हरियाणा में सरकारी महाविद्यालयों में एक्सटेंशन लेक्चरर्ज का नियमितीकरण-अचूक रामबाण: एक पुनर्मूल्यांकन

Dr. Ramjilal

हरियाणा में सरकारी महाविद्यालयों में एक्सटेंशन लेक्चरर्ज का नियमितीकरण-अचूक रामबाण: एक पुनर्मूल्यांकन

डॉ. रामजीलाल, सोशल साइंटिस्ट, पूर्व प्राचार्य, दयालसिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा -इंडिया)
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(समाज वीकली)- वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2023-2024 में वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले अनुदानित निजी कॉलेजों की संख्या 97 हैं जबकि सरकारी कॉलेजों की संख्या 182 है . इनके अतिरिक्त हरियाणा में स्व-वित्त पोषित कॉलेज भी हैं. हरियाणा के 182 सरकारी महाविद्यालयों में 8137 पद प्रोफेसर के स्वीकृत हैं तथा इनमें से 4738 पद रिक्त हैं.एक साल से अधिक समय से 1535 सहायक लेक्चरर की भर्ती अटकी हुई है. जबकि सरकारी कॉलेजों में 2194 लेक्चरर्ज संविदा पर सेवा दे रहे हैं. इनको ‘एक्सटेंशन लेक्चरर’ कहा जाता है. सभी एक्सटेंशन लेक्चरर पक्की नौकरी के लिए योग्यता प्राप्त है. एक्सटेंशन लेक्चरर की भर्ती करने लिए विभिन्न महाविद्यालयों के द्वारा राष्ट्रीय समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित किए जाते है. समाचार पत्रों में जो विज्ञापन दिए जाते हैं उनमें वे सभी योग्यताएं_एमए,एमफिल,पीएचडी,शोध लेख प्रकाशन ,अनुभव नेट इत्यादि वर्णित होती हैं जो स्थाई लेक्चरर्ज के लिए अनिवार्य होती हैं. समाचार पत्रों में “वॉक इन इंटरव्यू” भी प्रकाशित किया जाता है. विज्ञापनों में यह भी स्पष्ट होता है कि नियुक्तियां नार्मज के आधार पर की जाएगी. हरियाणा सरकार के आदेशानुसार गठित समितियों के द्वारा एक्सटेंशन लेक्चरर का चयन किया जाता है. (Memo no.kw4/36-20 10 C1G/ Dated , 4/3/20)हरियाणा की राजनीति के जानकारों का मानना है कि एक्सटेंशन लेक्चरर्ज की नियुक्तियां एक चयन आयोग के द्वारा नहीं होती अपितु विभिन्न कॉलेजों की अलग-अलग समितियों के द्वारा की जाती हैं. परिणामस्वरूप राजनीतिक हस्तक्षेप और अन्य कारकों प्रभाव हो सकता है. यद्यपि चयन आयोग के द्वारा नियुक्तियों में भी इन सम्भावनाओं से इन्कार नही किया जा सकता.इसलिए सरकार को चयन प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए ताकि ‘खर्ची व पर्ची’ व्यावहारिकतौर पर समाप्त हो सके और मुख्य मंत्री मनोहरलाल का स्वपन सार्थक सिद्ध हो सके.

नियमितीकरण व सेपरेट काडर

हरियाणा सरकार के कॉलेजों में एक्सटेंशन लेक्चरर्स ऐसे भी हैं जो 30 साल पहले पीएचडी. की और वह 55 वर्ष के हो चुके हैं.अधिकतर एक्सटेंशन लेक्चरर्स 40 वर्ष से अधिक आयु पार कर चुके हैं जो नियमित सरकारी नौकरियों के लिए पात्र नहीं हैं .प्रत्येक विस्तार व्याख्याता का महाविद्यालय के द्वारा सर्विस रिकॉर्ड रखा जाता है.इस सर्विस रिकॉर्ड में उनकी वरिष्ठता,योग्यता, आचरण,परीक्षा परिणाम ,प्राचार्य की अनुशंसा इत्यादि का वर्णन अंकित होता है. हरियाणा सरकार के पंचकूला स्थित उच्चत्तर शिक्षा विभाग के कार्यालय को एक्सटेंशन लेक्चरर्ज की सर्विस रिपोर्ट प्राचार्य के द्वारा प्रेषित की जाती है .इन लेक्चरर्ज को कार्य करते हुए इतना लंबा समय हो चुका है . अतः इनको नियमित करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए.

