हिन्दू कोड बिल – अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!
हिन्दू कोड बिल

समाज वीकली यू के  

बाबासाहेब ने सविंधान और हिन्दू कोड बिल के द्वारा महिलाओं को वे सारे अधिकार दिए है जो हिन्दू धर्म , धर्म शास्त्रों , स्मृतियों (Hindu Law Books) विशेषकर मनुस्मृति , दयभाग और मिताक्षर स्मृति ने नकारे थे।

हिन्दू धर्मशास्त्रों में महिलाओं का स्थान और नियम-कानून महिलाओं के हक में नहीं हैं। जिसके कारण भारतीय समाज में महिलाओं की सामाजिक , सांस्कृतिक , राजनीतिक , शैक्षिक और आर्थिक स्थिति शूद्र-अछूत वर्गों से भी अधिक दयनीय थी ।

इसलिए डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर ने महिला सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए। महिलाओं को और अधिक अधिकार देने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिए सन 1951 में उन्होंने ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में पेश किया।

डा. अंबेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आयेगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरूषों के समान अधिकार दिए जाएंगे ।

बाबासाहब ने संविधान मे महिलाओं को सारे अधिकार दिये लेकिन हिंदू समाज में क्रांतिकारी सुधार लाने के लिए देश के पहले कानून मंत्री के रूप में आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल लोकसभा में पेश किया।

दरअसल, हिंदू कोड बिल पास कराने के पीछे आंबेडकर की हार्दिक इच्छा कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धांत स्थापित करने की थी, जिनका उल्लंघन दंडनीय अपराध बन जाए। मसलन, स्त्रियों के लिए विवाह विच्छेद (तलाक) का अधिकार, हिंदू कानून के अनुसार विवाहित व्यक्ति के लिए एकाधिक पत्नी रखने पर प्रतिबंध और विधवाओं तथा अविवाहित कन्याओं को बिना शर्त पिता या पति की संपत्ति का उत्तराधिकारी बनने का हक।

उनका आग्रह था कि हिंदू कानून में अंतरजातीय विवाह को भी मान्यता दी जाए।

इस बिल में अंतर्निहित ये न्यूनतम सिद्धांत धार्मिक रीति से विवाहित स्त्रियों को इन अधिकारों का इस्तेमाल करने और लाभ प्राप्त करने के अवसर प्रदान करते हैं।

पर देखना यह भी होगा कि आखिर आंबेडकर इस बिल को पास कराने पर इतना जोर क्यों दे रहे थे। उनकी मान्यता थी कि हिंदू समाज महिलाओं को किसी तरह की स्वतंत्रता देने का पक्षधर नहीं है। अगर वह ऐसा करने देता है तो हिंदू समाज की जाति-व्यवस्था तहस-नहस हो सकती है। इसीलिए ब्राह्मणवाद उन पर कब्जा जमाए रखने के लिए जी-जान लगा कर भी उद्यत रहा है। वह जानता है कि उन्हें अधीन बनाए रख कर ही ऊंच-नीच पर आधारित जाति-व्यवस्था कायम रह सकती है। इस तरह हिंदू कोड बिल महिलाओं को पारंपरिक बंधनों से मुक्ति दिलाने की ओर उठाया गया एक ऐसा कदम था जो अंत में हिंदू समाज को जाति और लिंग के कारण पैदा हुई असमानता से मुक्त करा सकता था।

बाबा साहब आंबेडकर द्वारा अंतरजातीय विवाहों को हिंदू कानूनों के तहत मान्यता दिलाने की कोशिश भी समाज को जाति मुक्त बनाने की योजना का ही एक अंग थी।
बाबा साहब हिन्दू कोड बिल के जरिए धार्मिक आचरण के क्षेत्र में प्रगतिशील मूल्यों को रख कर निजी क्षेत्र को फिर से विधिवत परिभाषित करना और उन सामाजिक आचरणों को बदलने के लिए आधार निर्मित कर देना चाहते थे, जो हिंदुओं के जीवन को विकृत कर रहे थे। उनका यह उद्देश्य अस्पृश्यता रोकने या सबको मंदिरों में जाने देने के लुंजपुंज कानूनों से पूरा नहीं हो सकता था। इस प्रकार हिंदू कोड बिल निजी को राजनीतिक बनाने का एक जोरदार उपक्रम था।

