बहुजन समाज का हित, बीएसपी के साथ सुरक्षित

*बहुजन युवाओं की जानकारी हेतु *
बहुजन समाज का हित|
#बीएसपी के साथ सुरक्षित||

(समाज वीकली)- बहुजन समाज मतलब अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग तथा धार्मिक अल्पसंख्यक और परम आदरणीया बहन कुमारी मायावती जी एवं मान्यवर कांशीराम साहब के अथक प्रयासों से सर्वजनों (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) में भी जो आर्थिक रूप से अत्यधिक गरीब हैं, उनके हालात भी लगभग दबे-कुचले बहुजन समाज की तरह ही हैं, वह भी आज पूरी तरह से बहुजन समाज पार्टी के साथ जुड़ चुके हैं| इन सभी का प्रतिनिधित्व देश में एकमात्र बहुजन समाज पार्टी ही करती है; इस तरह इन सब की वर्तमान में देश की आबादी में तादाद लगभग 90 से 92 फ़ीसदी तक पहुंच चुकी है| इसी डर से देश की आजादी के बाद जिन लोगों के हाथों में भी सत्ता रही उन्होंने कभी भी देश में जातिवार जनगणना करवाने का साहस नहीं जुटा पाया| इस साहस न जुटा पाने का अर्थ हमारी बात में दम है के साथ ही साथ इसके सत्यता होने को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत माना जाना चाहिए|

#परम_आदरणीया_बहन_कुमारी_मायावती_जी और मान्यवर कांशीराम साहब ने 14 अप्रैल, 1984 को जिस दिन #बहुजन_समाज_पार्टी की स्थापना की थी| उसी दिन पार्टी के समर्थकों को कहा गया था कि पार्टी बनाना कोई बड़ी बात नहीं है, कोई भी व्यक्ति पार्टी बना सकता है| बड़ी बात है, सबसे पहले साढ़े छह हजार जातियों के रूप में टुकड़ों में बटे हुए बहुजन समाज को इकट्ठा करते हुए बहुजन समाज में तब्दील करना है| बड़े ही साधारण तरीके से मैंने बहुजन समाज पार्टी की हाथी जैसी ताकत को आपको बतला दिया है| इस ताकत को तितर-बितर किए बिना कोई भी दल सत्ता में नहीं आ सकता है| इसी के लिए साम-दाम-दंड-भेद अपनाते हुए तमाम राजनैतिक उठापटक की जाती है|

आइए आज इसी उठा-पटक को समझते हैं| काफी प्रयासों के बाद लंबे समय से मीडिया द्वारा बीएसपी के प्रति नकारात्मक माहौल बनाने के पश्चात इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा एक बार फिर से 18वीं लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी को शून्य पर पहुंचाते हुए खेल से बाहर कर दिया गया है| इस बात को मैं अपने लेखों से लगभग साल-डेढ़ साल पहले से ही अवगत कराता रहा हूं कि इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को साम-दाम-दंड-भेद एक बार फिर से 2014 की तरह ही शून्य पर पहुंचने का प्रयास किया जाएगा और मेरी बात सच साबित हुई भी| जैसे ही आपकी बहुजन समाज पार्टी, राजनीतिक खेल से बाहर कर दी जाती है| इनके तथाकथित बुद्धिजीवियों को बीएसपी को बिल्कुल ही नेस्तनाबूद करने के लिए काम पर लगा दिया जाता है| अभी जैसे ही 4 जून, 2024 को 18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आते हैं| उसके बाद सबसे पहले बहुजन मीडिया को सक्रिय किया जाता है, बहुजन समाज पार्टी की बदनाम करने के लिए कहा जाता है कि बहुजन समाज पार्टी तो सिमटते-सिमटते अब मात्र इकाई के अंक 8-9% वोटों तक आ गई है| इस बार उसका कोई भी सांसद चुनाव नहीं जीत सका, इसका मतलब बहुजन समाज पार्टी तो एक तरह से पूरी तरह खत्म हो चुकी है| जबकि यह सब कुछ सुनियोजित तरीके से सालों की तैयारी के बाद किया जा सका है|

