सामयिक मुद्दा
हरियाणा में एडेड कॉलेजों के शिक्षकों और गैर- शिक्षक कर्मचारियों का समायोजन: एक पुनर्मूल्यांकन
डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा- भारत)
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(समाज वीकली)- हरियाणा में उच्च शिक्षा के सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्रों में 61 विश्वविद्यालय हैं. इनमें 8 केंद्रीय विश्वविद्यालय, 22 राज्य विश्वविद्यालय, 2 सार्वजनिक विश्वविद्यालय और 8 डीम्ड विश्वविद्यालय शामिल हैं. जनवरी 2023 तक, यूजीसी अधिसूचना के अनुसार हरियाणा में यूजीसी और एआईसीटीई द्वारा अनुमोदित निजी विश्वविद्यालयों की संख्या 24 है. विशेषज्ञता के दृष्टिकोण से, सामान्य विश्वविद्यालय, तकनीकी विश्वविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय, चिकित्सा विश्वविद्यालय और तकनीकी विश्वविद्यालय, और इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के राज्य संस्थान हैं. हरियाणा में भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय (2006- खानपुर-सोनीपत) उत्तर-पश्चिमी भारत में महिलाओं के लिए पहला विश्वविद्यालय है. इन विश्वविद्यालयों में कला, विज्ञान, वाणिज्य, फैशन डिजाइनिंग, संस्कृत, चिकित्सा, व्यवसाय प्रबंधन, कानून, प्रौद्योगिकी, कृषि शिक्षा, बागवानी, इंजीनियरिंग आदि विशिष्ट विषय पढ़ाए जाते हैं. हरियाणा के सरकारी कॉलेज, सरकारी वित्तीय सहायता प्राप्त गैर-सरकारी कॉलेज और स्व-वित्तपोषित कॉलेज विश्वविद्यालयों से संबद्ध हैं.
कॉलेजों की संख्या व विद्यार्थियों की संख्या:
वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2023-2024 में वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले निजी कॉलेजों की संख्या 97 है कॉलेजों में 1.18 लाख छात्र-छात्राएं हैं . सरकारी कॉलेजों की संख्या 182 है और उनमें 1.33 लाख विद्यार्थियों ने दाखिला लिया. स्ववित्त पोषित कॉलेजों में 35 हजार छात्र-छात्राएं नामांकित हैं.
शैक्षणिक स्तर :
निजी कॉलेजों में शैक्षणिक स्तर सरकारी कॉलेजों की तुलना में बेहतर है. सरकारी सहायता प्राप्त निजी कॉलेजों के शैक्षिक स्तर का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सहायता प्राप्त निजी कॉलेजों की NAAC के मूल्यांकन की रैंकिंग सरकारी कॉलेजों की तुलना में काफी बेहतर है.
सरकार और प्रबंध समितियों के बीच अनबन
सहायता प्राप्त निजी कॉलेज प्रबंधन समितियों या ट्रस्टों द्वारा चलाए जाते हैं . इनमें दयाल सिंह कॉलेज ट्रस्ट सोसायटी, दिल्ली, हिंदू शैक्षिक और धर्मार्थ सोसाइटी, सोनीपत, जाट एजुकेशन सोसाइटी , रोहतक, डीएवी एजुकेशन सोसाइटी, दिल्ली, संतान धर्म (एसडी) एजुकेशन सोसाइटी, दिल्ली, वैश्य एजुकेशन सोसाइटी, रोहतक, टीका राम एजुकेशन सोसाइटी, सोनीपत, एमएलएन एजुकेशन सोसाइटी, यमुनानगर, खालसा एजुकेशन सोसाइटी, यमुनानगर, इत्यादि मुख्य समितियां और ट्रस्ट हैं.
सहायता प्राप्त निजी कॉलेजों को शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के वेतन के लिए सरकार द्वारा 95 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है, जबकि प्रबंधन समितियों द्वारा केवल 5 प्रतिशत पैसा जमा किया जाता है. सरकार और प्रबंध समितियों के बीच बड़ी अनबन चल रही है, जिसके चलते सरकार प्राइवेट कॉलेजों के कर्मचारियों को एडजस्ट करना चाहती है. क्योंकि सरकार का मानना है कि पैसा हमारा है, कर्मचारियों पर आपका नियंत्रण नहीं रहेगा.
