खिरिया बाग के आंदोलनकारियों के ऊपर झूठे मुकदमे के खिलाफ नागर समाज का साझा बयान

(समाज वीकली)- नागर समाज ने कहा कि किसान नेता राजीव यादव के अपहरण करने की शिकायत करने पंहुची महिलाओं को एसपी आजमगढ़ के कार्यालय में न घुसने देना महिलाओं का अपमान है। वहीं दलित महिलाओं को मारने पीटने, जातिसूचक गालियां देने और उनके साथ अभद्रता करने वाले पुलिस कर्मियों पर कार्रवाई न करके दलित महिलाओं पर मुकदमा करना सरासर संविधान का अपमान है।

जीने के अधिकार के लिए कड़ी तपस्या हुई। खिरिया बाग के आंदोलनकारियों ने जाड़ा, गर्मी और बरसात झेली। होली, दीपावली और ईद भी गुज़र गयी। सात महीने से अधिक हो गये लेकिन अफ़सोस कि सरकार की बेदिली के चलते खिरिया बाग के आंदोलन के लिए उम्मीद का कोई चांद नहीं उभरा। हालांकि यह बड़ी बात है कि इसके बावजूद जीत की उम्मीद ताज़ादम है, मुरझाई नहीं है।

इस बीच आंदोलन को तोड़ने-भटकाने की तमाम कोशिशें भी हुईं लेकिन सब की सब औंधे मुंह जा गिरीं। यह नारा और मुखर हो गया कि विकास के नाम पर यानी हवाई अड्डे के विस्तारीकरण के लिए खेत-मकान नहीं देंगे।

बताते चलें कि 12 अक्टूबर 2022 को देर रात अंधेरे में गुपचुप सर्वे किये जाने की खटर पटर पर ग्रामीणों की नींद टूटी। पूछताछ करने पर सरकारी अमले ने उन पर हमला बोल दिया और विरोध जता रही दलित महिलाओं को जातिसूचक गालियां देते हुए मारा पीटा। और बस अगले दिन से खिरियाबाग आंदोलन की शुरूआत हो गयी।

मैग्सेसे पुरूस्कार सम्मानित संदीप पांडे की अगुवाई में बनारस से आज़मगढ़ के प्रस्तावित मन्दूरी हवाई अड्डे तक की दूरी पैदल तय की जानी थी। यह बताने के लिए कि यह दूरी कार से बमुश्किल ढाई घंटे की है। यानी आज़मगढ़ में एक और हवाई अड्डे की क्या ज़रूरत और इसकी उतावली क्यों? लेकिन उन्हें पदयात्रा करने से रोक दिया गया।

उसी दिन बनारस से आज़मगढ़ लौटते समय आंदोलन के किसान नेता राजीव यादव और अधिवक्ता विनोद यादव का दिनदहाड़े अपहरण हो गया। भारी जन दबाव पड़ा तो पुलिस ने आज़मगढ़ एसटीएफ क्राइम ब्रांच का सुराग़ दे दिया। इस पुलिसिया हरकत का व्यापक विरोध हुआ। तब कहीं जा कर उन्हें छोड़ा गया। गैर कानूनी पुलिस हिरासत से छूटने के बाद किसान नेता राजीव यादव ने बताया कि खिरिया बाग में चल रहे किसान-मजदूर आन्दोलन के बारे में न सिर्फ उनसे पूछताछ की गई बल्कि धमकी देते हुए उन्हें मारा-पीटा भी गया।

इस गुंडई की शिकायत करने खिरिया बाग की महिलाएं 26 दिसंबर 2022 को एसपी आज़मगढ़ से मिलने गईं, लेकिन गेट पर उन्हें रोक दिया गया। पुलिस ने कहा कि महिलाएं अंदर नहीं आ सकतीं। महिलाओं ने पुलिस के इस बर्ताव को महिला विरोधी कहा। गिरफ्तार किये जाने की धमकी मिली लेकिन वे टस से मस नहीं हुई। आख़िरकार महिलाओं को आगंतुक कक्ष में जगह मिली। और तभी एसपी के साथ प्रतिनिधिमंडल की बातचीत हो सकी। इस मुलाक़ात में अपहरणकर्ताओं के विरुद्ध कार्रवाई किये जाने की मांग प्रमुखता से रखी गयी। वार्ता में शामिल दो दलित महिलाओं ने कंधारपुर थाने के एसआई रतन कुमार सिंह पर आरोप लगाया कि वह खिरिया बाग आकर महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी करते हैं।