मुख्य समस्याएं: एक विहंगम दृष्टि

हरियाणा में सरकारी कॉलेज में कार्यरत 2194 एक्सटेंशन लेक्चरर हैं जिनमें से लगभग 1,200 महिलाएं है. इन्हें सरकारी कॉलेजों में काम करते हुए 10 वर्षों से भी अधिक का समय हो चुका है इसमें से अधिकतर लेक्चर ओवरऐज हो चुके हैं और पूर्ण योग्य और अनुभवी होने के पश्चात भी यह वैकेंसी होने के परअप्लाई भी नहीं कर सकते. यहां तक की यदि हरियाणा से बाहर इंटरव्यू देने जाते हैं तो इनके एक्सपीरियंस के मार्क्स भी नहीं जोड़े जाते.

एक्सटेंशन लेक्चरर का दोषारोपण है कि अपना आत्मसम्मान दांव पर रखकर नौकरी करते हैं. इन्हें कॉलेज में अपमानित किया जाता है, इनका शोषण किया जाता है . रेगुलर लेक्चरर्ज वर्कलोड कम करने की धमकी देते हैं और उनके मन में हर समय यही भय बना रहता है कि कब वर्कलोड कम करके बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा.अन्य शब्दों में नौकरी में ‘लास्ट-इन-फर्स्ट-गो फॉर्मूला’ लागू होता है.कहने को तो एक्सटेंशन लेक्चरर्ज वर्कलोड के आधार पर नियुक्त किए गए हैं.ऐसा आरोप भी लगाया जाता है कि काम का अधिकांश लोड इन्हीं पर है. एक्सटेंशन लेक्चरर्ज कॉलेज में वह सभी कार्य करते हैं जो रेगुलर लेक्चरर्ज करते हैं. शहरों में स्थित बड़े महाविद्यालयों में वे कमेटी के कन्वीनर नहीं हो सकते. वित्तीय मामलों की जिम्मेदारी इनकी नहीं होती है जबकि कमेटी में होते हैं.अधिकांश काम इनसे करवाया जाता है व रेगुलर लेक्चरर्ज सारा श्रेय ले जाते हैं.

नाम न छापने की शर्त पर आंतरिक सूत्रों के अनुसार ऐसे उदाहरण भी हैं कि यदि एक श्रेणी के दो सैक्शन्स हैं तो उन दोनों को मिला दिया जाता है और स्थाई लेक्चरर की अपेक्षा उन दोनों सैक्शन्स के विद्यार्थियों को एक्सटेंशन लेक्चरर के द्वारा पढ़ाया जाता है. एक सैक्शन का रिजल्ट स्थाई लेक्चरर अपनी एसीआर( ACR) में भरते हैं. स्थाई लेक्चरर का अटेंडेंस रजिस्टर, असाइनमेंट, क्लास टेस्ट के रिजल्ट्स एक्सटेंशन लेक्चरर्स तैयार से करवाते हैं. रेगुलर स्टाफ वर्कलोड कम करने की धमकी देते हैं. यही स्थिति अनुदानित निजी महाविद्यालयों में अस्थाई अध्यापकों की भी है. इसको हम स्थाई प्राध्यापकों के ‘नवीन साम्राज्यवाद’ का नाम दे सकते हैं.

नई शिक्षा नीति लागू होने के पश्चात लगभग प्रत्येक संकाय में वर्कलोड कम हो रहा है.परिणाम स्वरूप अस्थायी अध्यापकों की संख्या में भारी कमी आई है. नई शिक्षा नीति के अंतर्गत स्थाई अध्यापकों के द्वारा ऐसे सब्जेक्ट जैसे एनवायरमेंट स्टडीज, सॉफ्ट स्किल्स, ह्यूमन वैल्यूज इत्यादि पढ़ाए जा रहे हैं जो उन्होंने कभी नहीं पढ़े. वास्तव में यह बिल्कुल अनुचित है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि स्टाफ सरप्लस न हो.हमारा मानना है कि इन विषयों को पढ़ने के लिए पात्रता प्राप्त प्राध्यापकों की नियुक्ति की जाए व सरप्लस स्टाफ का ट्रांसफर अन्य ऐसे कॉलेजों में किया जाए जहां अध्यापकों की कमी है.

