जननायक कर्पूरी ठाकुर: झोपड़ी से भारत रत्न तक का सफर: एक पूर्नमूल्यांकन

जननायक कर्पूरी ठाकुर

जननायक कर्पूरी ठाकुर: झोपड़ी से भारत रत्न तक का सफर: एक पूर्नमूल्यांकन

                डॉ. रामजीलाल

डॉ. रामजीलाल,माज वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य ,दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा—भारत)
Email.drramjilal1947@ gmail.com

(समाज वीकली)- भारत रत्न राष्ट्र का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है.यह सम्मान राष्ट्रीय सेवाओं-कला ,साहित्य ,विज्ञान व खेल में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है. सन् 2011 में इसमें संशोधन किया गया और अब कोई क्षेत्र निर्धारित नहीं है. भारत रत्न प्रदान करने की संस्तुति प्रधानमंत्री के द्वारा राष्ट्रपति को की जाती है. सन् 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सिफारिश पर राष्ट्रपति के द्वारा पांच महान व्यक्तियों – कर्पूरी ठाकुर(, मरणोपरान्त), लालकृष्णआडवाणी (1927—), चरण सिंमरणोपरान्पीवी नरसिम्हा राव( मरणोपरान्त) और स्वामीनाथन (मरणोपरान्त )को भारत रत्न प्रदान करने की घोषणा की गई है.

इस लेख में हम कर्पूरी ठाकुर के जीवन, चरित्र और चिंतन का वर्णन व विश्लेषण कर रहे हैं.

जन्म: कर्पूरी ठाकुर (24 जनवरी 1924 -12 फरवरी 1988 )का जन्म 24 जनवरी 1924को पिता गोकुल ठाकुर व माता श्रीमती राजदुलारी देवी के घर (झोंपडी) गांव पितौलिया गांव (बिहार)में हुआ. उनके पिताजी नाई जाति से संबंधित होने के कारण बाल काटने के साथ- साथ सीमांत किसान भी थे. पारिवारिक स्थिति को देखते हुए उस समय यह अनुमान लगाना कठिन था कि यह बालक जो में झौपड़ी पैदा हुआ वह एक दिन उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत के राष्ट्रपति के द्वारा भारत की सर्वोच्च नागरिक उपाधि–भारतरत्न से नवाजा जाएगा. 23 जनवरी 2024 को जन्मदिन (24 जनवरी) से एक दिन पूर्वजन्म सर्वोच्च नागरिक उपाधि—भारत रत्न प्रदान करने की घोषणा राष्ट्रपति भवन से की गई.

विराट व्यक्तित्व

कर्पूरी ठाकुर स्वतंत्रता आंदोलन के युवा सेनानी, ,कर्मठ राजनीतिक,दलित ,दमित,शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के पैरोकार,अत्यधिक सरल व सादा जीवन, मधुर स्वभाव,स्पष्टवादी , दृढ़ इच्छा शक्ति व निश्चय , दूर दृष्टा,औजस्वी वक्ता , जन अधिकारों के भूतपूर्व समर्थक ,बिना किसी भेदभाव के जनसेवा की भावना से औतप्रोत,समाजवादी-मार्क्सवादी एवं अंबेडकरवादी चिंतन के समन्वय के समर्थन ,सीमांत किसानोंऔर समाज कीपरिधी पर रहने वाले लोगों के हमदर्द व मसीहा ,ईमानदार ,सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक न्याय झंडाबरदार व लोकप्रिय होने के कारण जनता उनको सम्मानपूर्वक ‘जननायक’ के नाम से सम्बोधित करती है. कर्पूरी ठाकुर बिहार के 11वें मुख्यमंत्री थे. दो कार्य कालों (सन् 1970- सन् 1971 और सन् 1977- सन् 1979) तक पद पर रहे.

