डॉ.रामजीलाल,
सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा -भारत)
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(समाज वीकली)- दुनिया में महिलाओं की आबादी लगभग पुरुषों के बराबर है. वास्तविक लोकतंत्र तब तक स्थापित नहीं हो सकता जब तक महिलाओं को सभी क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर प्रतिनिधित्व न मिले. महिलाओं के प्रतिनिधित्व के चलते न सिर्फ महिलाओं से जुड़े मुद्दों बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हित के मुद्दों पर भी चर्चा होगी. महिलाएं मूकदर्शक नहीं रहेंगी.बल्कि कानून-निर्माण, नीति-निर्माण और उनके कार्यान्वयन में सक्रिय भूमिका निभाएंगी. परिणामस्वरूप सहभागी लोकतंत्र की स्थापना होगी. महिलाओं की भागीदारी के बिना पूरे देश का विकास संभव नहीं है.यही कारण है कि पिछली शताब्दी के सन्1970 के दशक में विश्व संसदों में जैंडर कोटा प्रणाली को अपनाया गया था. उस दशक में, केवल 5 देशों में जैंडर कोटा था. धीरे-धीरे सन्1995 तक विभिन्न देशों की संसदों में महिला प्रतिनिधियों की संख्या बढ़कर 11.3 प्रतिशत हो गई. सन् 1997 में विभिन्न देशों की राष्ट्रीय संसदों में कुल सांसदों की संख्या का 11.7% महिलाएं थी.इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन-1 पीयू के अनुसार दिसंबर 2009 में विश्व में महिला सांसदों की संख्या कुल सांसदों की संख्या का 18 . 8% हो गयी. वैश्विक 30 अक्टूबर 2015 तक, विभिन्न देशों में सांसदों की कुल संख्या 46,552 थी और इनमें से केवल 8716 महिलाएँ थीं, जो कुल सांसदों की संख्या का 19.5% था.सन् 2023 में वैश्विक संसदीय रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक सांसदों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़कर 26.5% हो गया.अथार्त सन्1995 से सन्2023 तक 28 वर्षों की अवधि में 15.2% की वृद्धि हुई है.यह कोई चमत्कार नहीं है.
इसके बावजूद सबसे ज्यादा बढ़ोतरी अमेरिकी क्षेत्र के राज्यों में हुई, जहां सन्1995 में महिला सांसदों की कुल संख्या 12.7% थी, जो सन्2023 तक बढ़कर 34.9% हो गई. लेकिन सन् 2023 तक यूरोपीय देशों में यह 13.2% से बढ़कर 31% हो गई. अन्य शब्दों में , 28 साल की अवधि में लगभग 18% की वृद्धि हुई है. अंतर -संसदीय संघ द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार यदि महिलाओं के प्रतिनिधित्व की प्रगति दर इसी तरह बढ़ती रही तो वर्ष 2063 में लैंगिक समानता हासिल की जा सकती है, दूसरे शब्दों में, लैंगिक समानता का लक्ष्य हासिल करने में अभी 40 साल बाकी हैं.
महिलाओं की सबसे बड़ी हिस्सेदारी वाली राष्ट्रीय संसद
क्रमांक देश महिला%
1 रवांडा – 61.3%
2 क्यूबा – 53.4%
3 निकारागुआ – 50.6%
4 मैक्सिको – 50%
5 यूएई – 50%
6 न्यूजीलैंड – 49.2%
7 आइसलैंड – 47.6%
टेबल 1
(स्रोत: statista.com/statistics)
स्टेटिस्टा रिसर्च डिपार्टमेंट, ( 23 जनवरी 2023) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार महिलाओं की सबसे बड़ी हिस्सेदारी वाली राष्ट्रीय राष्ट्रीय संसद (निचला सदन या एक सदनीय संसद ) में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के संबंध में 61.3% के साथ रवांडा दुनिया में शीर्ष स्थान पर है. उसके बाद क्यूबा (53.4%), निकारागुआ (50.6%), मैक्सिको (50%), यूएई (50%), न्यूजीलैंड (49.2%) तथा आइसलैंड (47.6%) का नंबर आता है. यूरोपियन देशों में 47.6% के साथ आइसलैंड उच्चतम स्थान पर है .विश्व में लोकतंत्र के ‘स्वयंभू संरक्षक’ अमेरिका के निचले सदन (प्रतिनिधि सभा) में अक्टूबर 2023 केआंकड़ों के अनुसार केवल 28. 9% तथा दूसरे सदन (सीनेट) में 24.2% महिला प्रतिनिधि हैं. परिणाम स्वरूप मासिक विश्व ऱिपोर्ट (अक्तूबर 2023) के अनुसार अमेरिका 185 देश की सूची में 69 वें स्थान पर है.
