मनुष्य की मानसिकता दर्शाती पुस्तक ” अब हुई न बात”

(समाज वीकली)

तेजिंदर चंडिहोक

तेजिंदर चंडिहोक

लघु कथा साहित्य की ऐसी विधा है जिस में लिखने और पढ़ने में ज्यादा समय नहीं लगता। बड़ी सी बात को संक्षेप रूप में ब्यान करना इस विधा की खूबी है। दूसरे शब्दो में लघु कथा गागर में सागर भरने जैसा है। यूं भी देखा जाए तो आज के युग में किसी के पास भी इतना समय नहीं कि वह लंबी लंबी कहानियां पढ़ सके। यह भी हमारी एक त्रासदी है। हम पढ़ने के लिए समय ही नहीं निकाल पाते। लघु कथा एक बिजली की गरज जैसी होती है। एक झटके से सारी स्थिति को ब्यान करने वाली।
डा. जवाहर धीर की लघुकथाएं की पुस्तक ” अब हुई न बात” का पाठ करते समय पता चला कि वह जवाहर धीर से पहले जवाहर आजाद भी थे। पुस्तक की सिरलेखत लघु कथा “अब हुई न बात ” पुस्तक की 89 लघु कथाएं में 77वे स्थान पर अंकित है। उन्हों ने अपने मित्रों मोहन सपरा, सिमर सिदोष और प्रेम विज को समर्पित की है। इन तीनों मित्रों ने पुस्तक के बारे में अपने विचार भी व्यक्त किए हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सिक डा जवाहर धीर ने साहित्य में भी खूब काम किया है। इस पुस्तक में उन्हों ने समाज में मनुष्य की मानसिकता को और अलग अलग बिंदुओं को ले कर लघु कथा की संरचना की है। किसी जीव की रक्षा करना, रिश्तों से पैसे को महत्व देना, पुलिस विभाग की कारगुजारी, धार्मिक सथानों की असलियत, राजनीतिक दलों की सोच, मजबूरी और मुफाद के इलावा कई अन्य विसंगत्ती को पाठको के सामने रखा है। जैसे नशा, वृद्ध आश्रम, बलात्कार, अगवा, रिश्वत इतियाद।
पैसे का महत्व रिश्तों से जरूरी अपनी लघु कथा भाग्य, अपना अपना सुख, आगे पीछे में दिखाया है। ऐसे ही पशु हिरण की रक्षा सकून लघु कथा में दर्शाया है। कहानी ठेकेदार में उस ठेकेदार का किरदार दिखा है जिसे कोठी का काम कार्पोरेशन द्वारा सोपा गया उस ठेकेदार को इनाम में देने के लिए मगर उस की मानसिकता तो पहले जैसी है जो घटिया लेबर और सामग्री लगा कर बना रहा है जिस का ज्ञान उसे बाद में हुआ।
पुस्तक में जातिवाद से सम्बन्धित कुछ लघु कथाएं भी शामिल हैं जैसे दीवार आदि। राजनितक लोगों की बातें भी हाथी के दांत जैसी होती हैं, कहने को कुछ और करने को कुछ। लघु कथाएं नेताओं की बातें, सुगंध, उपद्रव, बुढ़ापा पेंशन इसी सरंखला में हैं। औरत को अपनी रक्षा के लिए किया गया उपाव लघु कथा तरकीब में मिलता है। ताकत, ओवर लोड, आंनद, रिश्तों की महक, कलचर्ड, अपनी अपनी खुशी, सुखा राशन, सफाई अभियान, दादी का चश्मा, हिस्सा, कसूरवार कौन, बिरादरी, पगार इतिआद पढ़ने योग्य लघु कथाएं हैं।
पुस्तक की सिरलेखत लघु कथा अब हुई न बात में उन्हों ने बताया है कि क्रांतिवीर पात्र का परिवार विशेष तौर पर उनकी पत्नी उनके लेखन से न खुश है और न ही उसका की कोई लेखन में दिलचस्पी है, उनको फालतू का काम समझती है लेकिन जब उनको टी वी पर पता चलता है कि क्रांतिवीर को सरकार पुरस्कार दे रही है जिस में अढ़ाई लाख रुपए मिलेंगे तो इस के तेवर भी बदल जाते हैं। मतलब उसे उनकी कृत से कोई बावस्ता नहीं है लेकिन पैसा उसकी सोच को बदल देता है।
इसी प्रकार इस लघु कथा में लेखकों की त्रासदी का वर्णन मिलता है कि आज की नौजवान पीढ़ी का साहित्य में कोई इंट्रेस्ट नहीं है जिस का आज के हरएक लेखक को चिंता सताए जा रही है। उस ने अपने सारे जीवन में कितना लिखा पढ़ा और इस का एक मात्र खजाना पुस्तकें ही है जिन्हे संभाल पाने वाला कोई नहीं है। यह यथार्थ भी है कि आज के लेखक को चिंता है। लेखक के गुजरने के बाद उसके बच्चे इस खज़ाने को संभालने की जगह कबाड़ में बेच रहे हैं। इस का उदाहरण लघु कथा चंदर परकाश और अन्य लघु कथाओं में आया है।
डा धीर की लेखन भाषा साधारण और आम पाठक के समझ में आने वाली है। विषय भी अच्छा चुना है। पाठकों में दिलचस्पी पैदा करती हुई अपने साथ ले कर चलने वाली लेखनी है।
मैं इस पुस्तक अब हुई न बात के लिए डा जवाहर धीर को बधाई देते हुए अपेक्षा करता हूं कि वह आगे भी पाठकों को अपनी कलम से ऐसी लघु कथाएं, कहानियां आदि देंगे।

ए एस पी सेवा निवृत
राष्ट्रीयपति अवार्ड प्राप्त
बरनाला पंजाब।
संपर्क : 9501000224

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