एन.ए.पी.एम डीडीए के फैसले का विरोध करती है जिसके तहत
लगभग 4 महीने पहले धोबी हाउस, जामिया नगर में जबरन ध्वस्त किए गए 700 घरों के निवासियों को समयोचित पुनर्वास नहीं दिया जा रहा है
एन.ए.पी.एम “धोबी घाट झुग्गी अधिकार मंच” की महिलाओं के चल रहे संघर्ष को और
“जहां झुग्गी वहां मकान” की उनकी मांग का समर्थन करता है और सभी प्रकार के नुकसान की भरपाई की मांग करता है।
सरकार को कोरोना महामारी के बीच सभी विध्वंस को रोकना चाहिए:
दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2006 का पालन करें।
(समाज वीकली)12 जनवरी, 2021: जन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम) दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की निरंतर बेरहमी पर अपना रोष प्रकट करता है। धोबी हाउस, जामिया नगर के 700 से ज़्यादा लोगों जिनके घर सितम्बर-अक्टूबर, 2020 में डीडीए द्वारा जबरन ध्वस्त किए गए थे, उनके पुनर्वास पर डीडीए लगातार ढुल-मुल रवैया अपनाए है । हम कोरोना महामारी के दौरान आश्रय और आजीविका के नुकसान की दोहरी मार झेलने वाले निवासियों को अनिश्चित जीवन की ओर धकेल कर मानव जीवन की होने वाली उपेक्षा की निंदा करते हैं।
एनएपीएम धोबी घाट झुग्गी अधिकार मंच की मांगों का समर्थन करता है, जिनमें उनके उचित पुनर्वास और इस दौरान हुए पूरे नुकसान की भरपाई प्रमुख मांगें हैं। यह बेहद ज़रूरी है कि इस क्षेत्र में चल रहे महिलाओं के आंदोलन को व्यापक समर्थन मिले ताकि उनका समाज रोज़ की प्रतारणा से मुक्त हो सके।
विध्वंस अभियान:
डीडीए ने 24 सितंबर 2020 को दिल्ली के जामिया नगर के धोबी घाट में बटला हाउस में बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ की। पहले चरण में ही 700 से अधिक निवासियों को जबरन बेघर किया गया और 200 से अधिक झोपड़ियों को नष्ट कर दिया गया। 8 अक्टूबर 2020 को डीडीए द्वारा दूसरे चरण के विध्वंस की शुरुआत की गई, जिस दौरान बुलडोजरों ने बाकी बची झुग्गियों को तबाह कर दिया जबकि अधिकांश निवासी काम पर बाहर गए थे। दिसंबर में डीडीए ने निवासियों की भूमि पर अतिक्रमण को तीव्र कर दिया और विशाल सीमाओं और ऊँची संरचनाओं का निर्माण करने के लिए इसे खोद दिया, जिसके परिणामस्वरूप वहां गहरे दलदल बन गए जहाँ कभी निवासियों के घर हुआ करते थे।
डीडीए के कार्य प्राकृतिक न्याय और नागरिकों के गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन हैं। डीडीए ने अपनी कार्रवाई में दिल्ली शहरी आश्रय बोर्ड (डीयूएसआईबी) नीति 2015 के तहत निवासियों के लिए स्थापित नीति संरक्षण को ध्यान में नहीं रखा है। डीडीए ने विध्वंस के दौरान पर्याप्त नोटिस और स्पष्ट पुनर्वास व्यवस्था जैसी प्रक्रियाओं का भी पालन नहीं किया है। डीडीए ने अपने ही राज्य सरकार द्वारा 2020 के विधानसभा चुनावों में किए गए “जहां झुग्गी वहां मकान” के वादे का भी उल्लंघन किया है।
आम जनता की ज़िन्दगी पर प्रभाव:
अधिकांश निवासी जिनके घर ध्वस्त हो चुके हैं, वे धोबी घाट में कथित तौर पर दो दशकों से रह रहे हैं और डीडीए की कार्रवाई के कारण उन्होंने बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान झेला है। न केवल उन्होंने अपने घर खो दिए हैं, बल्कि उनकी जीविका भी नष्ट हो गयी है । कोरोना वायरस के संक्रमण के डर के कारण पड़ोसी इमारतों में कई निवासियों ने धोबी घाट पर रहने वाले पुरुषों और महिलाओं को रोज़गार से निलंबित कर दिया । झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों की विषम, अस्वच्छ परिस्थितियों के बारे में जानने के बाद पड़ोसी इमारतों में रहने वाले लोगों ने उनके साथ और अधिक भेदभाव किया, जिससे उनकी आजीविका को निरंतर नुकसान पहुंचा है। विस्थापित परिवार, जिनमें वृद्ध और बीमार, गर्भवती महिलाएं और छोटे बच्चे शामिल हैं, अब कुछ अतिरिक्त एकड़ जमीन पर खुले में रहने को मजबूर हैं, जहाँ पानी नहीं भरा है । दिल्ली में पहले से ही कठोर सर्दियों में अक्सर बारिश के कारण दलदल ओवरफ्लो हो जाता है, जिससे शहरवासियों की झुग्गियों में पानी भर जाता है।
