– विद्या भूषण रावत
(समाज वीकली)- उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों में भी अब बुद्ध धम्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है. बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा १९५६ में नागपुर में ऐतिहासिक दीक्षा का सबसे ज्यादा प्रभाव महाराष्ट्र में म्हारो और उसके बाहर उत्तर प्रदेश में जाटवो में दिखाई दिया और बुध धम्म उनके जीवन का हिस्सा बन गया. लोगो ने ब्राह्मणवादी परम्पराओं को छोड़ कर नयी परम्पराओं की नीव डाली. परिवार के सदस्यों के मरणोपरांत म्रत्युभोज देना लोगो ने बंद कर दिया. शादी विवाह में भी पुरोहितो को पूछकर विवाह और अन्य सामाजिक संस्कारों को लोगो ने अपने तरीके से करना शुरू कर दिया. विवाह पद्धति बिलकुल बुद्धिस्ट तरीको से होने लगी और फ़िज़ूल खर्ची बंद हो गयी. महाराष्ट्र ने एक बहुत बड़ा सांस्क्रतिक परिवर्तन देखा जिसमे बुद्ध के मार्ग का बहुत बड़ा हाथ है. बाबा साहेब की धम्म क्रांति ने महाराष्ट्र में उनके अनुयायियो को शिक्षा, व्यापार, संस्कृति, कला, साहित्य आदि में सबसे आगे पहुचा दिया.
१९९० में बसपा के उदय के बाद और फिर १९९२ में उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश में आंबेडकरवाद गाँव गावं तक पहुंच गया. ऐसा नहीं था के अम्बेडकरवाद यहाँ पहले से नहीं था लेकिन बसपा के आन्दोलन के बाद यह सरकारी कर्मचारियों तक सीमित नहीं रहा अपितु खेत खलिहानों तक पहुंच गया. अब शादियों, विवाहों, मुहूर्तो में बाबा साहेब, ज्योति बा फुले, सावित्री माई, रमाई, छत्रपति शाहूजी महाराज की तस्वीरे पंडालो में दिखने लगी. अब शादी विवाहों के मुहूर्त बदल गए और एक नए लगन ने जन्म लिया जिसे आंबेडकर लगन कहते है. याहा भी मृत्युंभोज कम हो गए और ऐसे सभी काम ‘मिशन’ के कार्यकर्ता या बुद्धिस्ट धम्म गुरु या बामसेफ के मिशन से जुड़े लोग करने लगे. ,लेकिन ये सब मात्र चमार समाज में ज्यादा चला क्योंकि दूसरी जातिया अभी भी वर्णवादी व्यवस्था के झमेले में फंसी पडी है. उनमे बाबा साहेब का नाम लेने का प्रचलन तो शुरू हुआ लेकिन उनकी सांस्कृतिक विरासत को वह अभी भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है क्योंकि परम्पराओं को तोड़ना आसान नहीं है और उसके विरुद्ध लम्बी लड़ाई और जनमत तैयार करना पड़ता है. फिलहाल इन जातियों के नेता अभी वुद्धिस्म की विरासत को राजनैतिक रूप से लाभदायक नहीं मानते क्योंकि उसके लिए मेहनत करनी पड़ती है और आज के ‘फास्टफूड’ के दौर में किसी के पास समुदायों में जाकर लग कर काम करने की फुर्सत नहीं.
अब भा जा पा के शाशन काल में जहा वर्णवादी ताकते बहुत जबर्स्दस्त तरीके से बहुजनो की सांस्कृतिक विरासत को हथियाने में लगी है और अपने हितो के अनुसार उनका नैरेटिव बनाने में लगी है और इस कार्य में उन्हें उनकी पार्टियों में मौजूद दलित पिछड़े नेता ही मदद करते है. अभी उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या ने कुशीनगर आगमन के दौरान ये कह दिया के राम के पुत्र कुश के नाम पर ही कुशीनगर का नाम पडा. ये बेहद शर्मनाक है और यहाँ मौजूद सभी लोगो में इस बात से काफी रोष है. स्वयं मौर्या और कुशवाहा समुदायों के लोग अब इसके खिलाफ है क्योंकि यह समुदाय अब सम्राट अशोक और चन्द्रगुप्त मौर्या से अपनी विरासत को जोड़ के देखता है. पूर्वांचल में ये समुदाय अब बुद्ध की तरफ रुख कर रहा है और दलितों की भांति ही बाबा साहेब आंबेडकर और बहुजन समाज के अन्य महापुरुषों की विचारधारा को अपना रहा है.
