सामयिक लेख–महिला सशक्तिकरण— जेंडर गैप
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में महिला सशक्तिकरण–पंचायत से राष्ट्रपति भवन तकः एक पुनर्मूल्यांकन
डॉ. रामजीलाल , समाज वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह, कॉलेज ,करनाल (हरियाणा-भारत)
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(समाज वीकली)- विश्व की आधी आबादी महिलाओं की है. संसार के प्रत्येक देश में महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक ,शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रों में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है. भारत इस संदर्भ में कोई अपवाद नहीं है. भारत में महिलाएं ग्राम पंचायत से लेकर राष्ट्रपति भवन तक विराजमान है. केवल यही नहीं अपितु महिलाओं ने राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया है. सड़क से लेकर संसद तक महिलाओं ने किसानों, मजदूरों व ट्रेड यूनियनों द्वारा चलाए गए आंदोलनों में भी अद्वितीय भूमिका निभाई है. भारतीय राजनीति में महिला सशक्तिकरण का मुख्य उदाहरण यह है कि भारतीय गणतंत्र के सर्वोच्च पद – (राष्ट्रपति के पद)- पर श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल तथा वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का विराजमान होना गौरव की बात है. भारत में प्रथम महिला प्रधानमंत्री (सन् 1966- सन् 1977 और सन् 1980- सन् 1984) होने का श्रेय श्रीमती इंदिरा गांधी को जाता है. श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने शासनकाल में भारत-पाक युद्ध (1971) में पाकिस्तानी सेना के लगभग 93000 सैनिकों को हथियार डालने पड़े, और पाकिस्तान को हार का मुंह देखना पड़ा. भारत-पाक युद्ध (1971) में विजय प्राप्त करना तथा बांग्लादेश का निर्माण इस बात को सिद्ध करता है कि महिला नेतृत्व कोई कमजोर नहीं होता. इस अतुलनीय योगदान के कारण, भारतीय जनसंघ (अब भाजपा) के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने श्रीमती इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’ (शक्ति की देवी) कहा था। प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी शक्तिशाली शासकों की आकाशगंगा में हैं. विश्व पटल पर श्रीमती इंदिरा गांधी का विशेष स्थान है.
21वी शताब्दी के प्रथम दशक के नौवें वर्ष (2009) के अंत में भारतीय संसदीय प्रणाली में एक नए युग का सूत्रपात हुआ. भारतीय प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, लोकसभा की प्रथम महिला स्पीकर श्रीमती मीरा कुमार. यूपीए (UPA) की अध्यक्ष एवं लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल की प्रथम महिला अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता भारतीय जनता पार्टी की प्रथम महिला श्रीमती सुषमा स्वराज रही हैं. सन् 1950 के बाद देश में है पहली बार हुआ कि राष्ट्रपति, स्पीकर, सत्तारूढ़ दल और विपक्ष का नेतृत्व महिलाएं कर रही थी. यह महिला सशक्तिकरण का एक अतुलनीय उदाहरण है. विश्व की राजनीतिक संस्थाओं पर दृष्टिपात करने के पश्चात ज्ञात होता है कि विकसित लोकतंत्रों– इंग्लैंड, अमेरिका, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, कनाडा इत्यादि देशों में भी ऐसे उदाहरण नहीं मिलते. हम सुधी पाठकों को बताना चाहते हैं कि अमेरिका में आज तक कोई भी महिला राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित नहीं हुई, यद्यपि अमेरिका अपने आप को एक ‘उत्कृष्ट लोकतंत्र’ मानता है.
1.महिलाओं को सार्वभौमिक मताधिकार
विश्व में महिलाओं के सार्वजनिक मताधिकार का इतिहास बहुत लंबा है और संघर्षों के बाद महिलाओं को यह अधिकार प्राप्त हुआ है. प्रारंभ में अनेक राज्यों ने कुछ एक शर्तों के साथ सीमित मताधिकार प्रदान किया. आज से लगभग 130 वर्ष पूर्व सन् 1893 में महिलाओं के सार्वजनिक मताधिकार देने वाला न्यूजीलैंड पहला राष्ट्र है. परंतु सन् 1919 तक महिलाओं को संसद के चुनाव में उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने का अधिकार नहीं दिया गया. सन् 1920 में अमेरिका 19वें संवैधानिक संशोधन से पूर्व 19 देशों ने महिलाओं को सार्वभौमिक मताधिकार प्रदान किया था. भूतपूर्व सोवियत संघ (वर्तमान रूस) में लंबे संघर्ष के बाद सन् 1917 में सार्वभौमिक मताधिकार महिलाओं को दिया गया. फ्रांस में सन 1944 में सार्वभौमिक मताधिकार के अंतर्गत महिलाओं को मताधिकार प्राप्त हुआ. सन् 1893 – सन् 1960 के अंतराल में विश्व के198 में से 129 राज्यों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया.
> https://www.pewresearch.org/short-reads/2020/10/05/key-facts-about-womens-suffrage-around-the-world-a-century-after-u-s-ratified-19th-amendment/ >https://www.theguardian.com/notesandqueries/query/0,5753,-2831,00.html
भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ तथा संविधान की धारा 326 के अनुसार 21 वर्ष की न्यूनतम आयु में प्रत्येक व्यक्ति –स्त्री -पुरुष को मताधिकार प्रदान किया गया. भारत में ‘प्रत्येक व्यक्ति को एक मत’ प्राप्त है और उसका ‘मूल्य भी एक’ है. अन्य शब्दों में भारतीय संविधान के निर्माता तथा शिल्पकार डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार ‘एक मत, एक मूल्य’ का सिद्धांत लागू होता है. भारत के संविधान के इकसठवें संशोधन अधिनियम, 1988 , के अनुसार मतदान की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई.
>https://en.wikipedia.org/wiki/Sixty-first_Amendment_of_the_Constitution_of_India >https://www.indiatoday.in/magazine/cover-story/story/20051226-voting-age-in-india-changed-from-21-to-18-in-1988-786372-2005-12-25
भारतीय प्रथम आम चुनाव (25 अक्टूबर 1951 – 21 फरवरी 1952) के समय कुल आबादी ( जम्मू और कश्मीरको छोड़कर) 361मिलियन थी तथा मतदाताओं की संख्या 173मिलियन थी. >https://www.newindianexpress.com/opinions/columns/shankkar-aiyar/2023/sep/17/a-billion-voters-2024elections-x-y-and-w-factors-2615541.
>https://en.wikipedia.org/wiki/1951%E2%80%9352_Indian_general_election)
17वीं लोकसभा के चुनाव (11 अप्रैल 2019 से 19 मई 2019 तक) में मतदाताओं की संख्या लगभग 912 मिलियन थी. भारत के मतदाताओं की संख्या विश्व के लगभग 100 राज्यों की जनसंख्या के समान है. 18 वीं लोकसभा चुनाव (2024) में लगभग प्रस्तावित आबादी 1.431 अरब होगी तथा एक अरब मतदाता मताधिकार का प्रयोग करेंगे. शंकर अय्यर के अनुसार इस चुनाव में ‘सबसे महत्वपूर्ण ताकत डब्ल्यू फैक्टर-महिला मतदाता होने की संभावना है. पिछले दो दशकों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ा है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में, 67.18 प्रतिशत महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों 67.01 प्रतिशत से अधिक थी. महत्वपूर्ण बात यह है कि लोकसभा तथा विधान सभाओं के चुनावों में महिलाएं ‘नई किंगमेकर’हैं.
>www.newindianexpress.com/opinions/columns/shankkar-aiyar/2023/sep/17/a-billion-voters-2024elections-x-y-and-w-factors-2615541.html
>https://timesofindia.indiatimes.com/india/women-voter-participation-exceeds-that-of-men-in-2019-ls-polls-cec-chandra/articleshow/87936542.cms
2. महिला साक्षरता व विधान सभाओं में महिला प्रतिनिधित्व : कोई पारस्परिक संबंध नहीं
इस समय 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधान सभाओं में महिला सदस्यों की संख्या 10% से कम है. इन राज्यों में गुजरात में (8.2%), महाराष्ट्र (8.3%), आंध्र प्रदेश (8%), केरल (7.9%), तमिलनाडु (5.1%), तेलंगाना (5%) और कर्नाटक (4.5%) हैं. नागालैंड की स्थापना 30 नवम्बर1963 को हुई थी. 60 वर्ष तक नागालैंड की विधानसभा में एक भी महिला निर्वाचित नहीं हुई. नागालैंड में मार्च, 2023 में पहली बार 2 महिलाएं – एनडीपीपी नेता हेकानी जखालू (Hekani Jakhalu) -एवं साल्होउतुओनुओ क्रुसे (Salhoutuonuo Kruse) विधायक निर्वाचित होकर इतिहास रचा है. यह दोनों महिलाएं नागालैंड की महिलाओं के लिए एक गौरव का प्रतीक हैं क्योंकि इन्होने पहली बार गिलास सीलिंग को तोड़कर राजनीतिक जीवन में सफलता प्राप्त की है.
