“भारतीय संविधान 74 वें साल में……..”

“भारतीय संविधान 74 वें साल में……..”

संविधान दिवस (26 नवंबर) के उपलक्ष में सभी साथियो को हार्दिक मंगल कामनाए।
भारत के सभी मुलनिवासी लोगोने संविधान संबंधी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।
आज देश में बहुतसी बाते / घटनाये निरंतर संविधान विरोधी हो रही है। हमारे मुलभुत अधिकारों का हनन हो रहा है । EVM की माध्यम से लोकतंत्र पर आघात हो रहा है। आज हमारा #संविधान_खतरे_मे_है ।
इसलिए हमें-मुलनिवासीयो को सदा जागृत रहकर संविधान की रक्षा करनी होगी। #BAN_EVM

(समाज वीकली)- अधिकारों के मायने उस तबक़े के लिए क्यों ना महत्वपूर्ण हों, जो जाति के कारण सदियों से हर तरह से वंचन का शिकार रहा है। आज जहाँ भी, जिस तरह भी, जिस रूप में भी, जिस हालात में भी हम पहुंच सकें हैं वो संविधान के रास्ते ही संभव हो सका है। संविधान से ही जानवर से भी बदत्तर समझे जाने वाले लोग आज इंसान माने जाते हैं। सच्चे लोकतंत्र, स्वतन्त्रता, समानता और सामजिक न्याय की स्थापना का रास्ता संविधान से ही खुलता है।

इन 74 सालों में सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि बहुजन समाज में चेतना और वैचारिक प्रतिबद्धता बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। हम अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो रहे हैं, अपने समाज के साथ खड़े होना सीख रहें हैं, पढ़ना-लिखना-आगे बढ़ना-लड़ना और संगठित होना सीख रहें हैं। ये हालात तब हैं जबकि संसद, न्यायालयों, प्रशासन, मीडिया, यूनिवर्सिटीज़, उद्योग में सवर्ण कब्ज़ा जमाये बैठें हैं और सिस्टम किसी भी तरह से हमारे साथ नहीं बल्कि खिलाफ है। इतने ख़राब हालातों के बीच बहुजन चेतना का उभरना और अम्बेडक्राइट मूवमेंट का मजबूत होना हम सबके लिए उम्मीद की किरण है।

बाबासाहेब कहते हैं कि “राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है, वो सरकार को ख़ारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक साहसी हैं।” हमारे लिए सामाजिक चेतना का बढ़ना राजनीतिक चेतना या उपलब्धि से ज्यादा इम्पोर्टेंट है। जैसे-जैसे शिक्षित होंगे, जागरूक होंगे वैसे-वैसे सामाजिक न्याय की दिशा बढ़ेंगे और ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष भी तेज़ होंगे।

ये बदलाव उम्मीद हो सकती है लेकिन मंज़िल नहीं। क्योंकि संविधान लागू करने वाले बहुजन नहीं बल्कि वो लोग हैं जिनकी वज़ह से हमारी कई पीढ़ियाँ शोषित रही हैं और वो संविधान को हमारे ही ख़िलाफ़ यूज़ कर रहें हैं। इसलिए ही 74 सालों में भी वैसे अपेक्षित बदलाव नहीं आ सके हैं, जिसकी कल्पना बाबासाहेब ने की थी। जो कारवाँ बाबासाहेब ने बढ़ाया है उसे हम आगे नहीं बढ़ा सकें हैं। हमें संविधान अपने हाथों में लेकर बाबासाहेब के कारवाँ को आगे बढ़ाना है, और सिर्फ यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। सामाजिक चेतना के साथ-साथ राजनीतिक चेतना को बढ़ाने के साथ-साथ सिस्टम के हर लेवल पर अपनी भागीदारी बढ़ाने के प्रयास करने होंगे। वरना इसी संविधान को हमारे ख़िलाफ़ प्रयोग किया जाता रहेगा और धीरे-धीरे हम मनुस्मृति के काल में पहुँचा दिए जाएंगे। इन 74 सालों की गलतियों और उन्हें सुधारे जाने के प्रयास के साथ ही अम्बेडक्राइट मूवमेंट को बदली हुई परिस्थितियों के साथ नए सिरे से खड़ा किए जाने की ज़रूरत है।

अपने अधिकारों के एक मात्र स्त्रोत भारतीय संविधान और उसके शिल्पकार बाबासाहेब अम्बेडकर के प्रति कृतज्ञ हूँ।
सभी को संविधान दिवस की बधाई
जयभीम-जय संविधान

अजय रावत
जर्मनी

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