शिक्षक: वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अग्रदूत

Shiksha RATTAN AWARD 16 APRIL 2023

डॉ. रामजीलाल, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा)
e.mail- drramjilal1947@gmail.com

(समाज वीकली)- वर्तमान समय में राष्ट्रीय शक्ति का आधार नागरिकों की गुणवत्ता, कौशलता तथा राष्ट्रीय चरित्र पर निर्भर करती है. अच्छे नागरिकों के निर्माण में शिक्षक तथा शिक्षा की अभूतपूर्व भूमिका है. अच्छी शिक्षा पद्धति का आधार शिक्षकों की योग्यता, विद्वत्ता, अध्ययन और अनुसंधान के प्रति जिज्ञासा तथा उनके आचरण पर निर्भर करती है. प्राचीन भारत की संस्कृति तथा सभ्यता के संबंध में वर्णन चार वेदों (-ऋग्वेद, आयुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) में मिलता है. वैदिक युग (2000बी.सी.-1000बी.सी.) तथा पोस्ट वैदिक युग 1000बी.सी.-200बी.सी.) में महिलाओं का बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर बहुत ऊंचा था .उनको शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार पुरुषों के बराबर था. महिलाओं को शिक्षा देने का मूल कारण यह था कि उनके आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता में विकास हो.छात्राओं के लिए हॉस्टल का प्रबंध भी था. इन का प्रबंधन महिला अध्यापिकाओं के नियंत्रण में था. वैदिक युग में सहशिक्षा का संदर्भ भी आता है. प्रसिद्ध इतिहासकार ऑल्टेकर के अनुसार महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त थी .उनका बौद्धिक तथा शैक्षणिक स्तर उच्च था. ऋग्वेद के श्लोकों की रचना 378 ऋषियों तथा 29 ऋषिकाओं के द्वारा की गई थी.प्राचीन.भारत का ऋग्वेद सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ है. इसमें तत्कालीन समाज के सामाजिक ,आर्थिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक इत्यादि स्तर का वर्णन है. प्राचीन समय में भारतीय शिक्षा प्रणाली तथा सुयोग्य शिक्षकों के कारण भारतवर्ष विश्वगुरू कहलाता था. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के कारण ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास चरम सीमा पर था. प्राचीन समय में पुरुष शिक्षकों को ‘ऋषि’ तथा महिला शिक्षकों (गुरुओं) को ऋषिकाओं / कवियित्रियों / ब्रह्मवादिनियों के नाम से संबोधित किया जाता था.

प्राचीन समय में असंख्य विद्वानों , ऋषिओं तथा ऋषिकाओं ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया है . विश्व प्रसिद्ध गुरुओं में चरक, चक्रपाणि ,चाणक्य, दत्ता, माधव, पाणिनि, नागार्जुन ,गौतम, शंकरदेव इत्यादि के नाम मुख्य हैं .विश्व प्रसिद्ध महिला गुरुओं/ ऋषिकाओं / कवियित्रियों / ब्रह्मवादिनियों के मसेपुकारतेथे. इनमेंविसवारा,लोपामुदरा,अपला,उर्वशी,घोषा,सुलभा,लीलावती,मैत्रेयी, सासवती,कशना,गार्गी,सिकता,वाक, तिरुवल्लुवर इत्यादि के नाम मुख्य है .
. भारतीय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के कारण भारतवर्ष केवल जगतगुरु ही नहीं अपितु 16वींशताब्दी के अंत तक भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे अधिक शक्तिशाली थी . भारतीय संस्कृति में गुरु की महिमा और स्थिति का विशेष स्थान है.” गुरु” संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ अंधकार को मिटाकर उजाला अथवा प्रकाश करने वाला व्यक्ति होता है . गुरु की तुलना त्रिदेव –‘ब्रह्मा’, ‘विष्णु’ तथा ‘महेश’ से भी की गई है
गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:॥
भारत के प्रसिद्ध ग्रंथ गीता के रचनाकार भगवान श्री कृष्ण ने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए आचार्य या विजयनात कहा है. वास्तव में गुरु के बिना जीवन में घोर अंधेरा होता है वास्तव में गुरु के बिना घोर अंधेरा होता है तथा गुरु जीवन के प्रत्येक मोड़ पर प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करता है. गुरु के प्रकाश की तुलना अनेक विद्वानों के द्वारा हजारों संतो तथा हजारों सूर्य एवं आकाशगंगा के अरबों सितारों के प्रकाश से की गई है.