आज देवरिया जनपद के मल्वाबर बन रही गाँव में कुशवाहा समुदाय के युवाओं ने मिलकर एक बुद्ध विहार का निर्माण करवाया है और विहार के समीप ही अशोक स्तम्भ भी बनवाया है. महत्वपूर्ण बात यह है के अशोक स्तम्भ के बनवाने में गाँव के मुशहर समुदाय ने भी अपना योगदान दिया है. समुदाय ने आज गाँव के लोगो की बड़ी भागीदारी के बीच कुशीनगर के बौद्ध धम्म गुरु भंते डॉ नन्द रतन थेरो ने बौध परम्पराओं के अनुसार तथागत बुद्ध की प्रतिमा का लोकार्पण किया और वहा मौजूद लोगो को त्रिशरण और पंचशील ग्रहण करवाया. इस क्षेत्र के लिए इस बुद्ध विहार का बहुत बड़ा मतलब है क्योंकि यही पर हर वर्ष शहीद मेला भी आयोजित होता है. उन्होंने मंदिर से जुड़े हुए अशोक स्तम्भ का भी अनावरण हिया.
बाद में एक जन सभा में वक्ताओं ने लोगो से धम्म के मार्ग पर चलने की अपील की. श्री रविन्द्र कुशवाहा जी ने कहा के धम्म का मार्ग किसी के विरुद्ध नहीं है और ये भारत की पहचान है. विश्व में भारत की पहचान तथागत बुद्ध से होती है. श्री डी पी बौध ने लोगो को त्रिशरण और पंचशील का मतलब समझाया. सामजिक कार्यकर्ता श्री हरिकेश कुशवाहा ने बताया के स्थानीय युवा इस बात से बेहद खुश है के यहाँ बुद्ध विहार बना है. इसकी प्रेरणा हमें प्रेरणा केंद्र से मिली क्योंकि भगवान् बुद्ध, बाबा साहेब, ज्योति बा फुले और सावित्री माई फुले और अन्य महापुरुषो के बारे इस क्षेत्र में अलख जगाने का कार्य प्रेरणा केंद्र के जरिये ही हुआ . सभा को संबोधित करते हुए प्रेरणा केंद्र के संस्थापक श्री विद्या भूषण रावत ने कहा के उन्हें इस क्षेत्र में पहला बुध विहार देख अतीव प्रसन्नता हो रही है और ये एक ऐतिहासिक क्षण है क्योंकि आज देश को युध्ह की नहीं बुद्ध की जरुरत है और समाज के विकास के लिए बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा सुझाया गया धम्म का मार्ग सबसे जरुरी है. उन्होंने कहा के बहुजन समाज की ऐतिहासिक धरोहरों को उनसे छुपाया गया है और आज हमें जरुरत है के इन्हें दोबारा से क्लेम किया जाए. उन्होंने कहा के धम्म का मार्ग हमारा मूल रास्ता है और ये हमारी पीढियों को नयी राह दिखाएगा जो लोग अंध विश्वास, जड़ता, जातिवाद और कूपमंडूकता के दल दल में फंसे हुए है. जब बुद्ध के दर्शन की और पूरी दुनिया देख रही है तो भारत जैसे देश में जहा से बुद्ध आये, उन्हें कैसे भूल सकता है. आज बुद्धा का सम्यक दर्शन ही भारत को एक मजबूत राष्ट्र बना सकता है जहा एकता, बराबरी और भाईचारा हो.
प्रेरणा केंद्र की संयोजक सुश्री संगीता कुशवाहा भी मानती है के यह एक बेहद ऐतिहासिक घटना है क्योंकि अभी तक पिछड़ी जातियों के समक्ष संस्कृति का संकट था. दलितों ने बुद्ध धर्म अपनाया और उनमे बदलाव आया. अब पिछड़ी जातियों को भी ये कार्य करने की जरुरत है. उनका ये भी कहना है के इन सभी कार्यक्रमों में अभी भी महिलाओं की भागीदारी बेहद कम और मात्र श्रोताओं के रूप में ही है और इसलिए अब आवश्यकता है के महिलाओं की भागीदारी को बढाया जाए ताकि महिलाए उसमे जोर शोर से हिस्सा ले और धम्म का मार्ग आगे बढे.
डाक्टर नन्द रतन थेरो ने इसी दौरान मल्वाबर गाँव स्थित प्रेरणा केंद्र का भ्रमण भी किया और यहाँ शंकर नारायण पुस्तकालय में पुस्तकों को देखा और केंद्र की गतिविधियों के विषय में बातचीत भी की. उन्होंने इस बात पर ख़ुशी जाहिर की के इस केंद्र के जरिये समाज के सबसे हासिये के लोगो तक पहुंचा जा रहा है और यहाँ बहुजन समाज के महापुरुषों की पुस्तके पुस्तकालय में रखी गयी है ताकि लोगो का ज्ञान वर्धन हो.
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