>https://timesofindia.indiatimes.com/elections/assembly-elections/nagaland/news/meet-hekani-jakhalu-and-salhoutuonuo-kruse-who-created-history-by-becoming-first-2-women-mlas-in-nagaland/articleshow/98363688.cms?from=mdr
>http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/98363688.cms?
from=mdr&utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst
शिक्षा और महिला निर्वाचन का आपस में कोई मेल नजर नहीं आता क्योंकि वर्ष 2011 की जनगणना के नागालैंड की पुरुष और महिला साक्षरता दर क्रमशः 82.75% और 76.11% है. इसी प्रकार केरल में शत- प्रतिशत महिला साक्षरता है .इसके बावजूद भी वर्तमान केरल विधानसभा में केवल महिला प्रतिनिधित्व 7.9% है.मिजोरम राज्य की स्थापना 20 फरवरी, 1987 को हुई थी. वर्ष 2023 की नवीनतम जनसंख्या जनगणना के अनुसार मिजोरम साक्षरता दर महिला साक्षरता 89.27 प्रतिशत है . इसके बावजूद भी सन् 2018 के चुनाव में 40सदस्यीय विधानसभा के लिए एक भी महिला चुनाव नहीं जीत सकी.
>https://indianexpress.com/article/political-pulse/hekani-jakhalu-nagaland-first-woman-mla-ndpp-8475448/
>https://www.hindustantimes.com/elections/manipur-assembly-election/five-women-elected-to-60-member-manipur-assembly-it-is-a-first-101647029097432.html
3. महिला मतदाताओं की संख्या व महिला मतदान और विधान सभाओं में महिला प्रतिनिधित्व : कोई पारस्परिक संबंध नहीं
महिला मतदाताओं की संख्या, महिला मतदान और महिलाओं के चुनाव में जीत का कोई पारस्परिक संबंध नहीं है. स्वतंत्रता प्राप्ति के75 वर्ष के बाद 17वीं लोकसभा के चुनाव (2019) में लिंग अंतर –महिला मतदाता मतदान व पुरूष मतदाता मतदान में आश्चर्यजनक परिवर्तन हो गया. यह पहला चुनाव है जब महिला मतदान 67.18% था और पुरूष मतदान 67.1%था.अन्य शब्दों में महिला मतदान पुरूष मतदान की अपेक्षा 0.17% अधिक रहा है. इसके बावजूद भी इस समय लोकसभा में कुल महिला सांसद78 हैं.
लैंगिक अंतर केवल लोकसभा के चुनाव में ही नहीं अपितु राज्य विधान सभाओं के चुनाव मे भी स्पष्ट दिखाई देता है. विधान सभाओं के चुनावों में महिला मतदान और विधान सभाओं में महिला प्रतिनिधित्व—लैंगिक अन्तर के कतिपय उदाहरण अग्रलिखित हैं:
मणिपुर में कुल (20,48,169) मतदाताओं में महिला (10,57,336) मतदाताओं की संख्या पुरुषों (9,96,627) से अधिक है. मार्च2022 विधानसभा के चुनाव में 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा के लिए पांच महिलाएं चुनी गईं.मिजोरम राज्य की स्थापना 20 फरवरी, 1987 को हुई थी.
सन 2023 की नवीनतम जनगणना के अनुसार मिजोरम साक्षरता दर महिला साक्षरता 89.27 प्रतिशत है और लिंगानुपात 976 है .महिला मतदाताओं की संख्या 4, 38,995 है जोकि पुरुषों की संख्या से अधिक है. इसके बावजूद भी सन् 2018 के चुनाव में40सदस्यीय विधानसभा के लिए एक भी महिला चुनाव नहीं जीत सकी.नवंबर 2023 विधानसभा के चुनाव में 174 उम्मीदवारों में से केवल 16 महिलाएं उम्मीदवार है.जब राजनीतिक दल महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार ही नहीं बनाते तो किस तरीके से विधानसभा में महिलाओं की संख्या में वृद्धि होगी?.यह एक यक्ष प्रश्न है. इसका मूल कारण यह कि मिज़ो समाज आज भी पितृसत्तात्मक है जबकि साक्षरता की दृष्टि से भारत में तीसरे स्थान पर है.
>https://timesofindia.indiatimes.com/india/women-voter-participation-exceeds-that-of-men-in-2019-ls-polls-cec-chandra/articleshow/87936542.cms
>https://www.hindustantimes.com/elections/manipur-assembly-election/five-women-elected-to-60-member-manipur-assembly-it-is-a-first-101647029097432.html
>https://www.newslaundry.com/2023/11/04/diktats-patriarchal-system-the-hurdles-facing-mizorams-few-women-politicians-as-voters-seek-change#:~:text=Since%20its%20statehood%20in%201987,not%20have%20any%20woman%20MLA.
सन् 1998 से सन् 2022 तक हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनावों में महिला मतदान प्रतिशत पुरुष मतदान प्रतिशत से अधिक रहा है. सन् 2022 के विधानसभा के चुनाव में महिला मतदान 76. 8% था जबकि पुरुष मतदान 72.4% था. इसके बावजूद भी हिमाचल प्रदेश विधानसभा के 68 विधायकों में केवल एक ही महिला विधायक है.
>https://www.hindustantimes.com/elections/manipur-assembly-election/five-women-elected-to-60-member-manipur-assembly-it-is-a-first-101647029097432.html
> https://thewire.in/women/himachal-pradesh-assembly-women
हरियाणा विधानसभा चुनाव (2014) की एक और दिलचस्प कहानी है. इस चुनाव में मतदान के आंकड़े साबित करते हैं कि हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में महिला मतदान प्रतिशत शहरी महिला मतदान प्रतिशत से अधिक है. इस बात पर बल देना कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शहरों में रहने वाली महिलाएं अधिक शिक्षित, अधिक जागरूक, अधिक विशेषाधिकार प्राप्त और अधिक आधुनिक हैं. इसके विपरीत, ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, सामान्य जागरूकता और सुविधाओं का अभाव है. इसके बावजूद भी, ग्रामीण महिलाएं चुनावों में ‘मतदान के महत्व’ या ‘लोकतंत्र के नृत्य’ के बारे में अधिक जागरूक हैं. हरियाणा विधानसभा चुनाव (2014) में ग्रामीण क्षेत्रों में कुल महिला मतदान प्रतिशत 44.6% था जबकि शहरों में 42.9% था. हरियाणा की महिलाएं जब घूंघट की ओट से वोट की चोट मारती हैं तो बड़े-बड़े धुरंधर नेता अर्श से फर्श पर धड़ाम से गिरते हैं और चुनाव में धूल चाटते रह जाते हैं. वास्तव में हरियाणा की ग्रामीण महिला मतदाता ‘असली किंगमेकर’ हैं.
4.पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की सफलता दर अधिक : कोई जेंडर गैप नहीं
सन 1957 से लेकर आज तक लोकसभा के कुछ चुनावों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की विजय दर में लगभग दो गुना अंतर रहा है.
प्रतियोगी और विजेता – लिंग के अनुसार
(टेबल नंबर 1)
(*प्रेस सूचना ब्यूरो भारत सरकार चुनाव आयोग 21-मई-2014 )
**2014 का चुनाव 5 ट्रांसजेंडरों ने भी लड़ा था
>‘आधी आबादी की लड़ाई’, दैनिक जागरण,(पानीपत) 14 मार्च 2014, पृ.7
>https://www.statista.com/statistics/1010882/women-candidates-lok-sabha-elections-india/>https://www.livemint.com/elections/lok-sabha-elections/more-women-contesting-polls-but-few-winning-1554346716642.html
> https://www.orfonline.org/research/womens-representation-in-indias-parliament/ >https://www.hindustantimes.com/lok-sabha-elections/lok-sabha-election-results-2019-at-14-6-lok-sabha-to-have-most-women-ever/story-5BCCTbyER96BxdMV22PKPN.html
लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में महिलाओं को टिकट देते समय प्राय: यह बहाना लगाया जाता है कि टिकट उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिनके जीत के अवसर (चांस) अधिक हों.
त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा के अनुसार, 21 अप्रैल 2019 तक, महिलाओं को चुनाव टिकट देने के मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों का रिकॉर्ड खराब रहा – भाजपा ने 429 उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें से 53 महिलाएं थीं ( 12.3%), कांग्रेस ने 387 उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं, जिनमें से 47 महिलाएं (12.1%) थीं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ने बहुत कम महिलाओं को चुनाव में प्रत्याशी बनाया. यदि महिलाओं को राजनीतिक दलों के द्वारा चुनाव में प्रत्याशी ही नहीं बनाया जाएगा तो सांसद अथवा विधायक के रूप उनकी संख्या में कैसे वृद्धि होगी?
यदि हम लोकसभा के विभिन्न चुनावों (टेबल नंबर 1)पर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट होता है कि चुनावों में महिला प्रत्याशियों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ सफलता दर में गिरावट होती चली गई. लेकिन उसके बावजूद भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का विजय का प्रतिशत का अंतर सन् 1957 से लेकर सन् 2009 तक दो गुणा रहा है.