भारतीय संस्कृति में गुरु -शिष्य परंपरा, गुरु -शिष्य संबंध, गुरु शिष्य -प्रकाश इत्यादि विषयों पर प्राचीन समय में ‘गुरुकुल से लेकर गूगल युग तक’ प्रकाश डाला गया है . प्राचीन भारत में तक्षशिला((पहला विश्वविद्यालय -पश्चिम पंजाब) अनादतापुरी(बंगाल),नालंदा(बिहार),कांची (मद्रास), विक्रमशिला तथा वल्लभी(सौराष्ट्र),नालंदा (बिहार), कांची (मद्रास), वल्लभी (सौराष्ट्र) विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय थे. इनमें अनुष्ठान, पवित्र शास्त्र, व्याकरण, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, तर्क और दर्शन की विभिन्न प्रणालियाँ शामिल थीं.

प्राचीन भारत में शिष्य-गुरु की परंपरा रही है.शिष्य-गुरु परंपरा में अपराध भी हुए हैं जिनमें सर्वाधिक अपराध है गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा गुरु दक्षिणा के रूप में लिया था ताकि एकलव्य राजघराने के शिष्य अर्जुन का मुकाबला ना कर सके .जाहिर होता है की प्राचीन गुरू परंपरा में कहीं ना कहीं ऊंच-नीच का भेदभाव था और आज भी जारी है.

आधुनिक युग में प्रथम स्कूल थॉमस स्कूल कोलकाता सन्1789 में स्थापित हुआ. सन्1848 में ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले एवं फातिमा शेख के प्रयासों से लड़कियों का प्रथम स्कूल स्थापित किया गया. इसके पश्चात धीरे-धीरे शिक्षण संस्थाओं की संख्या बढ़ने लगी.

सन् 2021-22 की नवीनतम यूडीआईएसई रिपोर्ट(2022) के अनुसार, सन् 2022 में स्कूलों की संख्या 14,08,115, ( शहरी 2,54,327 स्कूल व ग्रामीण 12,34,788) है और 26.5 करोड़ से अधिक छात्र हैं, सन् 1978 में कुल विद्यार्थियों का प्रवेश 74.1प्रतिशत था. सन् 2020 तक पहुंचते-पहुंचते सरकारी स्कूलों तथा प्राइवेट स्कूलों में विद्यार्थियों का प्रवेश लगभग बराबर था. भारत के स्कूलों में नामांकित छात्रों की संख्या 26,52,35,830 (12.73 करोड़ स्कूली छात्र महिलाएं व 13.79 करोड़ स्कूली छात्र पुरुष) है. भारत में प्राथमिक विद्यालय के छात्रों का नामांकन वर्तमान में 100.13% , माध्यमिक विद्यालयों का 79.56% ) है. सन् 2020-21 की तुलना में 2021-22 में स्कूलों (कक्षा 1 से 12) में प्रवेश 72 . 9 परसेंट हो गया. कुल नामांकन में 0.76% की वृद्धि हुई है.

परंतु सन 2022 के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार यद्यपि विद्यार्थियों की संख्या अनेक स्थानों पर कम होने तथा स्कूलों के मर्जर के कारण स्कूलों की संख्या कम हुई है .परंतु सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या में वृद्धि हुई है. विद्यार्थियों की संख्या में वृद्धि होने के मूल कारण कोरोना काल में अभूतपूर्व बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई और भूखमरी हैं.