जीवन व चिंतन पर प्रभाव

यदि ऐतिहासिक परिपेक्ष में देखा जाएतो बिहार प्राचीन समय से वर्तमान समय तक प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणीय रहा है. प्राचीन समय में बिहार शिक्षा,राजनीति , संस्कृति व धर्म का केंद्र था . शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा विश्वविद्यालय विश्व प्रसिद्ध था. धार्मिक दृष्टि से सिद्धार्थ गया के स्थान पर गौतम बुद्ध हो गए परिणाम स्वरूप बौद्ध धर्म अनेक देशों में फैल गया.पटना सिख धर्म के 10वें गुरु गुरुगोविंद सिंह की जन्म स्थली है.यदि हम स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को देखें तो. महात्मा गांधी का भारत में प्रथम आंदोलन चंपारण सत्याग्रह(सन् 1917),स्वामी सहजानंद सरस्वती के द्वाराबिहार किसान सभा की स्थापना(सन् 1924) ,जयप्रकाश के प्रयासों से सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना(सन् 1934) तथा बिहार कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना(सन् 1939 ) यह साबित करते हैं कि बिहार आंदोलनों का मुख्य केंद्र रहा है. सन् 1939 तक बिहार के स्वामी सहजानंद सरस्वती किसान नेता एवं जयप्रकाश नारायण समाजवादी नेता राष्ट्रीय पटल पर प्रसिद्ध थे.

भारतीय संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष (सच्चिदानंद सिन्हा) व स्थाई अध्यक्ष( डॉ राजेंद्र प्रसाद) दोनों बिहार के थे . 26 जनवरी, 1950 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद (26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962) निर्वाचित हुए.स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जननायक जयप्रकाश नारायण भी बिहार से थे. हमारे कहने का तात्पर्य है यह कि बिहार समय-समय पर भारत की राजनीति और धर्म का मार्ग दर्शक रहा है.

बिहार की आर्थिक ओर सामाजिक सामतवादी पृष्ठ भूमि

कर्पूरी ठाकुर पर इस ऐतिहासिक विरासत का प्रभाव पड़ना अनिवार्य था. उधर दूसरी ओर बिहार की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठ भूमि सामतवादी रही है .ऐसी स्थिति में गरीबी, भूखमरी ,कुपोषण और बेरोजगारी बहुत अधिक होती है.बिहार में दलितऔर वंचित वर्ग की स्थिति अधिक गंभीर थी और आज भी है.यही कारण है कि बिहारी युवा यदि एक ओर विकसित है और प्रशासनिक सेवाओं- आईएएस व आईपीएस मे विशेष स्थान रखता है तो दूसरी ओर वह अन्य राज्यों में प्रवासी के तौर पर रोजगार करने जाता है.जब अब स्थिति ऐसी है कल्पना कीजिए 20 वीं के उतरार्द्ध स्तिथि कितनी गम्भीर थी.आम जनता की गरीबी,बेरोजगारी भूखमरी ,मूलभूत सुविधाओं का अभाव तथा उसके परिवार की ‘मार्जिनलाइज्ड’’ स्थिति ने कार्पुरी के जीवन व चिंतन को बहुत अधिक प्रभावित किया. इसी प्रभाव के कारण उनका जीवन सादा,सरलऔर एक साधारण व्यक्ति जैसा रहा है और उन्होंने इसी पृष्ठभूमि के कारण वंचित ,दमित व शोषित वर्ग के लिए हमेशा संघर्ष किया.

मिश्रित चिंतन : समाजवाद गांधीवाद, मार्क्सवाद और अंबेडकरवाद का मिश्रण

कर्पूरी ठाकुर के चिंतन का सफर समाजवाद से लेकर अंबेडकरवाद तक रहा है.उनके समाजवादी चिंतन पर समाजवादी विचारक आचार्य नरेंद्र देव ,लोकनायक जयप्रकाश नारायणऔर डॉ. राम मनोहर लोहिया का प्रभाव था.यही कारण है कि वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बने.समाजवादी चिंतन का लक्ष्य शोषण मुक्त समाज की स्थापना करना है अर्थात ऐसा समाज जहां मानव का मानव द्वारा शोषण न हो.

केवल यही नहीं अपितु उनके चिंतन पर समाज सुधारक ज्योतिबा फुले,दक्षिण भारत के प्रगतिशील विचारक और चिंतक पेरियारऔर डॉ भीमराव अंबेडकर के विचारों का प्रभाव भी था.

संक्षेप में उनका चिंतन समाजवाद गांधीवाद, मार्क्सवाद और अंबेडकरवाद का मिश्रण था.उनके चिंतन के मुख्य केंद्र बिंदु अथवा मूल्य -सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, मानव अधिकार इत्यादि है.