सन् 1957 में कुल महिला प्रत्याशी 45 व पुरुष प्रत्याशी 1473 थे .22 महिला प्रत्याशी विजयी हुए और जीत की दर 49% थी. जबकि 1473 पुरूष उम्मीदवारों मे 667 विजयी हुए और उनकी जीत की दर 32 % थी. इस चुनाव में महिलाओं का जीत प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा 17% अधिक था. सन् 2009 के लोकसभा के इलेक्शन में महिलाओं और पुरुष प्रत्याशियों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई .इस चुनाव में कुल महिला प्रत्याशी 556 थे तथा इनमें से 59 विजयी हुए और जीत की दर 11% थी .इसके मुकाबले में पुरुष प्रत्याशियों की संख्या 7514 तथा विजयी प्रत्याशी 484 थे और जीत की दर 6 .40% प्रतिशत थी. इसका स्पष्ट अभिप्राय है यह कि सन्1957 से लेकर 2009 तक यद्यपि महिलाओं और पुरुषों की जीत का प्रतिशत घटा है परंतु इसके बावजूद भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की जीत का अंतर लगभग दो गुणा अधिक रहा है.
>‘आधी आबादी की लड़ाई’, दैनिक जागरण,(पानीपत) 14 मार्च 2014, पृ.7
सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में पुरुष उम्मीदवारों की संख्या 7583 और महिला उम्मीदवारों की संख्या 668 थी. सन् 2009 के चुनाव की तुलना में सन् 2014 में पुरुष और महिला उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है. सन् 2014 में पुरुषों के साथ-साथ महिला उम्मीदवारों की सफलता दर में भी गिरावट आई है. इस चुनाव में पुरुष उम्मीदवारों की सफलता दर 6% थी जबकि महिला उम्मीदवारों की सफलता दर 10% थी. सन् 2009 की तुलना में पुरुषों की सफलता दर में 0.40% की कमी आई और सफलता दर में 1% की गिरावट के बावजूद भी, महिलाओं की सफलता दर पुरुषों की तुलना में 4% अधिक है. संक्षेप में,पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की सफलता दर अधिक है. इसके बावजूद भी पितृसत्तात्मक व्यवस्था ,संकुचित एवं पुरुष केंद्रित मानसिकता से ग्रस्त होने के कारण राजनीतिक दलों के द्वारा महिलाओं को निर्वाचनों में उम्मीदवार नहीं बनाया जाता. यही कारण है की स्वतंत्रता प्राप्ति के75 वर्ष पूरे होने के बाद भी इस समय लोकसभा में कुल महिला सांसद लोकसभा में 78 और राज्यसभा में 24 हैं. अतः लोकसभा और राज्यसभा में कुल महिला सांसद 102 (लोकसभा 78+ राज्यसभा 24) हैं
5.राजनीतिक दलों की महिला अध्यक्ष: बहुत अधिक लैंगिक अंतर
राजनीतिक दल प्रजातंत्रात्मक व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी के समान हैं. राजनीतिक दल समान विचारधारा में विश्वास रखने वाले व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो राजनीतिक मूल्यों और विचारधारा के आधार पर स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक काम करता है तथा सत्ता में आने के पश्चात उन नीतियों को जनहित में लागू करता है. चुनाव के समय राजनीतिक दलों के द्वारा अपने-अपने प्रत्याशियों को मनोनीत किया जाता है और उनके लिए निर्वाचन में विजय प्राप्त करने के लिए मतदाताओं को रुझाता है. चुनाव के द्वारा उनकी नीतियों को औचित्यपूर्णता प्राप्त होती है और एक निश्चित समय तक शासन करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है.वह राजनीतिक दल अथवा गठबंधन जो चुनाव के द्वारा बहुमत प्राप्त करता है वह सत्ता में आ जाता है और जो राजनीतिक दल अथवा गठबंधन चुनाव हार जाता है वह विपक्ष के रूप में भूमिका अदा करता है .विपक्ष का मुख्य कार्य केवल सरकार की आलोचना करना ही नहीं है अपितु जनता के सम्मुख वैकल्पिक नीतियों,योजनाओं इत्यादि को प्रस्तुत करना है और सरकार पर निरंतर दबाव डाल कर नीतियों के क्रियान्वयन करने के लिए जनता को लामबद्ध करता है.जन आंदोलनो के द्वारा सरकारों की कमियों को उजागर करके जनता तक पहुंचता है.परिणाम स्वरूप राजनीतिक दलों के बिना लोकतंत्र की कल्पना करना असंभव है अर्थात “दल विहीन लोकतंत्र “की कल्पना करना मुंगेरीलाल के हसीन सपनों के समान है.राजनीतिक दलों के द्वारा लोकतंत्र को ‘प्रतिनिधि लोकतंत्र’ में परिवर्तित कर दिया जाता है.राजनीतिक दलों का सर्वोच्च नेतृत्व- हाई कमान और अध्यक्ष होता है . हाई कमान और अध्यक्ष के द्वारा राजनीतिक दलों में अनुशासन स्थापित किया जाता है. .राजनीतिक दलों का सर्वोच्च नेतृत्व अपने दल के सदस्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है तथा जनमत व सरकार दोनों को प्रभावित करता है. अत: हमारे सुधी पाठकों को यह जानना जरूरी है कि भारत में राजनीतिक दलों के अध्यक्ष के संबंध में महिलाओं की क्या स्थिति है?
वैश्विक पटल पर महिलाएं अनेक देशों में अपने- अपने राजनीतिक दलों के अध्यक्ष के रूप में विराजमान हैं. लेकिन भारत में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी – भारतीय जनता पार्टी (1980) की स्थापना के बाद से एक भी महिला राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर नहीं रही. दूसरी ओर, वामपंथी दलों जैसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में आज तक एक भी महिला राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनी.आम आदमी पार्टी की दो राज्यों- दिल्ली और पंजाब में सरकार है. इस पार्टी की न तो अध्यक्ष महिला हैं और न ही मुख्यमंत्री. कुछ पार्टियों को छोड़कर क्षेत्रीय पार्टियों का भी यही हाल है. हमारा मानना है कि दक्षिणपंथी विचारधारा या साम्यवादी वामपंथी विचारधारा पर आधारित दोनों पार्टियों की मानसिकता पितृसत्तात्मक है. ऐसे में जब महिलाएं राजनीतिक दलों में निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होंगी तो वास्तव में वे राज्य विधान मंडलों और संसद में निर्वाचित होने के बाद भी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा पाएंगी.
कांग्रेस की स्थिति इन पार्टियों से बिल्कुल अलग है. अब तक पांच महिलाएं कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकी हैं. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, तीन महिलाएँ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष चुनी गईं. इनमें से दो विदेशी महिलाएँ थीं– एनी बेसेंट (सन् 1917) और नीली सेनगुप्ता (सन् 1933) और तीसरी श्रीमती सरोजिनी नायडू (सन् 1928). स्वतंत्रता के बाद, श्रीमती इंदिरा गांधी (सन् 1959 और सन् 1978 से सन् 1984 में अपनी मृत्यु तक) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष थीं. वह इस पद पर निर्वाचित होने वाली चौथी महिला थीं. श्रीमती सोनिया गांधी का नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद पर सबसे लंबे समय तक रहने वाले अध्यक्षों की श्रेणी में आता है. वह सन् 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी जाने वाली पांचवीं महिला हैं और सन् 1998 से सन् 2017 तक और फिर सन् 2019 से सन् 2022 तक – बीस वर्षों तक इस पद पर रहीं. कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन् 1885 में हुई थी. सन्1885 से सन् 2023 तक कांग्रेस पार्टी में कोई भी व्यक्ति इतने लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर नहीं रहा. विश्व स्तर पर सर्वाधिक शक्तिशाली महिलाओं की श्रेणी में श्रीमती इंदिरा गांधी एवं श्रीमती सोनिया गांधी का गौरवपूर्ण स्थान है।
क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री जय ललिता 9 फरवरी 1989 से 5 दिसंबर 2016 तक, वह अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की पांचवीं और सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली महासचिव थीं. कुमारी मायावती 18 सितंबर 2003 को पहली बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष चुनी गईं और 28 अगस्त 2019 को लगातार चौथी बार अध्यक्ष चुनी गईं. कुमारी मायावती चार बार (सन् 1995- सन् 1995, सन् 1997– सन् 1997, सन् 2002– सन् 2003 और सन् 2007– सन् 2012) उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं. भारतीय राजनीति में सशक्त महिला मानी जाती हैं. अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (TMC) की स्थापना 1 जनवरी 1998 को हुई थी तथा सुश्री ममता बनर्जी इसकी संस्थापक अध्यक्ष थी और आज भी है. वर्तमान समय में पूरे भारत में सुश्री ममता बनर्जी एकमात्र महिला मुख्यमंत्री हैं.
हालाँकि राजनीतिक पार्टियाँ लैंगिक समानता की बात करती हैं, लेकिन जहाँ तक पार्टियों के अध्यक्ष पद की बात है, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (TMC), बहुजन समाज पार्टी (BSP) और एआईएडीएमके को छोड़कर सभी राजनीतिक दल ‘पुरुष केंद्रित’ हैं और ‘पितृसत्तात्मक व्यवस्था’ का समर्थन करते हैं. लैंगिक समानता के संबंध में राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में बहुत बड़ा अंतर है. वह ‘स्त्री वंदना’ केवल एक दिखावे के रूप में करते हैं लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. अंततः उनका दृष्टिकोण महिला विरोधी व लैंगिक समानता विरोधी है. ऐसी स्थिति में भारतीय राजनीति में महिलाओं के सशक्तिकरण की बात कहां तक सार्थक हो सकती है?. यह एक यक्ष प्रश्न है.
