कुछ ऐसी जातियां हैं जिन्हे आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जा सकता है, क्योंकि वह ज्यादा विकसित हो गई हैं।‌ ज्यादा विकसित कितनी हो गई है?

(समाज वीकली)- वाई वी चंद्रचूड़ एक ऐसे फैमिली से आते हैं जो मराठा साम्राज्य में सरदार और जागीरदार रहें । करीब दो सौ साल तक । यह भी मेरिट के आधार पर नहीं, जन्म के आधार पर।‌ शिवाजी से लेकर 1818 तक।‌ जब तक अंग्रेजों ने पेशवाओं को परास्त नहीं कर दिया ।

D Y चंद्रचूड़ इन्हीं के सुपुत्र हैं और कोलेजियम सिस्टम से सुप्रीम कोर्ट के माननीय मुख्य न्यायाधीश हैं।‌ जाति आरक्षण और प्रविलेज क्या होता है यह उनसे बेहतर कौन जानता हैं।‌

उन्होने निर्णय दिया कि दलित वर्ग में कुछ ऐसी जातियां हैं जिन्हे आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जा सकता है, क्योंकि वह ज्यादा विकसित हो गई हैं।‌ ज्यादा विकसित कितनी हो गई है? कोई स्टेट खरीद लिया, सुप्रीम कोर्ट का जज बन गया, भारत का प्रधानमंत्री बन गया, अंबानी और अदानी के टक्कर की बिजनेस मैन बन गया, किसी प्रांत में १००० बिघा जोत वाला किसान बन गया? कितना विकसित हो गया?

कोई एक आईएस बन गया, कोई डिप्टी कलक्टर, कोई इंजिनियर, कोई डॉक्टर, एकाध प्रोफेसर वह भी गिने – चुने. क्लास वन ऑफिसर बनने में आरक्षण तो है, लेकिन मेरिट का टिटिम्मा भी है ।‌ इस मेरिट को लेकर न्याय और न्यायधीश बहुत चिंतित रहते हैं । इस डिसिजन में भी मेरिट पर खूब लिखा गया है । 565 पेज का ऑर्डर है । सात जजों ने फैसला लिखा है। जिसमें केवल दो जज ने फैसला लिखा है, तीन जजों ने आंख मूंदकर समर्थन किया है । माननीय चंद्रचूड़ और माननीय गवई ने डिसीजन लिखा है, तीन ने समर्थन किया है ।‌ एक ने केवल इतना कहा है कि अगर sub – classification होगा है तो उसका आधार substantial data होना चाहिए । इस तरह यह निर्णय बहुमत से पारित है ।

बाकी बचे दो उनमें से एक ने मि. गवई का खूब गुनगान किया है और गीता – पुराण, उपन्यास सबको उद्धृत कर दिया है । बहुत मजेदार है । वह भाग कहानी की तरह ही है ।

सबसे बढ़िया डिसिजन माननीय जे बेलम त्रिपाठी हैं । पढ़कर लगा कि इस आदमी में न्याय सेंस हैं और सचमुच सैल्यूट का अधिकारी है । उनके डिसिजन को पढ़ने का बाद लगा कि सही मायने में यहीं न्यायाधीश का कर्तव्य होना चाहिए। कानून की सही संदर्भ में सही व्याख्या । यहीं असली न्याय है । अब उनके पास बहुमत नहीं है तो ,इस निर्णय को डिसेंट नोट कहा जाएगा ।

अब तो डिसीजन हो चुका है, बहुमत की मुहर लग गई है । लेकिन यह कानून और संविधान की व्याख्या भर है। कोर्ट ने बस इतना कहा कि Schedule Caste की लिस्ट को sub – classified किया जा सकता है। इसपर संविधान में कोई प्रावधान ऐसा प्रावधान नहीं है जो कहता है कि विभाजन नहीं होना चाहिए ।

यह उसी तरह का सोच का जैसे कहा गया है कि – सच बोलो, लेकिन जज ने कहा कि लिखा है – सच बोलो, लेकिन यह कहां लिखा है कि झूठ मत बोलो, तुम झूठ बोल सकते हो। यह न्यास की गांव में धनिया – पुदीना बोना हुआ ।

