संयुक्त राष्ट्र-इजराइल विवाद: समझदारी और संवेदनशीलता से सम्हालें

Dr Prem Singh

– प्रेम सिंह

(समाज वीकली)- 24 अक्तूबर मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की विदेश मंत्रियों की बैठक में दिए गए महासचिव (सेक्रेटरी जनरल) एंटोनीयो गुटेरेस के बयान को “शर्मनाक” बताते हुए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में इजराइल के स्थायी प्रतिनिधि/राजदूत गिलाद मेनाशे एर्दान ने उनसे तुरंत इस्तीफा देने की मांग कर डाली। एर्दान ने अपने बयान में संयुक्त राष्ट्र और उसके महासचिव के बारे में लिखा: “संयुक्त राष्ट्र फेल हो रहा है, और आप, मि. महासचिव, अपनी सारी नैतिकता और तटस्थता गंवा चुके हैं। क्योंकि जब आप वे शब्द कहते हैं कि ये जघन्य हमले शून्य में नहीं हुए हैं, आप आतंकवाद को सहन कर रहे हैं, और मेरा मानना है आप महासचिव पद से इस्तीफा दें।” उनके इस्तीफे को अनिवार्य (मस्ट) बताते हुए वे आगे लिखते हैं: “क्योंकि अब से आगे हर दिन अगर वे इस इमारत में हैं, सिवाय इसके कि वे तुरंत माफी मांगें, आज हम उनसे माफी मांगने को कहते हैं, तो इस इमारत के अस्तित्व का कोई औचित्य नहीं है।”

उधर बैठक में मौजूद इजराइली विदेश मंत्री एली कोहेन ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव के वक्तव्य पर तीखी प्रतिक्रिया दी: “मैं संयुक्त राष्ट्र महासचिव से नहीं मिलूंगा। 7 अक्तूबर के बाद किसी संतुलित अप्रोच के लिए जगह नहीं बची है। हमास को दुनिया से मिटा देना अनिवार्य है।” उनकी महासचिव के साथ उसी दिन एक तय बैठक थी। इजराइल ने संयुक्त राष्ट्र को सबक सिखाने के लिए उसके पदाधिकारियों, संयुक्त राष्ट्र मानवीय संयोजक (यूएन ह्यूमनेटेरियन कोऑर्डिनेटर) मार्टिन ग्रिफिथ्स समेत, के यात्रा वीजा रद्द करने और किसी पदाधिकारी को इजराइल में नहीं आने देने की धमकी दी है। खबरों में देखने को मिला है कि इजराइल ने महासचिव को “ब्लड लाइबल” (यहूदियों के खिलाफ प्रचलित एक मध्यकालीन अंधविश्वास) के रूप में लांछित किया है। (संयुक्त राष्ट्र और महासचिव को घेरने के पीछे इजराइल की क्या पेशबंदी है; भविष्य में फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष के संभावित समाधान के संदर्भ में इस विवाद के क्या निहितार्थ हैं – इस अलग किन्तु महत्वपूर्ण विषय पर यहां विचार नहीं किया गया है।)

75 सालों से ज्यादा पुरानी दुनिया के 193 देशों की साझा संस्था, और उसके पदासीन महासचिव की प्रतिष्ठा पर इजराइली हमले का यह सचमुच चौंका देने वाला वाकया है। महासचिव ने अगले दिन अपने बयान पर स्पष्टीकरण दिया: “मैं अपने कुछ बयानों की गलत व्याख्या से स्तब्ध हूं… जैसे कि मैं हमास द्वारा आतंकवादी कृत्यों को उचित ठहरा रहा हूं। यह गलत है। बिल्कुल उल्टा।” मैं फिर से कहता हूं कि “फ़िलिस्तीनी लोगों के कष्ट हमास के भयावह हमलों को उचित नहीं ठहरा सकते। और वे भयावह हमले फ़िलिस्तीनी लोगों की सामूहिक सज़ा को उचित नहीं ठहरा सकते।”

लेकिन इजराइल ने उनके स्पष्टीकरण को खारिज करते हुए हमला और तेज कर दिया है। एर्दान ने कहा है: “महासचिव ने एक बार फिर वास्तविकता को विकृत किया है और तोड़ा-मरोड़ा है। उन्होंने कल स्पष्ट रूप से कहा कि हमास द्वारा नरसंहार और हत्या का सिलसिला ‘शून्य में नहीं हुआ।’ हर व्यक्ति उनके शब्दों का अर्थ समझता है, समझ चुका है: कि हमास की कार्रवाई के लिए इजराइल जिम्मेदार है अथवा, कम से कम, यह नरसंहार के बारे में महासचिव की समझ और नरसंहार के औचित्य-प्रतिपादन को सामने ला देता है।” इस बार मामले को संयुक्त राष्ट्र बनाम महासचिव बनाने की कोशिश करते हुए एर्दान कहते हैं: “यह संयुक्त राष्ट्र की गरिमा के खिलाफ है कि महासचिव ने अपने शब्द वापस नहीं लिए हैं। यहां तक कि उन्होंने कल के शब्दों के लिए माफी भी नहीं मांगी है। वे इस्तीफा दें।”