>https://samajweekly.com राजनीतिक-दलों-की-महिला-अध/ 28.10 23
>https://samajweekly.comराजनीतिक-दलों-की-महिला-अध/
>https://myvoice.opindia.com/2017/12/five-women-presidents-of-the-congress-party/
https://indianexpress.com/article/india/sonia-gandhi-congress-president-rahul-gandhi-politics-4983911/
>https://en.wikipedia.org/wiki/Mayawati
>https://www.britannica.com/biography/Jayalalitha-
6. महिला एवं पंचायती राज: महिला सशक्तिकरण की एक गौरवशाली संवैधानिक क्रांति
15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा लगभग 562 देशी रियासतों —–भारतीय रजवाड़ों से स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात महिलाओं के लिए 50% आरक्षण सभी क्षेत्रों में हो इसका समर्थन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तथा विरोधी दल के धुरंधर नेता और समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया ने भी किया था.हमारा मानना है कि महिलाओं की आधी आबादी है और उस आधी आबादी का सभी संस्थाओं में 50% प्रतिनिधित्व होना चाहिए.महिलाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं से लेकर संसद तक 50% महिला प्रतिनिधित्व की बात काफी लंबे समय से चल रही है.
ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा भारतीय रजवाड़ों से स्वतंत्रता प्राप्त होने से पूर्व रहबर -ए- आजम दीनबंधु सर छोटू राम ने पंजाब में महिलाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं और विधानसभा में आरक्षण का प्रावधान किया था. सर छोटू राम एक दूरदर्शी युग दृष्टा एवं युग पुरुष थे. उनका यह मानना था कि जब तक महिलाओं की कानून और विनिर्माण प्रक्रिया में भागीदारी नहीं होगी तब तक स्त्री -पुरुष समानता का स्वपन पूरा नहीं होगा. यही कारण है कि उन्होंने 80 साल पहले सन् 1943 में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% सीटें तथा विधानसभा में 20% सीटें आरक्षित करने की वैधानिक व्यवस्था का प्रावधान किया.परंतु 9 जनवरी 1945 उनकी मृत्यु के कारण यह अधिनियम लागू न हो सका और ठंडे बस्ते में चला गया. >https://samajweekly.com/%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a3%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ae%e0%a4%b9/
भारतीय संविधान के चौथे अध्याय के राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत अनुच्छेद 40 में ग्राम पंचायतों का वर्णन है. महात्मा गांधी के अनुसार भारत की आत्मा गांव में निवास करती है . उनके’ ग्राम स्वराज’ के सपने को साकार करने के लिए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के जन्मदिन पर 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गांव में पंचायती राज का उद्घाटन किया.इसके उपरांत विभिन्न राज्यों में पंचायती राज लागू किया गया .
>https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/nagaur/news/to-fulfill-mahatma-gandhis-dream-of-swaraj-pt-nehru-had-laid-the-foundation-of-panchayati-raj-from-here-on-his-birth-anniversary-today-it-is-an-important-link-in-rural-development-128982916.html
महिलाओं का पंचायती राज संस्थाओं में प्रतिनिधत्व लगभग सांकेतिक था. सर्वप्रथम सन् 1987 में कर्नाटक सरकार के द्वारा महिलाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं में सीटें आरक्षित की गई . परिणाम स्वरूप कर्नाटक की पंचायती राज संस्थाओं में लगभग 18000 महिलाऐं निर्वाचित हुई. यह एक अतुलनीय उपलब्धि थी. इसके बाद भारतीय संविधान के 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम (1992) के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं और 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम (1992) के द्वारा शहरी स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था की गई. परिणामस्वरूप 73वें संशोधन के आधार पर विभिन्न राज्यों द्वारा पंचायती राज अधिनियम पारित किये गये.
>चंद्र, बीके (संपादित ,पंचायती राज इन इंडिया स्टेटस रिपोर्ट 1999 ,नई दिल्ली, राजीव गांधी फाउंडेशन ,मार्च 2000
>महेश्वरी. ए.’लीडिंग क्वेश्चन’ ,हिंदुस्तान टाइम्स ,22 दिसंबर 1996 ,पृ. 5 व 7
पंचायती राज अधिनियमों के लागू होने के पश्चात लाखों महिलाएं पंचायती राज संस्थाओं में सदस्य व प्रधान के रूप में चुनी गई. सन् 2007 के आंकड़ों के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं में समस्त भारत में 10 .48 लाख (36 .5%) महिलाएं निर्वाचित हुई. यह महिला सशक्तिकरण का एक वैश्विक रिकॉर्ड है. महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर शांतिपूर्ण तरीके से सार्वजनिक जीवन में आईं और क्रांतिकारी भूमिका निभाने लगीं. इस सफलता के परिणामस्वरूप यह आवाज बुलंद हुई ‘आधी आबादी, आधी सीटें,’ यानी महिलाओं को स्थानीय स्वशासन संस्थाओं में 50 फीसदी हिस्सेदारी होनी चाहिए.
कांग्रेस नीत डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के मंत्रिमंडल के द्वारा 27 अगस्त 2009 को यह निर्णय किया कि पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण होना चाहिए .यह आरक्षण देने के लिए संविधान में अनुच्छेद 243डी में संशोधन करने का निर्णय लिया गया और यह उम्मीद की गई इस संशोधन के क्रियान्वन के पश्चात समस्त भारत में लगभग 20,00,000 महिलाएं पंचायती राज संस्था में निर्वाचित होंगी. यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक अभूतपूर्व और क्रांतिकारी निर्णय है क्योंकि इसमें सीधे निर्वाचन में भरी जाने वाली सीटों का 50% अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों एवं पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान किया गया.परन्तु यह प्रस्तावित संविधानिक संशोधन नागालैंड ,मेघालय, मिजोरम, असम के आदिवासी बहुल्य क्षेत्र ,त्रिपुरा और मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर समस्त भारत में लागू होगा
जुलाई 2020 से पूर्व भारत के 20 राज्यों आंध्र प्रदेश , असम, बिहार , छत्तीसगढ़ , गुजरात , हिमाचल प्रदेश, झारखंड , कर्नाटक , केरल , मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र , ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तेलंगाना , तमिलनाडु , त्रिपुरा, उत्तराखंड तथा पश्चिमी बंगाल में पंचायती राज संस्थाओं में 50% आरक्षण की व्यवस्था है. केवल यही नहीं अभी तो शहरी स्थानीय निकायों — नगर निगमों (Municipal Corporations), नगर परिषदों (Municipal Councils) और नगर पालिकाओं( Municipal Committees) में भारत के 10 राज्यों — असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात , हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र , त्रिपुरा , ओडिशा और तेलंगाना में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्था है. >https://samajweekly.com/%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a3%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ae%e0%a4%b9/ )
परिणाम स्वरूप इस समय भारत के पंचायती राज संस्थाओं और नगर पालिकाओं में 15 लाख से अधिक महिला प्रतिनिधि हैं. यह लगभग 40 फीसद है. विश्व के 141 देशों में 3 मिलियन (35.5 प्रतिशत) महिलाएं हैं. विश्व के 141 देशों की सूची में केवल 3 देशों में स्थानीय निकायों के स्तर पर 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं तथा 22 देशों में 40 परसेंट महिलाएं स्थानीय निकायों में है. भारत इन 22 देशों की श्रेणी में आने के कारण स्थानीय स्तर पर महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखता है.
>स्त्रोत: संयुक्त राष्ट्र महिलाएँ, स्थानीय सरकार में महिलाएँ . जनवरी 2023 तक
भारत में पंचायती राज अधिनियम के लागू होने के पश्चात सामान्य वर्ग, पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं में नियम निर्माण ,नियम क्रियान्वयन एवं नियम निर्णय की प्रक्रिया में भाग लेने एवं स्थानीय मामलों में सहभागिता करने का अद्भुत अवसर प्रदान हुआ है और महिला नेतृत्व का विकास भी हुआ है. अनेक अध्ययनों एवं शोध सर्वेक्षणों से यह पाया गया कि 30 वर्ष से 35 वर्ष की आयु की महिलाओं की कार्यशैली, कार्यकुशलता और दक्षता और इससे अधिक आयु की महिलाओं से अधिक बेहतरीन है .महिला सशक्तिकरण का यह रुख सकारात्मक एवं उत्तम संकेतक (इंडिकेटर) है. हमारा यह सुनिश्चित अभिमत है कि पंचायती राज संस्थाओं में महिला आरक्षण के परिणाम स्वरूप महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ-साथ गांव का समुचित विकास का विकास भी होगा क्योंकि महिलाएं अपने कार्यों के प्रति अधिक संवेदनशील और ईमानदार हैं.
