गांधीवाद की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता: एक पुनर्विलोकन

डॉ. रामजीलाल, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा- भारत)
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(समाज वीकली)- भारतीय राजनीतिक चिंतन में महात्मा गांधी उत्कृष्ट स्थान है. महात्मा गांधी (2 अक्टूबर 1869-30 जनवरी 1948) का जन्म करमचंद गांधी तथा श्रीमती पुतलीबाई घर काठियावाड़ के पोरबंदर में हुआ. 19 वर्ष की आयु में मैट्रिक पास करने के पश्चात सन् 1888 में वकालत करने के लिए इंग्लैंड गए और वहां से वकालत की पढ़ाई करने के पश्चात सन् 1891में भारत वापस पहुंचकर मुंबई तथा राजकोट में वकालत प्रारंभ की. सन् 1893 में एक मुकदमे की पैरवी करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए. वहां पर भारतीयों के साथ जो दुर्व्यवहार हो रहा था उन्होंने उसके विरुद्ध आंदोलन किया. 20 वर्ष तक वह दक्षिण अफ्रीका में संघर्षरत रहे. इन 20 वर्षों में महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्य, अहिंसा और नैतिकता आधार पर सत्याग्रह के ब्रह्मास्त्र का सफलतापूर्वक प्रयोग किया.

सन् 1914 में महात्मा गांधी भारत वापस आए. इस समय उनकी आयु 55 वर्ष की थी. सन् 1920 से सन् 1947 तक उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया. यही कारण है कि इस युग को “गांधी युग” के नाम से पुकारा जाता है .इस समय को यदि हम “गांधी जी भारत थे, भारत गांधी जी थे “कह कर पुकारे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. भारत में महात्मा गांधी ने चंपारण (बिहार) तथा खेड़ा (गुजरात) में किसानों के आंदोलन को जन आंदोलन में परिवर्तित किया और किसानों को ब्रिटिश साम्राज्य के शोषण से मुक्त कराया. उनके द्वारा भारत में असहयोग आंदोलन (सन् 1920 से सन् 1922 तक), सविनय अवज्ञा आंदोलन (सन् 1930 से सन् 1934तक), व्यक्तिगत सत्याग्रह (सन् 1940 से सन् 1941 तक) और भारत छोड़ो आंदोलन(सन् 1942 to सन् 1944 )का नेतृत्व किया. 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजी साम्राज्यवाद व भारतीय नरेशों और नवाबों के शोषण से मुक्ति प्राप्त हुई और भारत एक स्वतंत्र देश बना. 30 जनवरी 1948 को शांति, अहिंसा व सत्य के अग्रदूत महात्मा गांधी को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी.

महात्मा गांधी की जीवन दिनचर्य बहुत ही अधिक व्यस्त थी. वह प्रतिदिन 18 किलोमीटर चलते थे और समस्त आयु में लगभग 79 हजार किलोमीटर की यात्राएं करके सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों का व्यवहारिक अध्ययन किया. वह प्रतिदिन 700 से अधिक शब्द लिखते थे. समस्त आयु में उन्होंने लगभग एक करोड़ से अधिक शब्द लिखें .महात्मा गांधी के जीवन, जीवन दर्शन, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक चिंतन के विभिन्न पहलुओं के संबंध में 90 हजार से अधिक किताबें, 45 से अधिक फिल्में और 500 से अधिक डॉक्यूमेंट्री हैं. महात्मा गांधी के विचारों का संग्रह 100 किताबों में वर्णित है. नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्र नाथ टैगोर ने सर्वप्रथम गांधीजी के लिए” महात्मा .”शब्द का प्रयोग किया. इसी प्रकार सुभाष चंद्र बोस ने उनको ‘राष्ट्रपिता’ कह कर संबोधित किया और महात्मा गांधी ने अपने संबोधन में सुभाष चंद्र बोस को “नेताजी “के नाम से पुकारा. यद्यपि सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी धुरंधर विरोधी थे.

बचपन से लेकर मृत्यु तक महात्मा गांधी के चिंतन पर विभिन्न धर्मों की पुस्तकों, भारतीय तथा विदेशी दार्शनिकों और विचारों का प्रभाव था. इसके अतिरिक्त महात्मा गांधी का चिंतन तत्कालीन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों से भी प्रभावित था .

