हरियाणा विधानसभा के चुनाव (2024) में लम्बित मुख्य मुद्दे: एक विश्लेषण

हरियाणा विधानसभा के चुनाव (2024) में लम्बित मुख्य मुद्दे: एक विश्लेषण

       Dr Ramji lal

डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयालसिंह कॉलेज, करनाल –(हरियाणा-भारत)
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(समाज वीकली)- 1 नवंबर 1966 को लगभग 58 वर्ष पूर्व पंजाब का पुनर्गठन किया गया. पुनर्गठन के परिणाम स्वरूप पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की स्थापना हुई. हरियाणा ने स्थापना के पश्चात सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक विकास के अनेक आयाम स्थापित किए. आज हरियाणा में अंबाला, पानीपत, फरीदाबादऔर गुड़गांव औद्योगिक विकास के केंद्र हैं तथा कृषि क्षेत्र में भारत का ही नहीं अपितु विदेशों का भी ध्यान आकर्षित किया है. यहां की प्रतिभाओं ने देश की सरहदों से लेकर सिनेमा और खेलों तक स्वयं को श्रेष्ठ स्थापित करने का प्रयास किया है. इसके बावजूद भी हरियाणा में अनेक ऐसे मुद्दे हैं जिनके समाधान की कसक हरियाणा के लोगों के दिलों में आज भी बाकी है. इनमें प्रथम हरियाणा की अलग राजधानी व चंडीगढ़ पर अधिकार, द्वितीय, एस वाई एल-पानी विवाद, व तृतीय हरियाणा का अलग हाईकोर्ट महत्वपूर्ण मुद्दे हैं (डॉ. रामजीलाल, ‘बचपन से 55 का सफर पर बाकी है कसक’, अमर उजाला, (करनाल), 01 नवंबर 2020, पृ.2)

हरियाणा की अलग राजधानी

हरियाणा की स्थापना की मांग 20 वीं शताब्दी के तीसरे दशक में ही उठने लगी थी. विशाल हरियाणा की मांग का समर्थन महात्मा गांधी के साथ-साथ अनेक राष्ट्रीय नेताओं के द्वारा किया गया था. सन् 1960 के दशक में पंजाब के पुनर्गठन की मांग तेज हो गई. सन् 1950 में पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ घोषित की गई. 01 नवंबर 1966 को पंजाब का बंटवारा तीन राज्यों —हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में हो गया. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में है. जबकि हरियाणा व पंजाब की संयुक्त राजधानी चंडीगढ़ है. हरियाणा और पंजाब के मध्य चंडीगढ़ के संबंध में विवाद है. कई बार हरियाणा के राजनेताओं द्वारा आवाज उठाई जाती है: ‘चंडीगढ़ म्हारा है, आधा नहीं सारा है’. उधर दूसरी ओर पंजाब के राजनेताओं के द्वारा पंजाब की जनता को यह आश्वासन दिया जाता है कि वह चंडीगढ़ की एक इंच भूमि हरियाणा को नहीं देंगे. विवाद जारी है व जारी रहेगा समाधान निकट भविष्य में सम्भव दृष्टिगोचर नहीं होता. केंद्र तथा राज्यों –हरियाणा और पंजाब में अनेक सरकारी आई और चली गई. परंतु चंडीगढ़ के मामले का समाधान आज तक नहीं हुआ. परिणाम स्वरूप हरियाणा की अलग राजधानी न होना हरियाणावासियों को बार-बार कचोटता है.

एसवाईएल-पानी विवाद

हरियाणा और पंजाब के मध्य सतलुज के पानी का विवाद भी है. हरियाणा और पंजाब दोनों ही कृषि क्षेत्र में भारत में अग्रणीय स्थान रखते हैंऔर दोनों राज्यों के किसानों की पानी की आपूर्ति की मांग निरंतर बढ़ रही है. यद्यपि एसवाईएल (SYL) नहर 214 किलोमीटर लंबी है इसका कार्य में सन् 1986 में पूरा होना था. यह मामला अनेक बार विधानपालिकाओं, संसद और सुप्रीम कोर्ट में भी गया. परंतु सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी इसका समाधान नहीं हो सका. पानी के अभाव के कारण हरियाणा के किसानों व कारखानों को बहुत नुकसान हो रहा है. हमारा मानना है कि इस समस्या का समाधान करते समय हरियाणा और पंजाब के किसान नेताओं का सहयोग भी देना चाहिए.

