गोवा की आजादीः क्या देरी के लिए नेहरू जिम्मेदार थे?

राम पुनियानी

(समाज वीकली)

– राम पुनियानी

सन् 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मोदी-भाजपा जो बातें कहते थे उनमें से एक यह भी थी कि जनता ने कांग्रेस को 60 साल सत्ता में रखा. अब जनता हमें 60 महीने दे और फिर देखे कि हम देश को किस तीव्र गति से विकास पथ पर अग्रसर करते हैं. स्वाधीनता से लेकर सन् 2014 तक कांग्रेस 49 वर्ष केन्द्र में सत्ता में रही. कई दूसरी सरकारें भी इस बीच सत्तासीन हुईं जिनमें इन्द्र कुमार गुजराल और देवेगौड़ा की सरकारों के अलावा अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार भी थीं. अतः यह कहना तथ्यों के विपरीत है कि कांग्रेस ने 60 वर्षों तक देश पर राज किया है. संभवतः भाजपा नेताओं ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि 60 वर्ष और 60 महीने की तुकबंदी है.

पिछले 7-8 सालों के मोदी-भाजपा शासन में सामाजिक विकास के सभी सूचकांकों में गिरावट आई है. नोटबंदी से देश में हाहाकार मचा और जीएसटी ने छोटे व्यापारियों को बर्बादी की कगार पर ला खड़ा किया. कोरोना के प्रसार को नियंत्रित करने के नाम पर जो भयावह लॉकडाउन देश में लगाया गया उससे लाखों लोग अपनी आजीविका खो बैठे. विकास का कहीं दूर-दूर तक पता नहीं है और युवा दुःखी व आक्रोशित हैं क्योंकि उनके हिस्से में बेरोजगारी के सिवाए कुछ नहीं आया है.

प्रजातांत्रिक अधिकारों, अभिव्यक्ति की आजादी, धार्मिक स्वातंत्रता, पोषण, स्वास्थ्य आदि जैसे विषयों से संबद्ध सूचकांकों में जबरदस्त गिरावट आई है. चुनाव आयोग, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) एवं केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) सरकार के हाथ की कठपुतली बन गए हैं. न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिन्ह लगने लगे थे परंतु पिछले कुछ समय से उसमें सुधार परिलक्षित हो रहा है. इन विकट परिस्थितियों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश की हर समस्या के लिए जवाहरलाल नेहरू को दोषी ठहराते हैं. मोदी ने हाल में कहा कि गोवा के देरी से (देश की आजादी के 14 साल बाद) स्वतंत्रता हासिल करने के लिए नेहरू की कमजोर नीतियां जिम्मेदार थीं. गोवा को देश की आजादी के समय, अर्थात 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र करवाया जा सकता था. सन् 1955 में 20 सत्याग्रहियों की मौत के बावजूद नेहरू ने कोई कदम नहीं उठाया. मोदी इस मुद्दे पर तो बहुत मुखर हैं किंतु चीन द्वारा भारत के एक बड़े भूभाग पर कब्जा कर लेने के मामले में वे चुप रहते हैं.

गोवा के उपनिवेश बनने और फिर स्वतंत्र होने का क्या इतिहास है? गोवा को सन् 1961 में भारतीय सेना ने ‘आपरेशन विजय‘ के तहत 26 घंटों में स्वतंत्र करवा लिया था. गोवा को सन् 1510 में पुर्तगाल ने अपना उपनिवेश बनाया था. पुर्तगाली सेना ने बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह को हराकर गोवा पर कब्जा किया था. यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप के औपनिवेशीकरण की प्रक्रिया शुरू करने के बहुत पहले की बात है. पुर्तगालियों ने कई सदियों तक गोवा पर शासन किया. उनका शासन अत्यंत कड़ा था. पुर्तगालियों की बड़े पैमाने पर खिलाफत पहली बार सन् 1718 में हुई जब वहां के पॉस्टरों के एक समूह ने टीपू सुल्तान की मदद मांगी और पुर्तगाली सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया. इसे पिंटो षड़यंत्र कहा जाता है.  यह विद्रोह बुरी तरह असफल हुआ और इसके कर्ताधर्ता पॉस्टरों को अमानवीय यातनाएं दी गईं.

सन् 1900 में एल. मेनेजेज़ ब्रेगांजा ने पुर्तगाली भाषा में होराल्डो नामक अखबार गोवा से निकालना शुरू किया.  यह अखबार पुर्तगाल का आलोचक था. सन् 1917 में गोवा में सेंसरशिप लागू कर दी गई. इससे आमजनों में असंतोष बढ़ा. सन् 1928 में टी. ब्रेगांजा ने गोवा कांग्रेस पार्टी का गठन किया. सन् 1946 में राममनोहर लोहिया ने गोवा की मुक्ति के लिए सत्याग्रह किया. उन्हें 18 जून को गिरफ्तार कर लिया गया. इस दिन को गोवा क्रांति दिवस के रूप में मनाया जाता है. गोवा के एक प्रमुख मैदान का नाम लोहिया के नाम पर रखा गया है.

इस सत्याग्रह के बाद गोवा में नागरिक अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया. इसमें भाग लेने वाले क्रांतिकारी थे जिनमें पुणे के प्रसिद्ध पहलवान नाना काजरेकर, लोकप्रिय संगीत निदेशक सुधीर फड़के आदि शामिल थे. इन लोगों ने युनाईटेड फ्रंट ऑॅफ लिबरेशन के झंडे तले आजाद गोमांतक दल का गठन किया. यह दिलचस्प है कि लब्धप्रतिष्ठित गायिका लता मंगेशकर ने गोवा की स्वतंत्रता के लिए धन इकट्ठा करने हेतु पुणे में आयोजित एक संगीत कार्यक्रम में हिस्सेदारी की थी.