तुम यह भी कह रहे हो कि Schedule Caste की सूची में बदलाव नहीं होना चाहिए और यह भी कह रहे हो कि sub – classification होना चाहिए । तुम्हें पता है कि तुम्हारा डिसिजन गलत है, इसलिए एक जन कहते हैं क्रिमी लेयर लागू कर दो , लेकिन उसका criteria OBC वाला नहीं होना चाहिए । OBC में क्रिमी लेयर की criteria है , जिसके पास 8 लाख या उससे ज्यादा की आय हो वह क्रिमी लेयर में हैं । उसे आरक्षण नहीं मिलता ।‌ यहीं स्टैंडर्ड्स EWS के लिए है ।‌

फिलहाल ते आंकड़े हैं कि मात्र 5 % लोगो ने आयकर भरा जिनकी आय शून्य रिटर्न से ज्यादा है । जब देश में मात्र पांच प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो 7 लाख से उपर कमाई करते हैं तो क्रिमी लेयर कौन हो सकता है ? इस हिसाब से तो कोई नहीं !

अब जज साहब की बदमाशी यह है, अपरोक्ष रुप से कह रहे हैं कि SC के लिए इस 8 लाख से नीचे का criteria कर दो । क्यों भाई ? क्या 8 लाख से नीचे कमाने वाला OBC और EWS गरीब है और 5 लाख से उपर कमाने वाला SC समृद्ध हो गया ? यह तो एक तरह से जातिवादी सोच ही, सोच‌ में equality कब आयेगी न्यायाधीश महोदय,  धरातल पर का तो छोड़ ही दीजिए ।‌

यह है Sub – classification का प्लान ।‌

दूसरे कहते हैं कि जातियों को ही sub – classified कर दो।‌ क्योंकि कुछ जातियां आगे बढ़ गई है ,कुछ बहुत पीछे हैं । इससे क्या होगा ? बिहार में 2005 और 2011 से sub – classification है। 2005 में चार जातियां दलित थी, बाकी महादलित । चार जातियां – चमार – दुसाध पा सी और धोबी दलित हुई । बाकी 19 जातियां महादलित। मुझे भी लगा था कि चलो नीतिश कुमार कुछ अच्छा तो कर रहे हैं । मुसहर, नट, हलखोर, …को मौका मिलेगा । इनमें से कुछ पी सी एस, कुछ इंजिनियर, कुछ डॉक्टर ..बन जायेंगे । लेकिन इन 19 सालों में नीतिश कुमार बता दें कि महादलित के नाम पर इनमें से कितने को पी सी एस, डॉक्टर और इंजिनियर बना दिये? बनाना होता तो 19 साल बहुत समय होता है ,एक नया पौद्ध या पीढ़ी तैयार हो जाती है । आप खुद ढूंढ़ सकते हैं कि इनमे 11 भी पी सी एस या क्लास वन ऑफिसर नहीं मिलेंगे ।‌ क्यों ? क्योंकि महादलित बनाकर उन्होंने केवल अपना पॉलिटिकल एम्बिशन पूरा किया । 2011 में दलित में से चमार, पासी और धोबी को निकालकर महादलित बना दिया। महादलित के नाम पर क्या दिया केवल टोला सेवक और आंगनबाड़ी ।‌

अब बिहार में दलित में केवल एक जाति है – दुसाध, बाकी 22 जातियां महादलित हैं । बिहार में चूंकि दुसाध पॉलिटिकल अगुआ है इसलिए उसे सेग्रिगेट कर दिया गया ।‌ लेकिन इससे दुसाध जाति को नुक्सान क्या हुआ ? वह और संघर्ष किए, अपने लिए विकल्प तलाश किए और आज भी अगुआ हैं।‌

पहले बिहार में चमार – दुसाध युग्म की तरह यूज होता था, आज भी होता है, लेकिन चमार के महादलित बनने से यह युग्म टूटा है । जहां दलित की बात आती है चमार दुसाध के साथ नहीं आ पाते और दुसाध चमार के साथ ।‌ इससे दरार ये गैर दलित जातियों का पॉलिटिकल स्वार्थ सिद्ध होता है।‌ नीतिश सरकार में चमार को लगा कि यह अपनी सरकार है, महादलित की सरकार है। वे सरकार का समर्थन करते रहे, और सरकार महादलित के फंड को डायवर्ट कर अपना विकास करती रही। SC फंड का डायवर्जन का फंडा बिहार ने ही दिया है पूरे देश को और SC – Sub classification का भी ।‌ दुसाध जब SC fund diversion पर बोले तो सरकार कहती हैं कि यह तुम्हारे लिये नहीं हैं, महादलित के लिए है। जब वह बोल नहीं रहा है तो तुम कैसे बोल सकते हो। इस तरह यह गैर दलित की बंदर बनने की कहानी है और दलित बिल्ली कर तरह लड़ रहा है।