लेकिन दोनों शिकायत एक क़दम भी आगे नहीं सरकी। उल्टे आंदोलकारियों और उनके समर्थकों पर विभिन्न धाराओं में मुकदमा ठोंक दिया गया। इसका पता 9 मार्च 2023 को पुलिस से मिला कि 27 दिसंबर 2022 को थाना कोतवाली आज़मगढ़ में एफआईआर संख्या 0602 दर्ज हुई है। इसमें संदीप पांडेय, राजीव यादव, विनोद यादव, रामनयन यादव, वीरेन्द्र यादव, क़िस्मती देवी, नीलम और 60-70 अन्य अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध धारा 143, 145, 149, 188, 353 धाराओं में मुक़दमा पंजीकृत किया गया है। इस बावत एसपी आज़मगढ़ से मुलाक़ात किये जाने का सुझाव भी आया।

दलित महिलाओं के साथ अभद्रता और किसान नेता राजीव यादव का अपहरण करने वाले पुलिस कर्मियों पर कार्रवाई न करके प्रतिनिधिमंडल में शामिल दोनों महिलाओं पर एफआईआर करना प्रशासन की दलित और महिला विरोधी मानसिकता को दर्शाता है।

स्पष्ट है कि यह एफआईआर आंदोलनकारियों का उत्पीड़न करने और उन पर दबाव बनाने के लिए दर्ज की गयी है। आशंका है कि ऐसी और भी एफआईआर दर्ज़ की गयी हैं जिनका आगे चल कर ज़रूरत के मुताबिक इस्तेमाल किया जायेगा। यह तो न्याय व्यवस्था को अपने लिहाज़ से हांकना और बंधक बना लेना है। सच और नैतिकता, न्याय और अधिकार की आवाज़ उठानेवालों पर अंकुश लगाना है। दूसरी ओर आज़मगढ़ के सांसद दिनेश लाल निरहुआ की हेट स्पीच पर मौन साध लेना है जिसे वह आंदोलन कर रही महिलाओं और आज़मगढ़ के लोगों के खिलाफ दे चुके हैं।

हम नागर समाज के प्रतिनिधि खिरिया बाग आंदोलन का समर्थन करते हैं और उसे दबाने-भटकाने की सरकारी कोशिशों की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं। सरकार से मांग करते हैं कि जनता की बात सुनी जाये, उन्हें आतंकित न किया जाये, उन पर सरकारी मर्ज़ी न थोपी जाये। अगर लोग हवाई अड्डे के नाम पर अपनी ज़मीन-मकान देने को तैयार नहीं तो उनके इस फैसले का सम्मान किया जाना जाना चाहिए। लोकतंत्र का यही तक़ाज़ा होना चाहिए कि लोगों को अपना बुरा-भला तय करने की आज़ादी हो।

हम हैं;

राकेश (इप्टा)
नवीन जोशी (लेखक, पत्रकार)
नीलिमा शर्मा (रंगकर्मी)
शम्सुल इस्लाम (संस्कृतिकर्मी, इतिहासकार)
राजीव ध्यानी (प्रणाम वाले कुम)
शिवा जी राय (किसान नेता)
असद हयात (मानवाधिकारवादी अधिवक्ता)
मोहम्मद शोऐब (अध्यक्ष रिहाई मंच)
प्रो अहमद अब्बास (लेखक-वक्ता)
ओपी सिन्हा (इंडियन वर्कर्स कौंसिल)
वीरेंद्र त्रिपाठी (पीपुल्स यूनिटी फोरम)
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स्वदेश सिन्हा (लेखक)
कलीम खान (मीडियाकर्मी)
जावेद रसूल (अंग्रेज़ी कवि)
तुहीन देव (क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच)
इमरान अहमद (अधिवक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता)
कौशल किशोर (कवि, लेखक)
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चंद्रेश्वर (कवि-गद्यकार)
अजीत बहादुर (रंग निर्देशक)
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धर्मेंद्र कुमार (कला गुरू)
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