अनुदानित निजी कॉलेजों में नियुक्तियों में एकरूपता का अभाव:
अनुदानित निजी कॉलेजों में नियुक्तियों में एकरूपता न होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
पहला, प्रबंधन समितियाँ परिवार, धर्म और जाति के आधार पर चलती हैं. इसलिए यह कारक प्रिंसिपल से चपरासी तक की नियुक्तियों को प्रभावित करते हैं..
दूसरे, सूत्रों के अनुसार शिक्षाविदों का यह भी मानना है कि कई प्रबंधन समितियों के पास 5% फंड भी नहीं है. नतीजा यह है कि ऐसी प्रबंध समितियों व प्राचार्यों द्वारा नियुक्तियों में लाखों रुपये के लेन-देन की अफवाहें फैलती रहती हैं.
तीसरा, विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि – ‘विषय के तथाकथित विशेषज्ञ’ – अपने छात्रों या ज्ञात उम्मीदवारों को समायोजित करने का प्रयास करते हैं. परिणामस्वरूप विश्वविद्यालयों के कथित विशेषज्ञों व प्रबंध समितियों के बीच टकराव के कारण चयन समिति के अध्यक्ष (प्रबंधन प्रतिनिधि) द्वारा साक्षात्कार प्रक्रिया को कैंसिल करना पड़ता है.परिणामस्वरूप नियुक्तियों पर प्रश्न चिन्ह लगता है.
शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों का समायोजन: मुद्दा और राजनीति:
अनुदानित निजी कॉलेजों के स्टाफ के समायोजन का मामला नया नहीं है. इससे पहले भी भारत के कई राज्यों में कॉलेजों के शैक्षणिक और गैर-शिक्षण स्टाफ को सरकारी कॉलेजों में समायोजित किया गया था. हरियाणा में भी 2017 में मनोहर सरकार ने सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों का समायोजन किया था. सरकारी स्कूलों में शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक स्टाफ का समायोजन किया गया. निजी कॉलेजों के कर्मचारियों के समायोजन की प्रक्रिया का उल्लेख भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 2014 के चुनाव घोषणा पत्र में किया गया है. भारतीय जनता पार्टी ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि अगर वह सत्ता में आई तो निजी कॉलेजों के स्टाफ को सरकार समायोजित करेगी. लेकिन 5 साल तक सरकार और बीजेपी इस विषय पर चुप रही. यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया. वर्ष 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर इस मुद्दे को राजनीतिक हवा दे दी
वर्ष 2014 से वर्ष 2023 तक शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक कर्मचारी नेताओं ने विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री से संपर्क कर उन्हें मुख्य मुद्दों से अवगत कराया और कर्मचारियों के समायोजन का दबाव बनाया. दूसरी ओर, विपक्षी दलों ने कर्मचारियों के समायोजन का समर्थन किया और सरकार को यह निर्णय लेने के लिए मजबूर किया. वर्ष 2024 के चुनावों पर नजर रखते हुए हरियाणा सरकार ने प्राइवेट कॉलेजों के स्टाफ को एडजस्ट करने का फैसला लिया है.
शिक्षण एवं गैर-शिक्षण कर्मचारी समायोजन क्यों चाहते हैं?
वर्ष 2019 के चुनाव के बाद अनुदानित महाविद्यालयों के शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के संगठन लगातार 4 वर्षों (2019-नवंबर 2023) से अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं.