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पुर्तगाल के तानाशाह सलाजार ने देश के संविधान को संशोधित कर गोवा को पुर्तगाल का  अभिन्न हिस्सा घोषित कर दिया. इसके अलावा पुर्तगाल नाटो में शामिल हो गया जिसका अर्थ यह था कि नाटो के सभी सदस्य देश पुर्तगाल के राज्यक्षेत्र की रक्षा करने के लिए वचनबद्ध थे. नाटो का नेतृत्व अमरीका के हाथों में था और उस समय पुर्तगाल से सैन्य संघर्ष छेड़ने का अर्थ था अमरीका सहित बड़ी पश्चिमी ताकतों को भारत में हस्तक्षेप करने का न्यौता देना. अमरीका के राष्ट्रपति आईजनहावर एवं विदेश मंत्री डलेस ने यह घोषणा की थी कि गोवा पुर्तगाल का अभिन्न भाग है. इसका जवाहरलाल नेहरू ने विरोध किया था.

गोवा में जनमत संग्रह कराए जाने की मांग भी उठी थी जिस पर नेहरू ने जोर देकर यह कहा था कि गोवा के भारत में विलय के मामले में किसी बहस या विवाद की गुंजाइश नहीं है. इसके बाद केनेडी अमरीका के राष्ट्रपति बने जिनका भारत के प्रति रवैया कुछ नरम था.

सन् 1950 के दशक के पूर्वार्ध में एफ्रो-एशियन कान्फ्रेंस के सदस्यों ने भारत से गोवा का मुद्दा सुलझाने और वहां से पुर्तगालियों को निकाल बाहर करने का तकाजा किया. परंतु इसमें सबसे बड़ी बाधा नाटो और अमरीका की यह घोषणा थी कि गोवा पुर्तगाल का हिस्सा है. केनेडी के सत्ता में आने के बाद भारत का रूख भी बदल गया. यह साफ था कि पुर्तगाल को गोवा पर अपना नियंत्रण छोड़ने के लिए बातचीत से राजी करना मुश्किल होगा.

सन् 1955 में समाजवादी और साम्यवादियों ने इस मुद्दे पर आम सत्याग्रह शुरू किया. इन सत्याग्रहियों ने जब गोवा में प्रवेश किया तब वहां की सरकार ने उन पर गोलियां बरसाईं जिससे 20 सत्याग्रही मारे गए. इस घटना से व्यथित और क्रुद्ध नेहरू ने गोवा की आर्थिक नाकेबंदी की घोषणा की. पणजी में स्थित वाणिज्य दूतावास को बंद कर दिया और पुर्तगाल से कूटनीतिक संबंध तोड़ लिए गए.

आर्थिक नाकाबंदी से गोवा पूरी दुनिया से कट गया. यहां तक कि वहां के नागरिक समाचार पाने के लिए भी तरस गए. इस समय वामन सरदेसाई और उनकी पत्नि लीबिया लोबो सरदेसाई ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन शुरू किया जिसका नाम ‘द वाइस ऑफ फ्रीडम‘ था. इस रेडियो स्टेशन के जरिए क्रांतिकारियों को सूचनाएं पहुंचाई जातीं थीं और झूठे पुर्तगाली प्रचार का पर्दाफाश किया जाता था. यह रेडियो स्टेशन नवबंर 1955 से दिसंबर 1961 तक गोवा से सटे वनक्षेत्र से संचालित होता रहा.

नेहरू ने केनेडी को कूटनीतिक चैनलों द्वारा यह संदेश भिजवाया कि अमरीका गोवा के मामले में हस्तक्षेप न करे. फिर 17 दिसंबर को नेहरू के आदेश पर आपरेशन विजय शुरू किया गया. यह अभियान अचानक शुरू किया गया था. भारतीय वायुसेना ने डबोलिन हवाईअड्डे के रनवे को नष्ट कर दिया. नौसेना ने गोवा के बंदरगाह को बंद कर दिया और 30 हजार भारतीय सैनिकों ने गोवा में प्रवेश किया. वहां मौजूद लगभग दो हजार पुर्तगाली सैनिकों को आसानी से परास्त कर दिया गया.

गोवा के गवर्नर को यह अहसास हो गया था कि बाहर से कोई सहायता आने वाली नहीं है और इसलिए अपनी सरकार के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए उसने आत्मसमर्पण कर दिया. दो दिन बाद 19 दिसंबर को गोवा केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में भारत का हिस्सा बन गया. सन् 1987 में यह जानने के लिए जनमत संग्रह किया गया कि गोवा के निवासी पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र का हिस्सा बनना चाहते हैं या गोवा को स्वतंत्र राज्य बनाना. बहुसंख्यक मतदाताओं ने अलग राज्य बनाने के पक्ष में मत व्यक्त किया और इस तरह गोवा भारतीय संघ का 25वां राज्य बन गया. नेहरू ने गोवा की आजादी के लिए जो प्रयास किए वे उनके परिपक्व कूटनीतिज्ञ और सच्चा देशभक्त होने का सुबूत हैं. जहां तक मोदी का सवाल है, वे जो चाहे वो कहने के लिए स्वतंत्र हैं. (अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) 

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