– विभूति त्रिपाठी
इस जहाॅ के रंग को देखकर कहने को बहुत कुछ जी करता है लेकिन समझ ही नही आता कि शुरु कहां से करुं और क्या क्या कहूं ??? आज कल के माहौल को देखकर मन में यही सवाल उठता है कि आखिर समाज में जिस तरह से विभिन्न प्रकार की बुराईयां अपने चरम पर पहुंच रही हैं , आखिर उसके खात्मे की पहल कौन करेगा और पहल आखिर कब होगा , आज की तारीख में सवाल पूछने वाले बहुत लोग हैं , धरना प्रर्दशन करने वाले बहुत लोग हैं, लेकिन सवाल फिर वही है कि आखिर सार्थक पहल कौन करेगा और वो पहल कब होगी।
हमारे समाज में आये दिन कुछ न कुछ ऐसी हैवानियत भरी घटनायें घटती आ रही हैं जिसको शब्दों में बयां कर पाना मुमकिन नही है , कुछ ऐसी भी दर्दनाक घटनायें घटी हैं , जिनके बारे में लिखते समय कलम थम सी जाती हैं , भावनायें उमड़ आती हैं, आॅखें भर आती हैं और यकीन मानिये कि इस लेख को लिखते वक्त कुछ ऐसा ही हाल मेरा भी है ।
अगर आज कल के माहौल की बात की जाये तो एक बात निकल कर सामने आती है कि, कहने को तो हम सब आधुनिक हो गये हैं, कहने को तो हम सब एक सभ्य समाज के नागरिक हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या वाकई हम सब आधुनिक हो गये हैं ??? इसका जवाब है कि नही…बिल्कुल नही….और ऐसा क्यूं है…. तो इसका बहुत ही सीधा और सरल जवाब है और वो है कि , हमारे समाज में घट रही विभिन्न प्रकार की घटनाओं से हम सभी में से कोई भी सबक लेने को तैयार नही है , हमारे समाज में जब भी हमारी बच्चियों के साथ हैवानियत से भरी घटनायें हुई हैं, ठीक उसके बाद धरना प्रर्दशन का एक दौर शुरु हो जाता है और वो दौर बहुत जल्द खत्म भी हो जाता है और सब कुछ पहले जैसा फिर हो जाता है।
आज के आधुनिक समाज में शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जिस दिन हमारी बच्चियों के साथ घिनौनी घटना न घटती हो और बच्चियों पर कोई दिल को दहलाने वाली घटना से संबंधित समाचार सुनने को न मिलता हो …. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा ??? आखिर कब तक हम सभी इस तरह के वीभत्स और दर्दनाक घटनाओं के गवाह बनते रहेगें और मूक दर्शक बनते रहेगें ???
एक तरफ हमारे समाज में हमारी बच्चियां हर क्षे़त्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं वहीं दूसरी तरफ हमारे समाज में ही हमारी बच्चियां आये दिन दर्दनाक घटनाओं का शिकार हो रही हैं, आखिर ऐसा कब तक होता रहेगा ??? आखिर कब तक हमारी बच्चियां हर तरह के कठोर सवालों का जवाब देती रहेंगी । कहीं नवजात बच्चियों को नाले में फेंक दिया जाता है, तो कहीं बच्चियों को इस दुनिया में आने के पहले ही गर्भ में खत्म कर दिया जाता है , तो कहीं बच्चियों को उचित शिक्षा से महरुम रखा जाता है, तो कहीं हमारी बच्चियों को कच्ची उम्र में ही शादी के बंधन में बांध दिया जाता है और इन सब से अगर हमारी बच्चियां बच गई तो हमारे समाज में पल बढ रहे भूखे दरिंदे भेड़िये अपनी निगाह हमारी बच्चियों पर गड़ा देते हैं और बच्चियों को अपना शिकार बनाने लगते हैं… आखिर कब तक हमारी बच्चियां इस तथाकथित आधुनिक समाज में दर्द झेलती रहेंगी ।
अभी हाल ही में हैदराबाद और उन्नाव में हुये वीभत्स घटना को आखिर क्या नाम दें… समझ नही आ रहा ….. बस मन में गुस्से और दर्द का ऐसा गुबार उठ रहा है कि उसको शब्दों में बयाॅ नही किया जा सकता है , बस आंखें नम हैं और दिल में एक डर सा समा गया है कि आखिर न जाने कब हमारी बच्चियों के साथ क्या हो जाये ??? बस यही सोचकर दिल बैठा जा रहा है ।
इस आधुनिक समाज में इंसानियत आखिर कहां चली गई है ??? हर तरफ जिसको भी देखो वो अपनी दुनिया में मदहोश है , ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा हो रहा है कि आखिर हमारी बच्चियों के बारे में कौन सोचेगा और कब सोचेगा ???