सवर्णों की संस्कृति में परिवारों की पवित्रता और उन्हें बनाए रखने पर जोर इसलिए दिया जाता है, क्योंकि ये पितृसत्ता को पुष्ट कर उन्हें अभय प्रदान करते हैं। असल में स्त्रियों को पुरुषों के अधीन बनाने की प्रक्रिया पहले परिवार से ही शुरू होती है। यही प्रक्रिया फिर समाज तक पहुंचती है। सोपानात्मक समाज संरचना इसे आसान बनाती है। इसीलिए आंबेडकर के हिंदू कोड बिल को परिवार तोड़क और समाज के लिए घातक बताया गया था। जबकि वे इस बिल के जरिए पितृसत्ता के दुष्चक्र को भेद कर जाति-व्यवस्था को तहस-नहस करने की कोशिश कर रहे थे।

हिंदू कोड बिल में स्त्रियों को तलाक का अधिकार देकर बाबा साहब एक ओर विवाह की अविच्छेद्यता को चुनौती देते हैं तो दूसरी ओर स्त्री को पुरुष के हर अन्याय को सहन करने की बाध्यता से छुटकारा दिलाते हैं।

पुरुष के एक विवाहित पत्नी के रहते दूसरा विवाह करने की छूट पर प्रतिबंध लगा कर उसकी मनमानी पर अंकुश लगाते और पत्नी की स्वाधीनता और आत्मसम्मान को संरक्षित करते हैं।

इसी तरह स्त्री को पुरुष की संपत्ति का उत्तराधिकार दिला कर वे उसकी आर्थिक परनिर्भरता को खत्म कर देना चाहते हैं।

लेकिन जब 1951 को डाॅ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने जैसे ही हिन्दू कोड बिल को संसद में पेश किया संसद के अंदर और बाहर विद्रोह मच गया। हिन्दू धर्मावलम्बी व सभी कांग्रेसी राजनीतिक नेता नेहरू आदि बाबा साहब के विरोधी हो गए।
संसद के अंदर भी काफी विरोध हुआ।
अंबेडकर हिन्दू कोड बिल पारित करवाने को लेकर काफी चिंतित थे। वहीं सदन में इस बिल को सदस्यों का समर्थन नहीं मिल पा रहा था।

बाबा साहब अक्सर कहा करते थे कि:- ‘‘मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से अधिक दिलचस्पी और खुशी हिन्दू कोड बिल पास कराने में है।’’ सच तो यह है कि हिन्दू कोड बिल के जैसा महिला हितों की रक्षा करने वाला विधान बनाना भारतीय कानून के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है।

डा. आम्बेडकर ने 27 सितंबर को काँग्रेस द्वारा हिन्दू कोड बिल के विरोध सहित कई अन्य मुद्दों को लेकर कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।

हालाँकि बाद में यह 4 बार में पास हुआ जो निम्न प्रकार है :-

1) 18 मई 1955 – हिन्दू विवाह बिल पास
2) 17 जून 1956 – दलितों के उत्तराधिकार बताये गए l
3) 25 अगस्त 1956 – अल्प्सख्यकों के अधिकार मिले l
4) 14 दिसम्बर 1956 – हिन्दू अछूत मिलन बिल पास हुआ l (यह बिल बाबा साहेब के निर्वाण के बाद पास हुआ जिसको वे अपने सामने पास होते देखना चाहते थे)

-Ajay Rawat

Previous articleSAMAJ WEEKLY = 08/03/2024
Next articleਨਾਰੀ ਦਿਵਸ