वहीं लगभग तीन सप्ताह पहले अभी-अभी कुछ ही वर्षों से नए-नए बुद्धिजीवियों में सिरमौर बने या जानबूझकर बनाए गए, यूपीएससी कोचिंग गुरू श्रीमान विकास दिव्यकीर्ति जी का ANI पर लंबा सा लगभग पौने चार घंटे का इंटरव्यू प्रसारित किया जाता है| जिसमें सिर्फ यह दुष्प्रचार भरा माहौल तैयार करने की विकास जी के द्वारा कोशिश करी गई है कि अनुसूचित जाति और उसमें भी विशेष कर जाटव बिरादरी को आरक्षण की कैटगरी से किस तरह बाहर किया जाए..(इंटरव्यू के कुछ अंश आपकी सुविधा के लिए संलग्न किए गए हैं|)

वहीं मैं पूछना चाहता हूं कि मिस्टर विकास दिव्यकीर्ति जी बताएंगे कि जाटव बिरादरी के भारतवर्ष में आपकी “दृष्टि” तरह के कितने जाटवों के कोचिंग सेंटर चल रहे हैं, साथ ही साथ जाटव बिरादरी के कितने कोचिंग गुरू आपकी तरह ही नामी-गिरामी विश्व गुरु अब तक बन चुके हैं; जिनका आपकी तरह ही पौने चार-चार घंटे का साक्षात्कार लेने के लिए ANI वाले बेकरार रहते हैं? बड़ी ही तकलीफ होती है कि अपने खुद ही मान रखा है की योग्यता आपके पैर की जूती है?? इस मानसिकता को आपको बदलना होगा..क्योंकि बहुजन समाज में भी मा. दिलीप मंडल जी और प्रोफेसर विवेक कुमार जी जैसे विश्व स्तरीय दिग्गज लोगों एक लंबी श्रृंखला वर्तमान में मौजूद है, फिलहाल बताने के लिए दो नाम पर्याप्त हैं| जिनके आगे आप जैसे लोग 2 मिनट भी नहीं ठहर सकते हैं! अगर आपको जानकारी न हो तो अपनी जानकारी दुरुस्त कर लीजिए| धन्नासेठों के जातिवादी मीडिया पर आपके ही स्वजातीय लोगों का ही कब्जा होने के नाते उन्हीं की जुबान और कलम चलती हुई दिखाई देती है| जिस दिन बहुजनों ने आपका यह एकाधिकार छीन लिया, आप कहीं दूर-दूर तक दूरबीन से भी ढूंढे नजर नहीं आएंगे! आजकल विशेष तौर से यही बहुजन और अल्पजन में बुद्धि के वर्चस्व लड़ाई छिड़ी हुई है|

आपने वह कहावत सुनी होगी सिर मुड़ाते ही ओले पड़े..विकास जी अभी जाटवो को बदनाम ही कर रहे थे, कि इनकी तरह ही दूसरे नामी गिरामी द्विज कोचिंग गुरू अवध ओझा भी जो अभी पिछले महीने ही बहनजी के तारीफों में कसीदे पढ़ते हुए समा बांध रहे थे, कि अचानक ही इस जाटवो को बदनाम करने की मुहिम में कूद पड़े, हो सकता है कि अचानक उनको भी हायर करते हुए काम पर लगा दिया गया हो?..अब वह कहते घूम रहे हैं कि बहुजन समाज पार्टी ने कभी नारा भी दिया था कि “तिलक तराजू और तलवार इनको मारो…” तरस आता है इन अज्ञानी ओझाओं पर कि छात्र कैसे इनका बोझा ढो रहे हैं? उक्त नारे के संबंध में बहनजी ने लगभग तीन दशक पहले ही “आपकी अदालत” कार्यक्रम में इंटरव्यू देते हुए, श्री रजत शर्मा जी को बता दिया था (वह आज भी ऑन रिकॉर्ड मौजूद होगा, मैं कोई काल्पनिक बात नहीं कह रहा हूं|) कि, “यह नारा कभी भी बहुजन समाज पार्टी ने नहीं दिया है| केवल बहुजन समाज पार्टी की छवि को खराब करने के लिए आप लोगों द्वारा ही इस नारे को गढ़ा गया है| फिर भी आप कहीं भी इसे मेरी या मान्यवर कांशीराम साहब की आवाज में सुनवा दें अथवा इसके अलावा भी किसी पदाधिकारी या कार्यकर्ता को भी बोलता हुआ दिखा भी दें, तो मैं राजनीति से संन्यास तक लेने के लिए तैयार हूं|” अगर इतनी भी जानकारी अवध ओझा जी नहीं रखते हैं तो फिर इन्हें चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए, यह अपने छात्रों को क्या यही गलत-सलत पढ़ते होंगे? वह तो भला हो कुदरत का की दोनों ही द्विज श्री विकास और अवध जी कोचिंग गुरु, दिल्ली में पिछले सप्ताह ही बेसमेंट की क्लास में कुछ छात्रों की पानी भर जाने के कारण मौत हो जाने की वजह से, इन जैसों के जो ज्यादातर बेसमेंट में क्लासेस चलाते हैं, उनके कोचिंग सेंटर सील कर दिए गए हैं और इतना ही नहीं छात्रों के निशाने पर मुख्य रूप से यह दोनों ही विकास और अवध शिक्षा माफिया की तरह आ चुके होने के करण बदनाम किए जा रहे हैं! मेरी सद्भावना इनके साथ हैं| लेकिन इन लोगों को कुदरत सद्बुद्धि दे कि जाटवो और बहुजन समाज पार्टी को इनको इस तरह थोड़े से पैसों के लालच की बदौलत बदनाम नहीं करना चाहिए; आप लोग शिक्षा के क्षेत्र में हैं तो वहीं तक सीमित रहिएगा, राजानैतिक अतिक्रमण करने की अनाधिकारिक चेष्टा न कीजिएगा|

