अचानक यह दुखद समाचार मिला। उनका चले जाना अम्बेडकर मिशन तथा बौद्ध समाज को बहुत बड़ी क्षति है। ऐसे लोगों के चले जाने से जो खालीपन पैदा हो जाता है, उस को पूरा करने में मुद्दतें लग जाती है। मैं उनकों तीस साल से जानता हूँ। वह जीवनकाल मिशन के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित रहे।
कितनी अजीब बात है कि आज जो सम्यक प्रकाशन का इतना बड़ा अदारा खड़ा किया है, उस की रूपरेखा उनहोंने हमसे बहुत पहले से ही ब्यान कर दी थी। शायद यह 1993 -1994 की बात है। उन्होंने ने मेरे अम्बेडकरी साथी चानन चाहल इंग्लैंड(मरहूम) ओर मुझे मुलाकात और विचार चर्चा के लिए घर चाय पर बुलाया था। तब उन्होंने ने पेन्टिंग का काम बंद करने का मन बना लिया था और प्रकाशन का काम बड़े पैमाने पर करने की रूपरेखा हमारे साथ सांझा की थी और पास ही बैठे प्रोफेसर साहब से मुलाकात करवाई थी जो प्रकाशन के लिए लिखने वाले थे। चाय के बाद उन्होंने ने अपनी सभी पेन्टिंग दिखाई, जिसमें बुद्ध धम्म पर एक पेन्टिंग की सीरीज थी, जो बाद में उनहोंने ,बाबा साहेब द्वारा लिखित ” बुद्ध और उनका धम्म ” में छाया की थी और एक एक पेन्टिंग पर अपने विचार व्यक्त किये थे।
सच बात तो यह है कि तब हमें लगता नहीं था कि वो इतना बड़ा काम कर पाएंगे पर उन्होंने ने वह करिश्मा कर दिखाया। आज सम्यक प्रकाशन हमारे सामने है जो देश में सबसे बड़ा प्रकाशन बन कर चन्द सालों से हमारे सामने है। यह उनकी लगन, लयाकत और दृढ़ संकल्प का नतीजा है। उम्मीद करता हूँ कि बच्चे अपने पापा की विरासत को आगे ले कर जाएँगे जैसे उन्होंने ने अपने पूर्वजों की धरोहर को आगे बढ़ाया था । आज जब मैं यह लिख रहा हूँ तो मन में एक अफ़सोस हो रहा है कि उनके साथ मेरा कोई फोटो उपलब्ध नहीं है। मैंने कभी फोटो खिचवाने में ज्यादा उत्सुकता भी नहीं दिखाई लेकिन आज यह बात खटक रही है।
उनके इस संसार से विदा हो जाने के बाद भी जमाना उनकों सदियों तक याद रखेंगा। जैसे महान शायर इकबाल साहेब ने लिखा है—
हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।