व्यावहारिक पहलू:
सैद्धांतिक ग्रुप में महिला सशक्तिकरण का स्वरूप सुनहरा दिखाई देता है परंतु व्यवहार में इसका कृष्ण पक्ष भी है.महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कानून द्वारा जो शक्तियां प्रदान की गई हैं, व्यवहार में पुरुष प्रधान सोच, पितृसत्तात्मक सोच और महिला विरोधी मानसिकता के कारण महिला प्रतिनिधियों को शक्तिहीन बना दिया गया है. महिला प्रतिनिधियों की ओर से उनके परिवार के पुरुष सदस्य पंचायती राज संस्थाओं में उनका प्रतिनिधित्व करते हैं.उदाहरण के तौर पर, हरियाणा में 2016 के चुनावों में, पंचायतों में महिलाएँ साक्षर और शिक्षित थीं. इसके बावजूद, महिला पंच और सरपंच या ब्लॉक समिति सदस्य या अध्यक्ष और जिला परिषद अध्यक्ष महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर भी पंचायतों या बैठकों में भाग नहीं लेते.
यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि हमारे गाँव में 2016 के बाद तलाक के मामले में महिला सरपंच का प्रतिनिधित्व उसके “ससुर” द्वारा किया जा रहा था. इस बैठक में कई गांवों के प्रतिनिधि मौजूद थे. लेकिन महिला सरपंच गायब थी. ऐसी स्थिति में, हालाँकि महिलाएँ निर्वाचित प्रतिनिधि थीं, लेकिन उनके अधिकारों पर अप्रत्यक्ष रूप से परिवार के पुरुषों – ससुर, पति, पुत्र या अन्य सदस्यों का कब्ज़ा हो जाता है.वास्तव में, यह महिलाओं को “सशक्त” करने के बजाय उन्हें “अशक्त” कर रहा है और पुरुषों के “सशक्तीकरण” को बढ़ावा दे रहा है.
यही स्थिति अन्य राज्यों में भी है. महिलाओं की पंचायती राज संस्थाओं में संख्या बढ़ने के बावजूद भी अपनी बात को रखने के लिए महिलाओं को संघर्ष करना पड़ रहा है. उदाहरण के तौर पर एक सर्वेक्षण के अनुसार झारखंड में 56% महिलाएं पंचायती राज संस्थाओं में हैं और वहां भी महिला सरपंच अपनी बात सुनाने के लिए निरंतर संघर्ष कर रही है. न्यू इंडिया एक्सप्रेस में प्रकाशित सर्वेक्षण के अनुसार ‘ 84 महिला मुखियाओं के फोन उनके पति, देवर, बेटे या किसी अन्य रिश्तेदार ने उठाए, जिन्होंने जवाब दिया. “मैं मुखिया का पति हूं”, “मैं मुखियाजी का साला हूं”, “मैं मुखियाजी का बेटा हूं…बताओ, तुम्हारा काम क्या है?… झारखंड में महिला मुखिया के पति को आम तौर पर ‘एमपी’ या ‘मुखियापति’ या ‘मुखिया प्रतिनिधि’ कहा जाता है.’
>https://www.newindianexpress.com/nation/2023/sep/24/even-with-56-per-centpresence-jharkhand-women-sarpanches-struggle-to-be-heard-survey-2617864.html
राजनीति विज्ञान के व्याकरण में हरियाणा का योगदान:
राजनीति विज्ञान के व्याकरण में हरियाणा का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। पिछली सदी के उत्तरार्ध में हरियाणा की राजनीति में “आया राम, गया राम” यानी दलबदलू शब्द मशहूर हो गया था. वर्तमान सदी में भारतीय राजनीति के व्याकरण में नए मुहावरे जुड़ गए हैं- जैसे “सरपंच ससुर”, “सरपंच पति”, “सरपंच बेटा”, और “सरपंच प्रतिनिधि”. हरियाणा के एक इलाके में तो सारी हदें पार हो गईं. सरपंच संघ के चुनाव में प्रमुख और उपप्रमुख समेत कुल 6 पदाधिकारियों में से चार ‘पति’, निर्वाचित हुए जबकि उनकी पत्नियां सरपंच हैं. अधिकारियों, विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों की बैठकों में निर्वाचित महिलाओं की बजाय परिवार के पुरुष सदस्य — “सरपंच ससुर”, “सरपंच पति”, “सरपंच बेटा”, और “सरपंच प्रतिनिधि” भाग लेते हैं. ग्रामीण लोग, अधिकारी, विधायक आदि उन्हें ‘सरपंच साहब’ कहते हैं. यह असंवैधानिक , अवैध ,स्त्री विरोधी तथा पितृसत्तात्मक व्यवस्था का समर्थक है.
अपराध विरोधी कानून के प्रावधान की आवश्यकता
हमारा दृढ़ विश्वास है कि पंचायती राज अधिनियमों में अपराध विरोधी कानून के प्रावधान की आवश्यकता है और इस संबंध में निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
1. यदि महिला पंच, सरपंच या ब्लॉक समिति सदस्य या अध्यक्ष और जिला परिषद सदस्य या अध्यक्ष बैठकों में भाग नहीं लेती हैं और उनके पति, बेटे और परिवार के अन्य पुरुष उनका ‘प्रतिनिधित्व’ करते हैं तो इसको कानूनी अपराध माना जाए. इस अपराध को रोकने के लिए लिए कानूनी प्रावधान होना चाहिए. इसमें कारावास, जुर्माना या दोनों का प्रावधान होना चाहिए.ऐसी महिला पंच, सरपंच या ब्लॉक समिति सदस्य या अध्यक्ष और जिला परिषद सदस्य या अध्यक्ष को उनके पद से हटा देना चाहिए.
2. उन अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी कानूनी कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए जो महिलाओं के परिवार के सदस्यों या तथाकथित प्रतिनिधियों के साथ बैठकर निर्णय लेते हैं.
सारांश में, उपरोक्त कमियों के बावजूद भी पंचायती राज संस्थाओं और नगर पालिका की संस्थाओं में आरक्षण के द्वारा महि लाओं के भूमिका में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है और भारतीय लोकतंत्र के लिए यह एक शुभ संकेत है.
7.राज्यपाल व उपराज्यपाल: महिला प्रतिनिधित्व– जेंडर गैप
भारत के संविधान के अनुच्छेद 153 के अनुसार, प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा. भारत में 28 राज्य हैं और प्रत्येक राज्य में भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक राज्यपाल होता है. अनुच्छेद 154 के अनुसार राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और इसका प्रयोग वह सीधे या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा. राज्यपाल राज्य सरकार का कानूनी प्रमुख है; सभी कार्यकारी कार्रवाइयां राज्यपाल के नाम पर की जाती हैं. हालाँकि, राज्यपाल को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना चाहिए. राज्य स्तर पर वास्तविक कार्यकारी अधिकार मुख्यमंत्री के पास होता है. राज्यपाल राज्य कार्यपालिका का वैधानिक मुखिया है जबकि वास्तविक मुखिया मुख्यमंत्री होता है. अन्य शब्दों में, मुख्यमंत्री ही राज्य का ‘वास्तविक शासक’ होता है.
अभी तक भारतीय राज्यों की 24 महिलाएं गवर्नर और पांच महिलाएं उपराज्यपाल रही हैं.पहली महिला गवर्नर प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती सरोजिनी नायडू ( ” भारत की कोकिला “—15 अगस्त 1947 –2 मार्च 1949 तक) संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश ) की गवर्नर रही हैं.गवर्नर की श्रेणी में श्रीमती प्रतिभा देवी पाटिल (राजस्थान- पहली महिला राज्यपाल 25 जुलाई 2007 – 25 जुलाई 2012) कालांतर में प्रथम महिला राष्ट्रपति निर्वाचित हुई. भारतीय जनता पार्टी नीत शासन में सन् 2014 से वर्तमान तक 6 महिलाएं गवर्नर नियुक्त की गई .इनमें से श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ( झारखंड की पहली महिला राज्यपाल) –अनुसूचित जनजाति से संबंधित पहली महिला को भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति निर्वाचित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. अभी तक भारतीय राज्यों व संघीय शासित क्षेत्रों की क्रमश 24 महिला राज्यपालों और पांच महिला उपराज्यपालों में भारतीय राजनीतिज्ञ सरोजिनी नायडू की सुपुत्री, श्रीमती पद्मजा नायडू का कार्यकाल सबसे लंबा है.वह 3 नवंबर 1956 से 31 मई 1967 तक 10 साल और 209 दिनों तक पश्चिम बंगाल की राज्यपाल रहीं. महिला राज्यपालों की श्रेणी में श्रीमती कमला देवी बेनीवाल का कार्यकाल सबसे छोटा है. वह 26 जुलाई 2014 से 8 अगस्त 2014 तक 31 दिनों के लिए मिजोरम की राज्यपाल रहीं. भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने उन्हें बर्खास्त कर दिया गया. आनंदीबेन पटेल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश– तीन राज्यों की सेवा करने वाली एकमात्र महिला राज्यपाल हैं.