यदि उनके गुरूओं -डॉ. राम मनोहर लोहिया ने सप्त क्रांति व जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का उद्घोष दिया तो ठाकुर ने तीन क्रांतियों-सांस्कृतिक क्रांति, आर्थिक क्रांति और सामाजिक क्रांति के उद्घोष को बुलंद किया ताकि सामाजिक,आर्थिक औराजनीतिक न्याय की स्थापना हो सके. इस चिंतन के आधार पर कर्पूरी ठाकुर पूंजीवाद के विरुद्ध थे तथा उनके चिंतन में तीन सी—कास्ट, करप्शन और केपीटलाइज्म’’ का विरोध था. उनके चिंतन व व्यक्तित्व की झलक तीन-डी-डेमोक्रेसी,डिबेट और डिस्कशन से भी दिखाई देती है. उनके चिंतन का सार यह भी रहा है कि 90 प्रतिशत जनता शोषित है. इसलिए धन, धरती और राजपाट (सत्ता) में उनकी भागीदारी भी 90% होनी चाहिए .यह बात उनकी स्वरचित निम्न कविता से स्पष्ट होती है :

सौ में नब्बे शोषित हैं,शोषितों ने ललकारा है।
धन, धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है॥

अन्य शब्दों में आजकल नया उद्घोष है ‘’जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’’

वह आम जनता को अपनी इस कविता के माध्यम से संघर्ष व क्रंतिकारी की प्ररेणा देते हुए लिखते हैं कि यदि हक चाहते हैं तो उनके लिए संघर्ष करो चाहे जीवन भी कुर्बान करना पड़े. कविता के बोल हैं:

अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो
पग पग पर अड़ना सीखो
जीना है तो मरना सीखो।

समाजवादी आंदोलन से जुड़े दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. प्रेम सिंह ने कर्पूरी ठाकुर के व्यक्तित्व और चिंतन पर टिप्पणी करते हुए बिल्कुल सटीक लिखा है कि “वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी समाजवादी नेता थे. उनकी जितनी राजनीति और समाजवादी विचारधारा में पैठ थी, उतनी ही साहित्य, कला और संस्कृति में उनका अपना प्रशिक्षण समाजवादी आंदोलन और विचारधारा में हुआ था. लेकिन फुले, अंबेडकर और पेरियार समेत सभी परिवर्तनकारी विचारों को वे आत्मसात करके चलते थे. लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, नागरिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार जैसे मूलभूत आधुनिक मूल्यों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता थी. सादगी और अपने पद का अपने परिवार और मित्रों के लिए किंचित भी फायदा नहीं उठाने की उनकी खूबी, उनके स्वाभिमानी व्यक्तित्व के अलावा गांधीवादी-समाजवादी धारा से भी जुड़ी थी. कर्पूरी ठाकुर अति-पिछड़ी और संख्या में अत्यल्प नाई जाति से थे। इसके बावजूद उन्होंने अपनी एक स्वतंत्र राजनीतिक हैसियत बनाई.‘’

राजनीतिक सफर:

सन 1940 में मैट्रिक पास करने के पश्चात वह सक्रिय राजनीति में भाग लेने लगे और 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में मुबई से भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया . 18 वर्ष की आय़ु में आंदोलन में भाग लेने के कारण उनको गिरफ्तार कर लिया गया और भागलपुर जेल में वह 2 साल 2 महीने यातनाएं झेलते रहे. सन्1945 में उनको जेल से रिहा किया गया. ।

जहां तक उनके राजनीतिक सफर का ताल्लुक है कर्पूरी ठाकुर विधायक ,सांसद(1977- समस्तीपुर), नेता विपक्ष, उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री–( 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971, और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979) के पद पर आसीन रहे. सन् 1952 से विधानसभा के लिए निर्वाचन में उनकी कभी हार नहीं हुई. राजनीतिक सफर में केवल 1984 का लोकसभा का चुनाव हारे थे . वे बिहार के उप -मुख्यमंत्री तथा 11वें मुख्यमंत्री थे. विधानसभा के सदस्य लोकसभा( 1977 )के सदस्य का 1952 के चुनावों में बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे.