यहां इस बात का वर्णन करना भी अनिवार्य है कि अनेक अनुदानित निजी महाविद्यालयों में सेल्फ फाइनेंसिंग कोर्सेज में विद्यार्थियों को उन स्थाई प्राध्यापकों के द्वारा पढ़ाया जाता है जिनके वेतन का 95% भाग सरकार के द्वारा दिया जाता है. हरियाणा सरकार के उच्चतर शिक्षा विभाग के द्वारा अपने सूत्रों के अनुसार गुप्त रूप से इंक्वारी करनी चाहिए. अनुदानित निजी महाविद्यालयों के प्राचार्यों के द्वारा यदि रिपोर्ट मंगवाई जाती है तो वह गलत रिपोर्ट प्रेषित कर सकते हैं क्योंकि उनके ऊपर मैनेजमेंट और प्राध्यापक संगठनों का दबाव होता है.यदि स्थाई स्टाफ सेल्फ फाइनेंस कोर्सेज को पढ़ाते हैं तो सरकार के सामने तीन कदम हैं:

प्रथम, सरप्लस प्राध्यापकों की ट्रांसफर अन्य ऐसे कॉलेजों में की जाए जहां स्टाफ की कमी है.

द्वितीय,कॉलेज के विरुद्ध कार्रवाई करते हुए उन प्राध्यापकों के वेतन का 95 परसेंट भाग जो सरकार से मिलता है वह बंद कर दिया जाए. अनुदानित निजी महाविद्यालयों के नियमित शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रम (एसएफसी) के लिए कोई मानदेय नहीं दिया जा सकता है.

तृतीय, वेतन वृद्धि तथा प्रमोशन देते समय जो पीरियड इन्होंने सेल्फ फाइनेंसिंग में पढ़ाए हैं वह समय उनके अनुभव में नहीं जोड़ा जाना चाहिए.यदि सरकार ऐसा नहीं करती तो यह धांधली नहीं रूकेगी तथा ‘पैसा सरकारी और लाभ गैर- सरकारी’ चलता रहेगा.हरियाणा सरकार के नियमानुसार स्थायी प्राध्यापक जिनके वेतन का 95 प्रतिशत सरकार देती है वह सेल्फ फाइनेंस कोर्सेज नहीं पढ़ा सकते.इस नियम को दृढ़ता से लागू किया जाए.

सरकारी महाविद्यालयों में एक्सटेंशन लेक्चरर्स को डेपुटेशन पर भेजा जाता है क्योंकि रेगुलर लेक्चरर्स का मानना है कि दो कॉलेज में जाने से रिजल्ट खराब हो जाता है.एक्सटेंशन लेक्चरर्स को मानसिक तौर भी परेशान किया जाता है. परंतु नाम उजागर न करने की शर्त पर स्थायी लेक्चरर्स के द्वारा इन सभी आरोपी को गलत व निर्धारित ठहराते हुए एकदम खारिज किया है. उनका मानना है कि अस्थाई अथवा एक्सटेंशन लेक्चरर्स काम करना नहीं चाहते. यद्यपि वे हरियाणा सरकार में स्थायी नौकरी प्राप्त करने से पूर्व करनाल के अनुदानित महाविद्यालयों में अस्थायी पदों पर अध्यापन कार्य करते रहे हैं. क्या अनोखा विरोधाभास है?.

अनुबंध/एक्सटेंशन लेक्चरर्स का वेतनमान कम

अनुबंध/एक्सटेंशन पर लगे अध्यापकों की अपना भविष्य भी सुरक्षित नहीं है और वेतनमान भी बहुत कम है .उदाहरण के तौर पर हरियाणा तथा पंजाब जैसे विकसित राज्यों के अनुदानित निजी महाविद्यालयों में अनुबंध पर लगे हुए अध्यापकों को प्रति माह 10,000 से 21000 रूपए तक में वेतन प्राप्त होता है जो कि स्थायी चपरासी के वेतन से भी कम है. हरियाणा व पंजाब के कुछ निजी महाविद्यालयों में कार्यरत अस्थाई अध्यापकों को लगभग ₹25000 महीना वेतन मिलता है और कभी भी पदविमुक्त किया जा सकता है.

हरियाणा में सरकारी महाविद्यालयों में एक्सटेंशन पर लगे हुए प्राध्यापकों को सन् 2010 से सन् 2017 तक 150 से 250 रुपये प्रति लेक्चर के मानदेय (वेतन) प्राप्त होता था. परंतु जून 2017 में बढाकर प्रति माह ₹25000 कर दिया गया और जून 2019 में वेतन बढ़ाकर ₹57700 प्रति मास कर दिया गया.