28 राज्यों के अलावा, अंडमान व निकोबार द्वीप, पुडुचेरी,लक्षद्वीप ,दादरा और नगर हवेली , दमन और दीव,दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र), जम्मू और कश्मीर आठ संघीय शासित क्षेत्र हैं. संघीय शासित क्षेत्र का प्रशासक लेफ्टिनेंट गवर्नर हैं. 1 नवंबर 2023 तक, पुडुचेरी को छोड़कर किसी भी महिला ने संघीय शासित क्षेत्र के प्रशासक के रूप में कार्य नहीं किया . पुडुचेरी में यह पांच महिलाएं उपराज्यपाल – श्रीमती चंद्रावती,श्रीमती राजेंद्र कुमारी बाजपेयी,श्रीमती रजनी राय , श्रीमती किरण बेदी और श्रीमती डॉ. तमिलिसाई सुंदरराजन (अतिरिक्त प्रभार) हैं . श्रीमती किरण बेदी {4 साल 263 दिन (29 मई 2016 – 16 फरवरी 2021) की अवधि के लिए पुडुचेरी की सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाली उपराज्यपाल है. आज तक दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र), में महिला उपराज्यपाल की नियुक्ति नहीं हुई है. राज्यपालोंऔर उपराज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है.परंतु अफसोस की बात यह है कि आज तक महिलाओं को इन नियुक्तियों में भी कोई प्राथमिकता नहीं दी गई. यही कारण है कि पुरुषों और महिलाओं के मध्य इन नियुक्तियों में भी जेंडर गैप विद्यमान है.
>https://feminisminindia.com/2019/11/06/padmaja-naidu-female-governor/
https://www.wikidata.org/wiki/Q7123843
>https://upgovernor.gov.in/en/page/constitutional-role-of-the-governor https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_female_governors_and_lieutenant_governors_in_India
>https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_lieutenant_governors_of_Puducherry >https://en.wikipedia.org/wiki/Chandrawati https://www.gkgigs.com/female-governors-in-india/?expand_article=1
8. सन् 1947 से सन् 2023 तक: केवल 16 महिलाएं मुख्यमंत्री
भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ. सन् 1947 से सन् 2023 तक भारतवर्ष में 350 से अधिक पुरुष मुख्य मंत्रियों की अपेक्षा केवल 16 महिलाएं अब तक मुख्यमंत्री रही हैं.इन 16 महिला मुख्यमंत्रियों में अधिक महिला मुख्य मंत्री राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की अपेक्षा क्षेत्रीय दलों से संबंधित हैं.
ऐतिहासिक क्रमानुसार भारतीय कांग्रेस पार्टी की नेता सुचेता कृपलानी(हरियाणा की बेटी- सन् 1963-1967 तक) भारत में उत्तर प्रदेश (भारत में) प्रथम महिला मुख्यमंत्री का श्रेय जाता है.इसके पश्चात नंदनी सतपथी (ओडिशा), शशि कला काकोडर (गोवा 7 जून 1977–27 अप्रैल 1979 तक)
), सैयदा अलवर तैमूर (असम), जाकी रामचंद्रा (तमिलनाडु – 23 दिन की अल्पावधि) जयललिता (तमिलनाडु ),मायावती (उत्तर प्रदेश – कुमारी मायावती चार बार (1995- 1995, 1997–1997, 2002–2003 और 2007–2012 तक), राजेंद्र कौर भट्ठल (पंजाब 83 दिन की अल्पावधि),राबड़ी देवी (बिहार) ,सुषमा स्वराज( -हरियाणा की बेटी -दिल्ली 52दिन की अल्पावधि), शीला दीक्षित( दिल्ली -तीन बार ), उमा भारती (मध्य प्रदेश) वंसुधरा राजे (राजस्थान) , ममता बनर्जी( पश्चिम बंगाल -तीसरी बार बार 20 मई 2011 से 25मई 2016,26 मई 2016 से 4 मई 2021,5मई 2021से वर्तमान ),आनंदीबेन पटेल( गुजरात) तथा महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर हैं.
इस समय इस समय भाजपा नीत एनडीए की 16 राज्यों में सरकारें हैं .परंतु इन राज्यों में ‘महिला वंदना’ अर्थात एक भी महिला मुख्यमंत्री नहीं है. 25 अक्टूबर 2023 के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) 4 राज्यों– कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में सत्ता में है .इन राज्यों में पार्टी को बहुमत प्राप्त है. इन राज्यों के अतिरिक्त बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में कांग्रेस की सांझा सरकारें हैं. अत: प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में इस समय कांग्रेस सात राज्यों में सत्ता में है परंतु इन राज्यों में भी महिला मुख्यमंत्री नहीं है.
16 महिला मुख्यमंत्रियों में संबंध में कुछ महत्वपूर्ण हाई लाईट्स इस प्रकार हैं:
प्रथम,अभी तक सर्वाधिक लंबा कार्यकाल(लगभग 15 वर्ष) दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित का रहा है.द्वितीय् ,सर्वाधिक अल्पावधि केवल (23 दिन) तमिलनाडु की मुख्य मंत्री श्रीमती वीन जानकी रामचंद्रन की है.तृतीय,सुश्री मायावती(भारत में–यूपी)अभी तक एकमात्र दलित महिला मुख्यमंत्री है. चतुर्थ,श्रीमती राबड़ी देवी (बिहार )तथा साध्वी उमा भारती(मध्यप्रदेश ) पिछड़े वर्गों से संबंधित महिलाएं हैं.पंचम,श्रीमती सैयद अलवर तैमूर (असम)तथा श्रीमती महबूबा मुफ्ती(जम्मू कश्मीर)मुस्लिम महिलाएं हैं. छठा श्रीमती राजेंद्र कौर भट्टल( पंजाब)सिख धर्म से संबंधित हैं. और
अंततः इस समय केवल पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी समस्त भारत में एकमात्र महिला मुख्यमंत्री है .
>https://www.indiatoday.in/india/story/india-can-now-boast-of-four-women-chief-ministers-133691-2011-05-12https://testbook.com/question-answer/which-indian-state-had-women-chief-ministers-more–623c6debea1e12d87416e910
>https://www.oneindia.com/list-of-chief-ministers-of-west-bengal/https://indianexpress.com/article/india/mamata-banerjee-longest-serving-woman-cms-in-india-7300646/
>https://www.mapsofindia.com/my-india/government/which-are-the-states-indian-national-congress-ruling-in-2023
>https://www.jansatta.com/national/karnataka-election-result-2023-list-of-congress-ruled-states/2807560/
वामपंथी दलों की केरल, बंगाल और त्रिपुरा में सरकारें रही हैं .इस समय केरल में कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (मार्क्सवादी) नीत लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट(LDF) की सरकार है .परंतु 1950 के दशक से लेकर आज तक लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की किसी भी सरकार की महिला मुख्यमंत्री नहीं रही . अत:स्पष्ट है कि चाहे वह वामदलों का लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट(LDF) हो अथवा भारतीय जनता पार्टी( भाजपा) नीत एनडीए(NDA) हो अथवा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नीत यूपीए(UPA) हो यह सभी महिला सशक्तिकरण की बात तो करते हैं परंतु महिलाओं को शक्ति हस्तांतरण करने के लिए तैयार नहीं है. इन दलों के द्वारा किए गए सभी वायदे खोखले और जुमले नजर आते हैं. यही कारण है कि मुख्यमंत्री के पद के दृष्टिकोण से महिला राजनीतिक सशक्तिकरण सबसे निचले स्तर पर है.
>https://www.ndtv.com/india-news/not-1-woman-chief-minister-in-16-nda-states-derek-obrien-on-womens-quota-4410744
>https://www.google.com/search?q=congress+led+government+states+in+india&oq=congress+led+govts+in+states+in+indaia&aqs=chrome.1.69i57j0i22i30j0i390i650l4.41428j0j4&sourceid=chrome&ie=UTF-8
>https://en.wikipedia.org/wiki/Left_Democratic_Front)
9. राज्य विधान सभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: लैंगिक अंतर में भिन्नता–छत्तीसगढ़ (14.44%) ) से हिमाचल प्रदेश में 68 सदस्यीय विधानसभा में केवल एक महिला विधायक
दिसंबर 2022 में केंद्र सरकार के मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, भारत की राज्य विधानसभाओं में 10% से अधिक महिला विधायक बिहार (10.70%), छत्तीसगढ़ (14.44%), हरियाणा में 10% हैं. झारखंड (12.35%), पंजाब (11.11%), राजस्थान (12%), उत्तराखंड (11.43%), उत्तर प्रदेश (11.66%), पश्चिम बंगाल (13.70%) और दिल्ली (11.43%) में हैं.
