क्या राहुल गांधी ने ओ बी सी का अपमान किया ?

राहुल गांधी

(समाज वीकली)

– विद्या भूषण रावत

सूरत की एक निचली अदालत ने कर्नाटक के कोलार मे आम चुनावों के दौरान राहुल गांधी की एक स्पीच को मानहानि वाला मानकर उन्हे दो वर्ष की सजा सुनाई है। हालांकि कोर्ट ने उन्हे ऊपर अदालत मे मामला दायर करने की अनुमति दे दी है लेकिन इससे बहुत से सवाल खड़े हो गए हैं जिन्हे स्वयं राहुल गांधी लगातार कई वर्षों से उठा रहे हैं और जिनके फलस्वरूप सत्ताधारी उन पर हर प्रकार के हमले कर रहे हैं। चौबीस घंटे से कम समय के अंदर ही लोक सभा सचिवालय ने राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म कर दी जबकि खुद गुजरात की अदालत ने उन्हे 30 दिन मे इस फैसले के विरुद्ध बड़ी अदालत मे जाने की छूट दी थी। एक और महत्वपूर्ण बात है कि इन निर्णयों के विरुद्ध अभी भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मे भी जाया जा सकता है, हालांकि जिस तरीके से सरकार ने न्यायालयों पर शिकंजा कसा है वो अभूतपूर्व है और राहुल गांधी को आसानी से राहत मिल जाए ये शायद ही संभव हो हालांकि उनके पास भी बड़े बड़े वकीलों का समूह है। कुल मिलाकर, ये बात अब साबित हो चुकी है कि भारत का वर्तमान सत्ता तंत्र जिसे पप्पू समझ रहा था वो ही उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। जिस जल्दबाजी मे राहुल गांधी की संसद सदस्यता समाप्त की गई है वह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास मे एक बड़ा दाग है। ये उस दौर की याद भी दिलाता था जब उनकी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी को चिकमंगलूर से चुनाव जीतने के बावजूद भी संसद मे नहीं आने दिया गया। ये बात और है कि इंदिराजी ने संघर्ष किया और 1980 मे उनकी वापसी भारतीय राजनीति मे सबसे बड़ा कम बैक था।

राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा ने असीमित लोकप्रियता पायी। देश भर के विभिन्न भागों के लोग उनसे गले मिले। एक ऐसा समाज जहा लोगों एक दूसरे से छूने से बचने के लिए दूर से ही ‘प्रणाम’ कर कट लेते हैं वहा एक नेता जनता से इतने दिल से मिल रहा था और लोग भी अपने दर्द और चिंताए उससे गले मिलकर दूर कर रहे थे। मुझे नहीं पता कि कितने नेता ऐसे हैं जो आज कि स्थिति मे ऐसा कर सकते हैं। भाजपा के आई टी सेल ने राहुल गांधी को बदनाम करने की पूरी कोशिश की। उनके वीडियोज़ को कट पेस्ट कर उनकी छवि को खत्म करने मे खुद राहुल गांधी के, करोड़ों रूपेये खर्च हुए हैं।

अभी कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने अपनी लंदन यात्रा के दौरान विभिन्न मंचों पर ये बात खुल कर कही थी कि भारत मे लोकतंत्र की स्थिति गंभीर है क्योंकि लोकतान्त्रिक संस्थाओ पर आर एस एस का कब्जा हो चुका है और ये संस्थाये अब बहुत निष्पक्षता के साथ काम नहीं कर रही हैं। उन्होंने मीडिया, चुनाव आयोग और न्यायपालिका का नाम भी लिया।

लंदन से भारत लौटने पर भारत की संसद एक भी दिन काम नहीं कर पाई क्योंकि सत्ताधारी दल के सांसद उनसे माफी मंगवाना चाहते हैं। संसद के इतिहास मे यह पहली बार हुआ है कि किसी सदस्य के सदन के बाहर दिए गए बयान पर माफी की बात हो रही है। दूसरे, विदेशों मे जाकर देश की अंदरूनी राजनीति के विषय मे चर्चा करने की शुरुआत तो सबसे पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कही। अमेरिका मे तो उन्होंने ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ जैसे मुद्दे उछलकर विदेश मंत्रालय की फजीहत करवा दी क्योंकि ये खुले तौर पर एक दूसरे राष्ट्र का अमेरिका की अंदरूनी राजनीति मे हस्तक्षेप का प्रयास है लेकिन अमेरिका ने इस पर कोई बहुत बड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी। वैसे देश मे सत्तर वर्षों मे कुछ भी नहीं हुआ और नेहरू सरनेम लगाने मे ‘शर्म’ कैसी। वैसे 2010 के बाद से जब अन्ना आंदोलन की धूम पूरे देश मे मची तो संघ और हिन्दुत्व की ट्रोल सेना के निशाने पर सबसे ज्यादा सोनिया गांधी और जवाहर लाल नेहरू थे। सोनिया गांधी के इतालवी मूल को लेकर, उनकी हिन्दी को लेकर इतने भद्दे मज़ाक उड़ाये गए कि यदि काँग्रेस पार्टी उसके खिलाफ न्यायालय मे जाती तो शायद कुछ लोगों पर कार्यवाही हो सकती है। इतिहास को जिस बेरहमी और बेशर्मी से प्रस्तुत किया जा रहा है वो ये दिखा रहा है कि देश मे अभी किस प्रकार की स्थिति पैदा हो गई है।

