#समाज वीकली
क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले ने पेशवाओं के शासन में शूद्रों और महिलाओं की दयनीय स्थिति का वर्णन अपनी मराठी कविताओं में करते हुए लिखा हैं:-
“पेशवा ने पांव पसारे सत्ता, राजपाट संभाला
और अनाचार, शोषण अत्याचार होता देखकर शूद्र हो गए भयभीत
थूक करे जमा गले में बँधे मटके में और रास्तों पर चलने की पाबंदी
चले धूल भरी पगडंडी पर, कमर में बंधे झाड़ू से मिटाते पैरों के निशान”
अछूतों के साथ होने वाली यह अमानवीयता चितपावन ब्राह्मणों के पेशवाई काल में अपने चरम थीl कई वर्षों का संचित यातना, अत्याचार ,वेदना और अमानवीयता की अभिव्यक्ति भीमा कोरेगांव के युद्ध में प्रतिशोध बनकर फटीl युद्ध में लड़ रहे महारों के लिए यह अपना स्वाभिमान बचाने, शूर-वीरता दिखाने और खुद की योग्ताओं को साबित करने का अवसर होने के साथ बरसों से सहन की गई यातनाओं का हिसाब चुकता करने का मौका थाl
भीमा-कोरेगांव में अंग्रेज और पेशवा ने अलग-अलग उद्देश्यों से आमने-सामने थे लेकिन महारों के लिए उसका उद्देश्य सामाजिक क्रांति थाl ये उस आक्रोश के लावे के विस्फोट का समय था जिसने कई पीढ़ियों को बद से बदत्तर जीवन दिया थाl ईस्ट इंडिया कम्पनी के 500 सैनिकों की कंपनी (अधिकतर सैनिक महार) ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की 28,000 हज़ार की बड़ी सेना को केवल 12 घंटे चले युद्ध में पराजित कर जातिवादी पेशवाओं को समाप्त कर दियाl
सावित्रीबाई फुले ने उस समय अंग्रेजों की ओर से लड़ने वाले महार सैनिकों की वीरता की प्रशंसा में कई कविताएं लिखीl उनका मानना था कि अंग्रेजों ने हमें नहीं बल्कि उन ब्राह्मणों को गुलाम बनाया है जिन्होंने कई सदियों से शूद्रों को गुलाम बनाकर रखा हुआ हैl
सावित्री बाई फुले 1 जनवरी, 1818 के युद्ध की जीत को पेशवा की सेना पर जीत को अंग्रेजों से अधिक महारों की जीत के रूप में वे देखती थींl उन्होंने भीमा-कोरेगांव की जीत पर महारों की वीरता को सराहाते हुए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की हैl
बाबासाहेब अंबेडकर के भीमकोरेगांव में अपने पुरखों की वीरता को नमन करने के लिए जाने के निर्णय में सावित्रीबाई फुले की कविताएँ प्रेरणा बनी।