ऐसे समय में जब कोरोना वायरस का एक नया प्रकार पाया गया है, धोबी घाट के निवासियों को निराश्रित छोड़ दिया गया है। भोजन की भारी कमी है, सरकारी राशन की आपूर्ति अनियमित रूप से की जाती है और उसमें केवल सूखे अनाज होते हैं। शाम के दौरान क्षेत्र में बिजली भी कट जाती है, जिससे निवासियों को खाना पकाने में भारी समस्या होती है। इसके अलावा, निवासियों ने जब भी आश्रय के लिए अस्थायी बस्तियों के पुनर्निर्माण का प्रयास किया है, प्रशासन ने उन्हें नष्ट कर दिया है और अधिकारियों द्वारा उन्हें डराया भी जाता है।
धोबी घाट झुग्गी अधिकर मंच का गठन
धोबी घाट में बार-बार हो रहे अवैध विध्वंस के जवाब में महिलाओं ने धोबी घाट झुग्गी अधीकार मंच के रूप में खुद को एकत्रित किया। इस मंच का उद्देश्य जहाँ झुग्गी वहां मकान के वादे को पूरा करने की मांग करना, राहत कार्यों में सहायता करना, और विस्थापित परिवारों की ज़रूरतों को पूरा करना है। अभी तक कपड़े, शॉल, कंबल के साथ-साथ राशन किट और झुग्गियों को बचाने के लिए तिरपाल बमुश्किल उपलब्ध कराए गए हैं । अंतरिम राहत प्रयास के बावजूद धोबी घाट पर आवास और सभी झुग्गी निवासियों के पुनर्वास की तत्काल मांग पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है क्योंकि लोग अब लगभग चार महीने से निराश्रित परिस्थितियों में रह रहे हैं। समिति के गठन और डीडीए के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाने के कारण डराने-धमकाने की भी कई घटनाएं हुईं हैं।
एनएपीएम डीडीए द्वारा अवैध विध्वंस की कड़ी निंदा करता है। डीडीए की इस कार्रवाई ने विस्थापित परिवारों के सबसे मौलिक अधिकारों को उस समय छीन लिया जब महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन ने उन्हें पहले ही तबाह कर दिया था।
हम प्रभावित लोगों के साथ एकजुटता में खड़े हैं, विशेष रूप से झुग्गी अधिकार मंच की महिलाओं के साथ, जिन्होंने खुद को दृढ़ता से संगठित किया है और संकट के दौर में एक मज़बूत संघर्ष का नेतृत्व कर रही हैं।
हम निम्नलिखित मांगों का पूर्ण समर्थन करते हैं:
1. धोबी घाट, बटला हाउस के सभी निवासियों को संबंधित अधिकारियों द्वारा तत्काल प्रभाव से पूर्ण पुनर्वास और नुकसान के लिए उचित मुआवजा सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
2. पुनर्वास और अंतरिम आर्थिक अनुदान के साथ-साथ सभी परिवारों को खाद्यान्न, घरेलू सामग्री और आवश्यक आपूर्ति के माध्यम से राहत सहायता प्रदान की जाए।
3. विध्वंस से प्रभावित बच्चों और महिलाओं के पोषण, उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
4. उन पुलिस कर्मियों के खिलाफ जांच शुरू की जानी चाहिए जिन्होंने वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं और बच्चों सहित निवासियों के ख़िलाफ़ अनुचित बल का इस्तेमाल किया तथा “जहां झुग्गी वहां मकान” आंदोलन को दबाने का प्रयास किया। जांच के आधार पर उन पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई भी होनी चाहिए।
5. 2019 में आग लगने और अब बड़े पैमाने पर विध्वंस, सहित पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्र में हुए दुर्घटनाओं के इतिहास को देखते हुए विध्वंस के वास्तविक उद्देश्यों की भी पूरी तरह से जांच की जानी चाहिए।
मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन, जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); डॉ सुनीलम, आराधना भार्गव (किसान संघर्ष समिति), राजकुमार सिन्हा (चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति); पल्लव (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, मध्य प्रदेश)
अरुणा रॉय, निखिल डे, शंकर सिंह (मज़दूर किसान शक्ति संगठन); कविता श्रीवास्तव (PUCL); कैलाश मीणा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, राजस्थान); प्रफुल्ल समांतर (लोक शक्ति अभियान)
लिंगराज आज़ाद (समजवादी जन परिषद्, नियमगिरि सुरक्षा समिति); लिंगराज प्रधान, सत्य बंछोर, अनंत, कल्याण आनंद, अरुण जेना, त्रिलोचन पुंजी, लक्ष्मीप्रिया, बालकृष्ण, मानस पटनायक (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, ओडिशा)