वह तो भला हो उन नामी-गिरामी बहुजन बुद्धिजीवियों का जो अब से तीन दशक पहले तक जैसे श्री दिलीप मंडल जी भी इसी द्विज परंपरा के साथ वाहक बने हुए थे। बहनजी जब 3 जून, 1995 को पहली दफा मुख्यमंत्री बनी थी तो बहनजी के विरोध में सबसे ज्यादा मुखर स्वर यह दिलीप मंडल जी का ही था | जिनको मेरी बात पर विश्वास न हो, वह जून 1995 का राष्ट्रीय सहारा का दूसरे शनिवार का “शनिवारिय हस्तक्षेप” अंक में मिस्टर दिलीप मंडल का बहनजी के विरोध में लिखा हुआ लंबा चौड़ा आर्टिकल पढ़ सकते हैं| अगर लेख आपको उपलब्ध न हो तो “सिंह साहब के संग्रहालय से” में उपलब्ध है। आपकी आंखें खुली की खुली रह जाएगी| आज के दिलीप मंडल और तीन दशक पुराने दिलीप मंडल में जमीन आसमान का फर्क दिखाई देगा, आपको | बात यही नहीं खत्म हो जाती है, आपको जानकर ताज्जुब होगा कि बहनजी और मान्यवर कांशीराम साहब ने जब अपनी बहुजन समाज पार्टी बनाई भी नहीं थी तभी से D-S4 के बैनर तले वह पिछड़ों के मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू करवाने हेतु त्रिस्तरीय कभी सड़कों पर संघर्ष, कभी पार्लियामेंट के सामने धरना प्रदर्शन और साथ ही साथ देश भर में पांच बड़े सेमिनार और 500 आरक्षण समर्थन में संगोष्ठियों का आयोजन भी करते रहे हैं; कई-कई मंडल कमीशन रिपोर्ट से संबंधित आरक्षण समर्थक संगोष्ठियों में, मैं भी साहब के साथ मौजूद रहा हूं| यही सब वह बहुजन समाज पार्टी, दलित-शोषित समाज संघर्ष समिति (D-S4) और बामसेफ ने अन्य पिछड़े वर्ग के लिए मंडल कमीशन रिपोर्ट को लागू करवाने के समर्थन में जो आंदोलन किए गए थे; जिनके दबाव में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वीपी सिंह जी ने अपनी पीएम की कुर्सी बचाने की खातिर आनन-फानन में 7 अगस्त 1990, को ही, भारत छोड़ो आंदोलन की 48वीं वर्षगांठ 9 अगस्त,1990 के दो दिन पहले जब मान्यवर कांशीराम साहब और देवीलाल के वोट क्लब पर धरना प्रदर्शन आंदोलन के दबाव के चलते लागू करना पड़ गया था| इस असली बात को दिलीप मंडल जी क्या और कोई भी देश का पत्रकार हमेशा ही छुपाते हुए, मंडल मसीह का सरताज श्री वीपी सिंह जी के चेहरे पर सजाते रहे हैं| कितना कपट भरा है दिलीप मंडल जी के अंदर जो मान्यवर कांशीराम साहब की देशभर में मंडल कमीशन के समर्थन में की जाने वाली 500 संगोष्ठियों को भी 200 कम बताते हुए मात्र 300 तक ही सीमित कर देते हैं| असली मंडल मसीहा मान्यवर कांशीराम साहब थे, न कि श्री वीपी सिंह जी, जिन्हें श्री दिलीप मंडल जी बड़े पैमाने पर देशवासियों को बताते हुए सदा ही गुमराह करने का काम करते रहे हैं|

