डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर : निर्भीक एवं स्वतंत्र पत्रकार
डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा-भारत)
(समाज वीकली)- अनुसूचित जातियों के समाज में अनेक समाज सुधारक, विद्वान तथा राजनेता पैदा हुए हैं. प्राचीन समय में महर्षि वाल्मीकि, मध्य युग में संत रविदास,संत कबीर तथा आधुनिक युग में डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर महात्मा अय्यनकाली, पेरियार, गाडगे बाबा, जगजीवन राम, के.आर. नारायणन (भारत के 10वें तथा अनुसूचित जाति से संबंधित प्रथम राष्ट्रपति), रामनाथ कोविंद (14वें राष्ट्रपति), कांशीराम तथा मायावती के नाम उल्लेखनीय हैं.
डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर (14 अप्रैल 1891– 6 दिसंबर 1956 ) भारतीय संविधान के पितामह, निर्माता, शिल्पीकार एवं वास्तुकार, संविधान की ड्राफ्ट समिति के अध्यक्ष, प्रसिद्ध अधिवक्ता, स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय गणराज्य के निर्माता, भाषाविद्, स्वतंत्र एवं निर्भीक पत्रकार, पुस्तक कीट, राजनेता, सांसद, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, सामाजिक क्रांतिकारी, अन्याय पर आधारित सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था के धुरंधर विरोधी, जाति तथा अस्पृश्यता के उन्मूलन के पक्षधर, दार्शनिक एवं चिंतक, महिलाओं, किसानों और श्रमिकों के हमदर्द, अछूत तथा वंचित वर्ग के पैरोकार एवं मसीहा, विषमता और असमानता पर आधारित समाज के विरुद्ध एक महान आंदोलनकारी एवं उच्च कोटि के संघर्षशील चिंतक, सामाजिक क्रांतिकारी पथ प्रदर्शक थे.
एक समाज सुधारक के रूप में वह मनुवाद- ब्राह्मणवाद पर आधारित जाति प्रथा के उन्मूलन के मुख्य पैरोकार थे. वे स्वयं इस बात को स्वीकार करते थे कि महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण के बिना किसी भी समाज का सुधार और विकास नहीं हो सकता. इस दृष्टि से वह महिला सशक्तिकरण केअग्रदूत थे. उनको समानता, स्वतंत्रता तथा बंधुता का पैरोकार माना जाता है. डॉ. अंबेडकर के विचारों से विश्व के वंचित वर्ग के लोग प्रेरणा ग्रहण करते हैं और करते रहेंगे. यही कारण है कि विश्व के लगभग 100 देशों में उनका जन्मदिन प्रतिवर्ष मनाया जाता है. परंतु आम जन को इस बात की जानकारी नहीं है कि डॉ भीमराव अंबेडकर एक प्रसिद्ध पत्रकार भी थे.
डॉ भीमराव अंबेडकर : पत्रकारिता एक ‘मील का पत्थर’
ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार के शोषण के विरुद्ध तथा स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय आंदोलन के लिए जनता को जागरूक तथा लामबंद करने के लिए राष्ट्रीय नेताओं ने अपने विचारों, सिद्धांतों, समाचारों और उद्देश्यों को जनसाधारण तक पहुंचाने के लिए पत्रकारिता का बहुत प्रयोग किया गया. 19वीं शताब्दी में सुरेंद्रनाथ बनर्जी तथा दयाल सिंह मजीठिया तथा बीसवीं शताब्दी में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, मोतीलाल नेहरू, दीनबंधु रहबर -ए-आज़म सर छोटूराम, भगत सिंह,महात्मा गांधी ,जवाहरलाल नेहरू, डॉ. भीमराव अंबेडकर तथा असंख्य क्रांतिकारी,साम्यवादी और समाजवादी नेताओं ने जनता को जागरूक करने के लिए तथा अपने विचारों को जनता तक पहुंचाने के लिए समाचार पत्रों की स्थापना की. ब्रिटिश के विरुद्ध प्रचार करना कोई आसान कार्य नहीं था. राष्ट्रीय नेताओं को समाचार पत्रों में लेख लिखने के लिए कारण कैद की सजा तथा जेलों में डाला गया, जुर्माने, नाना प्रकार के अत्याचार किए गए तथा प्रेस और दफ्तरों पर पुलिस द्वारा प्रतिबंध लगाकर जब्त कर लिया जाता था.