9 दिसंबर, 2022 को केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा को बताया कि 19 राज्य विधानसभाओं—आंध्र प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, केरल में , कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, तमिलनाडु और तेलंगाना में 10% से कम महिला विधायक हैं. प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के राज्य गुजरात में 8.2% महिलाएं विधानसभा के लिए चुनी जाती हैं। देवभूमि हिमाचल प्रदेश, जहां कई देवी-देवताओं के मंदिर मौजूद हैं. दिसंबर, 2022 में 68 सदस्यीय विधानसभा में केवल एक महिला रीना कश्यप,( Reena Kashyap) विधायक है. नागालैंड की स्थापना के बाद 2023 तक 13 विधानसभाओं के चुनावों में एक भी महिला प्रतिनिधि नहीं चुनी गई. मार्च, 2023 के चुनावों में पहली बार नागालैंड की विधानसभा के चुनावों में एनडीपीपी (NDPP) की 2 महिलाएं सुश्री हेकानी जखालू (Hekani Jakhalu) व सुश्रीसल्हौतुओनुओ क्रूस (Salhoutuonuo Kruse) निर्वाचित हुई.इन दोनों महिलाओं की चुनाव में विजय वास्तव में महिला राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा में नागालैंड के इतिहास में एक मील का पत्थर है. भारत के विभिन्न राज्यों में ऐसे असंख्य निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां से आज तक एक भी महिला विधान सभा के लिए निर्वाचित नहीं हुई है.
>https://www.ndtv.com/india-news/not-1-woman-chief-minister-in-16-nda-states-derek-obrien-on-womens-quota-4410744) .)
>https://timesofindia.indiatimes.com/elections/assembly-elections/nagaland/news/meet-hekani-jakhalu-and-salhoutuonuo-kruse-who-created-history-by-becoming-first-2-women-mlas-in-nagaland/articleshow/98363688.cms?from=mdr
> https://www.thehindu.com/elections/nagaland-assembly/hekani-jakhalu-becomes-first-woman-mla-in-nagaland-history/article66571124.ece
>https://www.hindustantimes.com/elections/manipur-assembly-election/ five-women-elected-to-60-member-manipur-assembly-it-is-a-first-101647029097432.html
>https://thewire.in/women/himachal-pradesh-assembly-women >https://www.livehindustan.com/assembly-elections/हिमाचल-प्रदेश-चुनाव/कहानी-हिमाचल-चुनाव-2022-result-68-member-assembly-will-have-just-one- Woman-mla-reena- kashyap-7465179.html
>thehindu.com/news/national/19-state-legislatures-have-less-than-10-women-member-center/article66252443
> https:// Indianexpress.com/article/पोलिटिकल-पल्स/हेकानि-जखालु-नागालैंड-फर्स्ट-वुमन-mla-ndpp-8475448/
10.सन् 1950 से सन् 2023 तक राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के पद : जेंडर गैप– क्रमशः 14 अनुपात 2 व शून्य
राष्ट्रपति का भारत का प्रथम नागरिक है. संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार, देश की ‘कार्यकारी शक्ति’ राष्ट्रपति में निहित है और इसका प्रयोग राष्ट्रपति सीधे या संविधान के अनुसार अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करता है.भारत के संविधान के अनुसार राष्ट्रपति को ‘सलाह और सहायता’ के लिए मंत्री परिषद होती है. वैधानिक तौर पर राष्ट्रपति के पास शक्तियां होती हैं परन्तु वह केवल ‘वैधानिक अध्यक्ष’ है परंतु शक्तियों का वास्तविक प्रयोग प्रधानमंत्री के द्वारा किया जाता है.प्रधानमंत्री ही वास्तव में भारतीय संसदीय प्रणाली में ‘शासक’ के रूप में है. अन्य शब्दों में, राष्ट्रपति संवैधानिक या नाममात्र प्रमुख होता है जबकि ‘वास्तविक प्रमुख’ प्रधान मंत्री होता है.
.सन्1950 में भारतीय संविधान के क्रियान्वित होने के पश्चात अभी तक 18 राष्ट्रपतियों (तीन कार्यवाहक राष्ट्रपति सहित) में केवल दो महिलाएँ हुई हैं — भारत की पहली महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल (25 जुलाई 2002-25 जुलाई 2012) और दूसरी वर्तमान राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू (25 जुलाई 2022—वर्तमान) ने यह पद ग्रहण किया है। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भारत की 15 वीं राष्ट्रपति हैं.
भारत में राष्ट्रपति के बाद उपराष्ट्रपति पद होता है(संविधान के अनुच्छेद 63-73).भारत में उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पादेन अध्यक्ष होता है. सन् 1950 से सन् 2023 तक 14 उपराष्ट्रपतियों ने पद ग्रहण किया है. अभी तक 14 उपराष्ट्रपतियों में एक भी महिला उपराष्ट्रपति के पद पर विराजमान नहीं रही है. अर्थात उपराष्ट्रपति के पद पर जेंडर गैप 14 अनुपात शून्य है.
>https://presidentofindia.nic.in/Profile
>https://vicepresidentofindia.nic.in/former-vice-presidents
>https://en.wikipedia.org/wiki/Vice_President_of_India
11. सन् 1947 से सन् 2023 तक भारतीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 10.53% : जेंडर गैप पुरुष 89.53% अनुपात महिला 10.53%
संविधान के अनुच्छेद 74(1) में कहा गया है कि राष्ट्रपति को ‘सहायता और सलाह’ देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका मुखिया प्रधान मंत्री होगा . संविधान के अनुच्छेद 75 केअनुसार प्रधान मंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी, और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति प्रधान मंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी. मंत्री राष्ट्रपति की इच्छा तक पद पर बने रहेंगे.
15 अगस्त1947 सेआज तक भारत में 14 प्रधानमंत्री हुए हैं.भारतवर्ष के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू(15 अगस्त 1947 से27मई1964)का कार्यकाल अभी तक भारतीय इतिहास में सबसे लंबा है तथा अटल बिहारी वाजपेयी की प्रथम सरकार(1996) सर्वाधिक अल्पकालिक थी जो केवल 13 दिन तक चली .वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई दामोदरदास मोदी(नरेंद्र मोदी)भारत के 14 वें मप्रधानमंत्री(30 मई 2014 से आज तक)हैं .कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यूपीए)के नेता डॉ मनमोहन सिंह अल्पसंख्यक धर्म(सिख धर्म )से संबंधित प्रथम प्रधानमंत्री(2004–2014)रहे हैं. यद्यपि अभी तक पिछडे वर्गों से दो प्रधानमंत्री(एचडी देवगौड़ा एवं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) हैं.परंतु भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग(मुस्लिम धर्म )तथा अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों से संबंधित कोई भी व्यक्ति अभी तक प्रधानमंत्री नहीं बना. सन् 1947 से आज तक, 76 वर्षों में केवल एक महिला ,श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री( 1966-1967 प्रथम बार तथा 1980 -1984 दूसरी बार )के पद पर आसीन रही हैं. अपने शासनकाल के दौरान श्रीमती इंदिरा गांधी की उपलब्धियों में बैंकों का राष्ट्रीयकरण (जुलाई 1971),प्रिवी पर्सेज का उन्मूलन करना, भारत-पाक युद्ध सन्1971 में विजय प्राप्त करना , बांग्ला देश का निर्माण करना ,पाकिस्तान 93,000 सैनिकों का भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण करना तथा पोखरण में सन्1974 में भूमिगत परमाणु परीक्षण करना उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों में सम्मिलित है.इन्हीं उपलब्धियों के कारण विश्व के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ प्रधान मंत्रियों की श्रेणी में इंदिरा गांधी का नाम स्वर्ण अक्षरों मेंअंकित हैऔर एक ध्रुव तारे की भांति चमकता रहेगा.
>https://www.britannica.com/topic/list-of-prime-ministers-of-India-1832692 https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_prime_ministers_of_India
>https://en.wikipedia.org/wiki/Indira_Gandhi
सन् 1947 से आज तक भारतीय मंत्रिपरिषद में भारी लैंगिक अंतर रहा है महिलाओं को उनकी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिला. भारतीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सन् 1947 में 2.63%, सन् 1957 में 6%, सन् 1964 में 9.8%, सन् 1967 में 7.25%, सन् 1980 में 7.50%, सन् 1984 में 11.93% था. सन् 1991 में 12%, सन् 1997 में 11.36%, सन् 1999 में 11.43 में %, सन् 2009 में 13.79% और सन् 2019 में 10.53% है. सन् 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पिछले 20 वर्षों में सबसे कम है. भारत की भाजपा नीत एनडीए मंत्रिपरिषद के 77 मंत्रियों में से केवल 11 महिलाएँ हैं. दूसरे शब्दों में, 11 मंत्रियों में केवल एक महिला मंत्री है. सन् 1947 से सन् 2019 तक केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल चार गुना बढ़ी है. यदि इसी धीमी गति से केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व रहा तो महिलाओं के अच्छे दिन आने में कई साल लग जायेंगे और बहुत लंबा सफर तय करना पड़ेगा. मंत्रिपरिषद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व यह सिद्ध करता है कि पुरुष प्रधान सोच हावी है. पुरुष सत्ता के केंद्र में बने रहना चाहते हैं और महिलाओं को उनका अधिकार देने के लिए तैयार नहीं हैं. महिलाओं को उनकी जनसंख्या के अनुसार अधिकार दिया जाना चाहिए. डॉ. भीमराव अंबेडकर के सूत्र ‘शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित हो’ को अपनाना होगा और मंत्रिपरिषद में अपनी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से संघर्ष करना जरूरी है.
