जन्मदिन पर विशेष लेख–11 अक्टूबर
डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा-भारत)
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#समाज वीकली यू.के.
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अनेक विचारधाराओं के आधार पर जनता को लाभ बंद करने का प्रयास किया गया. इन विचारधाराओं में गांधीवादी विचारधारा, साम्यवादी विचारधारा, क्रांतिकारी विचारधारा एवं समाजवादी विचारधाराए मुख्य हैं.भारतीय समाजवादी चिंतकों व नेताओ में आचार्य नरेंद्र देव, जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, मीनू मसानी इत्यादि मुख्य नाम हैं. लोकनायक जयप्रकाश नारायण (11 अक्टूबर 1902– 8 अक्टूबर 1979) का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास तथा स्वतंत्र भारत में समाजवादी चिंतकऔर विचारक होने के नाते विशेष स्थान और योगदान है. समाजवादी विचारधारा के समर्थकों में जयप्रकाश नारायण की भूमिका गौरवमय और अद्वितीय है.
जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के एक गांव सिताब दियारा में हुआ .इनके पिताजी का नाम हरसूदयाल तथा माताजी का नाम फूल रानी था .जयप्रकाश नारायण ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ग्रहण की तथा मैट्रिक एवं इंटर की शिक्षा पटना में ग्रहण की .महात्मा गांधी के प्रभाव के कारण हजारों युवक युवतियों असहयोग आंदोलन में कूद पड़े. जयप्रकाश नारायण ने भी पढ़ाई का परित्याग करके असहयोग आंदोलन में भाग लिया. सन्1922— सन् 1929 तक जयप्रकाश ने संयुक्त राज्य अमेरिका में उच्चतर शिक्षा ग्रहण की. अमेरिका में अपने प्रवास के समय उन्होंने जीवन यापन करने तथा अध्ययन करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.उन्होंने श्रमिक के रूप में कार्य करते हुए करते हुए अपने जीवन का यापन किया और श्रमिक जीवन के महत्व को भी समझा. अमेरिका में रहते हुए उन्होंने कार्ल मार्क्स, लेनिन , जे.लवस्टोन तथा भारत के प्रसिद्ध साम्यवादी चिंतक एम.एन.राय के विचारों का गहन अध्ययन किया और वह साम्यवादी बन गए. साम्यवादी होने के नाते जयप्रकाश नारायण की यह धारणा थी कि राष्ट्रीय राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक – आर्थिक समानता तथा न्याय एवं गरिमा पूर्ण जीवन के लिए अति आवश्यक है. परंतु भूतपूर्व सोवियत संघ (अब रूस) में साम्यवादी पार्टी की तानाशाही, भारतीय साम्यवादी पार्टी के संकीर्ण दृष्टिकोण, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और अपनी धर्मपत्नी श्रीमती प्रभावती तथा भारतीय परिस्थितियों के प्रभाव के कारण जयप्रकाश नारायण कट्टर साम्यवादी नहीं बन सके और राष्ट्रीय भावना की प्रकाष्ठा के कारण वह साम्यवाद से विमुख हो गए .