डॉ. भीमराव अंबेडकर अपने विचारों का प्रचार और प्रसार करने के लिए, दलित, वंचित वर्ग और दमित वर्ग की आवाज को उठाने के लिए एवं अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध जनता को जागरूक, शिक्षित, संगठित तथा आंदोलित करने के लिए पत्रकारिता का सहारा लिया. पत्रकारिता के इतिहास में अंबेडकर की पत्रकारिता एक ‘मील का पत्थर’ है डॉ. अम्बेडकर ने अनेक समसामयिक मुद्दों पर और संख्या लेख और पुस्तकें भी लिखी.उन्होंने पत्रकारिता को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाया और भारतीय संविधान में निहित सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक न्याय,समानता स्वतंत्रता ,बंधुता तथा व्यक्ति की गरिमा, न्याय, व्यक्ति के मूल अधिकारों व लोकतांत्रिक मूल्यों को विकसित किया उनका मानना था कि शिक्षित वर्ग मूक दर्शक वर्ग को जिसकी संख्या बहुत ज्यादा है प्रेरणा का स्रोत हो सकता है . इसलिए आम जन की मराठी भाषा में पांच समाचार पत्रों- साप्ताहिक ‘मूकनायक’, ‘बहिष्कृत भारत’, ‘ समता’ , ‘जनता’ व ‘प्रबुद्ध भारत’ का प्रकाशन किया .
डॉ भीमराव अंबेडकर: लेखन शैली
डॉ भीमराव अंबेडकर के पत्रकारिता में प्रयोग की जाने वाली शैली अपने आप में अनुकरणीय,स्वतंत्रऔर मौलिक है.उनकी शैली में जिस तरीके से समस्याओं को उठाया गया है. वह सटीक , तार्किक, क्रांतिकारी और विद्रोही है.उनके सम्मुख समस्याओं और सामाजिक सुधारो को लेकर जनता को जागरूक करने का प्रयास किया. उनके साहित्य सृजन तथा, लेखन में अतुलनीय तीक्ष्णता, दार्शनिकता, तार्किकता ,सटीकता, क्रांतिकारी और विद्रोही झलक दृष्टिगोचर होती है.
एक सफल पत्रकार के लिए भाषा की उत्कृष्टता तथा गुणवत्ता की पूर्ण जानकारी होना अति आवश्यक है. डॉ. भीमराव अंबेडकर एक महान उत्कृष्ट भाषाविद् थे. उनको 11 भाषाओं — मराठी (मातृभाषा), हिंदी, अंग्रेजी, पाली, संस्कृत, गुजराती, जर्मन, फारसी, फ्रेंच, कन्नड़ तथा बंगाली का ज्ञान था, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने पत्रकारिता के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए कहा कि समाचार पत्रों का मुख्य उद्देश्य जनता को शिक्षित करना, उनके दिमाग को स्वच्छ करना संकुचित तथा विभाजनकारी भावनाओं से सुरक्षा करना, संप्रदायवाद व जातिवाद का उन्मूलन करना तथा राष्ट्रवाद की प्रोन्नति करना इत्यादि है. भगत सिंह की भांति अंबेडकर भी पत्रकारिता को व्यवसाय नहीं मिशन मानते थे. तत्कालीन समाचार पत्रों की मुख्य एजेंसी ”एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया” पर दक्षिण भारत के ब्राह्मणों नियंत्रण था. वर्तमान समय में कॉर्पोरेट्स और सरकार का नियंत्रण है. आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने विचार जो व्यक्त किए थे वे आज भी पूर्णतया प्रासंगिक हैं क्योंकि राष्ट्रीय मेंन स्ट्रीम मीडिया जिसे जनता की आवाज उठाने चाहिए थी वह अधिकारियों, सत्ताधारी राजनेताओं तथा कारपोरेट की आवाज को बुलंद करता है और आवाज रहित जनता को गुमराह कर रहा है.
