जन नायक ताऊ देवीलाल: तेजा खेड़ा से भारत की राजधानी दिल्ली तक का सफरनामा

जन्मदिन पर विशेष लेख –जन नायक ताऊ देवीलाल 25 सितंबर

 

डॉ. रामजीलाल, प्राचार्य (सेवा निर्वित), दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा)
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(समाज वीकली)- जननायक ताऊ देवीलाल (बचपन का नाम देवीदयाल – जन्म 25 सितंबर 1914 – 6 अप्रैल 2001) नाम समस्त भारत में ग्रामीण जनता अत्यधिक सम्मान एवं आदर लेती है . देवीलाल का जन्म 25 सितंबर 1914 को सिरसा जिले के एक गांव तेजाखेडा में हुआ. इनके पिता जी का नाम चौधरी लेखराम तथा माता जी का नाम श्रीमती सुगना देवी था .सन् 1925 में इनकी माता जी का देहांत हो गया .उस समय देवीलाल की आयु केवल 10 वर्ष थी और वह हमेशा के लिए माता के प्यार और दुलार से वंचित हो गए.

देवीलाल की प्रारंभिक शिक्षा राजकीय प्राथमिक स्कूल चौटाला में हुई तथा पांचवी से आठवीं तक राजकीय स्कूल डबवाली में शिक्षा प्राप्त की .इसके पश्चात उन्होंने फिरोजपुर एवं मोगा में शिक्षा ग्रहण की. देवीलाल को फारसी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषाओं का व्यावहारिक ज्ञान था. स्कूल के विद्यार्थी जीवन में देवीलाल तीन समाचार पत्रों- वंदे मातरम, मिलाप एवं प्रताप से बहुत अधिक प्रभावित थे. -पंजाब में स्वतंत्रता आंदोलन में दो विचारधाराओं – गांधीवादी विचारधारा एवं क्रांतिकारी विचारधारा का प्रभाव था. देवीलाल पर गांधीवादी विचारधारा अधिक प्रभाव था.

गांधीवादी चिंतन के अतिरिक्त देवीलाल के चिंतन पर लाला लाजपत राय, अमर शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु एंव सुखदेव के विचारों, त्याग एवं शहादत का भी बहुत अधिक प्रभाव था. जिसके परिणाम स्वरूप वे क्रांतिकारी विचारों की ओर अग्रसर होने लगे. सीमांत किसानों तथा कृषक श्रमिकों की आर्थिक स्थिति,गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, अज्ञानता, अनपढ़ता इत्यादि का देवीलाल के चिंतन पर अभूतपूर्व प्रभाव पडा. इन सभी प्रभावों के परिणाम स्वरूप देवीलाल आत्मा, हृदय और मस्तिष्क से किसान तथा मजदूर के कल्याण के सम्बध में प्रेरित हुए और किसान और मजदूर वर्ग के मसीहा के रूप में प्रसिद्ध हुए. उन्होंने भारतीय राजनीति में ‘कमेरा वर्ग बनाम लुटेरा वर्ग’’ मुहावरा जोड़ा. यह मुहावरा देवीलाल के आर्थिक चिंतन को प्रकट करता है.

देवीलाल महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा एवं शांति के विचार दर्शन से प्रभावित होकर 15 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े. दिसंबर 1929 को देवीलाल ने लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया. इसके पश्चात सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और 8 अक्टूबर 1930 को गिरफ्तार कर लिए गए. वह लगभग 10 महीने जेल में रहे .परिणाम स्वरूप उनके मन से जेल का भय हमेशा के लिए समाप्त हो गया. राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए देवीलाल के लिए जेल जाना एक तीर्थ यात्रा के समान था. सन् 1930 – सन् 1947 के अंतराल में देवीलाल सात बार स्वतंत्रता आंदोलन में जेल में गए.

15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ उस समय भारत के सम्मुख मुख्य समस्या पश्चिमी पाकिस्तान से पंजाब में आए हुए शरणार्थियों की थी. देवीलाल ने इन के कैंपों में जाकर उनकी सेवा की. यही कारण है कि वे पंजाबी और सिख समुदायों में भी जीवन पर्यंत लोकप्रिय रहे. भारत के विभाजन के कारण हिंदुस्तान में संप्रदायिकता की ‘काली आंधी‘ छाई हुई थी. ऐसी स्थिति में देवीलाल महात्मा गांधी तथा जवाहरलाल नेहरू की भांति धर्मनिरपेक्षता के समर्थन में चट्टान के भांति अडिग खड़े रहे.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी देवीलाल का राजनीतिक संघर्ष और अधिक तेज तथा चुनौतीपूर्ण हो गया. उन्होने कभी भी सत्ता प्राप्ति को महत्व नही दिया. देवीलाल का मूल मंत्र ‘लोक राज और लोक लाज’ था. यही कारण है कि पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीचंद भार्गव के किसान विरोधी अध्यादेशों के विरूद्ध सन् 1950 में आंदोलन किया और उन्हें जेल में डाल दिया गया. इस राजनीतिक युद्ध में देवीलाल को विजय प्राप्त हुई और वे किसानों तथा मुजारों के ‘अतुलनीय मसीहा’ बन गए. देवीलाल सन् 1952 से सन् 1957 तक, सन् 1958 से सन् 1962 तक, सन् 1962 से सन् 1966 तक पंजाब विधानसभा के सदस्य रहे. पंजाब विधानसभा के सदस्य के रूप में देवीलाल ने हरियाणा के हितों की वकालत ही नहीं की अपितु तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों की हरियाणा विरोधी नीतियों का निरंतर विरोध किया.