आइएगा कुछ और परतें खोलता हूं ताकि विस्तार से आप बहुत कुछ जान सकें, विस्तार से बताता हूं| आपको जानना चाहिए कि बहुजन समाज पार्टी बनने से लगभग डेढ़ साल पहले परम आदरणीया बहन कुमारी मायावती जी और मान्यवर कांशीराम साहब ने डी-एस4 यानी कि दलित-शोषित समाज संघर्ष समिति के बैनर तले 25 दिसंबर,1982 मनुस्मृति दहन दिवस से लेकर 26 जनवरी, 1983 गणतंत्र दिवस तक देश भर में जनसंसद का प्रायोगिक अधिवेशन (People’s Parliament) के कार्यक्रम आयोजित किए थे| इसका सबसे पहला कार्यक्रम जो कि तीन दिवसीय दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब प्रांगण में आयोजित किया गया था| उस समय श्री एस.डी. चैरसिया जी लोकसभा के सदस्य हुआ करते थे; मान्यवर कांशीराम साहब से उनके नज़दीक संबंध होने के कारण उन्होंने उनकों ज़िम्मेदारी सौंपी थी कि आप पता लगाकर यह बताइए कि वर्तमान में 543 लोकसभा सदस्यों में कितने मेंबर अन्य पिछड़े वर्ग के हैं? काफी छानबीन करने के बाद उनको बड़ी ही मुश्किल से पता लगा यह संख्या 40 तक भी नहीं पहुंच पा रही है, मतलब संसद में ओबीसी का प्रतिनिधत्व 8 फ़ीसदी भी नहीं था| जबकि इससे अधिक अधिक संख्या में तो सवर्ण महिलाएं मेंबर ऑफ पार्लियामेंट चुनकर पहुंच जाती रही है| जिस वर्ष बहुजन समाज पार्टी का निर्माण हुआ था उस वर्ष 1984 में तब 44 महिला सांसद बनी थीं, जो प्रतिशत के हिसाब से यह 8.1% होता है| इतने तो ओबीसी के मेंबर ऑफ पार्लियामेंट 1984 तक नहीं बन पाए थे| कितनी बुरी हालत थी, ओबीसी की देश को आजाद होने के 37 सालों तक| तब मान्यवर कांशीराम साहब के इशारे पर उन्होंने (श्री शंभू दयाल चौरसिया जी ने) श्री मोरारजी देसाई से कहा भी था कि आपकी सांसद प्रतिनिधात्मक नहीं है?