इस समस्त शिक्षा के ताने-बाने में स्कूली स्तर पर सक्रिय रूप से कार्यरत शिक्षकों की संख्या 95,07,123 (48.76 लाख महिला शिक्षक 46.30 लाख पुरुष शिक्षक) है.केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार सरकारी प्राथमिक विद्यालयों (कक्षा पहली से आठवीं) में शिक्षकों के 10 लाख पद खाली पड़े हैं. इस क्षेत्र में, हरियाणा 23.5 प्रतिशत , पंजाब और चंडीगढ़ में 10.1 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 4.4 प्रतिशत , जम्मू-कश्मीर में 7 प्रतिशत , राजस्थान में 11.7 प्रतिशत रिक्तियां हैं.
इनमें 1,20,000 अध्यापक तथा अध्यापिकांए अनुबंध अथवा अस्थाई हैं .अस्थाई अध्यापकों को अनेक नामों से पुकारा जाता है-जैसे गेस्ट टीचर, शिक्षामित्र, अस्थाई अध्यापक इत्यादि. वर्तमान शिक्षा प्रणाली की यह सबसे बड़ी कमजोरी है. जिन अध्यापकों का अपना भविष्य सुरक्षित नहीं है वह एक स्वस्थ राष्ट्र निर्माण नहीं कर सकते और भारतीय शिक्षा प्रणाली उस महल के समान है जिसकी नीव रेत की है और जांचा पूर्णतया चमरा रहा है.

वर्ल्ड बैंक के द्वारा शिक्षा में सुधार करने के लिए भारत को 2 बिलीयन डॉलर की सहायता सन् 2020 में दी गई. इसी वर्ल्ड बैंक ने भारत की शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता की पोल खोल कर रख दी. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्राइमरी शिक्षा के बारे में सन् 2018 की ‘लर्निंग टू रिलाइज एजुकेशन प्रॉमिस’ में कहा है कि भारत में तीसरी कक्षा के तीन चौथाई छात्र दो अंकों के घटाने वाले सवाल को हल नहीं कर सकते और पांचवी कक्षा आधे छात्र भी ऐसा नहीं कर सकते .रिपोर्ट में आगे लिखा कि कई वर्षों के बाद भी लाखों बच्चे पढ़ लिख नहीं सकते या गणित का आसान सा सवाल भी हल नहीं कर सकते . वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में टिप्पणी करते हुए लिखा कि ज्ञान के बिना शिक्षा देना विज्ञान के विकास के अवसर को बर्बाद करना बड़ा अन्याय है. ज्ञान के गंभीर संकट को हल करने के लिए ठोस नीतिगत कदम उठाने की जरूरत है
यहां पर यह भी बताना बड़ा अनिवार्य है कि जिस प्रकार भारत में बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक ,हिंदू बनाम मुस्लिम इत्यादि के आधार पर सामाजिक और राजनीतिक वातावरण बना हुआ है इसका प्रभाव शिक्षा प्रणाली पर भी पड़ा है . रिपोर्ट के अनुसार भारतीय शिक्षा में सामाजिक खाई निरंतर बढ़ रही है ज्ञान का यह संकट सामाजिक खाई को छोटा करने के बजाय ज्यादा बढ़ा रहा है. वर्ल्ड बैंक समूह ने के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा कि ज्ञान का यह संकट नैतिक और आर्थिक संकट है .अच्छी शिक्षा युवकों को आय, रोजगार और अच्छे स्वास्थ्य का दावा करती है .हमारा मानना है कि इस रिपोर्ट की तरफ भारत सरकार और राज्य सरकारों को ध्यान देना चाहिए ताकि शिक्षा में सुधार हो सके. परंतु अफसोस यह है कि इतिहास की पाठ्य पुस्तकों से जब आप मुगलकालीन काल को नहीं पढ़ेगे तो स्पष्ट है कि यह खाई और आगे बढ़ेगी. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार घटिया शिक्षा देने में 12 देशों की सूची में भारत दूसरे स्थान पर है.

