पिता जी के नही होने का अहसास ही नही होने दिया happy Father’s day

(समाज वीकली)

मेरे जीवन के संघर्ष का एक छोटा सा हिस्सा जो मुझे स्वाभिमान से जीना व संघर्ष करना सिखाता है

जुलाई 1996 स्कूल खुले ही थे, मैंने कक्षा 5वी से कक्षा 6 में प्रेवश लिया था. अंग्रेजी में ABCD सीखने के लिए 1 छोटा कायदा घर वालो ने दिलाया था बहुत खुशी हो रही थी कि अब स्कूल में जाकर अंग्रेजी बोलने लगेगें. घर वाले जबर्दस्ती भी स्कूल भजेते थे लेकिन अब कई दिनों से बहुत तेज बारिश हो रही थी कपड़े का सिला हुआ एक बैग और बारिश में भीगने से बचने के लिय प्लास्टिक के कट्टे को ओढ़ कर स्कूल गया, लेकिन वहाँ पर शिक्षक नही आने के कारण 2 घण्टे बाद जब घर पर आया तो घर पर कोई नही मिला पता लगा माँ, भाई व बहन सभी एक बटाई पर खेत लिया हुआ था वहाँ पर गये हुये है जो हमने 1/6 हिस्से (यानी जब 6 रुपये की कोई सब्जी बिकेगी तक 1 हिस्सा हमारा होगा 5 उसके) में लिया हुआ था जिसमे सब्जियों उगाई हुई थी परिवार के पास इसके अलावा कोई दूसरा कमाई का जरिया भी नही था. मैं भी वहां पर भीगता हुआ लग भग दिन के 2 बजे पहुँच गया और बारिश बहुत तेज होने लगी अब हम सभी बारिश से बचने के लिय सरकी में बैठ गये. (सरकी उसको कहते हैं जब एक बड़ी खाट के ऊपर पाइप लगाकर छप्पर डाल लेते हैं) आज बारिश रुकने का नाम नही ले रही थी, हम सभी बहुत समय तक उसी में बैठे रहे शाम को करीब 6 बजे 1 व्यक्ति गाँव से हमारे पास पहुँचा और बोला आप घर चलो मेरी माँ ने बहुत पूछा क्या हुआ तो उसने बताने से मना कर दिया और कहा कि वही पर बता देंगे हम घबराये हुए जब घर पर आये तो देख की सब कुछ हमारा बारिश के कारण बर्बाद हो गया रहने के लिय एक छप्पर था और अनाज भरने के लिए एक मिट्टी की कोठी जिसमे खाने के लिय अनाज भरते थे, सब कुछ बारिश के कारण तहस नहस होकर गया कुछ भी नही बचा सब ढह गया हम सभी एक दूसरे के साथ लिपट कर रो रहे थे और सोच रहे थे कि अब क्या करे आज खाना कहा खायेगे और सोयेगे कहा पूरा गांव इकट्ठा हो गया सभी हमे बेचारे बेबस और लाचार कह रहे थे क्योंकि हमारे पास अब कुछ भी नही था ना तो जमीन थी ना ही रहने के लिय घर लेकिन माँ ने बड़ी हिम्मत से सभी को जवाब दिया कि सब कुछ सही हो जायेगा. आज ही कि तो बात है, उसी दिन रात को पड़ोस में 200 रुपये महीने का किराये का मकान लिया और जो भीगे हुऐ कपड़े जमीन में से निकले कुछ बर्तन भी मिट्टी के ढेर से निकाले तथा बाजार से आटा और अन्य समान उधार लेकर माँ ने सभी को 11 रात बजे खाना खिलाया और हम रात भर जागे की सुबह क्या करेंगे कैसे करेंगे. सुबह हुई तो गाँव के सरपंच और अन्य पैसे से सम्पन्न लोग इक्कठा हो रहे थे तथा चर्चा कर रहे थे कि ये लड़की गांव की गरीब लड़की है इसके 5 बच्चे हैं अब इनके पास कुछ भी नही है सभी गांव वाले चंदा दो और इनके लिए कुछ खाने पीने का सामान और 1 मकान बनवाते है, जब ये चर्चा माँ के पास गई तो माँ ने सभी को स्पस्ट जबाव दिया कि मुझे किसी की हेल्प की आवश्यकता नही है, मैं अपने बच्चों को स्वंय मेहनत मजदूरी करने पाल लूंगी किसी का कोई एहसान नही चाहिए. कल जब मेरे बच्चे बड़े होंगे तो लोग इनको बोलने भी नही देंगे और सम्मान से जीने भी नही देगे उसी समय सभी को अपने अपने घर भेज दिया और माँ हमारे रहने व खाने की व्यवस्था करने में व्यस्त हो गई.

एडवोकेट रामजीवन बौद्ध
9982582374

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