हरियाणा का अलग हाईकोर्ट

हरियाणा के अलग हाईकोर्ट का मामला इस समय अधिक चर्चा में है. इसलिए इस मामले को हम अपने पाठकों के लिए सविस्तार वर्णन करेंगे. सन् 1857 की जन क्रांति के पश्चात भारतवर्ष का प्रशासन सीधे इंग्लैंड की सरकार के अंतर्गत हो गया. इंग्लैंड की सरकार के द्वारा इस बात का चिंतन किया गया कि भारतवर्ष में साम्राज्यवाद को सुदृढ़ करने के लिए व जनता को नियंत्रित करने के लिए बार-बार सेना का प्रयोग उचित नहीं है. परिणाम स्वरूप ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारतीय दंड संहिता 1860 (आईपीसी 1860) तथा इंडियन पुलिस एक्ट 1861 निर्मित किए गए. अनेक संशोधन होने के पश्चात वर्तमान शताब्दी में 160 वर्ष से अधिक पूरे होने के बावजूद आज भी जारी है. इनके आधार पर जनता के झगड़ों का समाधान करने के लिए आधुनिक न्यायपालिका प्रारंभ की गई. सर्वप्रथम सन् 1862 में कोलकाता उच्च न्यायालय (सन् 1862) की स्थापना की गई, मुंबई (सन् 1862) और मद्रास में भी उच्च न्यायालय (सन् 1862),  इलाहाबाद उच्च न्यायालय (1866), और बैंगलोर उच्च न्यायालय (अब कर्नाटक उच्च न्यायालय (1884) भारत के पाँच सबसे पुराने उच्च न्यायालय हैं. 21 मार्च 1919 को लाहौर उच्च न्यायालय की स्थापना हुई.

15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा भारतीय नवाबों और राजाओं के सामंतवादी शोषण से मुक्ति प्राप्त हुई. 15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हुआ. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की धारा 9 के अंतर्गत पूर्वी पंजाब का अलग उच्च न्यायालय शिमला में स्थापित किया गया. इसके अधिकार क्षेत्र में वर्तमान पंजाब, दिल्ली, हिमाचल और हरियाणा के क्षेत्र थे. हम पाठकों को यह अवगत कराना चाहते हैं कि भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और 17 जनवरी 1955 को शिमला से चंडीगढ़ उच्च न्यायालय हस्तांतरित किया गया. इस समय भारतवर्ष में 25 उच्च न्यायालय हैं.

हरियाणा की स्थापना 1 नवंबर 1966 को हुई थी. पंजाब और हरियाणा की राजधानी ही संयुक्त नहीं है अपितु दोनों राज्यों का हाई कोर्ट भी संयुक्त है जिसे पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट कहा जाता है. यह सबसे बड़ी विडंबना है कि छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड इत्यादि ऐसे छोटे राज्य हैं जिनके अलग-अलग उच्च न्यायालय व राजधानियां हैं.

भारत के संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार प्रत्येक राज्य का अपना उच्च न्यायालय होना चाहिए. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय सन् 1966 में एक अस्थाई व्यवस्था के रूप में था परंतु लगभग 6 दशक के बाद भी इसका जारी रहना उचित नजर नहीं आता. परिणाम स्वरुप हरियाणा और पंजाब का अलग-अलग उच्च न्यायालय होना चाहिए.