महात्मा गांधी के चिंतन के मूल आधार सत्य, अहिंसा, नैतिकता आध्यात्मिकता, साधन और एकता, अध्यात्मिकरण, सदाचार, त्याग, ईमानदारी, दलित, शोषित वर्ग व स्त्री उत्थान और कल्याण, मानवीय एकता, राष्ट्रवाद और अंतरराष्ट्रीयवाद का सुंदर समन्वय, सामान्य हित, ट्रस्टीशिप इत्यादि हैं. महात्मा गांधी ने समानता, स्वतंत्रता, नैतिकता, धर्मनिरपेक्षता, सर्वधर्म समभाव, अहिंसा, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, व्यक्ति की गरिमा, समाजवाद, सर्व व्यस्क मताधिकार, स्वराज्य, विश्व परिषद, नि:शस्त्रीकरण, मानववाद तथा मानव की एकता, कुटीर उद्योग धंधे, पूंजीवाद तथा उपभोक्तावादी संस्कृति का विरोध, दीन -हीन का कल्याण, इत्यादि पर बल दिया. महात्मा गांधी ने सत्ता के विकेंद्रीकरण पर बल देते हुए ग्राम स्वराज्य अथवा ग्राम गणराज्य की स्थापना के सिद्धांत का प्रतिपादन किया. महात्मा गांधी के इन विचारों के संग्रह को विद्वानों ने ‘गांधीवाद’ के नाम से पुकारा है.

सोवियत संघ के विभाजन के पश्चात उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी) की लहर समस्त विश्व में सुनामी की तरह फैल गई. भारत कोई अपवाद नहीं है. भारत में विभिन्न केंद्रीय तथा प्रांतीय सरकारों के द्वारा जिस तरीके से निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है वह निश्चित रूप में गांधीवादी चिंतन के प्रतिकूल है. एक ओर सरकारों के द्वारा कारपोरेट को अभूतपूर्व छूट देकर प्राकृतिक संसाधनों – जल, जंगल जमीन व जीवन का दोहन करने का अवसर प्रदान किया है तथा दूसरी ओर कारपोरेट ने एनपीए के नाम पर बैंकों का मुंडन संस्कार करके बैकों को लूट लिया. भारत में गरीब और अमीर के बीच बढ़ती हुई खाई, संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, प्राकृतिक असंतुलन, उपभोक्तावाद इत्यादि वास्तविक रूप में गांधीवादी चिंतन के अनुकूल नहीं है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उग्र राष्ट्रवाद, सैन्यवाद, नि:शस्त्रीकरण के स्थान पर सशस्त्रीकरण, अधिनायवादी प्रवृतियां, युद्ध (रूस -यूक्रेन युद्ध) इत्यादि गांधीवाद के विपरीत हैं.

भारतीय राजनीति में राजनीतिक शुचिता की अपेक्षा राजनीतिक अपराधीकरण, भ्रष्टाचार, छल, कपट अन्याय और अपराध निरंतर बढ़ रहे हैं. संविधानवाद की अपेक्षा सर्वाधिकारवाद अथवा सत्तावाद, राष्ट्रवाद की अपेक्षा उग्र राष्ट्रवाद, संप्रदायवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, धार्मिक कट्टरवाद तथा संकुचित वफादारियों में निरंतर वृद्धि हो रही है. शांतिपूर्ण परिवर्तन की अपेक्षा हिंसात्मक और अलगाववादी प्रवृतियां तथा हिंसात्मक आंदोलन – नक्सलवादी हिंसा, जातीय हिंसा, पूर्वोत्तर भारत तथा जम्मू कश्मीर में आतंकवादी हिंसा, दलित वर्ग पर हिंसात्मक अपराध निरंतर बढ़ रहे हैं.

महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा पर आधारित स्वच्छ राजनीति पर बल दिया. परंतु वर्तमान समय में राजनेताओं का मुख्य उद्देश्य नैतिक और अनैतिक साधनों — साम, दाम, दंड और भेद से सत्ता पर कब्जा करना रह गया है. यद्यपि भाषण बाजी में राजनेता गांधी का प्रयोग करते हैं परंतु व्यवहार में सत्ता प्राप्ति के लिए मैक्यावली और चाणक्य के अनुयाई हैं. अन्य शब्दों में उनके लिए अहिंसा, सत्य इत्यादि का कोई महत्व नहीं है. यही कारण है कि विधायक और सांसद अपराधी हैं. एडीआर रिपोर्ट के अनुसार, 4,845 सांसदों-विधायकों के हलफनामों के विश्लेषण में सामने आया कि 1,580 (देश के 33% सांसद और और विधायक) पर आपराधिक मामले दर्ज थे. सन् 2004 में 24 % , सन् 2009 में 30%, सन् 2014 में 34% और सन् 2019 में 43 % सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित थे. एनएन वोहरा समिति की रिपोर्ट (अक्तूबर 1993)के अनुसार भारत की राजनीतिक व्यवस्था अपराधियों की ‘गिरफ्त’ में है .वस्तुत: यह चिंता का विषय है . राजनीतिक अपराधीकरण के परिणाम स्वरूप पुलिस,नौकरशाही तथा प्रशासन जनता का सेवक न होकर रिश्वतखोरी, बेईमानी, भ्रष्टाचार एवं नैतिक पतन के कारण जनता की अपेक्षा राजनेताओं के प्रति अधिक वफादार हैं. संविधान और कानून की सीमाओं का उल्लंघन करते हैं. ऐसी स्थिति में रक्षक भक्षक बन जाते हैं. महात्मा गांधी के चिंतन में पुलिस के संबंध में अनेकों सुधार बताए गए हैं. इसके बावजूद भी सरकारों के द्वारा उनकी अवहेलना की गई है.