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस अप्रिय संयुक्त राष्ट्र-इजराइल विवाद पर अमेरिका और रूस नहीं बोले हैं, जिनके गाजा पर जारी इजराइली हमलों पर क्रमश: मानवीय विराम (ह्यूमनटेरियन पॉज़) और तत्काल पूर्ण युद्ध-विराम के प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में पारित नहीं हो पाए। अन्य देशों ने भी अपना पक्ष नहीं रखा है। दुनिया भर के विद्वानों, लेखकों, संयुक्त राष्ट्र के अन्य पदाधिकारियों अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय अनेकों सिविल सोसाइटी संस्थाओं में से भी किसी ने कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन जिस तरह से इजराइल ने सीधे संयुक्त राष्ट्र और उसके महासचिव पर तीखा हमला बोला है, इस विवाद के आगे फैलने का अंदेशा है। इंग्लैंड के उप-प्रधानमंत्री ओलिवर डाउडेन ने महासचिव के बयान की आलोचना की है, और स्पष्टीकरण को अपर्याप्त बताया है। प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने अपने डेप्यूटी के मत का समर्थन किया है। एंटोनीयो गुटेरेस के गृह-देश पुर्तगाल के विदेश मंत्री ने महासचिव में पूरा भरोसा जताया है। जर्मनी की सरकार के एक प्रतिनिधि ने कहा है कि जर्मनी का महासचिव में भरोसा बना हुआ है। अगर यह विवाद बढ़ता है तो सभी पक्षों के नेताओं और राजनयिकों को इसे बहुत समझदारी और संवेदनशीलता के साथ सम्हालने की जरूरत है। ताकि फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष पर इसका विपरीत प्रभाव न पड़े, और दोनों देशों के निर्दोष नागरिक आतंकी और मिलिटरी हमलों का शिकार न होते रहें।

इजराइल की भाषा और रुख में संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्र की और पद के रूप में महासचिव की खुली अवमानना व्यक्त होती है। इजराइल संयुक्त राष्ट्र से 7 अक्तूबर के हमले की बिना कार्य-कारण सिद्धांत में जाए दो-टूक निंदा चाहता है। साथ ही उसकी तरफ से जारी हवाई हमलों (और आगे के जमीनी हमलों) का दो-टूक समर्थन। जबकि महासचिव का बयान संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों – शांति, सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, मानवाधिकार और मानवीय सहायता के उपाय करना – की संगति में दिया गया है। महासचिव ने अपने बयान में इजराइल पर हमास के 7 अक्तूबर के आतंकी हमले की निंदा करने के साथ हमले के पीछे के कुछ तथ्यों/कारणों का उल्लेख किया है। उन्होंने करीब तीन हफ्तों से इजराइली हवाई हमलों में मारे जा रहे हजारों निर्दोष नागरिकों के प्रति चिंता व्यक्त की है, और युद्ध के अंतर्राष्ट्रीय नियमों के पालन की गुहार लगाई है। इस संघर्ष में अन्य देश/समूह शामिल न हों, यह चिंता भी उनके बयान में शामिल है। आधुनिक दुनिया के अभी तक के इस सबसे लंबे संघर्ष का दोनों पक्षों के नागरिकों की शांति और सुरक्षा में स्थायी हल निकले, यह भी महासचिव की चिंता है। फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष पर यही सही दृष्टि कही जाएगी, जिसका प्रतिनिधित्व महासचिव कर रहे हैं।

यहां उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र की खूबियां गिनाना नहीं है. बल्कि इसकी स्थापना के बाद से ही संयुक्त राष्ट्र की शिकायतों और आलोचनाओं का सिलसिला शुरू हो गया था। संयुक्त राष्ट्र में इज़राइल की शिकायतें, विशेष रूप से मानवाधिकार प्रश्नों पर उसके “पक्षपात” के संबंध में, सर्वविदित हैं। संयुक्त राष्ट्र की कमियों, कमजोरियों और विफलताओं पर एक अलग अध्याय है। लेकिन यह भी सच है कि संयुक्त राष्ट्र दुनिया के पास अंतरराष्ट्रीय मामलों का एकमात्र मंच है। इसलिए बेहतर विकल्प अस्तित्व में आने तक हर देश की इसके प्रति जवाबदेही होनी चाहिए। इसके अलावा, कूटनीतिक दाव-पेचों का मंच होने के अलावा, संयुक्त राष्ट्र एकमात्र निकाय है, जो युद्धों, गृह युद्धों, आतंकवादी हमलों और विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के कारण तबाही का सामना करने वाले लोगों को सहायता प्रदान करता है।

संयुक्त राष्ट्र-इजराइल विवाद के मद्देनजर कुछ बिंदुओं पर विचार किया जाना चाहिए: क्या संयुक्त राष्ट्र और उसके महासचिव, जैसे भी वे हैं, को सरेआम धमकाना और नीचा दिखाना कोई गंभीर बात नहीं है? क्या संयुक्त राष्ट्र मात्र एक सजावटी संस्था बन कर रह गई है? क्या दुनिया सचमुच ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के तर्क से चल रही है? क्या कॉर्पोरेट पूंजीवादी व्यवस्था में अंतर्राष्ट्रीय संबंध और सहयोग के मामलों में दिखावे के लिए भी खेल के नियमों की जरूरत नहीं रह गई है? क्या संयुक्त राष्ट्र सचमुच अपना जीवन जी चुका है? क्या नवउदारवादी दौर में दुनिया ओवरलैपिंग करने वाली तरह-तरह की आर्थिक और सामरिक गुटबंदियों के सहारे आगे चलेगी? क्या वैसे में फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष का कोई स्थायी, या फिर कामचलाऊ समाधान निकल पाएगा?

(समाजवादी आंदोलन से जुड़े लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व शिक्षक और भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के पूर्व फ़ेलो हैं।)

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