वुड्स डिस्पैच, सन् 1854 की सिफारिशों के आधार पर, लंदन विश्वविद्यालय की तर्ज पर सन् 1857 में विश्वविद्यालयों– बंबई, कलकत्ता और मद्रास ,पंजाब और इलाहाबाद के विश्वविद्यालयों को सन् 1882 और सन् 1887 में स्थापित किया गया. ये सभी विशुद्ध रूप से गैर-आवासीय और परीक्षा निकायों के रूप में शुरू हुए थे. सन् 1901-02 में 179 संबद्ध कॉलेज थे.

15 अगस्त 1947 को जब भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा 563 देसी रियासतों से स्वतंत्र हुआ उस समय भारत में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय, 17 राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय तथा लगभग 500 महाविद्यालय थे. इस समय सन् 2023 में भारत में 1113 विश्वविद्यालय हैं इनमें 54 केंद्रीय विश्वविद्यालय 459 राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय, 130 डीम्ड विश्वविद्यालय तथा 430 प्राइवेट विश्वविद्यालय 46978 महाविद्यालय तथा 93 स्वायत्तशासी राष्ट्रीय महत्व के उच्च स्तरीय शिक्षण संस्थान है.भारत में उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ (केवल 27,3%)विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं.

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार ग्रेजुएट लेवल पर 52.7% छात्र व 47.3 % छात्र हैं. भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के अनुसार भारत के दो तिहाई विश्वविद्यालय तथा 90 % महाविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक मानकों से काफी नीचे हैं. सन् 2021 में उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले सकल नामांकन 27 . 3% था तथा बीए स्तर पर लड़कियों की संख्या लड़कों से ज्यादा है – 52 .7 प्रतिशत छात्राएं और 47 . 3 प्रतिशत छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं .लेकिन जहां तक गुणवत्ता का प्रश्न है यहां भी दशा कोई बेहतरीन नहीं है .

17 फरवरी 2023 को जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में शिक्षा की गुणवत्ता की दर 59 .3 प्रतिशत है. भारत की यूनिवर्सिटी शिक्षा की रैंकिंग 10 देशों की सूची में छठे स्थान पर है .यह स्पष्ट है कि भारतीय शिक्षा का संकट क्वालिटी एजुकेशन के दृष्टिकोण से नीचे है. क्या ऐसी स्थिति में भारत वास्तव में विश्व गुरु की ओर बढ़ रहा है? यद्यपि भारत के नेता बार-बार विश्व गुरु की बात बड़े गर्व से बोलते हैं . क्या वास्तव में आधुनिक युग में कोई ऐसी महत्वपूर्ण खोज की है जो इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, स्कॉटलैंड, इटली, फ्रांस इत्यादि के वैज्ञानिकों ने की है.यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है .