*जिसकी जितनी संख्या भारी।*
*उसकी उतनी भागीदारी।।*

संसद में भी दिखानी चाहिए। इसमें पिछड़े वर्ग से संबंध रखने वाली तेली, तमोली, नाई, भुर्जी, कोरी, काछी इत्यादि जातियों के संसद सदस्यों की संख्या 8% भी नहीं है; जबकि मंडल कमीशन रिपोर्ट के मुताबिक इनकी आबादी देश में 52 फ़ीसदी तक है| मंडल कमीशन रिपोर्ट के मुताबिक पार्लियामेंट में ओबीसी की संख्या कम से कम 282 मेंबरान तक होनी चाहिए, जोकि लगभग 250 कम है| ओबीसी ने कभी सोचा (खासकर उन ओबीसी पार्टियों ने जो कांग्रेस भाजपा के इशारे पर एससी-एसटी का आरक्षण में प्रमोशन का बिल में संसद में ही फाड़ते रहे हैं।) कि यह जो उनका ढाई सौ लोकसभा सांसदों का पार्लियामेंट में कम होने का हक कौन मार रहा है? श्री एस.डी. चौरसिया के पूछे जाने पर मोरारजी देसाई भाई ने श्री शंभू दयाल चौरसिया जी (जो कि सबसे पहले पिछड़ों के लिए बने आयोग काका कालेलकर आयोग में बतौर सदस्य भी रहे थे|) को जो जवाब दिया था, उसे भी जानिएगा कि, “चौरसिया जी तेली, तमोली… इत्यादि अगर सभी पार्लियामेंट में आ जाएंगे तो हम (ब्राह्मण) क्या खेतों में हाल जोतेगे?” यह मान्यवर कांशीराम साहब जैसी हस्ती/शख्सियत ही थी, जिन्होंने आजादी के 40 साल बाद इन अति पिछड़े पाल, काछी, शाक्य, सैनी… इत्यादि बिरादरियों को विधानसभाओं और पार्लियामेंट में पहुंचना सिखा दिया था|

मान्यवर कांशीराम साहब ने बहुजन समाज पार्टी के बनाने से पहले ही बामसेफ के जमाने में ही हम बामसेफ वालों पर जिम्मेदारी डाल दी थी कि आपको जल्दी से जल्दी बहुजन समाज बनाना है| लेकिन बामसेफ, डी-एस4 यहां तक की बहुजन समाज पार्टी वाले भी मिलकर इस बहुजन समाज बनाने की जिम्मेदारी का निर्वहन ढंग से नहीं कर पा रहे थे| साहब की उम्र बीएसपी का निर्माण करने तक ही पचास साल से ज्यादा हो चुकी थी और बढ़ती जा रही थी| साहब का ऐसा मानना था कि बहुजन आंदोलन में उम्र आड़े आ जाती है| इसलिए इसको हमें रिले दौड़ की तरह आगे बढ़ना पड़ता है| बहुजन समाज जल्द से जल्द बने इसके लिए मान्यवर कांशीराम साहब ने अपनी प्रयोगशाला उत्तर प्रदेश में उत्प्रेरक के रूप में एक प्रयोग किया| वह प्रयोग था माननीय मुलायम सिंह यादव से उनकी समाजवादी पार्टी बनवाते हुए अपनी बहुजन समाज पार्टी से उसका गठबंधन किया जाना| हालांकि मान्यवर कांशीराम साहब ने जैसा सोचा था वैसे नतीजे प्राप्त नहीं हुए, राजनीतिक तौर पर बहुजन समाज पार्टी तो थोड़ा आगे बढ़ सकी थी, लेकिन बहुजन समाज बनाने की प्रक्रिया को अब भी पंख नहीं लग पाए थे| क्योंकि श्री मुलायम सिंह यादव जी की भी दिलचस्पी राजनीति में ज्यादा थी, न कि बहुजन समाज बनाने में!

बसपा सपा गठबंधन दूर तक चले और इस चलने की प्रक्रिया में जल्दी से जल्दी बहुजन समाज बने मान्यवर कांशीराम साहब ने इसके लिए लिखित में श्री मुलायम सिंह यादव जी से एक वादा भी लिया था कि-

“जिनसे संघर्ष, उनसे समझौता नहीं
और
जिनसे समझौता, उनसे संघर्ष नहीं|”