विश्वविद्यालय पी. एचडी. तथा एम.फिल “डिग्रीयों उत्पादन के कारखाने”

भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अनेक समस्याएं हैं. इन समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या गुणवत्ता का अभाव है. शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही गुणवत्ता के अभाव में जी रहे हैं. शिक्षक के लिए अध्ययन करना, विद्यार्थियों को पढ़ाना तथा अपने बौद्धिक स्तर को बढ़ाने के लिए एम.फिल् अथवा पी.एचडी.की उपाधियां गौरव की बात है, परन्तु गुजरात के भूतपूर्व गवर्नर के अनुसार विश्वविद्यालय पीएचडी. तथा एम.फिल “डिग्रीयों के उत्पादन के कारखाने” बन चुके हैं .इसका मूल कारण यह है कि विद्यार्थी अथवा शोधार्थी स्वयं कार्य न करके अपने शोध कार्यों व रिसर्च पेपर्स को दूसरे लेखकों से पैसे देकर लिखवाते व प्रकाशित करवाते हैं . कुछ निजी विश्वविद्यालयों के द्वारा पीएचडी गाइड उपलब्ध करवाने,रिसर्च पेपर्स तैयार करवाने ,साइनोपिस्स तैयार करवाने, पीएचडी का थीसिस लिखवाने इत्यादि की अलग-अलग रकम वसूली जाती है. इस भ्रष्टाचार से सरकारी विश्वविद्यालय भी बचे हुए नहीं हैं.

इनके अतिरिक्त कुछ अन्य कमियां भी शोधार्थियों से बातचीत करके पता लगती हैं. पीएचडी का 6 महीने का ‘कोर्स वर्क’ होता है.परंतु इसको ‘कैप्सूल कोर्स वर्क’ के नाम से मात्र 20 दिन का बना दिया जाता है जो कि यूजीसी के पीएचडी रेगुलेशन के नियमों का सरासर उल्लंघन है. इस कोर्स वर्क में शोधार्थियों की हाजिरी अनिवार्य होती है परंतु अटेंडेंस केवल एक दिन में ही लगा दी जाती है और दर्शित किया जाता है कि जैसे शोधार्थी रेगुलर तरीके से क्लास अटेंड करता है. शोधार्थियों की हाजिरी यूनिवर्सिटी में लगती है और महाविद्यालयों में उनकी कोई छुट्टी नहीं है.ऐसे विद्यार्थियों को ‘नॉन अटेंडिंग विद्यार्थी’ (Non Attending Students)कहा जाता है और इसके लिए उन्हें अलग फीस देनी पड़ती है.

पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में दायर याचिका (सीङब्ल्यूपी (CWP) नं.26892 ऑफ 2023) के संदर्भ में हरियाणा सरकार के उच्चतर शिक्षा विभाग के द्वारा जिन प्रोफेसरों ने ओपीजेएस व अन्य निजी विश्वविद्यालयों से नौकरी के दौरान पीएचडी डिग्री ग्रहण की है और लाभ उठाया है की जानकारी मांगी है .इसके अतिरिक्त यूजीसी की डायरेक्शन के पश्चात इन पीएचडी धारकों की ‘कोर्स वर्क’ की जानकारी भी सरकारी महाविद्यालयों के प्राचार्यों को प्रेषित करने का निर्देश दिया है.(मेमो न. 15 / 229 – 2023 सी – 1बी). हरियाणा सरकार केउच्चतर शिक्षा विभाग के द्वारा अनुदानित निजी महाविद्यालयों के पीएचडी धारकों की अटेंडेंस की भी प्रॉपर इंक्वारी करनी चाहिए. क्योंकि आज के इलेक्ट्रॉनिक युग में भी रजिस्टर में हाजिरी लगाई जाती हैजबकि बायोमेट्रिक मशीने बंद पडीहैं.

हरियाणा में लगभग 500 एक्सटेंशन लेक्चरर फर्जी डिग्री धारक हैं. सन् 2020 में आरटीआई की सूचना अखबारों में प्रकाशित होती रही. काफी संख्या में रेगुलर लेक्चरर्स भी फर्जी डिग्री धारक हैं.यदिअनुदानित निजी महाविद्यालयों,स्व- वित पोषित कोर्सेज , सेल्फ फाइनेंसिंग महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों को भी साथ जोड़ दिया जाए तो यह संख्या और भी अधिक हो सकती है. इस प्रकार के प्राध्यापकों के आधार पर भारतीय उच्च शिक्षण संस्थाओं में पठन-पाठन एवं शोध कार्य कैसे होंगे? क्या इस प्रकार के शोध कार्यों से भारत विश्व गुरु की ओर बढ़ सकता है?