यही कारण है कि किसान आंदोलन सन् 2020- सन् 2021 के समय किसानों ने मेंस्ट्रीम मीडिया का बहिष्कार ही नहीं किया अपितु किसान विरोधी समाचार पत्रों की प्रतियां भी दिल्ली बॉर्डर तथा अन्य धरना स्थलों पर जलाई गई .यह “गोदी मीडिया” तथा “कारपोरेटस” के लिए एक सबक था . चुनौती थी.
इस विभाजनकारी प्रवृत्ति का नंगा नाच किसान आंदोलन सन् 2020 -सन् 2021 के समय देखा गया है.आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार के द्वारा अनेक हथकंडे अपनाए गए तथा सरकार के मंत्रियों, भाजपा के पदाधिकारियों, सरकार के समर्थकों, राष्ट्रीय मीडिया, व्हाट्सएप, सोशल मीडिया इत्यादि के द्वारा किसानों के विरुद्ध बहुत अधिक दुष्प्रचार किया गया. भारतीय जनता पार्टी तथा एनडीए के सहयोगी दल “फूट डालो शासन करो’ की नीति पर चलते हुए समाज में किसानों के प्रति घृणा पैदा करने के लिए प्रयास किया गया. भारतीय राजनीति में नए-नए मुहावरों का प्रयोग होने लगा. नागरिकों तथा किसानों को धर्म, जाति, भाषा, भूमि, क्षेत्र, वर्ग (संपन्न वर्ग तथा संपन्नहीनता वर्ग), देशभक्त बनाम देशद्रोही, हिंदुस्तानी बनाम पाकिस्तानी इत्यादि के आधार पर बांटने का भरसक प्रयास किया. किसानों को आतंकवादी, खालिस्तानी, नक्सलवादी, आंदोलनजीवी, परजीवी , पाकिस्तानी समर्थक, पाकिस्तान और चीन के एजेंट इत्यादि कहकर भी आलोचना की गई. केवल यही नहीं तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, समाचार पत्र, सोशल मीडिया, सरकार, सरकार के समर्थकों तथा पत्रकारों के द्वारा किसानों की आलोचना की गई. किसानों को विपक्षी दलों द्वारा प्रेरित, राष्ट्र विरोधी तथा षड्यंत्रकारी कह कर बदनाम तथा अपमानित किया गया. केवल यही नहीं अपितु हिंदुस्तानी बनाम पाकिस्तानी, हिंदू किसान बनाम मुस्लिम किसान ,सिख बनाम हिंदू ,मुस्लिम बनाम ईसाई, नकली किसान बनाम असली किसान, गरीब व लघु किसान बनाम अमीर किसान, कृषि कानूनों के समर्थक किसान बनाम विरोधी किसान इत्यादि का कैसेट निरंतर बजता रहा. यह निश्चित रूप में , डॉ. भीमराव अंबेडकर के चिंतन के बिल्कुल विपरीत है.एडिटरस गिल्डज आफ इंडिया ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि आंदोलन करने वाले किसानों को खालिस्तानी अथवा राष्ट्र विरोधी कहना पत्रकारिता के उत्तरदायित्व और नैतिकता के विरुद्ध है.
डॉ. भीमराव अंबेडकर : पत्रकारिता मिशन है, व्यवसाय नहीं.
डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार पत्रकारिता और पत्रकारों के संबंध में 10 उचित मानक निम्नलिखित हैं:
‘’1-पत्रकारिता को पक्षपात और पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए.
2-भारत में इसका विशेष संदर्भ जातीय पक्षपात और पूर्वाग्रह है.
3-पत्रकारिता तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए, मनोगत धारणाओं पर नहीं’.
4-पत्रकारिता मिशन होना चाहिए, व्यवसाय नहीं.