हरियाणा व पंजाब संयुक्त उच्च न्यायालय होने के कारण न्याय प्रक्रिया में देरी होती है विद्वानों का यह मानना है कि न्याय में देरी होना व्यावहारिक रूप में अभिप्राय अन्याय के समान है. जनता को न्याय देना प्रत्येक कल्याणकारी और न्यायकारी राज्य का सर्वोत्तम कार्य है. परिणाम स्वरुप स्थिति में जनता को न्याय प्राप्त होना एक ख्वाब नजर आता है. यदि दोनों राज्यों के अलग-अलग हाईकोर्ट स्थापित हो जाते हैं तो अलग-अलग उच्च न्यायालयों पर मुकदमों का भर काम होगा और जनता को शीघ्र व सस्ता न्याय प्राप्त होगा. हरियाणा के लिए अलग उच्च न्यायालय की स्थापना के लिए समय-समय पर वकीलों, बुद्धिजीवों, व राजनेताओं के द्वारा आवाज उठाई जाती है. हरियाणा विधानसभा ने मार्च 2002 और दिसम्बर 2005 में पृथक उच्च न्यायालय का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था, परंतु केंद्र में चाहे सरकार एनडीए की थी अथवा यूपीए की सरकार थी हरियाणा विधानसभा के प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया. हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पृथक उच्च न्यायालय की वकालत करते हुए केंद्र सरकार से कहा है कि, “वर्ष 2013 में मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा के लिए अलग-अलग उच्च न्यायालय स्थापित किए गए थे….यह (विभाजन) तब किया गया जब गुवाहाटी उच्च न्यायालय में कुल लंबित 52,897 मामलों में से मेघालय से केवल 812, मणिपुर से 3,794 और त्रिपुरा से 6,393 मामले थे…लेकिन पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में लंबित कुल 2,79,699 मामलों में से हरियाणा के मामले 1,40,359 हैं। यह पंजाब के 1,24,575 मामलों से अधिक है.” मार्च 2024 तक पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय मेंलंबित मामलों की संख्या 6,50,000 पहुंच गई. इन लंबित मामलों में लगभग 40% हरियाणा से संबंधित हैं. पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालयों में स्तिथि और भी अधिक गंभीर है. उदाहरण के तौर पर पंजाब के अधीनस्थ न्यायालयों में 8 लाख तथा हरियाणा के अधीनस्थ न्यायालयों में 14 लाख मामले लंबित है. यदि दोनों राज्यों के अलग-अलग हाईकोर्ट स्थापित हो जाते हैं तो मुकदमों का भर काम होगा और जनता को शीघ्र व सस्ता न्याय प्राप्त होगा. हरियाणा की जनता का शीघ्र और संस्ता न्याय देने के हेतु केवल उच्च न्यायालय का अलग होना ही काफी नहीं है अपितु यदि उच्च न्यायालय का स्थान चंडीगढ़ अथवा पंचकूला होता है तो गुरुग्राम, फरीदाबाद, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, सिरसा, फतेहाबाद इत्यादि जिलों के लिए उच्च न्यायालय का एक अलग बेंच गुरुग्राम में स्थापित होना चाहिए.

तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा, “हमारा मानना है कि हरियाणा के लिए एक अलग उच्च न्यायालय पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के परिसर में बहुत आसानी से स्थापित किया जा सकता है, इसके लिए भवन, स्टाफ और अन्य बुनियादी ढांचे को उसी तरह विभाजित किया जा सकता है, जैसा कि विधानसभा और सिविल सचिवालय के मामले में किया गया था.” यद्यपि तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहरलाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मैत्रीपूर्ण है. इसके बावजूद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्रीय सरकार ने अटल बिहारी वाजपेई की सरकार अथवा डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार की भांति हरियाणा के लिए अलग हाईकोर्ट की मांग की ओर कोई ध्यान नहीं दिया.

हमारा अभिमत है कि केंद्र सरकार के द्वारा इन मुद्दों का स्थायी हल निकालना चाहिए. परंतु इसके लिए राजनीतिक दलों में सुदृढ़ इच्छा शक्ति, नीयत व नीति की आवश्यकता है. इन समस्याओं का समाधान करने के लिए नेताओं को क्षेत्रवादी एवं अन्य लघु संकीर्णताओं का परित्याग करना होगा.परंतु जिस तरीके से केंद्रीय और राज्य सरकारों के द्वारा “वोट बैंक की थ्योरी” अपनाई जाती है इन समस्याओं का समाधान शीघ्र होता हुआ दृष्टिगोचर नहीं होता. इन मांगों का समाधान करने के लिए जनता को शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन करना चाहिए और सन् 2024 के हरियाणा विधानसभा के चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों पर इन मांगों के संबंध में मुख्य मुद्दे बनाने के लिए दबाव डालना चाहिए.

(लेखक, हरियाणा : तब और अब, कुरुक्षेत्र, 1967, पुस्तक के सह लेखक हैं)

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