नई दिल्ली में हुये निर्भया कांड के बाद जिस तरह से समूचे देश में बच्चियों के साथ हो रहे दर्दर्नाक घटनाओं के खिलाफ एक ज्वाला उठी थी उसको देख कर ये एहसास हुआ था कि शायद अब कुछ ऐसा हो जाये जिससे हमारी बच्चियां इस आधुनिक समाज में सुरक्षित हो सकें , लेकिन अफसोस अंत में परिणाम वही ढाक के तीन पात वाला हुआ , तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा कमेटी का गठन किया गया , लेकिन उस कमेटी द्वारा कही गई कितनी बातों को लागू किया गया , ये एक चर्चा का विषय है ।
हमारे यहां कुछ ऐसे तथाकथित राजनेता भी हैं , जिन्हें हर वक्त सिर्फ राजनीति और वोट बैंक दिखाई देता है और उसी राजनीतिक अर्कमण्यता का परिणाम है कि , आज भी निर्भया कांड के दोषी जिन्दा हैं और इसकी वजह हम सभी हैं और इन्ही सब वजहों से हमारे समाज में पल बढ रहे गैर समाजिक तत्वों का मनोबल बढता जा रहा है और इसी वजह से हमारे बच्चियों के साथ लगातार जघन्य और वीभत्स घटनायें घट रही हैं ।
अगर हकीकत की बात की जाये तो ये कहने में बिल्कुल भी हिचक नही होती कि अगर आज भी हमारे तथाकथित सभ्य और आधुनिक समाज में आये दिन इस तरह की घिनौनीं घटनायें घट रही हैं , तो इसके लिये समाज का हर एक सदस्य जिम्मेदार है , क्यूंकि हम लोग ही न जाने क्यूं और कैसे हुकुम्रानों और राजनेताओं को इतनी मोहलत दे देते हैं कि वो अपने खेल में कामयाब हो जाते हैं और ऐसा लंबे समय से लगातार होता चला आ रहा है ।
अफसोस इस बात का है कि इस तरह की दर्दनाक और ह्नदयविदारक घटना के बाद भी कुछ लोग इसको भी जाति और धर्म से जोड़ते नजर आते हैं । ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर ऐसे मुददे जो कि समाज के हर एक वर्ग और समाज के हर एक सदस्य से जुड़ा हुआ है वहां पर धर्म , जात पात का जिक्र करना कहां तक उचित है ??? इस तरह की किसी भी कोशिश से ही समाज के विघटनकारी तत्वों को ताकत मिलती है और उनके अंदर इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने का साहस पैदा हो जाता है ।
आज की तारीख में इस बात का सबसे ज्यादा दुख है कि , वादे तो रोज मिलते हैं , लेकिन कार्यवाही कितनी बार हुई है , इसका पता लगाना मुश्किल है । आखिर वो समय कब आयेगा जब हमारी बच्चियां खुले आसमाॅ में खुल कर सांस ले पाएंगी … आखिर हमारी बच्चियों के सुरक्षा के नाम पर कब तक आपसी खींचतान होती रहेगी….आखिर कब तक राजनेता इस संवेदनशील विषय पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकतंे रहेगें…. आखिर कब तक…..