हरियाणा के निर्माण में देवीलाल की अभूतपूर्व भूमिका रही है. 1 नवंबर 1966 को पंजाब के विभाजन के पश्चात हरियाणा की स्थापना हुई. हरियाणा की स्थापना के पश्चात भी देवीलाल का राजनीतिक संघर्ष निरंतर जारी रहा. यद्यपि उन्होंने बंसीलाल को मुख्यमंत्री बनवाने में अद्वितीय भूमिका अदा की थी. परंतु बंसीलाल के गैर प्रजातांत्रिक व्यवहार के कारण दोनों नेताओं में तनाव पैदा हो गया और नौबत यहां तक आ गई कि देवीलाल ने सन् 1971 में कांग्रेस पार्टी को हमेशा के लिए छोड़ दिया. इसके पश्चात किसानों को लामबंद किया तथा किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए किसान संघर्ष समिति की स्थापना की और समिति के द्वारा देवीलाल को अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. सिरसा में किसान सम्मेलन के पश्चात 29 मई 1973 को देवीलाल को गिरफ्तार कर लिया गया तथा 4 अक्टूबर 1973 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के आदेशानुसार जेल से रिहा हुए. सन 1974 में रोड़ी चुनाव क्षेत्र से उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी को हराकर विधायक बने. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत 25 जून 1975 को आपातकालीन स्थिति (25 जून 1975 – 21मार्च 1977) घोषित कर दी गई.

आपातकालीन स्थिति के 21 महीनों को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में “काले पन्नों” के नाम से पुकारा जाता है. आपातकालीन स्थिति का विरोध करने वाले राजनेताओं, पत्रकारों तथा अन्य लोगों को जेल में डाल दिया गया. चौधरी देवी लाल (25 जून 1975 से 26 जनवरी 1977 तक) 19 महीने जेल में रहे. आपातकालीन स्थिति समाप्त होने के पश्चात लोकसभा के चुनाव हुए और इसके पश्चात हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए. इन चुनाव में देवीलाल ने ‘एक वोट, एक नोट’ का नारा दिया तथा नवगठित
राजनीतिक दल जनता पार्टी को भारत के लोकसभा तथा हरियाणा सहित कई राज्यों की विधानसभाओं में भी बहुमत प्राप्त हुआ.

हरियाणा विधानसभा के चुनाव में जनता पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ और चौधरी देवीलाल को सर्वसम्मति से नेता चुन लिया गया. 21 जून 1977 से 28 जून 1979 तक देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे. भारत के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के 77 वें जन्म दिवस के उपलक्ष में 23 दिसंबर 1978 को दिल्ली में किसान रैली का आयोजन किया गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई इस रैली के विरुद्ध थे. उन्होंने देवीलाल को रैली के आयोजन में भाग न लेने के लिए कहा. परंतु
देवीलाल ने मना कर दिया और मुख्यमंत्री पद की परवाह नहीं की. उन्होंने स्पष्ट कहा “पहले मैं किसान हूं, मुख्यमंत्री बाद में’’. मोरारजी देसाई ने देवीलाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए षड्यंत्र रचा और 28 जून 1979 को भजनलाल को मुख्य मंत्री बनाया गया.

सन् 1980 में लोकसभा के चुनाव में देवीलाल सांसद बने. सन 1985 में ‘न्याय युद्ध’ के नाम से कांग्रेस के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और 20 जून 1987 को हरियाणा विधानसभा के चुनाव में विजय प्राप्त होने के पश्चात देवीलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तथा 2 दिसंबर 1989 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे. वीपी सिंह तथा चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री के कार्य कालों में क्रमश: 2 दिसंबर 1989 से 31 जुलाई 1990 तथा नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक भारत के उप-प्रधानमंत्री तथा भारत के कृषि मंत्री भी रहे. हरियाणा के मुख्यमंत्री, भारत के उपप्रधानमंत्री एवं कृषि मंत्री के रूप में देवीलाल ने किसानों, भूमिहीन श्रमिकों, बेरोजगारों, विद्यार्थियों, विकलांगों, अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्गों, महिलाओं तथा खानाबदोश के बच्चों को शिक्षित करने के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं प्रारंभ की. इन य़ोजनाओं में सबसे महत्वपूर्ण योजना बुढ़ापा पेंशन मानी जाती है. इसके कारण परिवार में बुजुर्गों के सम्मान में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. 6 अप्रैल 2001 को 6 बजकर 50 मिंट पर राजनीतिक संघर्ष के प्रतीक एंव यौद्धा ने आखिरी सांस ली और सदा के लिए अमर हो गए. किसान और मजदूर वर्ग के मसीहा की समाधि-संघर्ष घाट दिल्ली में है.

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