सन् 1929 में अपने अमेरिका के प्रवास से भारत वापिस लौटने के पश्चात जवाहरलाल नेहरू के निमंत्रण पर कांग्रेस पार्टी में सम्मिलित हो गए और इलाहाबाद स्थित कांग्रेस के मुख्यालय में पार्टी की श्रमिक गतिविधियों का संचालन करने लगे. सन् 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन (सन्1930- सन् 1934 ) महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाया गया और जयप्रकाश नारायण ने इस आंदोलन में भाग लिया. परिणाम स्वरुप उनको गिरफ्तार करके एक वर्ष का कठोर कारावास का दंड दिया गया और नासिक जेल में बंद कर दिया गया. नासिक जेल में रहते हुए उनकी मुलाकात तत्कालीन युवा समाजवादियों—अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, मीनू मसानी इत्यादि से हुई, यही कारण है कि सन् 1934 में जेल से रिहा होने के बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना में जयप्रकाश नारायण की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही है. इनको इस पार्टी का संस्थापक महासचिव बनाया गया. कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का लक्ष्य शोषण मुक्त समाज की स्थापना करना था . अन्य शब्दों में एक ऐसे समाज की स्थापना करना था जहां मानव का मानव द्वारा शोषण न हो. समाजवादी चिंतक एवं राजनेता के रूप में इन्होंने आर्थिक –सामाजिक पुनर्निर्माण के सिद्धांत का समर्थन किया तथा पूंजीवाद, उदारवाद और साम्राज्यवाद का विरोध किया. यदि एक ओर उन्होंने उत्पादन, वितरण और विनिमय के साधनों पर राज्य का नियंत्रण की वकालत की तो दूसरी ओर श्रमिक वर्ग (कम्युनिस्ट पार्टी )की तानाशाही का विरोध भी किया.
भारत के रोमांचकारी राष्ट्रवादियों, क्रांतिकारियों और वामपंथियों की भांति जयप्रकाश नारायण भी द्वितीय विश्व युद्ध (सन्1939- सन्1945) को भारत की स्वतंत्रता के लिए ‘सुनहरा अवसर. मानते थे. भारत में साम्राज्यवादी शासन को समाप्त करने के लिए जयप्रकाश नारायण ने अहिंसात्मक, हिंसात्मक एवं क्रांतिकारी साधनों के प्रयोग पर बल दिया. भारत छोड़ो आंदोलन (सन् 1942) के दौरान जयप्रकाश नारायण अपने 5 साथियों सहित हजारीबाग जेल से भागने में सफल हो गए. ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन को समाप्त करने के लिए इन्होंने ‘भूमिगत गोरिल्ला आंदोलन’ चलाने के लिए ‘आजाद दस्तों’ की स्थापना की. भारत सरकार ने जयप्रकाश नारायण के को जिंदा पकड़ने अथवा पकड़ने में सहायता करने वाले व्यक्ति को इनाम के लिए 5000 रुपए की राशि की घोषणा की. बाद में इस राशि को ₹10000 भी कर दिया गया. जयप्रकाश नारायण को 18 सितंबर 1943 को लाहौर रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया गया और केंद्रीय जेल लाहौर में 50 दिन तक अमानवीय यातनाओं को सहन करके अदम्य साहस, वैयक्तिक शौर्य, असीम राष्ट्र प्रेम, असीम राष्ट्र भक्ति, विचारधारा के प्रति प्रबल प्रतिबद्धता और अपने प्रण पर अडिग रहने की क्रांतिकारी परंपरा का पालन किया. प्रथम अप्रैल 1946 को जेल से रिहा होने के पश्चात जयप्रकाश नारायण ने ‘जन क्रांति के सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया.
