्रुप द्वारा “उर्फ़े आलो” नाटक का आयोजन किया गया जो मुख्य रूप से सफाई कामगारों के दयनीय जीवन पर आधारित हैं. यह प्रोग्राम मैनुअल स्कैवेंजिंग को लेकर था  जिसमें बताया गया है कि इस ‘मैला प्रथा’ से कितना नुकसान है और यह कितना अमानवीय है. इसमें कई पीढ़ियां गुजर जाती है और इसमें इंसान अपनी जान की कीमत चुका कर भी इस कुप्रथा से बाहर नहीं निकल पाता है . लेकिन साथ में डॉक्टर अंबेडकर की विचारधारा से प्रभावित होकर एक युवा बाहर निकलने का भी प्रयास करता है.

यह उसके भी संघर्ष की कहानी है साथ में यह भी दिखाया गया है की कितना मुश्किल है इससे बाहर निकल पाना इस परफॉर्मेंस में एक डायलॉग है “सरहद पर मरने से खतरनाक होता है गटर में मर जाना”. मूलतः यह नाटक गुजराती में था जिस में कहीं-कहीं हिंदी में भी डायलॉग थे और पूरा सेमिनार हाल भरा हुआ था. इस ग्रुप के सभी कलाकारो ने अपना किरदार बखूबी निभाया. लगभग 45 मिनट तक चलने वाले इस नाटक के कलाकारो ने बेहतरीन अभिनय के माध्यम से दर्शकों को  बांधे हुए रखा था. इसके लिए BAPSA-CUG, व्हिसल ब्लोवर थिएटर ग्रुप का आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम के अन्त में BAPSA-CUG के अध्यक्ष हवलदार भारती ने इस थिएटर ग्रुप को एक मोमेंटो देकर  सम्मानित किया.

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