लेकिन माननीय मुलायम सिंह जी अपने वादे पर खरे नहीं उतरे | इस कारण यह समझौता ज्यादा दिनों तक चल नहीं सका| कैसे खरे नहीं उतरे उसको आप जरा सी बात से यों समझ सकते हैं| मान्यवर कांशीराम साहब ने बामसेफ और डी-एस4 के जमाने से ही पिछड़ों के हित के लिए बने मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू करवाने हेतु अपने आंदोलनों की झड़ी लगा दी थी| अंततः मान्यवर कांशीराम साहब पिछड़े वर्ग के हित के लिए बने मंडल कमीशन रिपोर्ट को आज से ठीक 34 साल पहले 7 अगस्त 1990 को सयुक्त मोर्चा सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री से लागू करवा कर ही माने| वहीं मान्यवर कांशीराम साहब के साकारात्मक कृत्य के बिल्कुल ही विपरित नकारात्मक कृत्य मुलायम सिंह यादव जी की समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज जी जो कि खुद भी अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं और कुछ अन्य ने संसद के अंदर भाजपा कांग्रेस के सहारे और इशारे पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रमोशन में आरक्षण का बिल फाड़ने का घिनौना कृत्य/काम किया था| इस एक काम से ही आप समझ सकते हैं कि जहां बहुजन समाज पार्टी ओबीसी के हित में मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू करवाती है..वहीं समाजवादी पार्टी एससी-एसटी का प्रमोशन में आरक्षण बिल फड़वाने जैसा घिनौना कृत्य/काम करवाती है| वह भी कांग्रेस भाजपा के इशारे पर| यह बात श्री मुलायम सिंह यादव जी ने जो मान्यवर कांशीराम साहब से वादा किया था कि, “जिनसे संघर्ष, उनसे समझौता नहीं और #जिनसे_समझौता, #उनसे_संघर्ष_नहीं|” के बिल्कुल विपरीत मानी जाएगी| मान्यवर कांशीराम साहब ने अपने बहुजन समाज के हित में प्रयोग करते समय सोचा था कि श्री मुलायम सिंह यादव जी ओबीसी के होने के नाते बहुजन समाज को तेजी से बनाने की पहल करेंगे..उनका सोचना बिल्कुल ही गलत साबित कर दिया श्री मुलायम सिंह यादव जी ने| ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है कि-

*“कुल्हाड़ी में अगर लकड़ी का दस्ता न होता|*
*तो लकड़ी के कटने का रास्ता ना होता||”*

आज इस संदर्भ में याद दिलाना चाहता हूं कि ओबीसी के हित हेतु बने मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू करवाने के बीएसपी के विभिन्न आंदोलनों में दलितों और आदिवासियों का बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना के बदले स्वरूप ही, जब पहली अगस्त 2024 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक, संविधान पर अतिक्रमण करते हुए एससी, एसटी को खंड-खंड करते हुए राज्य सरकारों को एससी-एसटी को आरक्षण की सुविधा देने के लिए अधिकृत कर दिया गया है, मतलब खुले शब्दों में कहा जा सकता है कि एससी-एसटी के आरक्षण को पूरी तरह से समाप्त किया जाना| इस संदर्भ में बताना चाहूंगा वह भी ख़ासतौर से अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को, यह चाल कोई नई चाल नहीं है, सबसे पहले श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसे obc के खिलाफ ही इस चाल को खेला था, क्योंकि इससे पहले भी जब कांग्रेस ने काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डालने का काम किया था| उसके बाद जनता पार्टी सरकार ने पिछड़ों के लिए दूसरा आयोग मंडल कमीशन गठित किया था, लेकिन जब तक मंडल कमीशन रिपोर्ट आती है | तब तक जनता पार्टी की सरकार केंद्र से जा चुकी होती है और केंद्र में पुनः कांग्रेस की सरकार श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में आ चुकी होती है| तो जिन श्रीमती इंदिरा गांधी जी के पिता श्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में पिछड़ों के हित के लिए बने पहले काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा द्वेषवश रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया था| वह श्रीमती इंदिरा गांधी, मंडल कमीशन की रिपोर्ट का भी वही हश्र करने की खातिर, मंडल कमीशन की रिपोर्ट को राज्य सरकारों को उस पर निर्णय लेने के लिए सौंप देती हैं| तब तक मान्यवर कांशीराम साहब का बामसेफ परवान चढ़ने लगता है| तो मान्यवर कांशीराम साहब की तत्कालिक प्रतिक्रिया होती थी कि देखिए श्रीमती इंदिरा गांधी ने मंडल कमीशन रिपोर्ट की बोटी-बोटी करने के लिए राज्य सरकारों के बहाने तकरीबन 36 (उस समय लगभग केंद्र शासित 8 प्रदेशों, सबको मिलाकर लगभग 36 स्टेट हुआ करते थे|) कसाइयों को सौंप दिया है| यह कसाई उसकी बोटी-बोटी करके ही छोड़ेंगे| यह तो अन्य पिछड़े वर्ग को मान्यवर कांशीराम साहब का ऋणी होना चाहिए उन्होंने यह सब कुछ नहीं होने दिया और मंडल कमीशन रिपोर्ट को लागू करवा के ही माने| काश इन कड़वी सच्चाइयों को प्रोफ़ेसर दिलीप मंडल जैसे बुद्धिजीवी अन्य पिछड़े वर्ग को बड़े पैमाने पर बताया होता तो आज बहुजन समाज पार्टी कहां की कहां पहुंच गई होती| मंडल जी सब कुछ लुटावा कर होश में आए तो क्या किया??? चलिए देर आए दुरुस्त आए, लेकिन सवाल यह है कि दिलीप मंडल जी दुरुस्त कब तक रहते हैं? इसी तरह अन्य तमाम सारे भूले भटके जो कांग्रेस की जी हुजूरी कर रहे हैं प्रोफेसर्स/आचार्य लोग भी दुरुस्त आ जाएं तो बहुजन समाज के हक-हाकूक शीघ्र ही बचाए जा सकते हैं| वरना मुट्ठी भर लोग जिनकी कि चुनाव में जमानत बचाने तक की भी हैसियत नहीं रह गई है| वह बारी-बारी से कभी एससी, कभी एसटी और कभी ओबीसी के हकों को खा जाएंगे| यह सब केवल बहुजन समाज के दलाली करने, निकम्मेपन या यूं कहिए लाइकी पैदा न कर पाने के कारण के कारण होगा।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन उनके पास है ही, मननीय सुप्रीम कोर्ट का उन पर हाथ है ही, धन्नासेठों का धनबल और जातिवादी मीडिया भी उनके साथ ही है, सरकारिया मशीनरी भी उनके हित में ही काम करती हुई पाई जाती है। इसलिए उनके पास भले ही आपके मुकाबले वोटों का खजाना भले ही ना हो, यहां तक कि जमानत बचाने तक के वोट भी न हों। लेकिन फिर भी आप उनको, अपने साम-दाम-दंड-भेद से किसी भी कीमत पर उनकी सरकार बनाने से किसी भी हालत रोक नहीं पाएंगे|