5-पत्रकारिता और पत्रकारों की अपनी नैतिकता होनी चाहिए.
6-निर्भीकता पत्रकारिता और पत्रकार का अनिवार्य लक्षण है.
7-सामाजिक हितों का पक्षपोषण करना पत्रकारिता और पत्रकार का कर्तव्य है.
8-पत्रकारिता में व्यक्ति पूजा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए.
9-सनसनीखेज खबरों की जगह पत्रकारिता का कार्य वस्तुगत रिपोर्टिंग है.
10.जनता की भावनाओं को भड़काने की जगह, उसके तर्क एवं विवेक को जाग्रत करना पत्रकारिता और पत्रकार का दायित्व है’’.
(https://samajweekly.com/dr-ambedkar-in-the-context-of-indian-newspapers
संक्षेप में डॉ. अंबेडकर ने पत्रकारिता और पत्रकारों के संबंध में उचित मानकों का वर्णन करते हुए कहा था कि पत्रकारिता और पत्रकार को प्रचलित पूर्व ग्रहो से स्वतंत्र होना चाहिए. वास्तव में पत्रकारिता एक मिशन के रूप में होनी चाहिए और वह पत्रकारिता के व्यवसायीकरण के बिल्कुल विरुद्ध थे .पत्रकारों के संबंध में उन्होंने कहा कि पत्रकार निर्भीक, निष्पक्ष,संवेदनशील होना चाहिए तथा उनको समाज के हितों की वकालत करनी चाहिए. समाज को भड़काने का प्रयास नहीं करना चाहिए .पत्रकारिता में नायक पूजा का नहीं होनी चाहिए. उनका मानना था कि शिक्षित वर्ग मूक दर्शक वर्ग को जिसकी संख्या बहुत ज्यादा है प्रेरणा का स्रोत हो सकता है . इसलिए मराठी भाषा में पांच समाचार पत्रों- साप्ताहिक ‘मूकनायक’, ‘बहिष्कृत भारत’, ‘ समता’ , ‘जनता’ व ‘प्रबुद्ध भारत’ का प्रकाशन किया .
डॉ. भीमराव अंबेडकर :तत्कालीन परिस्थितियों समाचार पत्रों जरूरत क्यों?
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि दलित वर्ग के पास न नौकरी है नहीं कोई व्यवसाय है, नहीं जमीन है और समाज में बहिष्कृत होने के कारण वह एक ‘मूकनायक’ के समान है . ऐसी स्थिति में उनके पास अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए एकमात्र सहारा समाचार पत्र का होता है. जबकि तत्कालीन समाचार पत्रों की मुख्य एजेंसी ”एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया” पर दक्षिण भारत के ब्राह्मणों नियंत्रण था . डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट शब्दों में लिखा:
“अछूतों का कोई प्रेस नहीं है। कांग्रेस प्रेस उनके लिए बंद है और स्पष्ट कारणों के लिए उन्हें थोड़ा सा प्रचार नहीं देने के लिए दृढ़ संकल्पित है . यह निराशाजनक है कि हमारे पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. हमारे पास पैसा नहीं है; हमारे पास अखबार नहीं हैं; पूरे भारत में, हर दिन हमारे लोग बिना किसी विचार और भेदभाव के सत्तावाद के अधीन हैं; उन अखबारों में शामिल नहीं हैं. एक सोची-समझी साजिश के द्वारा अखबार सामाजिक-राजनीतिक समस्याओं पर हमारे विचारों को शांत करने में पूर्ण रूप से शामिल हैं.”