यद्यपि भारत को विश्व का सबसे ‘बड़ा लोकतंत्र”व‘लोकतंत्र की जननी’ हैं.भारत की संसद(लोकसभा और राज्यसभा) में साढ़े सात दशकों में 25 मुस्लिम महिला सांसदों सहित लगभग 690 महिलाएं सांसद बनी हैं. सन् 2014 में 16वीं लोकसभा के चुनाव में 66 महिलाएं निर्वाचित हई जो कि कुल संख्या का लगभग 12.6% है.विश्व रैंकिंग में महिला प्रतिनिधित्व के संबंध में सन् 2014 में 193 देशों की सूची में भारत का 149 वा स्थान था.सन् 2019 के लोकसभा के चुनाव में 78 महिलाएं निर्वाचित हुई. यह संख्या कुल सांसदों की संख्या का 14.6 प्रतिशत है.वैश्विक रैंकिंग में भारत का स्थान 148 वां है और हम चीन, नेपाल व पाकिस्तान से भी पीछे हैं.
सन् 1952 से लेकर सन् 2020 तक 70 वर्षों के अंतराल में भारतीय राज्यसभा में निर्वाचित और मनोनीत महिला सांसदों की कुल संख्या 208 रही है. भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत में सांसदों और विधायकों की कुल संख्या 4896 है .इनमें महिलाएं केवल 418 (9%) हैं .वास्तव में आधी आबादी का केवल 9% कोई शुभ संकेत नहीं है. यही कारण है कि भारत में काफी लंबे समय से महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व संवैधानिक उपबंधों के द्वारा जेंडर कोटा निर्धारित करने के लिए संघर्ष जारी है. संवैधानिक अधिनियम 2023 के अनुसार अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के वर्गों की महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में 33 परसेंट आरक्षण की व्यवस्था की गई है .परंतु ओबीसी वर्ग की महिलाओं के लिए भी आरक्षित कोटा निर्धारित करने की मांग जारी है. नारीवादी चिंतकों का कहना है कि महिलाओं के लिए विधानसभा और संसद में 50 परसेंट कोटा निर्धारित किया जाए.
वैश्विक स्तर पर ससदों के महिला अध्यक्षों की संख्या में वृद्धि
आईपीयू के नवीनतम संस्करण के अनुसार महिला सांसदों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ राष्ट्रीय संसदों के महिला अध्यक्षों के संख्या में भी वृद्धि हुई है. वैश्विक मानचित्र आईपीयू के अनुसार सन् 2021 में संसदों के महिला अध्यक्षों की संख्या 20 ,9% से बढ़कर इस समय 22 , 7% हो गई है. अन्य शब्दों में आईपीयू पार्लाइन के अनुसार विश्व की 191ससदों में से केवल 42 संसदों के अध्यक्ष महिलाएं हैं और 149सासदों के अध्यक्ष पुरुष हैं. भारत में सन् 1951 -52 से लेकर आज तक केवल दो महिलाएं लोकसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) रही हैं. श्रीमती मीरा कुमार भारतीय लोकसभा की प्रथम स्पीकर( सन् 2009 से सन् 2014 तक) तथा श्रीमती सुमित्रा महाजन दूसरी महिला स्पीकर ( सन् 2014 से सन् 2019 तक) के पद पर आसीन रही हैं. अतः भारत में भी लोकसभा की अध्यक्षता के संबंध में बहुत अधिक जेंडर गैप स्पष्ट दिखाई देता है.