पहली अगस्त को मान्य सुप्रीम कोर्ट की आड़ लेते हुए एससी-एसटी के आरक्षण पर कितना जबरजस्त कुठाराघात किया गया है| जिन्हें बहुजन समाज में जन्मे संतों, गुरुओं और महापुरुषों ने बड़े ही जतन से अपने बहुजन आंदोलन की बदौलत 176 साल में हासिल कर पाया था| जिस बसपा को मीडिया भारतीय जनता पार्टी की बी टीम बता रही थी, उसी बसपा की अध्यक्ष बहनजी आपके आरक्षण को बचाने के वास्ते 4 अगस्त,2024 को खुलकर सामने आई और जिनको आप लोगों ने संविधान बचाने के नाम पर भर-भर कर वोट दिए वह कहीं भी दूर-दूर तक दिखाई भी नहीं दे रहे हैं? आरक्षण पर अटैक का मतलब आरक्षण से चुनें जाने वाले 84+47=131 एससी-एसटी जनप्रतिनिधियों (सांसदों) पर भी अटैक ही माना जाना चाहिए, हो सकता है, प्रोफेसर्स की तरह ही इन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सांसदों को भी देर में ही समझ में आए| सोचिए इसको समझने में जब दिलीप मंडल जैसे विद्वान को तीन दशक लग जाते हैं, तो वह तो बेचारे सांसद हैं..समय लगना लाज़मी है|

अब अंत में अपनी बात उन बहुजन प्रोफ़ेसर/आचार्य लोगों को बताना चाहता हूं जो दूसरे दलों के हाथों में खेलते हुए अपने बहुजन आंदोलन को नहीं पहचान पा रहे हैं और उसकी बुराई करने में आकंठ जी-जान लगाकर डूबे हुए हैं; जिसमें कि उनका खुद का भी हित निहित है| जो बहुजन समाज पार्टी आपको आंकड़ों में शून्य दिखाई दे रही है कभी गंभीरता पूर्वक सोचिएगा कि उस बहुजन समाज पार्टी का बहुजन आंदोलन देश में आज सर चढ़कर बोल रहा है| आइएगा समझता हूं कैसे?