संदीप पांडेय (सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया); ऋचा सिंह, रामबेटी (संगतिन किसान मज़दूर संगठन, सीतापुर); राजीव यादव, मसीहुद्दीन (रिहाई मंच, लखनऊ); अरुंधति धुरु, ज़ैनब ख़ातून (महिला युवा अधिकार मंच, लखनऊ); सुरेश राठोड (मनरेगा मज़दूर यूनियन, वाराणसी),अरविन्द मूर्ति, अल्तमस अंसारी (इंक़लाबी कामगार यूनियन, मऊ), जाग्रति राही (विज़न संसथान, वाराणसी), सतीश सिंह (सर्वोदयी विकास समिति, वाराणसी); नकुल सिंह साहनी (चल चित्र अभियान)
पी चिन्नय्या (APVVU); रामकृष्णं राजू (यूनाइटेड फोरम फॉर RTI एंड NAPM); चकरी (समालोचना); बालू गाडी, बापजी जुव्वाला (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, आंध्र प्रदेश); जीवन कुमार, सईद बिलाल (ह्यूमन राइट्स फोरम); पी शंकर (दलित–बहुजन फ्रंट); विस्सा किरण कुमार , कोंदल (रयथु स्वराज्य वेदिका); रवि कनगंटी (रयथु, JAC ); आशालता (मकाम); कृष्णा (TVV); एम् वेंकटय्या (TVVU ); मीरा संघमित्रा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, तेलंगाना)
सिस्टर सीलिया (डोमेस्टिक वर्कर यूनियन); मेजर जनरल (रिटायर्ड) एस जी वोमबतकेरे (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); नलिनी गौड़ा (KRRS); नवाज़, द्विजी गुरु, नलिनी, मधु भूषण, ममता, सुशीला, शशांक (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, कर्नाटक)
गाब्रिएल (पेन्न उरिमय इयक्कम, मदुरै); गीता रामकृष्णन (USWF); सुतंतिरण, लेनिन, इनामुल हसन, अरुल दोस, भारती, विकास (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, तमिल नाडु);
विलायोडी, सी आर नीलकंदन, कुसुमम जोसफ, शरथ चेल्लूर, विजयराघवन, मजींदरन, मगलीन (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, केरल)
दयामनी बरला (आदिवासी– मूलनिवासी अस्तित्व रक्षा समिति); बसंत, अलोक, डॉ लियो, अफ़ज़ल, सुषमा, दुर्गा, जीपाल, प्रीति रंजन, अशोक (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, झारखण्ड)
आनंद माज़गाओंकर, स्वाति, कृष्णकांत, पार्थ (पर्यावरण सुरक्षा समिति); नीता महादेव, मुदिता (लोक समिति ); देव देसाई, मुजाहिद, रमेश, अज़ीज़, भरत (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, गुजरात)
विमल भाई (माटु जन संगठन); जबर सिंह, उमा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, उत्तराखंड)
मान्शी, हिमशि, हिमधारा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, हिमाचल प्रदेश)
एरिक, अभिजीत, तान्या, कैरोलिन, फ्रांसेस्का (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, गोवा)
गौतम बंदोपाध्याय (नदी घाटी मोर्चा); कलादास डहरिया (RELAA); अलोक, शालिनी (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, छत्तीसगढ़)
समर, अमिताव, बिनायक, सुजाता, प्रदीप, प्रसारुल, तपस, ताहोमिना, पबित्र, क़ाज़ी मुहम्मद, बिश्वजीत, आयेशा, रूपक, मिलान, असित, मीता, यासीन, मतीउर्रहमान, बाइवाजित (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, पश्चिम बंगाल)
सुनीति, संजय, सुहास, प्रसाद, मुक्त, युवराज, गीतांजलि, बिलाल, जमीला (घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन); चेतन साल्वे (नर्मदा बचाओ आंदोलन); परवीन जहांगीर (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, महाराष्ट्र)
फैसल खान, जे इस वालिया (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, हरियाणा)
गुरुवंत सिंह, नरबिंदर सिंह (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, पंजाब)
कामायनी, आशीष रंजन (जन–जागरण शक्ति संगठन); महेंद्र यादव (कोसी नवनिर्माण मंच)
राजेंद्र रवि (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); भूपेंद्र सिंह रावत (जन संघर्ष वाहिनी); अंजलि, अमृता जोहरी (सतर्क नागरिक संगठन); संजीव कुमार (दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच); अनीता कपूर (दिल्ली शहरी महिला कामगार यूनियन); सुनीता रानी ( नेशनल डोमेस्टिक वर्कर यूनियन); नन्हू प्रसाद (नेशनल साइकिलिस्ट यूनियन); मधुरेश, प्रिया, आर्यमन, दिव्यांश, ईविता, अनिल (दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुप); एम् जे विजयन (PIPFPD), श्रेया
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