पिछड़ी जातियों में बुद्ध धर्म के प्रति आकर्षण बढ़ा है : डाक्टर भिक्खु नन्द रतन थेरो

डाक्टरभिक्खु नन्द रतन थेरो से एक मुलाक़ात

भिक्खु नन्द रतन थेरो कुशीनगर में श्रीलंका बुद्ध विहार के संचालक है और इस क्षेत्र के एक बेहद सम्मानित सामजिक व्यक्तित्व जो आज अपनी मेहनत और कर्ताव्यनिषठा के बल पर पूरे क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम है. ऐसा अक्सर कहा जाता है के पिछड़ी जातियों में सांस्कृतिक बदलाव नहीं आ पा रहा है क्योंकि ब्राह्मणवाद बहुत हावी है लेकिन कुशीनगर में अब पिछड़ी जातियों में भी बुद्ध धम्म का प्रसार हो रहा है और बड़ी संख्या में धर्मगुरु और भिक्खु अब इन समुदायों से भी आ रहे है.

भिक्खु नन्द रतन भंते का जन्म १० जुलाय १९८२ को नागल गाँव, जिला मैनपुरी में श्री दिवारी लाल शाक्य और माया देवी शाक्य के घर पर हुआ. बुद्ध धम्म में उनकी प्रारंभिक प्रवज्या १९९३ में श्री लंका में डाक्टर भदंत डी सोम्रतन महाथेरो द्वारा श्रावस्ती में दी गयी. बाद में १० अक्टूबर २००० को भदंत ज्ञानेश्वर महाथेरो ने कुशीनगर में उन्हें उपसम्पदा प्रदान की. १९९५ में वह कुशीनगर आ गए और भदंत ज्ञानेश्वर के संपर्क में आये और फिर उन्ही से उच्च दीक्षा ग्रहण की. आज भी वह भदंत ज्ञानेश्वर के सबसे महत्वपूर्ण शिष्यों में माने जाते है. ये सर्वविदित है के भदंत ज्ञानेश्वर इस दौर में सबसे बुजुर्ग और महत्वपूर्ण भिक्खुओ में है जो भदंत चंद्रमणि के शिष्य है जिन्होंने बाबा साहेब डाक्टर आंबेडकर को सर्वप्रथम दीक्षा दी थी. हालांकि वह बाल्यकाल से ही धम्म दीक्षा ले चुके थे फिर भी पढ़ाई के प्रति उनका रुझान कम नहीं हुआ और उन्होंने सभी कार्य करते हुए भी सम्पूर्ण शिक्षा की पूरी कोशिश की और २०१९ में उन्हें संपूर्ण संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से पाली भाषा में शोध के लिए पी.एच.डी प्राप्त की. उनके शोध का विषय था बौध धम्म की अभिवृद्धि में शाक्य भिक्षुओ का योजदान. उन्होंने इसके अलावा भी म्यांमार के बुद्धिस्ट विश्विद्यालय से भी डिप्लोमा हासिल किया और बेसिक कंप्यूटर लर्निंग का भी डिप्लोमा प्राप्त किया

भिक्खु नन्द रतन थेरो कई पत्र पत्रिकाओं का संचालन कर रहे है जिसमे बुद्ध ज्योति और निब्बन ज्योति शामिल है. वह बहुत से सामजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक संगठनो से भी जुड़े हुए है. पाली सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के सचिव है. निर्वाण सेवा संसथान के अध्यक्ष है और महामाया शाक्यमुनि शिक्षा समिति इंटर कालेज, मैनपुरी के भी अध्यक्ष है. 2009 में जून से दिसंबर में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त था. भिक्खु नन्द रतन थेरो कई शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े हुए है.