यदि हम आधुनिक युग की खोजो का वर्णन करें तो इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन , प्रोटोन , न्यूट्रॉन , यूरेनियम, नाभिक ,नाभिकीय रिएक्टर , साइकिल , साइकिल टायर , मोटरसाइकिल, परमाणु संख्या , परमाणु सिद्धांत ,परमाणु बम, परमाणु संरचना रेडियो टेलीग्राफी,रेडियोधर्मिता ,रेडियो सक्रियता , रेडियम, डायनामाइट, हाइड्रोजन ,नाइट्रोजन, प्लूटोनियम, मैग्नीशियम, फोटोग्राफी धातु , कागज व फोटोग्राफी फिल्म , ऑक्सीजन , थोरियम ,टेलीविजन , इलेक्ट्रॉनिक बैरोमीटर, रेल इंजन ,इंजन कंडेनसर , इंजन, डीजल इंजन,लोकोमोटिव, रेल इंजन ,दूरबीन, बाय फोकल लेंस, इलेक्ट्रोमैग्नेट ,एक्स किरणें व कॉस्मिक किरणें , वायरलेस, रेडियो, टेलीफोन, ग्रामोफोन, बिजली , फिल्म संगीत ध्वनि सिनेमा, मोटर बैटरी ,बिजली ,विद्युत चुंबक, विद्युत चुंबकीय तरंगे, विद्युत संवहन का नियम, विद्युत चुंबक ,आरक्षण का सिद्धांतके नियम , गुरुत्व बल और गति का नियम ,वस्तु के गिरने का सिद्धांत. मोबाइल ,फोन ,फेसबुक, व्हाट्सएप, घड़ी , थर्मोस्कोप, विद्युत पंखा, थर्मामीटर, जहाज, जहाज टरबाइन, हवाई जहाज, समुद्री जहाज, वायुयान ,प्रोपेलर ,हेलीकॉप्टर, कार्बन पेपर, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर, प्रिंटर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर ,रेफ्रिजरेटर, सौरमंडल का केंद्र सूर्य, ग्रहों की खोज, सापेक्षता का सामान्य सिद्धांत ,हीलियम ,एंड्राइड, अलार्म घड़ी, कैलकुलेटर ,विद्युत बैटरी, लिफ्ट ,माइक्रोमीटर, मशीन गन, माइक्रोस्कोप ,माइक्रोप्रोसेसर ,प्रेशर कुकर, सिलाई मशीन, रिवाल्वर,टैंक, राइफल ,रॉकेट, सेफ्टी रेजर, टेलीग्राफ कोड , टेलिस्कोप, क्लोरोफॉर्म , सीमेंट ,इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक मीटर, पैराशूट ,ट्रांसफार्मर इत्यादिसभी यूरोपियन देशों में हुई है.

भारत में वैज्ञानिक खोज न होने के मुख्य कारणों में आस्था, देवी- देवताओं की पूजा, भाग्या पर भरोसा करना, यथास्थिति को चुनौती ना देना, भूत -प्रेत ,आत्मा, अध्यात्मिक शक्ति, देवी -देवताओं की अपार शक्ति, ग्रहों की दिशा बदलने वाले मंत्र, सर्वाधिक धार्मिक स्थलों का निर्माण व अंधविश्वास पैदा करना,लोक-परलोक,जन्म -मरण, पुर्नजन्म, अगला जन्म सुधारने के विभिन्न प्रकार के मंत्र , वशीकरण मंत्र ,अवैज्ञानिक सोच , जातिवाद, ,व्यापार का एकाधिकार, स्त्री को अधिकार न देने की अपेक्षा पुरूषों के अधीन रखना ,मूर्ति पूजा ,पौंगापंथी, इत्यादि हैं.

क्या वास्तव में हमारी शिक्षा वास्तविक तथा गुणवत्तापूर्ण है? .हमारे अध्यापक कितने चिंतनशील, तर्कशील तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण को देने वाले शिक्षक हैं? क्या देश के राजनेताओं की शिक्षा के प्रति अभिरुचि तथा अभिमुखीकरण विद्यमान है? हमें यह भी सोचना होगा कि क्या हमारा अध्यापक समाज के प्रति उस कर्तव्य को निभा रहा है जो वास्तव में शिक्षक के रूप में निभाना चाहिए? क्या वह केवल पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम में भी महत्वपूर्ण प्रश्न पढ़ाकर अपने कार्य की इतिश्री कर देता है ?अधिकांश अध्यापक यह सोचते हैं कि उनका मुख्य कार्य पाठ्यक्रम पूरा करने तक सीमित है. इसका कारण यह है कि शिक्षक का मूल्यांकन करते समय शिक्षा परिणामों की भूमिका महत्वपूर्ण है .परिणाम स्वरूप अधिकांश अध्यापक पूरा पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को नहीं पढ़ाते और केवल महत्वपूर्ण प्रश्न कराते हैं ताकि विद्यार्थी के पास हो जाए. वर्तमान शिक्षा पद्धति में शिक्षक की भूमिका केवल पाठ्यक्रम पूरा करने की पूरा करने तक सीमित हो गई है .यह शिक्षा पद्धति का बहुत ही सीमित रूप है. शिक्षक की एक व्यापक भूमिका होती है ताकि वह अच्छे विद्यार्थी ,अच्छे नागरिक अच्छे, इंसान का निर्माण कर सकें. अच्छे शिक्षक अच्छे समाज का निर्माण करते हैं तथा समाज सुधारक और राष्ट्र निर्माता के रूप में सम्मानित किये जाते हैं.