आरक्षण नीति लागू नहीं

अनुदानित निजी महाविद्यालयों में अस्थाई नियुक्तियों व सरकारी महाविद्यालयों में एक्सटेशन पर नियुक्तियों की भर्ती करते समय आरक्षण नीति को लागू न करना आरक्षित वर्ग को नौकरी से वंचित रखना अन्यायपूर्ण हैं. आरक्षण नीति लागू न करने को लेकर यह कहा जाता है कि अस्थाई नियुक्तियों के बारे आरक्षण संबंधी कोई कानून नहीं है .हमारा मानना है यह कि कौन से कानून में लिखा है कि आरक्षण अस्थाई नियुक्तियों पर लागू नहीं होगा.

दयाल सिंह कॉलेज, करनाल में प्राचार्य रूप में मैंने दयाल सिंह कॉलेज ट्रस्ट सोसायटी के अध्यक्ष दीवान गजेंद्र कुमार (पंजाब विश्वविद्यालय ,चंडीगढ़ के संस्थापक वाईस चांसलर दीवान आनंद कुमार के सुपुत्र), आर.सी शर्मा (पूर्व डायरेक्ट्र सी.बी आई ), व अन्य ट्रस्टियों को परामर्श दिया कि हमारा राष्ट्रीय महाविद्यालय है और अस्थाई नियुक्तियों में आरक्षण लागू करके वास्तविक रूप में राष्ट्रीय महाविद्यालय बनाना चाहिए. परिणाम स्वरूप आरक्षण नीति को टीचिंग और नॉन टीचिंग दोनों में लागू किया और भर्ती की गई.

मुख्य मांगे

हरियाणा के सरकारी महाविद्यालयों के विस्तार व्याख्याताओं के संगठन के द्वारा उच्चतर शिक्षा विभाग केअधिकारियों,विधायकों,मंत्रियों ,शिक्षा मंत्री, उपमुख्यमंत्री तथा मुख्यमंत्री के साथ समय-समय पर अपनी मांगों के संबंध में बातचीत होती है और ज्ञापन भी दिए जाते हैं ताकि उनको मुख्य मांगों के बारे में अवगत कराया जा सके.सरकार पर दबाव डालने के लिए उनके द्वारा समय-समय पर हड़ताल व प्रदर्शन भी किए जाते हैं. मुख्य मांगों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मांग यह है कि इनको नियमित किया जाए.यहां पर यह बताना जरूरी है कि पिछले अनेक वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र विस्तार व्याख्याताओं के द्वारा जो कार्य किया जा रहा है उससे परीक्षा परिणाम और हरियाणा की शिक्षा मेंसुधार हो रहा है .इनका योगदान स्थाई एवं नियमित प्राध्यापकों से कम नहीं है और किसी भी रूप में योग्यता भी में भी उनसे कम नहीं हैं.हमारा यह मानना है कि अनेक ऐसे महाविद्यालय हैं जहां एक्सटेंशन लेक्चरर्ज की संख्या ज्यादा है और स्थाई लेक्चरर्ज की संख्या कम है .उदाहरण के तौर पर पंड़ित जवाहरलाल नेहरू महाविद्यालय,फरीदाबाद में 134 शिक्षकों में से 91 शिक्षक एक्सटेंशन के आधार पर कार्यरत हैं.अधिक कार्यभार इन्हीं के ऊपर थोपा जाता है. आंतरिक सूत्रों का मानना है कि स्थाई लेक्चरर्ज अपने पीरियड तथा अन्य कार्य भी एक्सटेंशन टीचर्स से करवाते हैं और बार-बार धमकी देते हैं कि वह उनको सर्विस से निकलवा देंगे.एक ओर इन टीचर्स को उनके स्थाई समकक्ष लेक्चरर्ज तथा दूसरी ओर प्रिंसिपल धमकियां देते हैं क्योंकि प्रिंसिपल असंतोषजनक काम ,अनुचित आचरण व गैर- कानूनी गतिविधियों में संलिप्त होने का दोषारोपण करके नौकरी से कभी भी हटा सकता है.