18 जनवरी 1943 को पूना में मीडिया के चरित्र के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा, ‘मेरी निंदा कांग्रेसी समाचार पत्रों द्वारा की जाती है. मैं कांग्रेसी समाचार-पत्रों को भलीभांति जनता हूं. मैं उनकी आलोचना को कोई महत्त्व नहीं देता. उन्होंने कभी मेरे तर्कों का खंडन नहीं किया. वे तो मेरे हर कार्य की आलोचना, भर्त्सना व निंदा करना जानते हैं. वे मेरी हर बात की गलत सूचना देते हैं, उसे गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं और उसका गलत अर्थ लगाते हैं. मेरे किसी भी कार्य से कांग्रेसी-पत्र प्रसन्न नहीं होते. यदि मैं कहूं कि मेरे प्रति कांग्रेसी पत्रों का यह द्वेष व बैर-भाव अछूतों के प्रति हिंदुओं के घृणा भाव की अभिव्यक्ति ही है, तो अनुचित नहीं होगा.’’
उन्होंने आगे कहा ‘भारत के बाहर के लोग विश्वास करते हैं कि कांग्रेस ही एकमात्र संस्था है, जो भारत का प्रतिनिधित्व करती है, यहां तक कि अस्पृश्यों का भी. इसका कारण यह है कि अस्पृश्यों के पास अपना कोई साधन नहीं है, जिससे वे कांग्रेस के मुकाबले अपना दावा जता सकें. अस्पृश्यों की इस कमजोरी के और भी कई कारण हैं. अस्पृश्यों के पास अपना कोई प्रेस नहीं है. कांग्रेस का प्रेस उनके लिए बंद हैं. उसने अस्पृश्यों का रत्ती भर भी प्रचार न करने की कसम खा रखी है. अस्पृश्य अपना प्रेस स्थापित नहीं कर सकते. यह स्पष्ट है कि कोई भी समाचारपत्र बिना विज्ञापन राशि के नहीं चल सकता. विज्ञापन राशि केवल व्यावसायिक विज्ञापनों से आती है. चाहे छोटे व्यवसायी हो या बड़े, वे सभी कांग्रेस से जुड़े हैं और गैर-कांग्रेसी संस्था का पक्ष नहीं ले सकते. भारत के एसोसिएटेड प्रेस का स्टाफ, जो भारत की समाचार एजेंसी है, सम्पूर्ण रूप से मद्रासी ब्राह्मणों से भरी पड़ी है. वास्तव में भारत का सम्पूर्ण प्रेस उन्हीं की मुट्ठी में है और वे पूर्णतया कांग्रेस के पिट्ठू हैं, जो कांग्रेस के विरुद्ध किसी समाचार को नहीं छाप सकते.’
डॉ.अंबेडकर :पत्रकार के रूप में : 36 साल का सफर- 31 जनवरी 1920 से 4 फरवरी 1956 तक
तत्कालीन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए डॉ.अंबेडकर ने पत्रकारिता के जगत में पदार्पण किया. अपने जीवन काल में उन्होंने पांच पत्रिकाओं का संपादन किया. एक सदी पूर्व 31 जनवरी 1920 को प्रथम साप्ताहिक ‘मूकनायक’ मराठी पत्रिका का प्रकाशन किया है. उस समय डॉ. अंबेडकर की आयु 29 वर्ष की थी. इस पत्रिका के प्रकाशन के लिए साहू महाराज के द्वारा 2500 रुपए की धनराशि दी गई थी. सन् 1920 से सन् 1956 तक 36 साल पत्रकारिता करते रहे. इन 36 वर्षों में’ मूकनायक’ (31 जनवरी 1920) के अतिरिक्त चार अन्य पत्रिकाओं- ‘ बहिष्कृत भारत’ (3 अप्रैल 1924), ‘ समता’ (29 जून 1928) ,’जनता’ (24 फरवरी 1930) और अंतिम समाचार पत्र ‘प्रबुद्ध भारत ‘ (4 फरवरी 1956) का संपादन किया. ‘प्रबुद्ध भारत’ बंद हो चुका था. परंतु डॉ. अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर ने 10 मई 2017 को ’ प्रबुद्ध भारत’ का पाक्षिक के रूप में पहला अंक (प्रवेशांक) प्रकाशित किया. उनका मानना था कि शिक्षित वर्ग मूक दर्शक वर्ग को जिसकी संख्या बहुत ज्यादा है प्रेरणा का स्रोत हो सकता है. इसलिए मराठी भाषा में पांच समाचार पत्रों- साप्ताहिक ‘मूकनायक’, ‘बहिष्कृत भारत’, ‘ समता’ , ‘जनता’ व ‘प्रबुद्ध भारत’ का प्रकाशन किया .