वैश्विक स्तर पर महिलाओं के लिए राष्ट्रीय संसदों में आरक्षित कोटा
विश्व के लगभग 100 देशों में इस समय महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए किसी ने किसी प्रकार का कोटा निर्धारित किया गया है .जिन देशों में कोटा निर्धारित नहीं है वहां महिलाओं की ससदों में भागीदारी उन देशों की अपेक्षा कम है, जहां कोटा सिस्टम है.
महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए कोटा सिस्टम के तीन सिद्धांत विभिन्न देशों में प्रचलित हैं .
प्रथम,, कई देशों में राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं के लिए स्वैच्छिक कोटा निर्धारित किया गया है. इन देशों में सर्वाधिक कोटा देने वाले देशों में स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, आइसलैंड, नीदरलैंड, नॉर्वे आदि उल्लेखनीय हैं. द्वितीय, संवैधानिक प्रावधानों पर आधारित कोटा के आधार पर रवांडा और अर्जेंटीना उल्लेखनीय देश हैं. तृतीय, कोस्टा रिका अंगोला और बांग्लादेश उन राज्यों में उल्लेखनीय हैं जिन्होंने चुनावी कानूनों के आधार पर महिलाओं को कोटा दिया है. चतुर्थ, वे देश जिनमें न तो राजनीतिक दलों का स्वैच्छिक कोटा है, न संवैधानिक प्रावधानों पर आधारित कोटा है, न ही चुनावी अधिनियमों पर आधारित कोटा है, इन राज्यों में 11 राज्य ऐसे हैं जिनमें महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति अच्छी दिख रही है. इन देशों में क्यूबा, सेनेगल, डेनमार्क, स्पेन, जर्मनी, चीन, इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, भारत, आदि देशों के नाम उल्लेखनीय हैं.
हम सुधी पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल व बांग्लादेश में भी कोटा प्रणाली है. पाकिस्तान में महिलाओं के लिए राष्ट्रीय विधायिका में आरक्षण 20 शताब्दी के 1950 के दशक में प्रारंभ हो चुका था और इस समय 20% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. नेपाल में संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर प्रतिनिधि सभा में महिलाओं के लिए 33.9 फीसदी सीटें आरक्षित हैं. बांग्लादेश की जातीय संसद (राष्ट्रीय विधायिका )में कुल 350 सीटों में से 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं . अफगानिस्तान जो पिछली शताब्दी से तालिबानी आतंकवाद से जूझ रहा है वहां की राष्ट्रीय विधायिका में भी महिलाओं के लिए सन् 2021 के आंकड़ों के अनुसार 27% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. लेकिन चीन में महिलाओं के लिए किसी भी तरह का कोई कोटा नहीं है.