1984 की अप्रैल माह में जब बहुजन समाज पार्टी का निर्माण किया जाता है उसके लगभग 8 महीने बाद ही देश में लोकसभा चुनाव होते हैं तो उन चुनावों में मान्यवर कांशीराम साहब की प्रयोगशाला उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा सीट से बहनजी सबसे पहली बार अपना चुनाव लड़ती हैं| आपको जानकर ताज्जुब होगा की पहली बार में ही बहनजी सारे देशभर में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले 17 राज्यों के 173 प्रत्याशियों में सबसे अधिक 44,445 वोट पाती है। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में उस समय 85 लोकसभा सीटें हुआ करती थी| इन उत्तर प्रदेश राज्य की 85 लोकसभा सीटों में 1984 के लोकसभा चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने 84 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की थी, केवल चौधरी चरण सिंह की बागपत सीट ही कांग्रेस नहीं जीत सकी थी| देश भर में कांग्रेस पार्टी का आंकड़ा 400 पार का रहा था| आज जो प्रोफेसर्स कांग्रेस की जी हजूरी में आकंठ डूबे हुए हैं, तब बच्चे रहे होगें| “अबकी बार 400 पार” का नारा शायद पहली बार सुन रहे होंगे लेकिन जिनकी चकरी में लगे हैं वह कांग्रेस पार्टी 1984 में ही 400 पर जा चुकी थी।

लेकिन धीरे धीरे बहुजन समाज पार्टी के बहुजन मूवमेंट बढ़ने का आज 40 साल बाद बहनजी और साहब की प्रयोगशाला उत्तर प्रदेश में यह असर हुआ की उत्तर प्रदेश में 85 में से 84 सीट जीतने वाली कांग्रेस आज 80 में मात्र 17 सीटों पर चुनाव लड़ पाने की हैसियत में रह गई है| देश भर में 26 दलों से गठबंधन करने के बावजूद मात्र 543 में 278 सीटों पर ही चुनाव लड़ पाई है। उत्तर प्रदेश में जो समाजवादी पार्टी मान्यवर कांशीराम साहब ने बनवाई थी, उसी समाजवादी पार्टी के सहयोग और चमत्कारिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के ज्यादा सहयोग की वजह से मात्र 6 सांसद जिता पाती है| जब से उत्तर प्रदेश में बहुजन आंदोलन मजबूत हुआ है तब से लगभग तीन दशक से उत्तर प्रदेश ब्राह्मण मुख्यमंत्री के लिए तरस गया है| इस बार का लोकसभा चुनाव उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के अलावा कोई भी दल पूरी की पूरी 80 सीटों पर लड़ने की हैसियत में नहीं रहा था| जो दल इस बार उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा सीटों पर जीते हैं, वही पार्लियामेंट में रोना रो रहे हैं, कह रहे हैं अगर मैं 80 में 80 सीटें भी जीत जाऊंगा तब भी EVM पर विश्वास नहीं करूंगा| मतलब वह पूरी तरह से जानते हैं कि वह जीतने की हैसियत में बिल्कुल नहीं थे, उन्हें चमत्कारी ईवीएम मशीन की विश्वसनीयता कायम करने के लिए 37 सीटें जितवाई गई हैं| सोचिएगा अगर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन हटा दी जाए तो सभी दल बहुजन समाज पार्टी के मुकाबले और उसके बहुजन आंदोलन की वजह से चारों खाने चित्त दिखाई देंगे| जिस तरह से दिलीप मंडल जी धीरे-धीरे ही सही बहुजन समाज पार्टी की ताकत को पहचानने लगे हैं, ठीक उसी तरह अगर और भी बुद्धिजीवी प्रोफेसर्स/आचार्य लोग पहचान जाएंगे, तो बहुजन समाज पार्टी के साथ ही उनका हित भी सुरक्षित है|

एक बार फिर यह नारा सार्थक हो जाएगा की-

जो बहुजन की बात करेगा|
वह दिल्ली पर राज करेगा||

*इसी के साथ*
जयभीम नमोबुद्धाय🌹🐘🙏.

✍अवतार सागर· बीएसपी वोटर

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