उनका उद्देश्य श्रीलंका बुद्ध विहार को एक ऐसे केंद्र के रूप में विकसित करने का है जहा पर दुनिया भर के बुद्ध दर्शन के प्रेमी आये और शांति और मानवता के बुद्ध के विचारों को पढ़े और बुद्धिस्ट साहित्य और इतिहास के कार्य को बढाए. भंते नन्द रतन न केवल कुशीनगर अपितु पूर्वांचल के अन्य हिस्सों में भी बुद्ध धम्म के प्रचार प्रसार में लगे हुए है. उनके श्रीलंका बुद्ध विहार में अशोक स्तम्भ भी बना हुआ है और हर वर्ष अशोक महान का जन्म दिन और उनकी बुद्धिस्ट विरासत को बचाने का संकल्प लिया जा रहा है.

ये बातचीत डॉ भिक्खु नन्द रतन थेरो के कुशीनगर स्थित श्री लंका बुद्ध विहार में हुई जिसे वह बहुत तन्मयता से बना रहे है. उनका एक सपना है के बेहतर लाइब्रेरी बने और बुद्धिस्ट और पीस स्टडीज के कोर्स वहा से चले. सबसे अच्छी बात ये है के उनके जन संपर्को के चलते अब पिछड़ी जातियों में भी बुद्ध धम्म के प्रति आकर्षण बढ़ा है .

श्री लंका बुद्ध विहार एक ऐतिहासिक बुद्धविहार है जो बेहद जर्जर हालत में था क्योंकि जो भिक्खु श्रीलंका से यहाँ आये थे उन्हें इन्ही परिस्थितियों में भारत छोड़ कर जाना पडा था और फिर इस स्थान पर अनेको अराजक लोगो की नज़र पडी रही. डाक्टर भिक्खु नन्द रतन थेरो ने इस बुद्ध विहार को पुनर्निर्माण करने का निर्णय लिया और आज ये बेहतर स्थिति में है और कुछ वर्षो में पूरी तरह से तैयार हो जाएगा.

वह यह मानते है के बाबा साहेब के क्रांतिकारी कदमो से दलितों ने भारी संख्या में बुद्ध धम्म को अपनाया और आगे बढे लेकिन पिछड़े वर्ग में ऐसी मुहीम नहीं चली जो उनको सामाजिक सांस्कृतिक क्रांति के और लाती लेकिन ख़ुशी की बात है के अब पिछड़ी जातियों में भी बुद्ध धम्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है और वे उसे अपना भी रहे है. वह कहते है अब लोग धम्म के महत्त्व को समझ रहे है और येही से बदलाव भी आयेगा क्योंकि बुद्ध ने तो सभी से स्नेह करना सिखाया और बराबरी की बात कही.

श्री लंका बुद्ध विहार के लिए डाक्टर नन्द रतन थेरो जी की बहुत से योजनाये है और वो चाहते है के दलित पिछड़ी जातियों के विचारशील लोग उनके विहार में आये और समाज के लिए चिंतन करें. आज उनके प्रयासों से क्षेत्र में पिछड़ी जातियों में एक नया उत्साह है . कुछ समय पूर्व ही उन्होंने देवरिया जनपद के मल्वाबर गाँव में लोगो द्वारा निर्मित अशोक स्तम्भ और एक बुद्ध विहार का शिलान्यास किया. ये बुद्ध विहार गाँव के पिछड़े वर्ग के लोगो द्वारा निर्मित किया गया था. इस सांस्कृतिक परिवर्तन के जरिये भी समाज में एक नयी एकता और मैत्री भावना बन सकती है.

डाक्टर भिक्खु नन्द रतन थेरो से ये बातचीत कुशीनगर में उनके श्रीलंका बुद्ध विहार में ६ अप्रेल २०२१ को रिकॉर्ड की गयी थी. इस महत्वपूर्ण बातचीत में वह कई ऐसे प्रश्नों पर अपनी राय बेबाकी से रख रहे है जिन्हें हम इग्नोर कर देते है. आज उतर प्रदेश, बिहार और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में सांस्कृतिक क्रांति की जरुरत है और बुद्ध को बिना पढ़े और समझे ये संभव नहीं है. हम सभी ने देख लिया है के मात्र राजनैतिक परिवर्तनों से देश के बहुजन समाज को लाभ नहीं हो सकता इसलिए सामाजिक सांस्कृतिक प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करना होगा. पूरी बातचीत आप इस लिंक में सुन सकते है.

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