वैश्विक स्तर पर न केवल संसदों में बल्कि कार्यकारी स्तर पर भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। आईपीयू-यूएन महिला मानचित्र (7 मार्च 2023) के नवीनतम संस्करण के अनुसार, 1 जनवरी 2023 तक 151 देशों (17 राजतंत्रीय व्यवस्थाओं को छोड़कर) में 11.3 प्रतिशत देशों में महिलाएँ राष्ट्रप्रमुख हैं और 9.8 प्रतिशत देशों में महिलाएँ शासनप्रमुख हैं. देशों का. एक दशक पहले, महिला राष्ट्राध्यक्षों की संख्या केवल 5.3% थी और महिला शासनाध्यक्षों की संख्या 7.3% थी. महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में यूरोपीय देश अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. फिलहाल यूरोप के अलग-अलग देशों में 16 महिलाएं नेतृत्व कर रही हैं. 1 जनवरी 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक 22.8 फीसदी महिलाएं नीति-निर्धारक कैबिनेट सदस्यों का नेतृत्व करती हैं. लेकिन कैबिनेट में 50% या अधिक महिलाओं वाले देश अल्बानिया (66.7%), फ़िनलैंड (64.3%), स्पेन (63.6%), निकारागुआ (62.5%), लिकटेंस्टीन (60%), चिली 58.3%), बेल्जियम (57.1%) आदि हैं, लेकिन यूरोप और उत्तरी अमेरिका में कैबिनेट में महिलाओं की संख्या 31.6 प्रतिशत है. लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में 30.1 प्रतिशत महिलाएं हैं. सबसे बड़ा जेंडर गैप यह है कि ओशिनिया और पश्चिमी एशिया के अधिकांश देशों में मंत्रिमंडलों का नेतृत्व करने वाली एक भी महिला नहीं है.
यद्यपि वैश्विक स्तर मंत्रिमंडलों और मंत्रिपरिषदों में महिलाओं की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है .परंतु जहां तक विभागीय नेतृत्व का संबंध है इसमें जेंडर गैप पाया जाता है. महिला विकास, लैंगिक समानता, सामाजिक समावेशन, सामाजिक सुरक्षा, स्वदेशी ,अल्पसंख्यक इत्यादि क्षेत्रों से संधिंत विभागों में शीषर्थ पदों पर अधिक महिलाएं आसीन हैं.परंतु सार्वजनिक प्रशासन, शिक्षा ,पर्यावरण, ऊर्जा, प्राकृतिक संसाधन, इंधन ,खनन, परिवहन इत्यादि क्षेत्रों में महिलाएं विभिन्न देशों के मंत्रिमंडलों और मंत्रिपरिषदों में शीर्ष पदों पर बहुत कम है .इसके बिल्कुल विपरीत अधिक महत्वपूर्ण विभागों जैसे वित,अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा,डिफेंस,विदेश विभाग, गृह विभाग, इत्यादि में वैश्विक स्तर पर पुरुषों का अधिपत्य जारी है.प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर वित्त, न्याय, रक्षा और गृह विभाग पर पुरुषों का नियंत्रण है. पितृसत्तात्मक मानसिकता के कारण इन क्षेत्रों में पुरुषों का वर्चस्व स्थापित हो गया है और राष्ट्रीय मंत्रिमंडलों में महिलाएँ बैकफुट पर हैं.
>https://theasianindependent.co.uk/democratic-countries-at-the-global-level-womens-representation-and-indias-place-reappraisal/
>https://samajweekly.com/democratic-countries-at-the-global-level-womens-representation-and-indias-place-reappraisal/
https://www.indiatoday.in/india/story/women-female-ministers-modi-central-bjp-nda-govt-1825236/
12. भारतीय लोकसभा में महिला प्रतिनिधित्व : जेंडर गैप
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. परंतु भारतीय संसद एवं राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल प्रतीकात्मक है . सन् 1952 से सन् 2019 तक लोकसभा के 17 निर्वाचन संपन्न हो चुके हैं. सन् 1952 में लोकसभा की कुल सीटें 499 थी. इनमें से महिला प्रतिनिधियों की संख्या 22 थी .यह कुल संख्या का केवल 4.4 प्रतिशत था. 15वीं लोकसभा चुनाव (2014) के बाद से लोकसभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में लगातार बढ़ोतरी हुई है। 15वीं लोकसभा (2014) में 59 महिला सांसद थीं और यह कुल सांसदों की संख्या (545) का 10.9% है. 16वीं लोकसभा (2014) में 64 महिला सांसद थीं और यह कुल सांसदों की संख्या (545) का 11.2% है. वहीं 17वीं लोकसभा (2019) में 78 महिलाएं चुनाव जीतीं और यह कुल सांसदों की संख्या (545) का 14.6% है. ’ यह कोई अभूतपूर्व वृद्धि नहीं है. लगभग 7 दशक में अभी तक महिला प्रतिनिधित्व के संबंध में केवल 15 कदम चलें है.
>Source: Election Commission of India स्रोतः भारत निर्वाचन आयोग
भारत में प्रथम लोकसभा चुनाव (सन् 1951- 52) से लेकर 17वीं लोकसभा के चुनाव (सन् 2019)सहित 7 दशक में केवल 690 महिलाएं लोकसभा में निर्वाचित हुई हैं .इनमें मुस्लिम महिलाओं की संख्या केवल 25 है .इस समय लोकसभा में कुल महिला सांसदों की संख्या(78)14 .6 प्रतिशत है. यद्यपि हम भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र व लोकतंत्र की जननी कहते हैं . सन् 2014 में 16वीं लोकसभा के चुनाव में 66 महिला निर्वाचित हई जो कि कुल संख्या का लगभग 12.6% है.विश्व रैंकिंग में महिला प्रतिनिधि के संबंध में सन् 2014 में 193 देशों की सूची में भारत का 149 वां स्थान था. सन् 2019 के लोकसभा के चुनाव में 78 महिलाएं निर्वाचित हुई. यह संख्य कुल सांसदों की संख्या का 14 .6 प्रतिशत है. वैश्विक रैंकिंग में भारत का स्थान 148 वां है और हम चीन, नेपाल व पाकिस्तान से भी पीछे हैं.
आज तक विधानसभाओं और लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15% से अधिक नहीं है. इसका मूल कारण यह है कि भारत में महिलाओं के लिए विधान पालिकाओं ,लोकसभा और राज्यसभा में संविधानिक उपबंधों अथवा कानूनी उपबंधों अथवा स्वैच्छिक आधार पर राजनीतिक दलों में महिलाओं के लिए आरक्षित कोटे की व्यवस्था नहीं है. विश्व के 100 से अधिक राज्यों में किसी ने किसी प्रकार की आरक्षित कोटा निश्चित किया गया है.
>https://data.ipu.org/women-ranking
>http://archive.ipu.org/wmn-e/classif.htm
>https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/womens-reservation-bill-1631597820-1
>https://thewire.in/government/womens-reservation-bill-the-issues-to-consider
>https://thewire.in/government/womens-reservation-bill-the-issues-to-consider
>https://theasianindependent.co.uk/democratic-countries-at-the-global-level-womens-representation-and-indias-place-reappraisal/
>https://samajweekly.com/democratic-countries-at-the-global-level-womens-representation-and-indias-place-reappraisal/
संक्षेप में, भारत में संवैधानिक प्रावधानों या कानूनी प्रावधानों के तहत या राजनीतिक दलों में स्वैच्छिक आधार पर राज्य विधानसभाओं, लोकसभा और राज्यसभा में महिलाओं के लिए आरक्षित कोटा का कोई प्रावधान नहीं है। दुनिया के 100 से ज्यादा राज्यों में किसी न किसी तरह का आरक्षित कोटा तय किया गया है. भारत में 106वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2023) के तहत विधानसभाओं और लोकसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षित कोटा का प्रावधान किया गया है.हालांकि, आरक्षित कोटा नई जनगणना और नए परिसीमन के बाद ही लागू किया जाएगा.
पिछड़े वर्गों की अनुमानित जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या का लगभग 60% है. लेकिन पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए विधानसभाओं और लोकसभा में आरक्षण की व्यवस्था नहीं करना एक ज्वलंत मुद्दा है. वोट बैंक बनाने के लिए सभी राजनीतिक दल नवंबर 2023 में होने वाले पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों में पिछड़े वर्ग का राजनीतिक मुद्दा उठा रहे हैं, लेकिन पिछड़े वर्ग की महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने में पार्टियों की संकीर्ण मानसिकता है. राजनीतिक दलों को स्वेच्छा से सभी महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत स्वैच्छिक कोटा निर्धारित करना चाहिए. यदि राजनीतिक दल ऐसा नहीं करते हैं तो उनके सिद्धांत और व्यवहार में बड़ा अंतर है. भारतीय समाज और भारतीय राजनीतिक दल संकीर्ण पितृसत्तात्मक मानसिकता से ग्रस्त हैं.अतः इस पुरुष केंद्रित मानसिकता में परिवर्तन होना अति आवश्यक है. इस मानसिकता में एक दम परिवर्तन होना संभव नहीं है.इसलिए महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा.महिलाओं को राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा एक बहुत लंबा सफर तय करना होगा.