भाजपा और आर एस एस कभी भी राहुल गांधी को गंभीरता से नहीं लेते थे। अभी भी लंदन मे राहुल गांधी के वक्तव्यों के बाद से ही जब सरकार ने संसद ठप्प कर दी तो बहुत से नेताओ ने जिसमे ममता बनर्जी और अखिलेश यादव भी शामिल है, ने ये ‘महसूस’ किया कि राहुल गांधी को जानबूझकर ‘विपक्ष’ का चेहरा बनाया जा रहा है ताकि मोदी 2024 का चुनाव बिना किसी मेहनत के जीत जाएँ। क्या ममता और अखिलेश इतनी क्षमता रखते हैं कि भाजपा कभी सत्ता मे न आए। अखिलेश बीच मे ठीक हुए थे लेकिन अब वह पूरी तरह से मुलायम वाली राजनीति कर रहे हैं और मुलायम ने अपने जीवन काल मे इतने बड़े ब्लन्डर किए हैं कि सामाजिक न्याय की राजनीति तो उनसे बहुत दूर हो गई थी और कुल मिलकर संघ परिवार को ही उसका लाभ हुआ। ममता तो एन डी ए का हिस्सा रही हैं। दरअसल क्षेत्रीय पार्टियों को लगता है कि काँग्रेस के दोबारा खड़े होने से उनके दलित, आदिवासी और मुस्लिम वोट पर सेंध लग सकती है इसीलिए उन्हे आज भी भाजपा से अधिक काँग्रेस से ज्यादा खतरा नजर आता है।

उत्तर भारत मे ‘बहुजन विमर्श’ के अधिकांश ‘विशेषज्ञ’ दक्षिण या पूरब की क्षेत्रीय पार्टियों को ‘दलित पिछड़ो’ की पार्टिया समझते हैं लेकिन हकीकत ये है कि तमिलनाडु की डी एम के को छोड़ दे तो दक्षिण की किसी भी क्षेत्रीय पार्टी का रिकार्ड आरक्षण या दलित-आदिवासी प्रश्न पर काँग्रेस से बेहतरीन नहीं है। दक्षिण मे काँग्रेस ने बड़ी संख्या मे इन समुदायों से नेता दिए हैं। चाहे देवेगोंडा का जनता दल हो या के सी आर की टी आर एस अथवा एन टी आर की तेलुगु देशम अथवा जगन रेड्डी की पार्टी, सभी का मुख्य बेस ताकतवर जातिया हैं और ओ बी सी का सवाल या दलितों का सवाल कभी भी उनके अजेंडे मे नहीं रहा है। तमिलनाडु मे डी एम के क्योंकि पेरियार के आंदोलन से उपजी पार्टी रही है इसलिए आरक्षण, प्रतिनिधित्व और पिछड़े वर्ग के हितों का प्रश्न उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

अभी बी जे पी ये बताने की कोशिश कर रही है कि राहुल गांधी ने ‘तेली’ समुदाय या पिछड़े वर्ग का अपमान किया है लेकिन क्या ये बात सही है। चुनावी रैली मे यदि पुराने भाषणों को निकाला जाए तो मोदी, शाह, नड़ड़ा, योगी आदित्यनाथ, हेमंत विश्वास शर्मा और ऐसे अनेकों नेता मिल जाएंगे कि जिनके भाषणों की ईमानदारी से जांच करने पर वे उसी सजा के हकदार बन सकते हैं जिसकी सजा राहुल गांधी को दी गई है। इसमे कोई शक की बात नहीं कि राहुल गांधी का बयाने अंदाज बहुत आक्रामक है लेकिन जिस व्यक्ति को पप्पू कहकर मज़ाक उड़ाया जा रहा था आज उसे मोदी सरकार सबसे बड़ा खतरा क्यों मान रही है। क्या ये केवल नूरा कुश्ती वाला मामला है या राहुल अब उस स्टेज मे पहुँच चुके हैं जहा देश की जनता केवल उन्ही मे मोदी का मुकाबला ढूंढ रही है।