मुख्य मांगें:
अनुदानित निजी कॉलेजों के शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की मुख्य मांगें- – मकान का संशोधित किराया, अनुग्रह राशि, नकदीकरण, एनपीएस कर्मचारियों की रिटायरमेंट ग्रेच्युटी, चिकित्सा सुविधाएं, सातवें वेतनमान का लाभ आदि हैं. इतना ही नहीं, बल्कि सरकारी कॉलेजों में समय पर वेतन मिलता है जबकि निजी महाविद्यालयों में वेतन समय पर नहीं मिलता. फिलहाल इन कॉलेजों के कर्मचारियों को पिछले 3 महीने से वेतन नहीं मिला है. यही कारण है कि निजी कॉलेजों में कार्यरत शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मचारी समायोजन के पक्ष में हैं.
समायोजन पर क्या कहता है प्रबंधन?
प्राइवेट एडेड कॉलेज प्रबंधन एसोसिएशन समायोजन के विरोध में है. इस शीर्ष संगठन के प्रमुख पूर्व विधायक तेजवीर सिंह ने सरकार के फैसले का विरोध करते हुए 18 नवंबर 2023 को चंडीगढ़ के प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हरियाणा में सरकारी सहायता प्राप्त 97 कॉलेज ‘शिक्षा की रीढ़’ हैं . सोसायटी और ट्रस्ट द्वारा संचालित सरकारी सहायता प्राप्त निजी 97 कॉलेज सरकारी कॉलेजों की तुलना में ‘बेहतर शिक्षा’ प्रदान कर रहे हैं।. प्रेस को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षकों के समायोजन से लगभग 2 लाख छात्र ‘योग्य और अनुभवी’ शिक्षकों के अनुभव से वंचित हो जायेंगे, जिससे ‘शिक्षा के स्तर’ में गिरावट आएगी. इसलिए शीर्ष संस्था कर्मचारियों के समायोजन का विरोध करती है. हमारा निजी मत है कि सरकार को समायोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि:
1.सरकार की मुश्किलें बढ़ेंगी
इससे स्व-वित्तपोषित निजी कॉलेजों की संख्या में और वृद्धि होगी. ये 97 कॉलेज भी स्ववित्त पोषित कॉलेज भी बनेंगे. इससे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की मुश्किलें बढ़ेंगी.
2.शिक्षा महँगी हो जायेगी
स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों के फलस्वरूप शिक्षा महँगी हो जायेगी. इन कॉलेजों में आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं को शिक्षा नहीं मिल सकेगी. करनाल में एक प्रतिष्ठित नैक (NAAC) ग्रेड ए+ सहायता प्राप्त निजी कॉलेज में स्व-वित्तपोषण पाठ्यक्रमों की फीस निम्नलिखित शुल्क संरचना में परिलक्षित होती है:
श्रेणी (Class) फीस(Fees)
बी.एससी – ₹ 22,970 (प्रथम वर्ष की फीस)
एम.एससी – ₹ 61,870 (प्रथम वर्ष की फीस)
बी.कॉम – ₹ 17,970 (प्रथम वर्ष की फीस)
बीसीए – ₹ 25,290 (प्रथम वर्ष की फीस)
बी० ए – ₹ 10,760 (प्रथम वर्ष की फीस)
एमए – ₹ 8,810 (प्रथम वर्ष की फीस)
3.शोषण को बढ़ावा
इन महाविद्यालयों में शिक्षक व गैर- शिक्षक कर्मचारियों को वेतन पूरा न मिलने के कारण शोषण को बढ़ावा मिलेगा. टीचिंग और गैर- टीचिंग स्टाफ अन्य सुविधाओं से भी वंचित रहेगा. उनका भविष्य सुरक्षित न होने के कारण कभी भी नौकरी से निकाला जा सकता है.ऐसी स्थिति में जिनका अपना भविष्य सुरक्षित नहीं है वह विद्यार्थियों केअच्छे भविष्य का निर्माण कैसे कर सकते हैं? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है
4.आरक्षण नीति को ठेस
इन स्व- पोषित महाविद्यालयों में आरक्षण नीति लागू न होने के कारण पिछड़े वर्गों व अनुसूचित जातियों के योग्यता प्राप्त युवाओं के हितों को ठेस पहुचेगी.