वैश्विक मंत्रिमंडल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व
देश मंत्रिमंडल में % महिलाएँ
1. अल्बानिया – 66.7
2.फिनलैंड – 64.3
3.स्पेन – 63.6
4.निकारागुआ – 62.5
5.लिकटेंस्टाइन – 60.0
6.चिली – 58.3
7.बेल्जियम – 57.1
8.मोज़ाम्बिक – 55.0
9.अंडोरा, कोलंबिया, जर्मनी, नीदरलैंड, नॉर्वे – 50.0
टेबल 2
उपरोक्त टेबल से स्पष्ट होता है कि कार्यपालिका के स्तर पर भी महिलाओं के प्रतिनिधित्व में वृद्धि हो रही है.आईपयू -यून महिला मानचित्रके नवीनतम संस्करण(7 मार्च 2023) के अनुसार 1 जनवरी 2023 तक 151 देश(17 राजतंत्र प्रणालियों को छोड़कर) 11 .3 प्रतिशत देशों में महिलाएं राष्ट्रीय प्रमुख है तथा 9.8 प्रतिशत देशों में महिला शासन प्रमुख है.एक दशक पूर्व राष्ट्रीय महिला प्रमुखों की संख्या केवल 5.3% और शासन प्रमुख महिलाएं 7.3% थी.महिलाओं के प्रतिनिधित्व के संबंध में यूरोपियन देश अग्रणीय भूमिका निभा रहे हैं.यूरोप के विभिन्न देशों में इस समय 16 महिलाएं नेतृत्व कर रही है . 1 जनवरी 2023 की रिपोर्ट के अनुसार नीति निर्माण करने वाले कैबिनेट सदस्यों में 22.8 प्रतिशत महिलाएं नेतृत्व करती हैं .कैबिनेट में 50% अथवा अधिक महिलाओं की संख्या वाले देशो में अल्बानिया ( 66.7%), फिनलैंड ( 64.3%) स्पेन (63.6%),निकारगुआ (62.5%), लिकटेंस्टाइन (60% ),चिली 58.3 %),बेल्जियम(57.1%) इत्यादि देश हैं.परंतु यूरोप व उत्तरी अमेरिका के क्षेत्र में कैबिनेट में 31.6%,लैटिन अमेरिका और कैरीबाई में 30 .1 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है. वैश्विक स्तर पर 17 अतिरिक्त देशो में कैबिनेट मंत्रियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 40 से 49.9 प्रतिशत के बीच है, अधिकांश ओशिनिया और पश्चिमी एशिया देशों में मंत्रालयों का नेतृत्व करने वाली कोई महिला कैबिनेट सदस्य नहीं है. भारतवर्ष की भाजपा नीत एनडीए मंत्रिपरिषद में 77 मंत्रियों में सिर्फ 11 महिलाएं हैं. अन्य शब्दों में ,11 मंत्रियों में से केवल एक महिला मंत्री है
प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर आर्थिक, न्याय, रक्षा और गृह संबंधी विभागों में पितृसत्तात्मक मानसिकता हावी होने के कारण पुरुषों का वर्चस्व स्थापित है तथा महिलाएं इन क्षेत्रों में राष्ट्रीय मंत्रिमंडलों में बैक फुट पर हैं. महिलाएँ मानवाधिकार, लैंगिक समानता और सामाजिक सुरक्षा विभागों का नेतृत्व करती हैं. यद्यपि कुछ देशों में लैंगिक समानता विद्यमान है ,इसके बावजूद भी वैश्विक स्तर पर मंत्रिमंडलों में महिला प्रतिनिधित्व के संबंध में बहुत अधिक अंतर दृष्टिगोचर होता है.
वैश्विक पटल पर महिलाओं का राजनीतिक संस्थाओं में प्रतिनिधित्व अत्यंत अनिवार्य है ताकि वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना हो सके .महिलाओं का संसद अथवा विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व होने के कारण महिला संबंधी मुद्दों पर संवेदनशील तरीके से विचार विमर्श किया जाएगा तथा आधी आबादी की समस्याओं को समाधान करने में सहायता मिलेगी .परंतु महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के मार्ग में सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक अनेक बाधाएं हैं . समस्त विश्व में सबसे महत्वपूर्ण पितृसत्तात्मक एवं पुरुषों की राज करने की संकीर्ण मानसिकता महिलाओं के मार्ग में सबसे महत्वपूर्ण बाधा है .पितृसत्तात्मक विचारधारा के कारण पुरुषों का वर्चस्व जारी है .इस बाधा को तोड़ने के लिए राजनीतिक चेतना की आवश्यकता है . राजनीतिक चेतना के बिना परिवर्तन करना बहुत अधिक कठिन है ,हमारा अभिमत है कि महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता व राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए एक लंबा सफर तय करना है.