(समाज वीकली)
सचेतनता आज के समय में पैसे के पीछे चल रही तेज रफ़्तार की दौड़ में कही खो सी गई है |बल्कि यह मानवीय जीवन की बहुत ही पुरानी कुदरती कला है |सचेतनता से भाव जो भी काम कर रहे हैं उस समय उस जगह पर जागरूक रहने से है,जिस में मन का ख़्याल,भावनायों,कोमलता,शरीर की सनसनी का जागरूक रहना शामिल है |
सचेतनता का सीधा सम्बन्ध ध्यान के साथ है |ध्यान को किसी जगह,धातू और किसी काम पर पूरी चेतनता के साथ एकाग्र करना | सचेतनता को समजने के लिये दूर जाने की ज़रूरत नहीं हम अपने साँस से ही सचेत होने का एहसास कर सकते है |साँस लेते समय अपने शरीर को एहसास करना सचेतनता का ही एक हिस्सा है |जब हम सचेतनता के साथ साँस लेते हैं तब हमें एहसास होता है कि साँस ईश्वर का दिया हुआ कितना कीमती तोहफ़ा है |यह भी एक तरह की समाधि ही है | सचेतनता को हम दैनिक काम करते हुए आज़मा सकते है |
जैसे घर में सफ़ाई, धुलाई,खाना पकाने,रोटी खाते और नहाते समय |घर में किसी भी चीज़ को साफ़ करते समय पूरी सचेतनता के साथ उसे साफ़ करना और साफ़ करने वाले उत्पाद जैसे साबुन,सर्फ़,पानी को हाथों के साथ एहसास करना |सफ़ाई के बाद संतुष्टी से की गई सफ़ाई को देखना और उस की सफ़ाई को देख कर खुश होना |इसी तरह खाना बनाते और खाते समय सब्ज़ी या फल की बनावट,ख़ुश्बू,रंग को देखना और एहसास करना ,जिस के साथ नाकि सिर्फ़ खाना जल्दी पचेगा बल्कि शरीर को विटामिनस, मिनरल्स,प्रोटीइंस मिलने में भी सहायता मिलती है |
यह सब बातें बहुत छोटी लगतीं होंगी लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिस के साथ दिमाग़ी चिंताएं,बेचैनी,नाकरातमक सोच दूर करने में सहायता मिलती है | हमारे मन में एक समय एक विचार ही आ सकता है, जब हमारा ध्यान काम की तरफ होगा , नाकरातमक सोच या फिक्र वाले विचार अपने आप चले जाएंगे |
घर से निकलते हुए सचेतनता को आज़मा सकते हैं, जैसे दफ़्तर,स्कूल जाते समय इस के इलावा नज़दीकी राशन की दुकान पर जाते समय भी, एक जगाह रुक अपने नज़दीक के कुदरती नज़ारों को देखना, फूलो की ख़ुश्बू को लेना और पक्षियों के चहकने की आवाज़ को सचेतनता के साथ सुनना कुदरती नज़ारों को निहारना,इसके साथ ज़िंदगी की ख़ूबसूरती और अहमीयत का एहसास होता है और मन में शुक्राने का भाव आता है| मन को शान्ति मिलती है और ज़िंदगी की शिकायतें दूर होती हैं |बहुत बार इस तरह होता है कुदरत के बहुत सुंदर नज़ारों को देखे बिना ही हम के पास के गुज़र जाते हैं |
आज के समय में किसी के पास इतना भी समय नहीं हैं कि एक जगह खड़े हो कर कुदरत का एहसास कर सकें |मानव सारा जीवन सचेतनता के बिना ही काटता है | सचेतनता ना होने के कारण ही दिमाग़ी तनाव, शरीर की ताकत का कम होना,बलड प्रेशर का कम होना,हार्ट अटैक और नींद कम हो जाना आदि बीमारियाँ बढ़ गई हैं |एक खोज के मुताबिक सचेतनता हमे सिखाती है कि किस तरह पूरी जागरूकता के साथ बेचैनी और दिमाग़ी तनाव को दूर करना है |
पर याद रहे किसी भी चीज़ की अधिकता बुरी होती है| हमे सचेतनता के सकारात्मक पहलू को लाना है,ताकि ज़िंदगी का आनंद ले सकें और हमारे काम सही ढंग के साथ हो सके |कहीं यह न हो कि हम अपनी इंदरिओ को शांत न होने दे |जैसे अगर घड़ी की टिक टिक, पंखा चलने की आवाज़ या ओर कोई छोटी -मोटी आवाज़ के प्रति अधिक ध्यान लगाएंगे तब आराम करने और सोने में परेशानी आ सकती है |हालाँकि इस में सचेतनता का कसूर नहीं |उसको गलत ढंग के साथ लागू करने में है |आराम करते समय शरीर और मन को शांत ही रखना चाहिए |
WHO के मुताबिक पूरी दुनिया में हर उम्र के 264 मिलियन लोग दिमाग़ी तनाव का शिकार हैं, जिन में औरतों का संख्या मर्दों के मुकाबले अधिक है |आत्म हत्या दिमाग़ी तनाव का ही परिणाम है |हर साल 8,00,000, के लगभग लोग आत्म हत्या करते हैं
पर सचेतनता के साथ जीना कैसे है इसके कुछ नियम इस प्रकार हैं:-
1 सचेतनता के साथ सुनना -अपने नज़दीकी आवाज़ों की ऊँची पिच्च,आविरती को सचेतनता के साथ सुनना |एक या एक से अधिक आवाजे भी हो सकतीं हैं |
2 सचेतनता के साथ ख़ुश्बू लेना – अपने आस पास की ख़ुश्बू के लिए सचेत रहना |
3 सचेतनता के साथ छूना – अपने हाथ की उंगलियाँ को स्पर्ष करके एहसास करना |
4 सचेतनता के साथ देखना – अपने नज़दीक की चीजों को सचेतनता के साथ देखना |जिस में बनावट,रंग,मोटाई,तीखापन आदि को ध्यान के साथ देखना आता है|
5 सचेतनता के साथ खाना – खाना खाते समय खाने की बनावट और स्वाद को चखना
अंत में कुछ स्तरों के साथ अपने मन की बात कहना चाहूँगी:
“ज़िंदगी है अनमोल, न खोना इस को,
यह है ईश्वर की रहमत, न आज़माना इस को,
जियो सचेतनता के साथ, न हराना इस को ”
Asst. प्रो. रिंकल,
टांडा उरमुड़, पंजाब