हमें यह भी मंथन करना चाहिए कि शिक्षक कोई “देवता” नहीं है तथा शिक्षिकाएं “सरस्वती देवी” का रूप नहीं हैं. यदि हम शिक्षक को आराध्य देवता मानकर व्यक्ति पूजा करना प्रारंभ करते हैं तो फिर शिक्षा में कमियां उजागर करना कठिन हो जाता है.प्राय यह देखा गया है कि कर्तव्य निष्ठा ,अनुशासन,अनुसंधान ,गुणवत्तापूर्णता इत्यादि का अभाव निरंतर बढ़ रहा है .शिक्षण संस्थाओं में बायोमेट्रिक मशीन के बावजूद भी शिक्षक स्कूल में उपस्थित हो जाते हैं .परंतु क्लास रूम में जाकर भी नियमित रूप से नहीं पढ़ाते. अध्यापकों का स्कूल से अनुपस्थित होने का मूल कारण सरकार के द्वारा उनसे गैर शैक्षणिक कार्य लेना है जिसके आधार पर उनके स्कूल से अनुपस्थिति का प्रतिशत बढ़ जाता है जबकि वास्तव में बिना किसी कारण के 2.5% अध्यापक ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलो से अनुपस्थित रहते हैं भारत में लगभग 20,0000 स्कूलों में एक अध्यापक प्रति स्कूल है .अनुपस्थिति की स्थिति उस समय गंभीर हो जाती है जब अध्यापकों को सरकार के द्वारा गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाता है परिणाम स्वरूप बच्चों की पढ़ाई पर प्रभाव पड़ता है.

भारतवर्ष में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या निरंतर बढ़ रही है. केवल कला संकाय के विद्यार्थी नहीं अपितु इंजीनियरिंग एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में नौकरी के काबिल केवल 10 % हैं. यही कारण है कि असंख्य तकनीकी शिक्षा संस्थान धीरे धीरे बंद होते जा रहे हैं .नौकरी तथा डिग्री को संबंध स्थापित होना चाहिए.

अनुबंध/एक्सटेंशन पर लगे अध्यापकों की अनेक समस्याएं हैं .उनका अपना भविष्य भी सुरक्षित नहीं है और वेतनमान बहुत कम है .उदाहरण के तौर पर हरियाणा तथा पंजाब जैसे विकसित राज्यों के महाविद्यालयों में अनुबंध पर लगे हुए अध्यापकों को प्रति माह 10,000 से 21000 रूपए तक में वेतन प्राप्त. जो कि स्थायी चपरासी के वेतन से भी कम है हरियाणा में सरकारी महाविद्यालयों में एक्सटेंशन पर लगे हुए प्राध्यापकों को ₹57700 प्रति माह वेतन प्राप्त होता है. विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में सभी पदों पर की स्थायी अध्यापकों की नियुक्ति की जाए तथा भारत के संविधान में दिए गए “समान काम के लिए समान वेतन” के सिद्धांत को लागू किया जाए.