इन समाचार पत्रिकाओं के माध्यम से डॉ.अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों और समाज के हाशिए पर रहने वाली अन्य जातियों में जागरूकता पैदा की .उन्होंने दलित वर्ग की समस्याओं के संबंध में निरंतर लेख लिखे.’ बहिष्कृत भारत’ का संपादकीय पृष्ठ वे स्वयं लिखते थे . ‘ बहिष्कृत भारत’ के एक संपादकीय में उन्होंने लिखा कि यदि बाल गंगाधर तिलक दलित वर्ग में पैदा होते तो “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” के उद्घोष की अपेक्षा” छुआछूत का उन्मूलन मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है” का नारा लगाते.
बाबासाहेब के विचार वर्तमान संदर्भ में बिल्कुल तर्कसंगत और अति महत्वपूर्ण है. भारत में पूंजीपति वर्ग का प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पूरा नियंत्रण है.परिणाम स्वरूप पत्रकारिता और पत्रकार दोनों ही अपना कार्य समाज के हित में नहीं कर रहे हैं. वर्तमान शताब्दी में प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दलितों ,आदिवासियों तथा माइनिरोटिज विरूद्ध है. इसके बावजूद भी स्वतंत्र विचार रखने वाले मीडिया कर्मियों के साथ राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों एवं पुलिस के द्वारा अमानवीय व्यवहार किया जाता है. वास्तव में यह स्वतंत्र विचारों पर कुठाराघात है .हम भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहते हैं. लोकतंत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संकेतक प्रेस की स्वतंत्रता है. प्रेस की स्वतंत्रता के दृष्टिकोण से वर्ल्ड प्रेस इंडेक्स रिपोर्ट(2021) के अनुसार 180 देशों की सूची में भारत का 142 स्थान है.यह भारतीय लोकतंत्र का यह भारतीय लोकतंत्र का कृष्ण पक्ष है.
राष्ट्रीय मीडिया : दलित वर्ग की भागीदारी
वर्तमान समय में राष्ट्रीय मीडिया में दलित वर्ग की भागीदारी 1% से भी कम है और यह दलित वर्ग की समस्याओं को नहीं उठाता. डॉ.अंबेडकर के चिंतन से प्रभावित होकर वर्तमान समय में दलित वर्ग के प्रबुद्ध लोगों ने दलित वर्ग की आवाज को उठाने के लिए वैकल्पिक प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया — समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं चैनलों का संचालन किया. इस समय लगभग 150 प्रिंट और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म हैं,–यूट्यूब चैनल — दलित दस्तक, नेशनल दस्तक, राउंड टेबल इंडिया, फ़ॉरवर्ड प्रेस, जस्टिस न्यूज़, वेलिवडा, दलित कैमरा, दलित न्यूज़ नेटवर्क (डीएनएन) शामिल हैं. अनुसूचित जाति और समाज के हाशिए पर रहने वाले अन्य समूहों से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत चर्चा करते हैं.वैकल्पिक प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया“आवाज रहित वर्ग” की आवाज को सरकार तक पहुंचाते हैं और दलित वर्ग में चेतना उत्पन्न कर रहे हैं.
(विशेष टिप्पणी :14 अप्रैल 2024 को डॉ भीमराव अंबेडकर के जन्मोत्सव पर आयोजित विचार संगोष्ठी में प्रस्तुत भाषण का सार. इस अवसर पर मुझे ‘अंबेडकर रत्न सम्मान’ से अलंकृत किया गया. मैं अंबेडकर भवन व जन कल्याण समिति के पूर्व अध्यक्ष डॉ. बलबीर सिंह, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल व वर्तमान समस्त कार्यकारिणी के प्रति आभार प्राप्त करता हूं.)