राहुल गांधी के विषय मे लोकसभा सचिवालय ने जो तेजी दिखाई वो अभूतपूर्व है। दूसरे ये, क्या जो उन्होंने कहा वाकई मे आपराधिक है और तीसरे ये कि क्या हमारे देश मे न्याय प्रक्रिया अब्जेक्टिव है या सब्जेक्टिव है और निर्भर करता है के कौन सा जज मामला सुन रहा है। हकीकत ये है कि राहुल के विरुद्ध लगाए गए आरोप ही पूरी तरीके से हास्यास्पद और स्कैन्डल वाले हैं। लेकिन भाजपा और संघ परिवार के लोगों को अफवाह फैलाने, फर्जी खबरों को असली बनाने की महारत हासिल है। राहुल ने क्या कहा। कर्नाटक के कोलार मे 13 अप्रेल 2019 मे चुनाव सभा मे दिए गए भाषण मे उन्होंने कहा, ‘’क्यों सभी चोरों का समान सरनेम मोदी ही होता है? चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो या नरेंद्र मोदी? सारे चोरों के नाम में मोदी क्यों जुड़ा हुआ है।’ गुजरात के भाजपा के एक नेता पुरनेश मोदी ने उन पर आपराधिक अवमानना का मुकदमा किया। बीच मे उन्होंने हाई कोर्ट जाकर केस वापस भी लिया और दोबारा से उसे दायर किया और फिर जज ने सीधे इस सिलसिले मे सबसे बड़ी सजा सुना दी।

कोई भी ब्यक्ति ये जनता है कि राजनीतिक गर्माहट मे नेता अक्सर ऐसी भाषा बोलते हैं। मुझे नहीं लगता कि धमकी, नफरत ओर घृणा की भाषा बोलने मे भाजपा और आर एस एस से अधिक कोई और हो सकता है लेकिन ऐसे सभी लोग ‘आदरणीय’ हो गए हैं। देश मे लोकतंत्र का हाल यह है के लोगों को खुली धमकी देने वाले संसद मे है। प्रज्ञा ठाकुर जेल जाकर भी आदरणीय है। कपिल मिश्र खुली धमकी के बाद पार्टी मे हैं। प्रधानमंत्री जी ने तो इन सभी सीमाओ को हर मंच पर तोड़ा है। अमित शाह ने गांधी को चतुर बनिया कहा लेकिन कोई बनिआ कोर्ट नहीं गया। अब भाजपा राहुल गांधी के इस बयान को लेकर कह रही है के राहुल ने ओ बी सी का अपमान किया। क्या नीरव मोदी, मेहुल चॉसकी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी पर बात करना ओ बी सी का अपमान है। हमारे न्यायलय को देखना पड़ेगा कि क्यों उसके निर्णयों मे इतना अंतर दिखाई दे रहा है। गुजरात दंगों के सभी आरोपी राजनीति मे सफलताओ की तमाम सीढ़ियों को लांघ चुके हैं। बाबरी मस्जिद ध्वंस के आरोप मे कल्याण सिंह को मात्र एक दिन की सजा हुई। बाबरी ध्वंस के गुनहगार सत्ता के मजे लेकर अब मार्गदर्शक मण्डल मे जा चुके हैं। किसी को भी एक दिन की सजा नहीं हुई।

आज राहुल गांधी अहिंसात्मक लोकतान्त्रिक प्रतिरोध का सबसे बड़ा प्रतीक बन गए हैं। वह राजनीतिक तौर पर कितना सफल होते हैं या नहीं ये तो भविष्य के गर्त मे है लेकिन जब भी फासीवादी, सत्तावादी शक्तियों का लोकतान्त्रिक प्रतिरोध की बात आएगी तो राहुल गांधी का नाम सबसे ऊपर होगा। पिछड़े वर्ग के नेता और बुद्धिजीवी भी समझे के भले ही राहुल गांधी ने उनके लिए कोई विशेष काम न किया हो लेकिन भाजपा द्वारा उनके बयान को पिछड़ा विरोधी साबित करने के प्रयास करना बेहद ही छोटे दर्जे की राजनीति है। भाजपा का दलित पिछड़ा प्रेम राहुल के बयान से अधिक उन समुदायों के लिए काम से होना चाहिए। पिछले 10 वर्षों मे पब्लिक सेक्टर से लेकर सरकारी तंत्र हर जगह दलित पिछड़ो के अधिकारों पर हमला हुआ है और आरक्षण समाप्त कर दिया गया है इसलिए नीरव मोदी और ललित मोदी के भ्रस्टाचार पर हमला को पिछड़ी जातियों के हितों पर हमला बताने का प्रयास न केवल घृणित है और लोग इसे अच्छे से समझते हैं और समय आने पर ऐसे राजनीति को पूरी तरह से नकार देंगे।

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