भारतीय शिक्षा प्रणाली में मुख्य समस्या परीक्षा प्रणाली है. भारतीय शिक्षा प्रणाली चाहे वह वार्षिक अथवा सेमेस्टर पर आधारित है दोनों ही पूर्णतया असामयिक, निरर्थक और महत्वहीन है.यह विद्यार्थी को प्रतिभावान ,योग्य ,जिज्ञासु बनाने की अपेक्षा परीक्षा में नकल को बढावा देती है . भारतीय शिक्षा तथा परीक्षा प्रणाली को अधिक सार्थक बनाने के लिए “निरंतर मूल्यांकन” की आवश्यकता है. निरंतर मूल्यांकन में प्रोजेक्ट तैयार करने, प्रोजेक्ट के प्रस्तुतीकरण की गुणवत्ता, आंतरिक परीक्षा तथा वार्षिक अथवा सेमेस्टर परीक्षाओं की उपलब्धियों के आधार पर विद्यार्थियों का मूल्याकन होना चाहिए.आंतरिक परीक्षा प्रणाली की सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण कड़ी अध्यापक है. इस को सफल बनाने के लिए जरूरी है कि अध्यापक जाति ,धर्म, क्षेत्र तथा अन्य आधारों पर विद्यार्थी के साथ भेदभाव ना करें और मूल्यांकन बिना किसी हस्तक्षेप और स्वार्थरहित हो कर करें .

परंतु भारत में कमजोर वर्गों के साथ प्राइमरी स्तर से लेकर विश्वविद्यालयों तक के शिक्षकों का व्यवहार भेदभाव पर आधारित है.यह चिंता का विषय है. अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यक वर्गों तथा महिलाओं के साथ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भेदभाव तथा शोषण की खबरें समाचार पत्रों की सुर्खियां होती है.उच्च स्तरीय अनुसंधान केंद्रों में भी यह भेदभाव सामान्य नजर आता है .सरकारी स्कूलों में दलित वर्ग के बच्चों के साथ प्रत्येक राज्य में किसी न किसी रूप मेंशिक्षक तथा विद्यार्थियों के दिमाग में कहीं ना कहीं भेदभाव भावना है.

भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अनेक समस्याएं हैं. इन समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या गुणवत्ता का अभाव है. शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही गुणवत्ता के अभाव में जी रहे हैं. शिक्षक के लिए अध्ययन करना, विद्यार्थियों को पढ़ाना तथा अपने बौद्धिक स्तर को बढ़ाने के लिए एम.फिल् अथवा पी.एचडी.की उपाधियां गौरव की बात है, परन्तु गुजरात के भूतपूर्व गवर्नर के अनुसार विश्वविद्यालय पी. एच डी. तथा एम. फिल “डिग्रीयों के उत्पादन के कारखाने” बन चुके हैं .इसका मूल कारण यह है कि विद्यार्थी अथवा शोधार्थी स्वयं कार्य ना करके अपने शोध कार्यों को दूसरे लेखकों से पैसे देकर लिखवाते हैं .हरियाणा में 500 से अधिक प्राध्यापकों की पीएचडी डिग्रीयों की छानबीन की खबरें समाचार पत्रों सुर्खियां बनी रही. इस प्रकार के प्राध्यापकों के आधार पर भारतीय उच्च शिक्षण संस्थाओं में पठन-पाठन एवं शोध कार्य कैसे होंगे?..

शिक्षा के क्षेत्र में समस्या विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालयों के संबंधों की समस्या भी है. सरकारी विश्वविद्यालयों का कार्य डिग्री वितरित करने, परीक्षाओं का संचालन करवाने ,महाविद्यालयों से राजस्व व सूलने ,विशेष आयोजनों के लिए महाविद्यालयों से धन की वसूली करने,प्राचार्य तथा प्राध्यापकों के नियुक्ति में हस्तक्षेप करने और अपने चहेतों को महाविद्यालयों पर थोपने, नए पाठ्यक्रमों की मंजूरी देने, समय-समय पर महाविद्यालयों के फंडों का निरीक्षण करने, नए महाविद्यालयों की मंजूरी प्रदान करें तथा उनका निरीक्षण करने इत्यादि मुख्य कार्य हैं.
विश्वविद्यालयों की शिक्षा पद्धति में गुणवत्ता के अभाव का मूल कारण राजनीतिक हस्तक्षेप है. वाइस चांसलर, उच्च अधिकारियों ,प्राध्यापकों , कर्मचारियों तथा महाविद्यालयों में प्राध्यापकों तथा प्राचार्यों की नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप होता हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार भारतवर्ष के 75% वाइस चांसलर पद् के योग्य नहीं है.