कर्पूरी ठाकुर ने अपने कार्यकाल में चाहे वे उप मुख्यमंत्री अथवा मुख्यमंत्री थे कुछ महत्वपूर्ण कार्यों का प्रारंभ किया. शिक्षा के क्षेत्र में मैट्रिक की परीक्षा के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता को हटाकर हिंदी को अनिवार्य किया गया.क्योंकि 1970 के दशक में छटी या आठवीं क्लास से प्रारंभ होती थी और अधिकांश विद्यार्थी अंग्रेजी में ही फेल होते थे .हिंदी को सरकारी काम में अनिवार्य रूप मेंअपनाया गया ताकि जन साधारण को कठिनाई का सामना न करना पड़े.. जब बिहार में नक्सलवादियों के द्वारा प्रवेश किया गया तो वह दलित वर्ग को आत्म सुरक्षा के लिए हथियार देने के पक्ष में थे.

22 जनवरी 1924 को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करने के पश्चात बिहार की राजनीति और अगामी चुनाव में लाभ के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा इस बात का प्रतीक है कि वह इसके लिए एक सुयोग्य पात्र है. मुंगेरीलाल आयोग (दिसम्बर 1971) की संस्तुतियों तहत् 1978 में जिसमें 79 जातियां थी. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पिछड़ों को 12 प्रतिशत आरक्षण दिया .मुंगेरी लाल आयोग के तहत् पिछड़ा वर्गों (जातियों )की बिहार की कुल जनसंख्या का 27%प्रतिशत पिछड़ा वर्ग और 36%अति पिछड़ा वर्ग है . बिहार में पिछड़े वर्गों के मतदाताओं की कुल संख्या का 63 फ़ीसदी है.

ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा के पश्चात बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया और नीतीश कुमार एक बार फिर इंडिया गठबंधन को छोड़कर राजग के साथ आ गए.नीतीश कुमार भारत के वह मुख्यमंत्री हैं जो खुद ही त्यागपत्र देते हैं और खुद ही मुख्यमंत्री बन जाते हैं. अभी तक अपने कार्यकाल में उन्होंने नौ बार और वर्तमान कार्यकाल में तीन बार पाला बदला है.

अक्टूबर -नवंबर 1990 में भारतीय जनता पार्टी के द्वारा राम रथ यात्रा शुरू की थी और यह ‘मंडल बनाम कमंडल’ की शुरुआत थी. परंतु कार्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर’ मंडल बनाम कमंडल’ की अपेक्षा ‘मंडल जमा कमंडल’ की राजनीति की शुरुआत ही गयी. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा के पश्चात एक तीर से कई निशाने मारे गए. यदि एक ओर नीतीश कुमार ने पाला बदला तो दूसरी ‘प्रतीकात्मक’ रूप में समस्त भारत में यह संदेश देने का प्रयास किया कि बीजेपी पिछड़े वर्गों की हितैषी है. इस समस्त प्रकरण का इंडिया गठबंधन को एक बहुत बड़ा 440 वोल्ट का झटका लगा है. भारतीय जनता पार्टी को अगामी सन् 2024 के लोक सभा के चुनाव में कितना लाभदायक होगा यह चुनाव परिणाम बताएंगे.

संक्षेप में,पांच महान हस्तियों को भारत रत्न से सम्मानित करना एक अच्छी बात है . चौधरी चरण सिंह एवं स्वामीनाथन को भारत रत्न देने के पीछे के सरकार की मंशा यह दृष्टिगोचर होती है कि किसान संतुष्ट हो जाएंगे. परंतु इन दोनों महान हस्तियों को भारत रत्न देने साथ लम्बे से लंबित मागों को भी मान लिया होता तो बहुत अच्छा होता और किसान आंदोलन नही करते. हमारा सुनिश्चित अभिमत है कि चुनावी राजनीति को मध्य रखते हुए उनकी कुछ मागों को सरकार को मानना पड़ेगा.परंतु राजनीति के जानकारों का माननकि बिहार से तमिलनाडु तक जिन महान व्यक्तियों को सम्मानित किया गया एक ‘सिंबल के आधार पर राजनीतिक समीकरण प्रस्थापित’ करने का प्रयास किया गया है.

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