सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के नायक राम हैं और ओमप्रकाश वाल्मीकि के नायक शम्बूक। कोई तो वजह होगी?

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के नायक राम हैं और ओमप्रकाश वाल्मीकि के नायक शम्बूक। कोई तो वजह होगी?

ओमप्रकाश वाल्मीकि के जन्मदिन (30 जून) पर सादर नमन

(समाज वीकली)- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराल’ की सर्वश्रेष्ठ कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ मानी जाती है। इसमें दशरथ पु्त्र राम अन्यायियों और अन्याय से मुक्ति दिलाने वाले नायक के रूप में सामने आते हैं।
महिषासुर की हत्या करने वाली दुर्गा इस कविता में राम को शक्ति प्रदान करती हैं। इस कविता में राम न्याय-अन्याय के युद्ध में न्याय के प्रतीक बनकर सामने आते हैं।
इसके विपरीत ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘शंबूक का कटा सिर’ में दशरथ पुत्र राम हत्यारे और अन्यायी के रूप में सामने आते हैं। जो दहशत पैदा करते हैं। इस कविता में राम वर्ण वर्चस्व की स्थापना के लिए निरपराध शंबूक की निर्मम हत्या करते हैं।
यह सिर्फ कविताएं नहीं हैं, ये हिंदी साहित्य और वैचारिक दुनिया की दो परंपराएं हैं।
सवाल यह है कि वामपंथी भाषा में बात करें तो कौन सी परंपरा और विरासत प्रगतिशील है?
कौन सी परंपरा भारत के उत्पादक और मेहनतकश वर्ग की परंपरा है और कौन सी भारत के परजीवी-अनुत्पादक और शोषक वर्ग की परंपरा है?
भारत में कौन सी प्रतिवाद और प्रतिरोध की परंपरा है और कौन सी यथास्थतिवादी या प्रतिक्रियावादी परंपरा है?
समता, स्वतंत्रता और बंधुता पर आधारित भारत का निर्माण करने की चाह रखने वाले लोगों को खुद को निराला की ‘राम की शक्तिपूजा’ से जोड़ना चाहिए या ओमप्रकाश वाल्मीकि के ‘शंबूक के कटे सिर’ से?
अभी फिलहाल हिंदी पट्टी ने खुद को राम की शक्तिपूजा की परंपरा से जोड़ रखा है। अकारण नहीं है कि विश्वविद्यालयों में यह कविता पाठ्यक्रम में है। यह कविता सिविल सर्विसेज के कोर्स में भी शामिल है।
जबकि ‘शंबूक कटा सिर’ पाठ्यक्रम और विमर्श के मुख्य दायरे से बाहर है।

निराला की कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ और ओम प्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘शंबूक का कटा सिर’
रवि हुआ अस्त : ज्योति के पत्र पर लिखा अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर
आज का, तीक्ष्ण-शर-विधृत-क्षिप्र-कर वेग-प्रखर,
शतशेलसंवरणशील, नीलनभ-गर्ज्जित-स्वर,
प्रतिपल-परिवर्तित-व्यूह-भेद-कौशल-समूह,—
राक्षस-विरुद्ध प्रत्यूह,—क्रुद्ध-कपि-विषम—हूह,
विच्छुरितवह्नि—राजीवनयन-हत-लक्ष्य-बाण,
लोहितलोचन-रावण-मदमोचन-महीयान,
राघव-लाघव-रावण-वारण—गत-युग्म-प्रहर,
उद्धत-लंकापति-मर्दित-कपि-दल-बल-विस्तर,
अनिमेष-राम-विश्वजिद्दिव्य-शर-भंग-भाव,—
विद्धांग-बद्ध-कोदंड-मुष्टि—खर-रुधिर-स्राव,
रावण-प्रहार-दुर्वार-विकल-वानर दल-बल,—
मूर्च्छित-सुग्रीवांगद-भीषण-गवाक्ष-गय-नल,
वारित-सौमित्र-भल्लपति—अगणित-मल्ल-रोध,
गर्ज्जित-प्रलयाब्धि—क्षुब्ध—हनुमत्-केवल-प्रबोध,
उद्गीरित-वह्नि-भीम-पर्वत-कपि-चतुः प्रहर,
जानकी-भीरु-उर—आशाभर—रावण-सम्वर।
लौटे युग-दल। राक्षस-पदतल पृथ्वी टलमल,
बिंध महोल्लास से बार-बार आकाश विकल।
वानर-वाहिनी खिन्न, लख निज-पति-चरण-चिह्न
चल रही शिविर की ओर स्थविर-दल ज्यों विभिन्न;
प्रशमित है वातावरण; नमित-मुख सांध्य कमल
लक्ष्मण चिंता-पल, पीछे वानर-वीर सकल;
रघुनायक आगे अवनी पर नवनीत-चरण,
श्लथ धनु-गुण है कटिबंध स्रस्त—तूणीर-धरण,
दृढ़ जटा-मुकुट हो विपर्यस्त प्रतिलट से खुल
फैला पृष्ठ पर, बाहुओं पर, वक्ष पर, विपुल
उतरा ज्यों दुर्गम पर्वत पर नैशांधकार,
चमकती दूर ताराएँ ज्यों हों कहीं पार।
आए सब शिविर, सानु पर पर्वत के, मंथर,
सुग्रीव, विभीषण, जांबवान आदिक वानर,
सेनापति दल-विशेष के, अंगद, हनुमान
नल, नील, गवाक्ष, प्रात के रण का समाधान
करने के लिए, फेर वानर-दल आश्रय-स्थल।
बैठे रघु-कुल-मणि श्वेत शिला पर; निर्मल जल
ले आए कर-पद-क्षालनार्थ पटु हनुमान;
अन्य वीर सर के गए तीर संध्या-विधान—
वंदना ईश की करने को, लौटे सत्वर,
सब घेर राम को बैठे आज्ञा को तत्पर।
पीछे लक्ष्मण, सामने विभीषण, भल्लधीर,
सुग्रीव, प्रांत पर पाद-पद्म के महावीर;
यूथपति अन्य जो, यथास्थान, हो निर्निमेष
देखते राम का जित-सरोज-मुख-श्याम-देश।

‘शंबूक का कटा सिर’
जब भी मैंने
किसी घने वृक्ष की छाँव में बैठकर
घड़ी भर सुस्‍ता लेना चाहा
मेरे कानों में
भयानक चीत्‍कारें गूँजने लगी
जैसे हर एक टहनी पर
लटकी हो लाखों लाशें
ज़मीन पर पड़ा हो शंबूक का कटा सिर ।
मैं उठकर भागना चाहता हूँ
शंबूक का सिर मेरा रास्‍ता रोक लेता है
चीख़-चीख़कर कहता है–
युगों-युगों से पेड़ पर लटका हूँ
बार-बार राम ने मेरी हत्‍या की है ।
X x x
शंबूक ! तुम्‍हारा रक्‍त ज़मीन के अंदर
समा गया है जो किसी भी दिन
फूटकर बाहर आएगा
ज्‍वालामुखी बनकर !

Siddharth Ramu

 

 

Previous articleGanga in Bihar : From Chausa to Manihari
Next articleਵਿਦੇਸ਼ ਜਾ ਕੇ ਡਾਲਰ ਕਮਾਉਣ ਦਾ ਸੁਪਨਾ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਲਈ ਨੌਜਵਾਨ ਫਰਜ਼ੀ ਟਰੈਵਲ ਏਜੰਟਾਂ ਦਾ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ ਸ਼ਿਕਾਰ-ਅਵੀ ਰਾਜਪੂਤ