खैर ,इसमें समझने वाली बात है कि जाति ते आधार पर sub- classification का फायदा क्या है ? बिहार के उधाहरण ये समझते हैं – वहां करीब 21 % आरक्षण है । मान लिजिए कि 100 पोस्ट निकले । उसमे 21 पोस्ट‌ SC के लिए है । अब एक धोबी १ % है, उसे २१ % में चुने जाने की संभावना है। वह 21 में से 5 पोस्ट भी ले सकता है और 21 पोस्ट भी ।‌ लेकिन इस sub – classification से सारी जातियों की चुने जाने की probability घट जायेगी । यह एक घाटा हुआ । दूसरा sub – classification का नुक़सान यह है कि अगर किसी तरह का sub – classification हुआ तो, sub – classified जातियों में not found और not found suitable की संख्या बढ़ेगी और SC की बहुत सारी पद रिक्त रह जाएंगे ,क्योंकि इस पद पर ‘आगे बढ़े हुए ‘ दलितों को नहीं लिया जायेगा ।‌ फिर इन रिक्त पदों को जनरल में कंवर्ट कर जनरल को ले लिया जाएगा । टोला सेवक और आंगनबाड़ी में ऐसा हुआ है । महादलित नहीं मिलने पर दुसाध को नहीं लिया गया और उस जगह पर जनरल के नाम पर राजपूत और बनिया को ले लिया गया । तीसरा नुकसान है कि इस विभाजन का पॉलिटकल लिवरेज लेने के लिए अछूत जातियों के बीच दरार पैदा किया जाता है ।

कोई एक फायदा हो तो सोच कर बता दीजिए ।‌

हालांकि जज साहब लोग इस बात पर सहमत तो हैं कि बंटवारा हो सकता है ,लेकिन इस बात पर बुरी तरह कंफ्यूज हैं कि बंटवारा का criteria क्या होना चाहिए । हालांकि यह भी कहा है कि SC की कोई भी जाति आरक्षण से बाहर नहीं होना चाहिए , क्योंकि स्टेट को पावर ही नहीं है कि किसी जाति को सूची से बाहर कर दें या किसी जाति को अंदर ले लें !
अजीब फैसला है, बंटवारा का हर criteria स्टेट के विवेक पर छोड़ दिया गया है। अब नीतिश कुमार जैसा आदमी रहेगा तो सब गुड़ – गोबर कर देगा ।‌

न्यायाधीश श्री गवई कहते हैं कि अगर एक पीढ़ी को आरक्षण मिल गया तो उसके दूसरे पीढ़ी को आरक्षण से बाहर कर देना चाहिए। कमाल की बात है कि इन दलित महोदय को अपने बगल में बैठे DY चंद्रचूड़ साहब नहीं दिखते। वे कई पुश्तों से अपने जाति और जन्म का प्रविलेज ले रहें हैं। उनके दादा श्री दीवान यशवंत गंगाधर चंद्रचूड़ को 22 गांव का वतन मिला था, कई जगह के जागीरदार थे। पूना में आज भी एक चंद्रचूड़ वाड़ा है। मराठा शासन में पेशवा थे। जब पेशवाओं को महार सैनिकों ने 1818 में हरा दिया तो इनकी पेशवाई खत्म हुई। इसी महार जाति में डा. अंबेडकर पैदा हुए। उन्होंने मजबूरी में पूना पैक्ट किया, अब इनके हाथ में आरक्षण का मसला आ गया। जब करीब 200 साल बाद ही उनके पाले में आरक्षण का गेंद आया तो उन्होंने अपनी जात दिखा दी ! उन्होंने 1818 का महारों का बदला सारी अनुसूचित जातियों से इस तरह लिया ।‌क्योंकि हैं तो देशस्थ ऋगवेदी ब्राह्मण ही न?

Merit – My Foot, यह कौन सा ऑल इंडिया कंपटीशन देकर मुख्य – न्यायाधीश बने थे ?

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