समायोजन की समस्या के समाधान के सुझाव:
सरकारी वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले 97 निजी महाविद्यालयों के शिक्षक और गैर- शिक्षक कर्मचारियों को एडजस्ट करने की अपेक्षा समस्या का समाधान करने लिए निम्नलिखित सुझाव हैं:
पहला, निजी कॉलेजों में समायोजन के लिए मात्र 2932 व शिक्षक 1664 गैर- शिक्षक कर्मचारी हैं, जबकि सरकारी कॉलेजों में 2194 शिक्षक संविदा पर सेवा दे रहे हैं. इनको ‘एक्सटेंशन लेक्चरर’ कहा जाता है. सभी एक्सटेंशन लेक्चरर पक्की नौकरी के लिए योग्यता प्राप्त है. एक्सटेंशन लेक्चरर रखने के लिए विभिन्न समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित किए जाते है और एक पैनल के द्वारा इंटरव्यू के माध्यम से इनका चयन होता है.इनकी सेवाएं 10 वर्षों से अधिक हो चुकी हैं .इनमें से अनेक ओवरऐज भी हो चुके हैं. हमारा अभिमत है कि एक्सटेंशन लेक्चरर का एक ‘सेपरेट काडर’ (Separate Cadre) बनाकर इनको पक्का कर दिया जाए ताकि इनकी ‘एक्सटेंशन की टेंशन’ खत्म हो और इनके भी अमृतकाल में अच्छे दिन आ जाएं. इनको शोषण से मुक्ति मिलेगी तथा इनका भविष्य उज्जवल होगा.
द्वितीय, हरियाणा में 182 (180 डिग्री महाविद्यालय +2 बीएड महाविद्यालय) सरकारी महाविद्यालय हैं. इनमें से 82 पीजी, 63 महिला, 119 सह-शिक्षा महाविद्यालय हैं. हरियाणा के 182 सरकारी महाविद्यालयों में 8137 पद प्रोफेसर के स्वीकृत हैं तथा इनमें से 4738 पद रिक्त हैं.एक साल से अधिक समय से 1535 सहायक प्रोफेसर की भर्ती अटकी हुई है. यदि वित्तीय सहायता प्राप्त निजी महाविद्यालयों से शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों का समायोजन किया गया तो नई भर्ती नहीं होगी.
तृतीय, समायोजन की अपेक्षा सरकारी वित्तीय सहायता प्राप्त निजी कॉलेज के शिक्षकों एवं गैर- शिक्षक कर्मियों को वही सुविधाएं प्रदान की जाएं जो सरकारी महाविद्यालयों में उनके समकक्ष कार्यरत कर्मचारियों को प्राप्त होती है.
चतुर्थ,सरकारी महाविद्यालयों में रेशनलाइजेशन की नीति को तुरंत लागू करना चाहिए . विद्यार्थियों की संख्या के अनुपात से ही प्रोफेसरों व अन्य स्टाफ की तैनाती की जानी चाहिए . शहरी क्षेत्रों के कालेजों में स्टाफ विद्यार्थियों की संख्या के अनुपात से कहीं अधिक है. दूसरी ओर कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों के कालेजों में स्टाफ का अभाव है. छानबीन के आधार पर ऐसे उदाहरण भी मिल जाएंगे कि टाइम टेबल में दो सैक्शन है परंतु व्यवहार में दोनों को मिलाकर दिया जाता है और वह भी स्वयं न पढ़ाकर कई बार एक्सटेंशन लेक्चरर को पढ़ाने के लिए बाध्य किया जाता है. हरियाणा सरकार ने रेशनेलाइजेशन आयोग का गठन किया हुआ है. रेशनेलाइजेशन आयोग की अनुशंसा के आधार पर स्टाफ को जरूरत के आधार पर ट्रांसफर व एडजस्टमेंट करके सुधार किया जा सकता है.
अंततः, उच्च शिक्षा की दशा और दिशा को सुधारने के लिए सरकार की नीतियों का जन हित में होना अति आवश्यक है. हरियाणा में उच्च शिक्षा का निजीकरण एवं व्यवसायीकरण जन हित विरोधी है.