इन परिस्थितियों के बावजूद भी भारतवर्ष के शिक्षक अपनी भूमिका कैसे अदा करें ताकि राष्ट्र के निर्माण में सहायक सिद्ध हो सके .शिक्षक का यह कर्तव्य है कि वह विद्यार्थियों में आत्मविश्वास तथा आत्म गौरव की भावना उत्पन्न करें. वह स्वयं रचनात्मक दृष्टिकोण को अपनाएं और विद्यार्थियों में रचनात्मक,वैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा दें.

अध्यापकों को मनोवैज्ञानिक तरीके से विद्यार्थियों में एक अच्छा नागरिक तैयार करने में भूमिका अदा करनी चाहिए.अध्यापक का यह कर्तव्य है कि वह विद्यार्थियों में शाश्वत मूल्य अपनाने की प्रेरणा दें . प्रेम ,शांति, अहिंसा ,सदाचार, पारस्परिक सहयोग, सहनशीलता, सहिष्णुता, ईमानदारी, न्याय की भावना, अनुशासन, आत्म नियंत्रण, सदव्यवहार, संवेदनशीलता ,राष्ट्र और समाज के प्रति निस्वार्थ सेवा इत्यादि महत्वपूर्ण शाश्वत मूल्य है. इन मूल्यों पर समय, स्थान ,परिस्थिति और देश का कोई प्रभाव नहीं होता . इसके अतिरिक्त प्रत्येक देश की परिस्थितियों के अनुसार मूल्यों में कुछ परिवर्तन समय और परिस्थिति के अनुसार आवश्यमेव होता है क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का
.भारत के संविधान की प्रस्तावना में मार्गदर्शक मूल्यों का वर्णन है .इन मूल्यों में समानता ,स्वतंत्रता, बंधुता ,सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, व्यक्ति की गरिमा ,राष्ट्रीय एकता और अखंडता ,धर्म निरपेक्षता, प्रभुसत्ता ,समाजवाद ,लोकतंत्र,इत्यादि मुख्य हैं. प्रत्येक भारतीय को इन मूल्यों को ग्रहण करना चाहिए तथा शिक्षक वर्ग को चाहिए कि वह इन मूल्यों को विद्यार्थियों को अपनाने के लिए प्रेरित करें. जब अध्यापकों का अपना दृष्टिकोण अथवा अभिमुखीकरण वैज्ञानिक ,तर्कसंगत तथा विवेकपूर्ण होगा तभी शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण होगा.

(विशेष टिप्पणी:एंटी करप्शन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के तत्वाधान में आयोजित ‘शिक्षा रतन अवार्ड’ समारोह (16 अप्रैल 2023) में मुख्य वक्ता के रूप में दिया गया भाषण है. इस समारोह में डॉ. रामजीलाल, भूतपूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा) सहित असंख्य शिक्षकों को ‘शिक्षा रतन अवार्ड ‘से नवाजा गया . समारोह में मुख्य बुद्धिजीवियों में डॉ. आर .एस .यादव( वाइस चांसलर बीएमयू ,अस्थल बोहर, रोहतक तथा प्रेसिडेंट अवॉर्डी ),अंतरराष्ट्रीय राजनीति के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉ.वी.के. मल्होत्रा एवं राष्ट्रीय पंजाबी महासभा के राष्ट्रीय सलाहकार ,डॉ.रमेश मदान व यशपाल कादियान, वरिष्ठ पत्रकार के नाम उल्लेखनीय हैं. यह आयोजन फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रसिद्ध समाजसेवीनरेंद्र अरोड़ा के द्वारा किया गया.)

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