जयप्रकाश नारायण त्याग की मूर्ति थे. उन्होंने स्वतंत्र भारत में कोई भी सरकारी पद ग्रहण नहीं किया. वर्तमान राजनेताओं को जयप्रकाश नारायण के त्याग से सीखना चाहिए. वास्तव में वर्तमान में अधिकांश राजनेता त्याग की मूर्ति नहीं हैऔर न ही उनकी किसी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता है.अपितु सत्ता के लिए गिरगिट की भांति है. जिस प्रकार गिरगिट रंग बदलता है उसी प्रकार राजनेता दल लेते हैं. यह राजनीतिक अवसरवादिता भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है. सन 1954 में जयप्रकाश नारायण राजनीति का त्याग करके सर्वोदय आंदोलन के में ’’जीवन दानी” के रूप में सम्मिलित हो गए तथा ‘भू –दान—ग्राम –दान आंदोलन’ को वैचारिक एवं सिद्धांत का आधार प्रदान किया. सन 1954 से 1974 तक जयप्रकाश नारायण ‘सर्वोदयवादी’ रहे’
परंतु राजनीति एवं समाज में व्यापक व्यापक स्तर पर फैले भ्रष्टाचार, गरीबी. महंगाई, बेरोजगारी, सत्ता संघर्ष की राजनीति, सर्वाधिकारवादी सता के मूल्यों में वृद्धि में वृद्धि और नैतिक मूल्य में गिरावट के प्रभावों के कारण जयप्रकाश नारायण पुनः सक्रिय राजनीति में लौट आए और यूथ फॉर डेमोक्रेसी( Youth for Democracy) नामक संस्था स्थापित करके छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया. 5 जून 1974 को पटना में एक विशाल जन समूह को संबोधित करते हुए उन्होंने संपूर्ण क्रांति के सिद्धांत का प्रतिपादन किया. संपूर्ण क्रांति सात क्रांतियों—सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक, सांस्कृतिक, वैचारिक, शैक्षणिक एवं आध्यात्मिक क्रांति का योग है. संपूर्ण क्रांति को विद्यार्थियों के साथ-साथ भारत के विपक्षी दलों का भी समर्थन और सक्रिय योगदान प्राप्त था. पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार संपूर्ण क्रांति को कुचलना के लिए इंदिरा गांधी ने देश के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को अनुच्छेद 352 का उपयोग करके भारत में आंतरिक आपातकाल घोषित करने की सलाह दी थी. इसके बाद बिना किसी पूर्व चेतावनी के 25 जून 1975 की मध्यरात्रि को आपातकाल की घोषणा की गई थी. आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा क़ानून (मीसा) के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ़्तारी की गई. इनमें जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, जॉर्ज फ़र्नांडिस, घनश्याम तिवाड़ी, लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे. इनके अतिरिक्त हजारों लोगों को गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया गया और प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिए गए और संविधान में दिए गए नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया. भारत में यह आंतरिक आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 यानी 21 महीने तक लागू रहा. जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि‘ के नाम से संबोधित किया था.
18 जनवरी 1977 को भारत के राष्ट्रपति के द्वारा लोकसभा भंग कर दी गई और छठी लोकसभा के लिए 16 मार्च से लेकर 20 मार्च 1977 तक चुनाव हुए. राष्ट्रपति ने 23 मार्च 1977 को आपातकालीन स्थिति को समाप्त करने की घोषणा कर दी.लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी की सीटें 350 से घटकर 153 रह गई. इंदिरा गांधी सहित कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. जयप्रकाश नारायण के प्रयासों से नव निर्मित जनता पार्टी के विभिन्न घट़कों में संतुलन स्थापित हुआ और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. अन्य शब्दों में जयप्रकाश नारायण लोकनायक व सम्राट निर्माता बन गए. स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग तीस वर्ष पश्चात केंद्र में गैर -कांग्रेसी सरकार बनी. भारतीय राजनीति में यह एक य़ुगान्तरकारी ऐतिहासिक मोड़ था. 8 अक्टूबर1979 को खराब स्वास्थ्य के कारण जयप्रकाश नारायण स्वर्ग सिधार गए.
वर्तमान समय में बढ़ती हुई आर्थिक असमानता, अमीर व गरीब मध्य गहरी खाई, महंगाई, बेरोजगारी की चरम सीमा, भ्रष्टाचार, भूखमरी, धार्मिक उन्माद, संप्रदायवाद, सर्वाधिकारवाद व सरकारों के द्वारा सत्ता के दुरोपयोग इत्यादि के कारण जयप्रकाश नारायण के चिन्तन की प्रसांगिकता सन् 1974-सन् 1975 की अपेक्षा अधिक है.
(Note: Dr. Ramjilal is the author of Political India 1935-42: Anatomy of Indian Politics (Ajanta Publications, Delhi, 1986).)