महात्मा गांधी की अवधारणा के अनुसार भारत गांव में बसता है तथा गांव भारत की आत्मा के समान है. भारत एक कृषि प्रधान कृषि प्रधान देश है. यद्यपि कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुए हैं. इसके बावजूद किसानों की हालत अच्छी नहीं है. इसके अनेक कारण हैं .आज भी 60 % खेती मौसम पर निर्भर करती है., किसान कर्जे में पैदा होता है कर्जे में जीता है और कर्जे में मरता है. सन् 2014 में भाजपा नीत एनडीए गठबंधन सरकार आने के बावजूद भी आत्महत्याओं का सिलसिला जारी है. परिणाम स्वरूप सन् 2014 से सन् 2021 तक भारत में 53,881 किसानों ने आत्महत्या की है. इसका तात्पर्य यह है कि 21 किसान हर रोज आत्महत्या करते हैं. दूसरे शब्दों में देश में हर घंटे में लगभग एक किसान आत्महत्या कर रहा है. वास्तविक स्थिति यह है कि कृषि घाटे का व्यवसाय बनता जा रहा है. यही कारण है कि सन् 2013आंकड़ों के अनुसार 62% किसानों का यह मानना था कि यदि उनको वैकल्पिक व्यवसाय मिल जाए तो वे खेती को हमेशा के लिए अलविदा कह देंगे. सीएसडीएस के( फरवरी 2018) के आंकड़ों के अनुसार यह संख्या बढ़कर 64% हो गई है. सन् 2013 में 36% किसान अपने बच्चों को कृषि कार्य में लगाना नहीं चाहते थे. विगत 5 सालों में यह संख्या बढ़कर 60 % हो गई. तीन कृषि कानूनों किसानों के समस्याओं को और अधिक गंभीर कर दिया.दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के अंत तक किसान आंदोलन का स्वरूप किसान आंदोलन के इतिहास में अपने आप में अनूठा है. 378 दिन चले इस आंदोलन में लगभग 750 साल शहीद हुए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा तीनों कृषि कानूनों की रद्द करने की घोषणा के पश्चात यद्यपि किसान आंदोलन समाप्त हो गया. किसान अन्य मांगों -न्यूनतम समर्थन मूल्य( सीटू+50%) की कानूनी गारंटी, बिजली संशोधन विधेयक 2022 को समाप्त करने, लखीमपुर खीरी कांड में नामित केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी इत्यादि को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन कर सकते हैं. सन 2020 में कोरोना महामारी ने यह सिद्ध कर दिया की कृषि बढ़ावा दिया जाए. यदि हम ऐसा करते हैं तो महात्मा गांधी के चिंतन -स्वदेशी एवं ग्राम विकास की ओर अग्रसर होंगे.

महात्मा गांधी के चिंतन में महिला विकास, महिला उद्धार और महिलाओं के सम्मान का विशेष स्थान है. परंतु महात्मा गांधी का यह स्वपन उस समय तार- तार होता है जब महिलाओं के बलात्कारों, हत्याओं एवं अन्य अत्याचारों की खबरें समाचार पत्रों की सुर्खियां होती हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में सन 2008 में 21,467 बलात्कार मामले के विभिन्न राज्यों के पुलिस थानों में पंजीकृत किए गए. बलात्कार के पंजीकृत मामलों में निरंतर वृद्धि होती जा रही है. यही कारण है कि सन् 2021 में 31677 मामले पुलिस स्टेशनों में दर्ज किए गए.