विस्तार व्याख्याताओं की स्थिति में सुधार के लिए सुझाव

हरियाणा में विस्तार व्याख्याताओं की स्थिति में सुधार के लिए महत्व सुझाव निम्नलिखित हैं:

प्रथम, हरियाणा के सभी विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों मेंअस्थाई नियुक्तियों में भी आरक्षण लागू करके समाज के सभी वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाए ताकि शिक्षा का स्वरूप राष्ट्रीय हो सके.

द्वितीय.विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में सभी पदों पर स्थायी अध्यापकों की नियुक्ति की जाए तथा भारत के संविधान (अनुच्छेद 39डी) में दिए गए “समान काम के लिए, समान वेतन” के सिद्धांत को लागू किया जाए. एक्सटेंशन लेक्चरर के द्वारा पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में रिट पिटीशन डाली गई. पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सीपीडब्ल्यू1887-2019 पर “समान काम के लिए, समान वेतन” का लाभ 57700 रूपए प्रतिमाह के हिसाब से 20 जुलाई 2017 से लागू करने का निर्देश हरियाणा सरकार को दिया है.परिणाम स्वरुप प्रत्येक एक्सटेंशन लेक्चरर प्रैक्टिशनर को लगभग 7 लाख 52 हजार रुपए का एरियर मिलेगा .

तृतीय, सरकारी महाविद्यालयों में रेशनलाइजेशन की नीति को तुरंत लागू करना चाहिए . विद्यार्थियों की संख्या के अनुपात से ही प्रोफेसरों व अन्य स्टाफ की तैनाती की जानी चाहिए . शहरी क्षेत्रों के कुछ कॉलेजों में स्टाफ विद्यार्थियों की संख्या के अनुपात से कहीं अधिक है. दूसरी ओर कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों के कालेजों में स्टाफ का अभाव है. स्टाफ को जरूरत के आधार पर ट्रांसफर व एडजस्टमेंट करके सुधार किया जा सकता है.

चतुर्थ, हमारा अभिमत है कि जो एक्सटेंशन लेक्चरर्स सन् 2010 से सेवाएं दे रहे हैं और ओवरऐज भी हो चुके हैं उनका एक ‘सेपरेट काडर’ (Separate Cadre) बनाकर पक्का कर दिया जाए ताकि इनकी ‘एक्सटेंशन की टेंशन’ खत्म हो और इनके भी ‘अमृतकाल में अच्छे दिन. आ जाएंगे. इनको शोषण से मुक्ति मिलेगी तथा इनका ‘भविष्य उज्जवल’ होगा. शोषण का उन्मूलन करने लिए एक मात्र अचूक रामबाण नियमितीकरण है.

पंचम,अनुदानित निजी कॉलेजों में समायोजन के लिए मात्र 2932 व शिक्षक 1664 गैर- शिक्षक कर्मचारी हैं, समायोजन की अपेक्षा सरकारी वित्तीय सहायता प्राप्त निजी कॉलेज के शिक्षकों एवं गैर- शिक्षक कर्मियों को वही सुविधाएं प्रदान की जाएं जो सरकारी महाविद्यालयों में उनके समकक्ष कार्यरत कर्मचारियों को प्राप्त हैं तथा एक्सटेंशन लेक्चरर्स को नियमित किया जाए .यदि उसके बाद भी रिक्तियां रहती हैं तो नयी भर्ती की जाए.

हमारा अभिमत है कि एक्सटेंशन लेक्चरर्स की सर्विसेस को जोड़कर उन्हें नियमित किया जाए व वेतन आयोग की सभी संस्तुतियों को क्रियान्वित किया जाए व उनको सभी सुविधाएं जैसे- संशोधित वेतनमान,आवास की सुविधा,चिकित्सा भत्ते इत्यादि देने से ‘एक्सटेंशन लेक्चरर्स की टेंशन’ समाप्त हो जाएगी और वे अध्यापन कार्य मेंअधिक रुचि लेंगे. परिणाम स्वरूप शिक्षाविद हरियाणा के निर्माण में अतुलनीय योगदान देंगे. अंततः राजनेताओंऔर नौकरशाही को शिक्षा में सुधार के लिएअपने दृष्टिकोण को भी बदलना चाहिए.

(विशेष टिप्पणी लेखक: हरियाणा कॉलेज पीएचडी टीचर्स एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष रहे हैं. (यह संगठन अब अस्तित्व में नहीं है). मुख्यमंत्री बंसीलाल के शासन के दौरान सन् 1972- 1973 की हरियाणा के कॉलेज टीचर्स की स्ट्राइक में जेल में भी गए हैं}

 

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