आजादी के 75 वर्ष के पश्चात भी भारत में गरीबी, कुपोषण और भूख साम्राज्य विद्यमान है. सन् 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए गठबंधन सरकार सत्ता में आई ,उस समय ग्लोबल हंगर रिपोर्ट के अनुसार 120 देशों की सूची में भारत 55 वें स्थान था. ग्लोबल हंगर रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत में 14% आबादी कुपोषण का शिकार है. इसमें किसानों और श्रमिकों के 30 % बच्चे कुपोषण का शिकार हैं तथा 50% गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त है. भारत सरकार ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया की कोरोना महामारी के समय 84 करोड़ लोगों को फ्री राशन दिया. परंतु भारत में भुखमरी निरंतर बढ़ती चली गई और सन् 2022 की ग्लोबल हंगर रिपोर्ट के अनुसार 121 देशों की सूची में भारत 107 में पायदान है. भारत में गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, कुपोषण इत्यादि अमृत काल में भारतीय लोकतंत्र का कृष्ण पक्ष है. वास्तव में यह गांधीवादी चिंतन के बिल्कुल विरुद्ध है.

यशपाल ने अपनी पुस्तक “गांधीवाद की परीक्षा” में कहा है कि हम गांधी जी की प्रशंसा के गीत गाते हैं, उनके सिद्धांतों की दुहाई देते हैं, उनकी जयंती मनाते हैं और काम ऐसे करते हैं जो गांधीवादी विचारधारा के प्रतिकूल होते हैं. जेडी सेठी ने अपनी पुस्तक ‘गांधी टुडे’ में बड़ा स्पष्ट लिखा है कि, “हमने उस संसार का निर्माण किया है जो गांधी रहित है’. हमारे कहने का अभिप्राय यह है कि हम गांधीवादी सिद्धांतों की मौखिक सहानुभूति प्रदर्शित करते हैं परंतु में व्यवहार में उनकी हत्या करने में संकोच नहीं करते.

इसके बावजूद भी गांधीवादी चिंतन प्रासंगिक रहेगा.महात्मा गांधी का केवल भारत के इतिहास में ही नहीं अपितु समस्त विश्व में के इतिहास में विशेष स्थान है. करोड़ों लोगों ने उससे प्रेरणा ली है और भविष्य में भी रहते रहेंगे. दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व शिक्षक एवं समाजवादी चिंतक डॉ प्रेम सिंह ने बिल्कुल ठीक और स्पष्ट लिखा है : ‘महात्मा गांधी से प्रभावित होकर अहिंसात्मक आधार पर आंदोलनों को चलाने वाले लोगों में गांधी के बाद दुनिया की अनेक संघर्षशील विभूतियों ने अन्याय और अत्याचार का प्रतिरोध करने के लिए गांधी के रास्ते को अपनाया.उनमें अफ्रीका के नेल्सन मंडेला, डेस्मंड टूटू, तंजानिया के जूलियस न्ययेरे, अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग जूनियर, तिब्बत की स्वतंत्रता के अहिंसक आंदोलनकारी, ईरोम शर्मीला आदि के नाम प्रमुखता से आते हैं. भारत में डॉ. भीमराव अंबेडकर, आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया जैसे कई विचारक और नेता रहे हैं जिन्होंने गांधी के अहिंसक संघर्ष की विरासत को समृद्ध किया है. गांधी की उपस्थिति में भारत औपनिवेशिक वर्चस्व के बावजूद दुनिया के स्तर पर एक गरिमामय और अनुकरणीय राष्ट्र-समाज के रूप में स्थापित हो गया था. लेकिन अंतिम दिनों में उनकी खुली अवहेलना और अंतत: हत्या कर दी गई. हत्या के बाद उनका व्यापार और तिरस्कार करने की प्रवृत्तियां जोर पकड़ती गईं, जो ‘नए भारत’ में काफी विद्रूप हो गई हैं। ऐसे में भारत से शुरुआत के लिए एक बड़े संकल्प की जरूरत होगी.’महात्मा गांधी के अंतरराष्ट्रीय अनुयायियों- मार्टिन लूथर, नेल्सन मंडेला, आंग सान सू इत्यादि को नोबेल पुरस्कार नवाजा गया. सन् 1937 से सन्1948 के मध्य 5 बार महात्मा गांधी को विश्व शांति नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया. इसके बावजूद भी उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिला. अंततः महात्मा गांधी मर चुका है परंतु गांधीवाद अमर है और रहेगा. गांधीवादी चिंतन की प्रासंगिकता सदैव रहेगी.

(लेखक, इंडियन पॉलिटिकल थॉट, करनाल: नटराज पब्लिशिंग हाउस, जुलाई 1998) के सह लेखक हैं)

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